सूर ए कौसर

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(108वाँ सूरह से अनुप्रेषित)
सूर ए कौसर

सूर ए कौसर (अरबी:سورة الكوثر) पवित्र क़ुरआन का 108वाँ और मक्की सूरों में से एक है, जो तीसवें पारे में स्थित है। यह सूरह क़ुरआन का सबसे छोटा सूरह है। इस सूरह को "कौसर" कहा जाता है क्योंकि इसकी शुरुआती आयत में अल्लाह ने अपने पैग़ंबर (स) को कौसर के उपहार (नेअमत) प्रदान करने का उल्लेख किया है और पैगंबर (स) को इस महान उपहार (नेअमत) के बदले नमाज़ पढ़ने और बलिदान (क़ुर्बानी) का आदेश दिया है।

मुफस्सेरीन ने कौसर के विभिन्न व्याख्याएं पेश की हैं: उनमें हौज़े कौसर, स्वर्ग, ख़ैर कसीर, नबूवत, क़ुरआन, मित्रों और अनुयायियों की अधिकता और शिफ़ाअत, आदि प्रसिद्ध हैं। शिया विद्वानों के अनुसार, हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) और उनकी संतान कौसर के मिस्दाक़ में से हैं क्योंकि यह सूरह उन लोगों के जवाब में प्रकट हुई थी जिन्होंने पैगंबर (स) को अब्तर (निःसंतान) होने का ताना दिया था।

सूरह कौसर का पाठ (तिलावत) करने की फ़ज़ीलत के बारे में कहा गया है कि जो भी इस सूरह को प्रतिदिन नमाज़ में पढ़ेगा, उसे हौज़े कौसर से सैराब किया जाएगा और वह क़यामत के दिन दरख़्ते तूबा की छाया में पैगंबर (स) के साथ बैठेगा।

परिचय

नाम

इस सूरह का नाम इसकी पहली आयत में वर्णित कौसर शब्द के नाम पर रखा गया है, जिसका अर्थ है ख़ैरे कसीर। खुदा ने पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स) को यह बड़ी नेअमत प्रदान की है।[१]

नाज़िल होने का क्रम और नाज़िल होने का स्थान

सूरह कौसर मक्की सूरह में से एक है।[नोट १] यह सूरह नाज़िल होने के क्रम के अनुसार पंद्रहवाँ सूरह है और वर्तमान क़ुरआन के अनुसार 108वाँ सूरह है और क़ुरआन की अंतिम पारे में स्थित है।[२]

आयत, शब्द और अक्षरों की संख्या

3 आयत, 10 शब्द और 43 अक्षरों से मिलकर, यह सूरह क़ुरआन का सबसे छोटा सूरा है।[३]

विषय

सूरह ज़ोहा और सूरह इंशेराह की तरह इस सूरह की सभी आयतों में पैंगबर (स) को संबोधित किया गया है।[४] पहली आयत में खुदा ने पैगंबर (स) को कौसर जैसी नेअमत देने की खुशखबरी दी है।[५] मुफ़स्सेरीन ने कौसर का अर्थ ख़ैरे कसीर किया है।[६] दूसरी आयत में इस अज़ीम नेअमत के बदले नमाज़ पढ़ने और बलिदान (क़ुर्बानी) करने का आदेश दिया है।[७] तीसरे और अंतिम आयत में, पैगंबर (स) के दुश्मनों को निःसंतान (अबतर) के रूप में वर्णित किया है।[८]

कौसर का मिसदाक़

आयत में वर्णित कौसर शब्द के विषय में टीकाकारों (मुफ़स्सेरीन) में मतभेद है। हौज़े कौसर, स्वर्ग, स्वर्ग में एक नदी, ख़ैरे कसीर, नबूवत, क़ुरआन, अनगिनत सहाबा और अनुयायी, अनगिनत बच्चे और शिफ़ाअत, कौसर के मसादीक़ में वर्णित किये गऐ हैं।[९]

