तकफ़ीर ए गुनाहान
यह लेख पापों को मिटाने के बारे में है। अन्य प्रयोगों के लिए तकफ़ीर (बहुविकल्पी) देखें।
तकफ़ीर ए गुनाहान (अरबीः تكفير الذنوب) अर्थात क़यामत के दिन अच्छे कर्मों के इनाम के कारण पापों या उनके प्रभावों को मिटाना है। क़ुरआन और इस्लामी हदीसों में ईमान, अच्छे कर्म, तौबा (पश्चाताप), जिहाद, गुप्त दान और इबादत को गुनाहों की तकफ़ीर का कारक बताया गया है।
पापो का मिटाना एक धर्मशास्त्रीय (कलामी) चर्चा है जिसे मुस्लिम धर्मशास्त्री एहबात, एहबात व तकफ़ीर, तहाबतो आमाल और सवाब और अकाब के इकट्ठा करने की अनुमति जैसे शीर्षकों के तहत जांचते हैं।
इमामिया और अशाएरा क़ुरआन और हदीसों में वर्णित पापों की ही तकफीर को स्वीकार करते हैं; लेकिन मोतज़ेला का मानना है कि तकफ़ीर सारे गुनाह मिटा देती है। इमामिया धर्मशास्त्री मुतज़ेला की इस बात को क़ुरआन की कुछ आयतों के विपरीत मानते हैं कि ईश्वर अच्छे और बुरे कर्मों के लिए पुरस्कार और दंड की गणना अलग-अलग करता है।
परिभाषा
तकफ़ीर का अर्थ है ढकना और छिपाना[१] इसलिए, जो व्यक्ति ईश्वर के आशीर्वाद से इनकार करता है, उसे काफ़िर कहा जाता है।[२] धर्मशास्त्र में पापों की तक्फिर का अर्थ है अच्छे कर्मों के इनाम के कारण पापों की सजा का गायब होना। इस आधार पर, तकफ़ीर एहबात के विपरीत है, जो पापों के कारण अच्छे कर्मों के गायब होने को संदर्भित करता है।[३]
तकफ़ीर का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ़ ईशनिंदा के अर्थ में भी किया जाता है, जिसे अहले क़िबला की तकफ़ीर कहा जाता है।[४]
कारक
क़ुरआन और हदीसों में गुनाहों की तकफ़ीर के कारक बताए गए हैं; क़ुरआन में ईमान और अच्छे कर्म,[५] तौबा (पश्चाताप),[६] गुनाहे कबीरा से परहेज,[७] गुप्त दान, जिहाद[८] और इबादत[९] को गुनाहों के खत्म करने वाले कारक के तौर पर बताया गया है। रिवायतो मे शफ़ाअत (सिफारिश)[१०] इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत,[११] क़ुरआन का पढ़ना[१२] और नमाज़े शब पढ़ना[१३] पापों को मिटने के कारक माने जाते हैं।
धर्मशास्त्र में तकफ़ीर
गुनाहो की तकफ़ीर एक धर्मशास्त्रीय चर्चा है और इसकी चर्चा आम तौर पर एहबात के साथ की होती है।[१४] मुस्लिम धर्मशास्त्री गुनाहो की तकफ़ीर पर एहबात,[१५] एहबात व तकफ़ीर,[१६] तहाबुते आमाल[१७] और सवाब और अकाब के इकट्ठा करने की अनुमति[१८] की जाँच करते है। कुछ शिया और सुन्नी विद्वान पुनरुत्थान (क़यामत)[१९] के बारे मे और मोअतज़ेला वाद और वईद[२०] की चर्चा के मुद्दे पर चर्चा की है।
मुस्लिम धर्मशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि यदि कोई काफ़िर मुसलमान हो जाता है, तो कुफ़्र की सज़ा के साथ-साथ उसके द्वारा कुफ़्र के दौरान किए गए पापों की सज़ा भी समाप्त कर दी जाएगी[२१], लेकिन मुस्लमान होने के बाद किए गए पापों के संबंध मे मतभेद है:
