अजल मोअल्लक़

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अजल मोअल्लक़ (अरबीःالأجل المعلَّق) क़ुरआनिक शब्द है जिसका अर्थ, मानव मृत्यु का अनिश्चित और परिवर्तनशील समय है, जो अजल मुसम्मा (निश्चित मृत्यु) के विपरीत है। अल्लामा तबातबाई के अनुसार, लंबित अंत (अजल मौअल्लक़) प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति के आधार पर उसकी मृत्यु का समय है, जो बाहरी कारकों के कारण घट-बढ सकती है।

कुरआन की निम्नलिखित आयतों पर टिप्पणीकारों ने, सूर ए अनआम की आयत 2 के इस अंश ثُمَّ قَضىَ أَجَلًا وَ أَجَلٌ مُّسَمًّى عِندَهُ "सुम्मा क़ज़ा अजलिन व अजलुम मुसम्मा इंदहू" सहित लंबित अंत (अजल मोअल्लक़) और निश्चित अंत (अजल मोसम्मा) की जाँच पड़ताल की है।

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, दान (सदक़ा), सिले-रहम, पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार, पाप न करना और इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत करना जैसी चीजें व्यक्ति की मृत्यु में देरी करती हैं। दूसरी ओर, व्यभिचार, माता-पिता को गाली देना, झूठी क़सम खाना और रिश्तेदारों से नाता तोड़ लेना जैसे काम करने से आयु कम हो जाती है।

परिभाषा

मुख्य लेख: अजल

अरबी भाषा में किसी भी चीज़ के समय को या उसके समय के अंत को "अजल" कहा जाता है।[१] अजल शब्द का प्रयोग जब किसी व्यक्ति के बारे में किया जाता है, तो इसका अर्थ जीवन के अंत का समय या उसकी मृत्यु का समय होता है।[२] क़ुरआन में मनुष्य के लिए दो प्रकार के अजल की बात कही गई है: एक "मुसम्मा" की क़ैद के साथ और दूसरा बिना क़ैद के, जिसे टिप्पणीकार गैर-निश्चित अंत (अजल ग़ैर मोसम्मा), गैर-नियतात्मक कयामत[३] और निलंबित कयामत[४] के नाम से संदर्भित करते हैं।

अल्लामा तबातबाई के अनुसार अजल मोसम्मा, मानव मृत्यु का निश्चित और अपरिवर्तनीय समय है, जिसे केवल अल्लाह ही जानता है। दूसरी ओर, लंबित अंत का अर्थ है किसी व्यक्ति की मृत्यु का प्राकृतिक समय, जिसमें परिवर्तन संभव है।[५] उनके अनुसार, लंबित अंत किसी व्यक्ति की शारीरिक स्थितियों के आधार पर उसकी मृत्यु का समय है; अर्थात्, एक व्यक्ति जो अपनी शारीरिक स्थितियों के आधार पर सौ वर्ष तक जीवित रह सकता है, उदाहरण के लिए, उसका शेष जीवन (अर्थात् उसकी मृत्यु का समय) सौ वर्ष की आयु में होता है; लेकिन वही व्यक्ति देर-सवेर कुछ कारणों से मर सकता है और यही उसकी तथाकथित मृत्यु है।[६]

यह भी पढ़े: अजल मुसम्मा

अजल मोअल्लक की उत्पत्ति

निलंबित अंत और निश्चित अंत के बारे में चर्चा कुरआन की आयतों मे बयान हुई है, जिसमें सूर ए अनआम[७] की दूसरी आयत भी शामिल है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि मनुष्य के लिए दो अंत हैं: (वह है) जिस ने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर उस ने एक समय निर्धारित किया, और वही उस निर्धारित या निश्चित समय को जानता है।

इस आयत के आधार पर, कुछ टीकाकारों ने कहा है: मनुष्य के लिए दो निश्चित और गैर-निश्चित अंत हैं:[८] पहला निश्चित अंत है जिसका उल्लेख इसी नाम से आयत में किया गया है; दूसरे को अजल मोअल्लक़ भी कहा जाता है।[९]

