अजल मुसम्मा
अजल मुसम्मा (अरबीःالأجل المسمى) एक कुरआनी शब्द है जिसका अर्थ है किसी चीज़ का निर्धारित और निश्चित अंत। अजल मुसम्मा अजल मोअल्लक़ का विपरीत शब्द है, जिसका अर्थ है किसी ऐसी चीज़ का अंत जिसमे कमी और बढ़ोतरी हो सकती है।
क़ुरआन में अजल मुसम्मा शब्द का इस्तेमाल इंसानों के लिए भी किया गया है, जिस पर टिप्पणीकारों ने अलग-अलग राय व्यक्त की है। दूसरी बातों के अलावा, उन्होंने कहा है: अजल मुसम्मा इंसान की मृत्यु का निश्चित समय है। कुछ लोगो का मानना है कि अजल मुसम्मा ही परलोक की दुनिया है।
परिभाषा
- मुख्य लेख: अजल
अजल मोस्म्मा दो शब्दों अजल और मुसम्मा से मिलकर बना हैः अजल का तात्पर्य समय की अवधि या समय की समाप्ति से है;[१] मुसम्मा का अर्थ निश्चित और निर्धारित भी होता है।[२]
कुरआन में, अजल कभी कभी मुस्मा की क़ैद साथ इस्तेमाल होता है, जिसे टिप्पणीकार अजल मुसम्मा कहते हैं, और कभी-कभी इसे बिना क़ैद के लिखा जाता है, और कुछ मामलों में, जैसे सूर ए अनआम की दूसरी आयत मे, जिसे अजल ग़ैर मुसम्मा, गैर-नियतात्मक अंत और निलंबित अंत के नामों से जाना जाता है।[३]
अलग-अलग व्याख्याएँ
अजल मुसम्मा एक कुरआनिक शब्द है और इसका इस्तेमाल कुरआन में अलग-अलग संदर्भों में 21 बार किया गया है।[४] उदाहरण के लिए, सूर ए अल-बकरा की आयत 282 में इसका इस्तेमाल क़र्ज के संबंध में किया गया है, जिसका अर्थ है इस काम के लिए एक निश्चित समय निर्धारित करना।[५]
कुरआन में, सूर ए अनआम की दूसरी आयत में मनुष्य के बारे में 'अजल मुसम्मा' शब्द का प्रयोग किया गया है: " هُوَ الَّذِى خَلَقَكُم مِّن طِينٍ ثُمَّ قَضىَ أَجَلًا وَ أَجَلٌ مُّسَمًّى عِندَهُ होवल लज़ी ख़लक़कुम मिन तीनिन सुम्मा क़ज़ा अजलन व अजलुम मुसम्मा इंदहू, (अनुवादः वही है जिसने तुम्हें मिट्टी से बनाया, फिर उसने अंत को निर्धारित कर दिया है।)"
इस प्रकार की आयतो में अजल मुसम्मा के अर्थ के संबंध में टीकाकारों के बीच विभिन्न मत बने हैं:[६]
- एक समूह का कहना है कि इसका अर्थ है मानव जीवन की समय अवधि, मृत्यु के समय से लेकर पुनरुत्थान की शुरुआत तक; विश्व में मानव जीवन की अवधि के विपरीत, जो एक अनिश्चित काल है।[७]
- कुछ लोग अजल मुसम्मा को परलोक की दुनिया मानते हैं।[८]
- कुछ लोगों का दृष्टिकोण यह है कि अजल मुसम्मा का अर्थ मरने वालों के जीवन के अंत के सामने उन लोगों के जीवन का अंत है जो अभी भी जीवित हैं।[९]
- कुछ लोगों का मानना है कि अजल मुसम्मा का अर्थ किसी व्यक्ति की मृत्यु है।[१०]
- अल्लामा तबातबाई के अनुसार, निश्चित अंत (अजल मुसम्मा) और अनिश्चित अंत (अजल ग़ैर मुसम्मा) दोनों का अर्थ मानव जीवन के अंत का समय है; इस अंतर के साथ कि निश्चित अंत वह समय है जब एक व्यक्ति निश्चित रूप से मर जाएगा और केवल अल्लाह ही इसके बारे में जानता है; हालाँकि, प्रत्येक व्यक्ति की लंबित मृत्यु उसकी शारीरिक स्थितियों पर आधारित होती है, जो बाहरी कारकों के आधार पर बढ़ या घट सकती है।[११]
अजल मुसम्मा और अजल मौअल्लक़ मे अंतर
- यह भी पढ़े: अजल मोअल्लक़
अल्लामा तबातबाई के अनुसार, निश्चित अंत (अजल मुसम्मा) और निलंबित अंत (अजल मोअल्लक़) के बीच अंतर यह है कि निश्चित अंत निश्चित है और इसमें बदा (परिवर्तन) प्राप्त नहीं होता है; लेकिन लंबित अंत (अजल मोअल्लक़) में बदा हासिल होती है। दूसरे शब्दों में, प्रार्थना (दुआ), दान (सदक़ा), और कोई भी कार्य जो लंबित मृत्यु (अजल मोअल्लक़) में प्रभावी है, उसका मृत्यु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।[१२] इसके अलावा, कुरआन की आयतों के आधार पर, विशेष रूप से सूर ए अनआम की आयत न 2, जो अजल मुसम्मा को ईश्वर के समीप मानते हैं, उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि अजल मुसम्मा का समय केवल ईश्वर ही जानता है।[१३]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ क़रशी, क़ामूस क़ुरआन, अजल शब्द के अंतर्गत
- ↑ क़रशी, क़ामूस क़ुरआन, इस्म शब्द के अंतर्गत
- ↑ बयात, अजल मोअल्लक़ वा अजल मुसम्मा अज़ मंजरे आयात व तजल्ली आन दर रिवायात, पेज 8
- ↑ क़रआती, तफसीर नूर, 1383 शम्सी, भाग 2, पेज 410
- ↑ तफसीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 2, पेज 383
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 423 व 424
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 423
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 423
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 423
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 423
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 9-10
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 9
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 8
स्रोत
- बयात, मुहम्मद हुसैन, अजल मोअल्लक़ वा अजल मुसम्मा अज़ मंज़रे आयात वा तजल्ली आन दर रिवायात, सिराज मुनीर, शम्सी 22, 1395 शम्सी
- तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी जामेअ मुदर्रसीन हौज़ा ए इल्मीया क़ुम, पांचवा संस्करण 1417 हिजरी
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमअ अल बयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, नासिर ख़ुसरो, तीसरा संस्करण, 1372 शम्सी
- क़राती, मोहसिन, तफसीर नूर, तेहरान, मरकज़ फ़रहंगी दरसहाए अज़ क़ुरआन, 1383 शम्सी
- क़रशी बनाबी, अली अकबर, क़ामूस क़ुरआन, तेहारन, दार अल कुतुब अल इस्लमीया, छठा संस्करण, 1371 शम्सी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1374 शम्सी