- मोतज़ेला सभी पापों के लिए तकफ़ीर को स्वीकार करते है और उनका मानना है कि एक अच्छा काम किसी भी पाप को साफ कर सकता है।[२२] इस नज़रिये पर उनके एतेक़ाद का कारण यह है कि मोअतज़ेला धर्मशास्त्रीयो को अच्छे कर्मो के लिए सवाब (इनाम) और पापो के लिए एकाब़ (सज़ा) का उल्लेख करने के पश्चात इस समस्या का सामना करना पड़ा कि यदि कोई कार्य इनाम और सजा का संयोजन है, तो उपकृत के लिए यह आवश्यक है कि वे दोनों के योग्य हों एक ही समय में इनाम और सजा के योग्य, और उन्होंने इसे असंभव मानते थे।[२३] इसीलिए एहबात और तकफ़ीर का सिद्धांत फेश किया।[२४]
- शिया और अशायरा[२५] एहबात को पूर्णरूप से स्वीकार नहीं करते हैं और कहते हैं: अच्छे कर्म केवल उन पापों को साफ करते हैं जिनका क़ुरआन या हदीस में उल्लेख किया गया है।[२६] शिया इस संबंध मे क़ुरआन की कुछ आयतो जैसे सूर ए ज़िलज़ाल की आयत न 7 और 8, जिसमें यह कहा गया है: "तो जिसने कण के बराबर भी भलाई की होगी, वह उसके इनमा को देखेगा, और जिसने कण के बराबर भी बुराई की होगी, वह उसकी सज़ा को देखेगा। अतः उनका कहना है कि परमेश्वर अच्छे कर्म और बुरे कर्म को अलग अलग हिसाब करता है।[२७]
पाप या उसकी सजा का मिटना?
तकफ़ीर गुनाह के मिटाने को कहते है या उसकी सज़ा ख़त्म होने को कहते है इस बात पर मतभेद है; मोअतज़ेला के बुजुर्गों में से एक अबू अली जुब्बाई का मानना है कि तकफ़ीर से पाप मिटा दिया जाता है, लेकिन उनके बेटे अबू हाशिम जुब्बाई ने कहा: तकफीर पार की सजा को हटा देता है।[२८] कुछ मुस्लिम दार्शनिकों ने यह भी लिखा है कि तकफिर का अर्थ पाप को मिटाना है, क्योंकि वे मानते हैं कि जो कुछ अस्तित्व कभी अस्तित्वहीन नही होता। इसलिए निम्नलिखित दो तरीकों में से एक में पाप के उन्मूलन की व्याख्या करते हैं:
- क्योंकि हर पाप एक पाप है, यह अस्तित्वहीन और ग़ैरमखलूक़ है।
- जिस प्रकार एक पापी का अस्तित्व पश्चाताप से दूसरे अस्तित्व में बदल जाता है। बुरे कर्म भी अच्छे कर्म बन जाते हैं।[२९]
संबंधित लेख
- एहबात
फ़ुटनोट
- ↑ राग़िब, मुफ़रेदात, 1412 हिजरी, पेज 714
- ↑ राग़िब, मुफ़रेदात, 1412 हिजरी, पेज 714
- ↑ मुहम्मदी, शरह कशफ अल मुराद, 1378 शम्सी, पेज 553 क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, 1422 हिजरी, पेज 422
- ↑ महमूद अब्दुर रहमान अब्दुल मुनइम, मोजम अल मुस्तलेहात वल अलफ़ाज़ अल फ़िक़्हीया, तकफ़ीर के अंतर्गत, 1999 ई
- ↑ सूर ए मुहम्मद, आयत न 2
- ↑ सूर ए तहरीम, आयन न 8
- ↑ सूर ए निसा, आयत न 4
- ↑ सूर ए आले इमरान, आयत न 195
- ↑ सूर ए नूह, आयत न 3-5
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 34
- ↑ इब्ने क़ूल्वैह, कामिल अल ज़ियारात, 1356 शम्सी, पेज 126
- ↑ शईरी, जामे अल अख़बार, मतबा हैदरीया, पेज 39
- ↑ अय्याशी, तफ़सीर अल अय्याशी, 1380 हिजरी, भाग 2, पेज 162
- ↑ क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, 1422 हिजरी, पेज 422-427
- ↑ ईजी, शरह अल मुवाफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 309
- ↑ क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, 1422 हिजरी, पेज 422-427
- ↑ हुम्सी राजी, अल मुंक़िज़ मिन अल तक़लीद, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 42
- ↑ देखेः इब्ने मीसम बहरानी, क़वाइद अल मराम, 1406 हिजरी, पेज 164
