सय्यद मुहम्मद हसन शीराज़ी
- यह लेख महान मिर्ज़ा शीराज़ी के नाम से मशहूर "सैयद मोहम्मद हसन शिराज़ी" के बारे में है। मिराज़ी II के बारे में जानने के लिए, मोहम्मद तक़ी शिराज़ी देखें।
पूरा नाम | सय्यद मुहम्मद हसन शीराज़ी |
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उपनाम | मिर्ज़ा बुज़ुर्ग, मिर्ज़ा मुजद्दिद |
जन्म तिथि | वर्ष 1230 हिजरी |
जन्म स्थान | शीराज़ |
मृत्यु तिथि | वर्ष 1312 हिजरी |
समाधि स्थल | इमाम अली (अ) का हरम |
प्रसिद्ध रिश्तेदार | सय्यद रज़ी शीराज़ी |
गुरू | शेख़ अंसारी, मुहम्मद हसन नजफ़ी |
शिष्य | शेख़ फ़ज़लुल्लाह नूरी, अब्दुल करीम हाएरी यज़दी, मुहम्मद तकी शिराज़ी (मीर्ज़ा II), आख़ुंदे ख़ोरासानी |
शिक्षा स्थान | ईरान, इराक़ |
इज्तिहाद की इजाज़त | सय्यद हसन बेयदाबादी |
संकलन | किताब नेजातुल ऐबाद पर हाशिया, किताब लोमआ अल दमिश्क़िया पर हाशिया, किताब अल तहारत |
राजनीतिक | तंबाकू पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़तवा |
सामाजिक | हौज़ा ए इल्मिया सामर्रा की स्थापना |
सय्यद मुहम्मद हसन हुसैनी (अरबी: السيد محمد حسن الحسيني الشيرازي) (1895-1815 ई.) को मिर्ज़ा शीराजी, मिर्ज़ा बुज़ुर्ग और मिर्ज़ा मुजद्दिद के नाम से जाना जाता है, वह 14वीं शताब्दी में शिया मराजेए तक़लीद में से एक थे जिन्होंने तम्बाकू पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़तवा जारी किया था।
1243 शम्सी में शेख़ मुर्तज़ा अंसारी की मृत्यु के बाद, मिर्ज़ा शिराज़ी मरजा बने और अपने जीवन के अंत तक वह तीस वर्षों तक शियों के एकमात्र मरजए तक़लीद थे। वह शेख़ अंसारी के ख़ास और पसंदीदा छात्र थे। हौज़ा इल्मिया क़ुम के संस्थापक शेख़ अब्दुल करीम हायरी, आखुंद ख़ुरासानी, शेख़ फ़ज़लुल्लाह नूरी, मिर्ज़ा नाइनी और मुहम्मद तकी शिराज़ी जिन्हें मिर्ज़ा II के नाम से जाना जाता है, उनके छात्रों में थे। मिर्जा ने कई न्यायशास्त्रीय और सैद्धांतिक ग्रंथों को लिखा और कुछ न्यायशास्त्रीय और सैद्धांतिक किताबों ख़ासकर शेख़ अंसारी की अपने मुक़ल्लिदों के लिए लिखी गई किताब पर पर हाशिया लिखा है। इसी तरह से, उनके एकत्रित किये गये फ़तवे और उनके न्यायशास्त्र के पाठों और सिद्धांतों को तालीक़े (नोट्स) भी प्रकाशित की गई है।
मिर्ज़ा शिराज़ी को सामर्रा के हौज़ा इल्मिया और मकतब के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि वह शिया और सुन्नी को एक साथ लाने (इत्तेहाद) के उद्देश्य से सामर्रा चले गये और इस शहर में बस गये। सामर्रा में मदरसा, हुसैनिया, पुल, बाज़ार और स्नानागार का निर्माण उनकी सार्वजनिक सेवाओं और जन सुविधाओं में से थे।
उनका 82 वर्ष की आयु में सामर्रा में निधन हुआ और उन्हें नजफ़ में इमाम अली (अ) के रौज़े में दफ़्न किया गया। अरबी और फ़ारसी में उनके बारे में रचनाएँ लिखी गई हैं। उनमें से, हदिया अल-राज़ी इलल इमाम अल-मुजद्दिद अल-शिराज़ी को आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी और हयात अल-इमाम अल-मुजद्दिद अल-शिराज़ी को मोहम्मद अली ओर्दुबादी द्वारा मिर्ज़ा और उनके छात्रों की जीवनी के बारे में लिखा गया है।