हालाकिं आयत में उल्लिखित जीवन के दो प्रकार के अंत के संबंध में अन्य व्याख्याएं प्रस्तावित की गई हैं।[१०] उदाहरण के लिए, कुछ ने कहा है: आयत मे अजल मोसम्मा का अर्थ मानव जीवन की मृत्यु से लेकर क़यामत तक की अवधि है। अजल ग़ैर मोसम्मा का अर्थ मानव जीवन की दुनिया मे समय अवधि है।[११] उन्होंने यह भी कहा है: अजल मोसम्मा का अर्थ उन लोगों के जीवन का अंत है जो अभी भी जिंदा है; जीवन के दूसरे छोर के विपरीत, जो मर चुके लोगों के जीवन का अंत है।[१२]

अजल मोअल्लक़ को प्रभावित करने वाले कारक

कुरआन की आयतो और हदीसों के आधार पर, कुछ चीजें करने से मौत में देरी हो जाती है या आगे बढ़ जाती है।[१३] सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई ने सूर ए नूह की तीसरी और चौथी आयत का जिक्र करते हुए लिखा: ईश्वर की इबादत करना, धर्मपरायणता और पैगंबर (स) की आज्ञाकारिता से मृत्यु में देरी होती है।[१४]

शेख तूसी ने इमाम सादिक (अ) से वर्णन किया है: "जो लोग अपने पापों के कारण मरते हैं, वे उन लोगों से अधिक हैं जो प्राकृतिक मृत्यु से मरते हैं, और जिनकी जिंदगी अच्छे कर्मों से लंबी होती है, वे उन लोगों से अधिक हैं जो स्वाभाविक रूप से लंबे समय तक जीवित रहते हैं।"[१५]

इस्लामी रिवायतो में, दान (सदक़ा), सिले रहम, पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करना, पापों को त्यागना, इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत करना, अधिक शुक्र करना और हर नमाज़ के बाद सूर ए तौहीद का पाठ करना जैसी चीजें मृत्यु में देरी करती हैं[१६] इसी प्रकार पाप करना जैसे व्यभिचार, माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार, झूठी क़सम खाना और रिश्तेदारों के साथ नाता तोड़ना मृत्यु को जल्दी आगे ले आता है।[१७]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. क़रशी, क़ामूस क़ुरआन, अजल शब्द के अंतर्गत
  2. अबू तालेबी, अजल, पेज 161
  3. बयात, अजल मोअल्लक व अजल मुसम्मा अज़ मंज़रे आयात व तजल्ली आन दर रिवायात, पेज 8
  4. देखेः तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 9 भाग 12, पेज 30
  5. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 10
  6. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 10
  7. देखेः तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 423 व 424; तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 8-10
  8. देखेः तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 7, पेज 9
  9. देखेः तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 12, पेज 30
  10. तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 423-424
  11. तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 423
  12. तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 424
  13. अबू तालिबी, अजल, पेज 163
  14. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भगा 20, पेज 28
  15. शेख तूसी, अमाली, 1414 हिजरी, पेज 305
  16. अबू तालिबी, अजल, पेज 163
  17. अबू तालिबी, अजल, पेज 163-164


स्रोत

  • अबू तालिबी, अजल, दाएरातुल मआरिफ़ क़ुरआन करीम, क़ुम, बूस्तान किताब, 1382 शम्सी
  • बयात, मुहम्मद हुसैन, अजल मोअल्लक़ व अजल मुसम्मा अज़ मंज़रे आयात व तजल्ली आन दर रिवायात, सिराज मुनीर, क्रमांक 22, 1395 शम्सी
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, क़ुम, दफतर इंतेशारात इस्लामी जामे मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मीया क़ुम, पांचवा संस्करण 1417 हिजरी
  • तबरसी, फ़्ज़ल बिन हसन, मजमा अल बयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, तेहरान, नासिर ख़ुसरो, तीसरा संस्करण, 1372 शम्सी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, संशोधनः मोअस्सेसा अल बेअसत, अल अमाली, क़ुम, दार अल सख़ाफ़ा, 1414 हिजरी
  • क़ुरशी, अली अकबर, क़ामूस क़ुरआन, तेहरान, दार अल कुतुब इस्लामी, छठा संस्करण, 1371 शम्सी