तफ़सीरे नमूना में, अधिकांश शिया इमामिया विद्वानों के मत को बयान करते हुए, कौसर का मिसदाक़ हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (अ) को क़रार दिया हैं, क्योंकि इस सूरह में उन लोगों की ओर इशारा किया गया है, जो पैगंबर (स) को संतानहीन और वंशहीन होने का ताना मारते थे, हालांकि पैगंबर (स) का वंश उनकी बेटी हजरत फातिमा (स) के माध्यम से जारी रहा और यह वह वंश (ज़ुर्रियत) है जिसे अल्लाह ने इमामत की अज़ीम ज़िम्मेदारी सौंपी है।[१०] अब्दुल्लाह जवादी आमोली, मुफ़स्सिरे क़ुरआन कहते हैं सूरह इस बात की पुष्टीकरण कर रहा कि कौसर और ख़ैरे कसीर हज़रत फातिमा (स) से सम्बंधित है कि ईश्वर ने यह अज़ीम महिला (बानों) पैगंबर (स) को अता कि और इनसे ग्यारह इमामों का जन्म हुआ जो दुनिया की शान बन गए और अब दुनिया के पूरब और पश्चिम इन ग्यारह इमामों और उनके वंशजों के धन्य नाम से शासित हैं।[११]अल्लामा तबातबाई बुज़ुर्ग मुफ़स्सिरे शिया ने अपनी किताब अल मीज़ान में इस बात की तरफ़ इशारा किया है कि इस सूरह के नाज़िल होने का कारण, पैगंबर (स) को तसल्ली देना और إِنَّا أَعْطَيْنَاكَ (इन्ना आतैनाका) के शब्द के माध्यम से यह बताया है कि कौसर पर उनका अधिकार है और वह उसके मालिक हैं इस से यह नतीजा निकलता है कि हज़रत फ़ातिमा (स) के बच्चे और उनका वंश, पैगंबर (स) के बच्चे और उनका वंश है। और यह क़ुरआन के ग़ैबी समाचारों में से है क्योंकि पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद अल्लाह ने हज़रत फ़ातिमा (स) के वंश में इतनी बरकत दी कि पूरे दुनियां में कोई भी वंश इनके वंश के सामान्य नहीं पाया जाता है। जबकि इनके वंश पर बहुत ज़ुल्म हुए और युद्धों में इनके वंश के बहुत से लोग शहीद हुए।[१२]

शाने नुज़ूल

सूरह कौसर आस बिन वाएल के उस ताने के जवाब में, जब उसने पैगंबर (स) को नि:संतान कहा था, नाज़िल हुई यह ताना ऐसे मौके पर दिया गया था जब पैगंबर के बेटे अब्दुल्लाह इस दुनिया से चल बसे थे और उनके अलावा पैग़ंबर (स) का कोई दूसरा बेटा नहीं था। इस स्थिति को देखते हुए बिन वाएल ने पैगंबर (स) को कुरैश के बुजुर्गों की सभा में निःसंतान होने का ताना मारा।[१३] अल्लाह ने अपने पैगंबर (स) की तसल्ली के लिए सूरह कौसर नाज़िल किया। जिसमें आपको ख़ैरे कसीर प्रदान करने का, और दुश्मनों के नि:संतान होने का शुभ समाचार दिया।[१४]

नहर शब्द की तफ़सीर

नहर शब्द की तफ़सीर में मुफ़स्सेरीन के बीच मतभेद पाया जाता है: फ़ज़ल बिन हसन तबरसी (निधन 548 हिजरी)[१५] व अल्लामा तबातबाई (निधन 1360 शम्सी)[१६] ने शिया और सुन्नी रिवायतों के अनुसार " हाथों को उठाना और तकबीर के समय चेहरे के सामने लाना" तफ़सीर की है। लेकिन आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी (जन्म 1305 शम्सी) ने नहर शब्द की तफ़सीर " बलिदान (क़ुर्बानी)" को अधिक उपयुक्त माना है क्योंकि कार्य से मनाही के उद्देश्य बुत पर्सत है इसलिए कि वह इबादत और बलिदान ईश्वर के अलावा (बुतों) के लिए करते थे।[१७]