जीवनी
सय्यद मोहम्मद हसन हुसैनी का जन्म 15 जमादी अल अव्वल 1230 हिजरी (25 अप्रैल 1815 ई.) में शीराज़ में हुआ था।[१] उनके पिता, मिर्ज़ा महमूद, एक धार्मिक विद्वान थे।[२] मिर्ज़ा मोहम्मद हसन ने अपने पिता को बचपन में ही खो दिया था। और अपने चाचा, मिर्ज़ा हुसैन मूसवी के संरक्षण में रहे, जिन्हे मजदुल अशराफ़ के नाम से जाना जाता था।[३]
इस्फ़हान में अपने निवास के वर्षों के दौरान, मिर्ज़ा शिराज़ी ने 17 और 20 वर्ष की आयु के बीच अपने चचा की बेटी से शादी की और उन्हे एक बेटी और अली नाम का एक बेटा था। उनकी पहली पत्नी की मृत्यु 1303 हिजरी में हुई थी। उनकी दूसरी पत्नी से एक बेटा मुहम्मद था एक बेटी भी थी।[४]
वह 1287 हिजरी में हज करने के लिए मक्का गए। इस यात्रा के दौरान मक्का के शरीफ़ मिर्ज़ा से मुलाक़ात के लिये आये और उन्हें अपने घर ले गए। इस यात्रा के दौरान, मिर्ज़ा हसन ने स्थायी रूप से मदीना में रहने की योजना बनाई, और जब यह संभव नहीं हुआ, तो उन्होंने मशहद में रहने का फैसला किया। लेकिन अंत में वह सामर्रा चले गये और अपने जीवन के अंत तक वहीं रहे।[५]
महान मिर्ज़ा की मृत्यु 24 शाबान 1312 हिजरी (20 अप्रैल 1895 ई.) 82 वर्ष की आयु में सामर्रा में हुई और उन्हें नजफ़ में इमाम अली (अ) के रौज़े के आंगन में एक कक्ष में दफ़्न किया गया।[६] कुछ लोग उनकी मृत्यु का कारण तपेदिक[७] या ब्रोंकाइटिस मानते हैं। कुछ लोग उनकी मृत्यु को ब्रिटिश सरकार के भाड़े के सैनिकों द्वारा ज़हर दिए जाने का परिणाम मानते हैं।[८]
शिक्षा
मिर्ज़ा हसन चार साल की उम्र से स्कूल गये और दो साल में क़ुरआन और फ़ारसी साहित्य की सामान्य किताबों का पाठ समाप्त दिया, और छह साल की उम्र से उन्होने अरबी व्याकरण नहव व सर्फ़ सीखना शुरू कर दिया और आठ साल की उम्र में, उन्होंने प्रारंभिक अध्ययन पूरा किया।[९] उसके बाद, मिर्ज़ा इब्राहिम शिराज़ी ने उन्हें आयात व अहादीस, उपदेश और भाषण सिखाए। [१०] आठ वर्षीय मिर्ज़ा मोहम्मद हसन, एक बार अपने शिक्षक के अनुरोध पर, ज़ोहर व अस्र की नमाज़ के बाद, शिराज की वकील मस्जिद में, मंच पर गये और नैतिक पुस्तक अबवाब अल जेनान का एक हिस्सा लोगों को स्मृति से सुनाया।[११]
फिर उन्होंने न्यायशास्त्र और उसूल का अध्ययन किया, और 12 साल की उम्र में, उन्होंने शिराज में शरहे लुमआ के सबसे बड़े शिक्षक शेख़ मुहम्मद तकी शिराज़ी से शिक्षा ली। 18 साल की उम्र में, अपने शिक्षक की सलाह पर वह अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए इस्फ़हान चले गए।[१२] इस्फ़हान में प्रवास करने से पहले, मिर्जा मोहम्मद हसन ने कुछ समय के लिए अपने पिता के स्थान पर दीवान लिखा। [१३] इसके अलावा, 15 साल की उम्र में, वह शिराज के हौज़ा इल्मिया में किताब शरहे लुमआ को पढ़ाने लगे।[१४]
इस्फ़हान में पढ़ाई