- ↑ ईजी, शरह अल मुवाफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 289-309
- ↑ क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, 1422 हिजरी, पेज 422-427
- ↑ देखेः शब्बर, हक़ अल यक़ीन, 1424 हिजरी, पेज 551
- ↑ शब्बर, हक़ अल यक़ीन, 1424 हिजरी, पेज 550
- ↑ एहबात वा तकफ़ीर, पेज 59
- ↑ क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, 1422 हिजरी, पेज 422-423
- ↑ देखेः ईजी, शरह अल मुवाफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 309
- ↑ शब्बर, हक़ अल यक़ीन, 1424 हिजरी, पेज 549
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 170
- ↑ क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, 1422 हिजरी, पेज 425-426
- ↑ दाएरातुल मआरिफ़ क़ुरआन करीम, एहबात वा तकफ़ीर
स्रोत
- इब्ने क़ूलवैह, जाफ़र बिन मुहम्मद, कामिल अल ज़ियारात, संशोधनः अब्दुल हुसैन अमीनी, नजफ, दार अल मुर्तज़वीया, 1356 शम्सी
- इब्ने मीसम बहरानी, क़वाइद अल मराम फ़ी इल्म अल कलाम, शोधः सय्यद अहमद हुसैनी, क़ुम, मकतबा आयतुल्लाह अल मरअशी अल नजफ़ी, 1406 हिजरी
- ई जी-मीर सय्यद शरीफ़, शरह अल मुवाफ़िक़, संशोधनः बदरुद्दीन नाअसानी, क़ुम, अल शरीफ़ अल रज़ी, उफसुत क़ुम, 1325 हिजरी
- जाफ़री, याक़ूब, आशनाई बा चंद इस्तेलाह क़ुरआनी, मकतब इस्लाम, क्रमांक 100, साल 33
- हुम्सी राज़ी, सदीदुद्दीन, अल मुंक़िज़ मिन अल तक़लीद, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, 1412 हिजरी
- दाएरातुल मआरिफ़ क़ुरआन करीम, एहबात वा तकफ़ीर, बाएगानी शुदे अज़ नुस्ख़े असली दर शहरीवर 1396 शम्सी
- राग़िब इस्फ़हानी, हुसैन बिन मुहम्मद, मुफ़रेदात अल फ़ाज़ अल कुरआन, शोधः सफ़वान अदनान दाऊदी, सीरिया-लबनान, दार अल इल्म –अल दार अल शामीया, 1412 हिजरी
- शब्बस, सय्यद अब्दुल्लाह, हक़ अल यक़ीन फ़ी मारफ़त उसूल अल दीन, क़ुम, अनवार अल महदी, 1424 हिजरी
- शईरी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, जामे अल अख़बार, नजफ़, मत्बा हैदरीया
- तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फी तफसीर अल क़ुरआन, क़ुम, मकतबा अल नशर अल इस्लामी, 1417 हिजरी
- अय्याशी, मुहम्मद हसन मसऊद, तफसीर अल अय्याशी, संशोधनः सय्यद हाशिम रसूली महल्लाती, तेहरान, अल मतबा अल इल्मीया, 1380 हिजरी
- क़ाज़ी, अब्दुल जब्बार वा क़व्वामुद्दीनन मानकदीम, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, तालीक़ः अहमद बिन हुसैन अबी हाशिम, बैरूत, दार एहया अल अरबी, 1422 हिजरी
- गिरोह दानिश नामा कलाम इस्लामी, एहबात वा तकफ़ीर, दर मजल्ला तखुस्सुसी कलाम इस्लामी, क्रमांक 39, पाईज़ 1380 शम्सी
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1403 हिजरी
- मुहम्मदी गीलानी, तकमेला शवारिक़ अल इलहाम, क़ुम, मकतबा अल आलाम अल इस्लामी, 1421 हिजरी
- मुहम्मदी, अली, शरह कश्फ अल मुराद, क़ुम, दार अल फ़िक्र, 1378 शम्सी
- महमूद अब्दुर रहमान अब्दुल मुनइम, मोजम अल मुस्तलेहात व अल अलफ़ाज़ अल फ़िक़्हीया, क़ाहेरा, 1999 ई