नमाज़ में सूरह कौसर का पढ़ना

कुछ मुसतहब नमाज़ों में सूरह कौसर पढ़ने को कहा गया है:

  1. रमज़ान की ग्यारहवीं तारीख़ की रात की नमाज़: यह दो रक्अत नमाज़ है जिसकी हर रक्अत में एक मरतबा सूरह हम्द और बीस मरतबा सूरह कौसर पढ़ा जाता है।[१८]
  2. रमज़ान की अठ्ठारहवीं तारीख़ की रात की नमाज़: यह चार रक्अत नमाज़ है जिसकी हर रक्अत में एक मरतबा सूरह हम्द और पच्चीस मरतबा सूरह कौसर पढ़ा जाता है।[१९]
सूर ए कौसर, इमाम हुसैन (अ) के हरम (रौज़े) की एक दीवार पर

फ़ज़ीलत

अबू बसीर इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत करते हैं: जो शख़्स अपनी प्रतिदिन की नमाज़ों में सूर ए कौसर का पाठ करता है उसे हौज़े कौसर मिलेगा और वह दरख़्ते तूबा की छाया में पैगंबर (स) के साथ होगा।[२०] मजमा उल बयान में पैगंबर (स) की रिवायात है: जो शख़्स सूर ए कौसर का पाठ करता है अल्लाह उसे स्वर्ग की नदीयों से सैराब करेगा और ईदे कुर्बान के दिन मुस्लमानों द्वारा दी गई क़ुर्बानी और अहले किताब के द्वारा दी गई क़ुर्बानी के बराबर उसे इनाम (सवाब) दिया जाएगा।[२१]

कलाकृति

सूर ए कौसर उन सूरों में से एक है जो विभिन्न मस्जिदों, मासूमों के ज़रीहों और धार्मिक स्कूलों, की इमारतों पर उकेरी गई हैं जैसे इमाम हुसैन (अ) के रौज़े में देखा जा सकता है,[२२] इब्राहिम तेहरानी द्वारा शेख़ सदूक़ के मज़ार पर उल्लेख किया गया है[२३] मदरसा सिपाही सालार[२४] और सय्यद इस्फ़हान मस्जिद के प्रवेश द्वार पर देखा जा सकता है।[२५]

संबंधित लेख

नोट

  1. सूरह कौसर के नुज़ूल के स्थान के बारे में मतभेद पाया जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह सूरह मक्का में नाज़िल हुई और कुछ विद्वान मानते हैं कि सूरह कौसर मदीने में नाज़िल हुई है। लेकिन प्रसिद्ध यही है कि यह सूरह मक्की सरहों में से एक है। मकारिम शिराज़ी, तफ्सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 27, पृष्ठ 368

फ़ुटनोट

  1. खुर्रमशाही,सूर ए कौसर, 1377, खंड 1, पृष्ठ 1269।
  2. मारिफ़त, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, 1371, खंड 2, पृष्ठ 166।
  3. खुर्रमशाही, सूर ए कौसर, 1377, खंड 1, पृष्ठ 1269।
  4. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374, खंड 27, पृष्ठ 370।
  5. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374, खंड 27, पीपी 370 और 371।
  6. तबरसी, मजमउल बयान, 1372, खंड 10, पृष्ठ 835।
  7. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374, खंड 27, पृष्ठ 372।
  8. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374, खंड 27, पीपी। 374 और 375।
  9. तबरसी, मजमाउल बयान, 1372, खंड 10, पीपी. 836 और 837।
  10. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371, खंड 27, पृष्ठ 375; तबताबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 370।
  11. जवादी आमोली, अब्दुल्लाह, दुरूसे तफ़सीर, सूर ए कौसर।
  12. तबातबाई, अल मीज़ान, खंड 20, पृष्ठ 371।
  13. तबरसी, मजमाउल बयान, 1372, खंड 10, पृष्ठ 836।
  14. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374, खंड 27, पृष्ठ 369।
  15. तबरसी, मजमउल बयान, 1372 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 837।
  16. अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 372।
  17. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, खंड 27, पृष्ठ 374।
  18. शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, रमज़ान के महीने की रात की नमाज़
  19. शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, रमज़ान की महीने की रात की नमाज़
  20. शेख़ सदूक़ सवाबुल आमाल, 1406 हिजरी, पीपी। 126 और 127।
  21. तबरसी, मजमाउल बयान, 1372, खंड 10, पृष्ठ 835।
  22. "इमाम हुसैन (अ) के नए हरम पर कौन सी आयतें और हदीस दर्ज हैं" साइट मौऊद, तारिख बाज़बिनी 21 बहमन 1395 हिजरी)।
  23. मुस्तफ़वी, आसारे तारीख़ी, 1361, खंड 1, पृष्ठ 243।
  24. महजूर व अलीई, "बर्रसी कतीबहाई मस्जिद - मदरसा ए शहीद मुतह्हरी (सिपाहसालार) ", पृष्ठ 57।
  25. "मस्जिद ए सय्यद इस्फ़हान ",साईट कवीरहा व बयाबानहाए ईरान।

स्रोत

  • क़ुरआन करीम,मुहम्मद तक़ी फ़ौलाद वन्द, तेहरान, दारुल क़ुरआन करीम, 1418 हिजरी
  • ख़ामागर, मुहम्मद,साखतारे सूरेहा ए क़ुरआन करीम, तहय्ये मोअस्सास ए फ़रहंगी क़ुरआन व इतरत नूरुस सक़लैन, क़ुम, नशरे नशरा, अध्याय 1, 1392 शम्सी।
  • क़ुरआन मुहम्मद हुसैन नजफी (सरगोधा) द्वारा अनुवादित।
  • ख़ुर्रमशाही,क़वामुद्दीन, सूर ए कौसर,दानिश नामे कुरआन व क़ुरआन पज़ोहिशी, तेहरान: दोस्तन-नाहीद, 1377।
  • सदूक, मुहम्मद बिन अल, सावाबुल आमाल व एक़ाबुल आमाल,क़ुम, दारुश शरीफ़ रज़ी, 1406 हिजरी।
  • क़ुमी,अब्बास, मुफ़ातिहुल जिनान, तेहरान, उसवा, 1384।
  • तबातबाई, सैय्यद मुहम्मद हुसैन, अल-मिज़ान फ़ि तफ़सीरिल क़ुरआन,बैरुत, मोअस्सास ए आलमी लिल मतबूआत,1390 हिजरी।
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमाउल-बयान फ़ि तफ़सीरिल क़ुरआन, मुक़्ददाम ए जवाद बलाग़ी, तेहरान: नासिर खुस्ररू, 1372 शम्सी।
  • मारिफत, मोहम्मद हादी, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, मरकज़े चाप व नशर साज़माने तबलीग़ाते इस्लामी, अध्याय 1, 1371 शम्सी ।
  • मेहजूर, फ़िरोज़ व मैसम अलीई, "बर्रसी कतीबहाए मस्जिद,मदरसा ए शहीद मुतह्हरी (सिपाहसालार)", दर मजल्ले हुनरहाए ज़ेबा- हुनरहाए तजस्सुमी, अंक 48, विंटर 1390 शम्सी।
  • मुस्तफवी, मोहम्मद तकी,आसारे तारीखी तेहरान, 1361 शम्सी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीरे नमूना, तेहरान: दारुल-कुतुब अलइस्लामिया, 1374शम्सी।