मिर्ज़ा शिराज़ी 17 सफ़र 1248 हिजरी[१५] को इस्फ़हान पहुंचे और मदरसा सदर में रहने लगे।[१६] इस अवधि के दौरान, उन्होंने हिदाया अल-मुस्तर्शदीन पुस्तक के लेखक मोहम्मद तक़ी इस्फ़हानी के निजी पाठों में भाग लिया। 1248 हिजरी के अंत में अपने गुरु की मृत्यु के बाद, उन्होने सय्यद हसन बैदाबादी, जिन्हें मीर सैय्यद हसन मुदर्रिस के नाम से जाना जाता था, को अपने शिक्षक के रूप में चुना और 20 वर्ष की आयु से पहले, उन्होंने उनसे इज्तिहाद की अनुमति प्राप्त की थी।[१७] इस्फ़हान में वह 10 वर्षों तक रहे और इस अरसे में उन्होने बैदाबादी के अलावा मुहम्मद इब्राहिम कलबासी के पाठों में भी भाग लिया।[१८]
इराक़ में पढ़ाई
29 साल की उम्र में, मिर्जा हसन 1259 हिजरी में इराक़ गये और मुहम्मद हसन नजफी (साहिबे जवाहिर), हसन काशिफ अल-ग़ेता (जाफ़र काशिफ अल-ग़ेता के बेटे)[१९] और शेख़ अंसारी जैसे विद्वानों के पाठ में भाग लिया।[२०]
वह शेख अंसारी के विशेष छात्रों में से एक थे और उनके अपने शिक्षक के साथ उनके विशेष संबंध थे।[२१] शेख़ अंसारी ने उन्हें अपनी पुस्तक फ़रायद अल-उसूल के सुधार का काम सौंपा।[२२] यह प्रसिद्ध है कि शेख़ अंसारी अक्सर कहा करते थे, "मैं अपना पाठ तीन लोगों को पढ़ाता हूं: मुहम्मद हसन शिराज़ी, मिर्ज़ा हबीबुल्लाह रश्ती और हसन नज्माबादी।[२३] वह शेख़ अंसारी के पाठों में बहुत कम बोलते थे और यह ज्ञात है कि जब वह बोलते थे, तो उनकी आवाज़ इतनी शांत होती थी कि शेख़ को उनकी ओर झुकना पड़ता था और उसे सुनने के लिए उन्हे छात्रों को चुप रहने का आदेश देना पड़ता था। और वह कहते थे: "श्री मिर्ज़ा बोल रहे हैं।"[२४]
मरजईयत
"भगवान के नाम से ... आज से तूतून और तम्बाकू का इस्तेमाल जिस तरह से भी हो, इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के ख़िलाफ़ जंग के हुक्म में है।
1281 हिजरी में शेख़ अंसारी की मृत्यु के बाद, मिर्ज़ा शिराज़ी मरजा बन गये। आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी के अनुसार, शेख़ अंसारी की मृत्यु के बाद, उनके प्रमुख छात्रों ने मिर्ज़ा के मरजा बनने पर सहमति व्यक्त की, केवल अज़रबैजान के विद्वानों के एक समूह को छोड़कर, जिन्होंने अपने क्षेत्र और लोगों के लिए शेख़ अंसारी के एक अन्य छात्र सय्यद होसैन कोहकमरई के मरजा बनने का प्रस्ताव रखा। 1299 हिजरी में कोह कमरेई की मृत्यु के बाद, मिर्ज़ा शिराज़ी समस्त शिया समुदाय के मरजा बने।[२५]
फ़क़ीहों और उसूलियों ने मिर्ज़ा शिराज़ी की वैज्ञानिक स्थिति की तुलना उनके शिक्षक शेख़ अंसारी से की है, और कुछ ने उन्हें शेख से श्रेष्ठ माना है।[२६]
हौज़ा इल्मिया सामर्रा की स्थापना
- मुख्य लेख: हौज़ा इल्मिया सामर्रा
1291 हिजरी में, सामर्रा में मिर्ज़ा शिराज़ी के निवास और इस शहर में उनके छात्रों की उपस्थिति के साथ, सामर्रा के हौज़ा इल्मिया और सामर्रा मकतब का गठन किया गया।[२७] यह हौज़ा इल्मिया लगभग बीस साल तक सक्रिया रहा और मीर्ज़ा शीराज़ी की वफ़ात और विद्वानो के कर्बला और नजफ़ की ओर कूच करने का कारण उसकी रौनक़ ख़त्म हो गई। सय्यद हसन सद्र, सैयद मोहसिन अमीन, शरफुद्दीन आमेली, मोहम्मद जवाद बलाग़ी, शेख मोहसिन शरारे, आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल्लामा अमीनी और मोहम्मद रज़ा मुज़फ़्फ़र सामर्रा हौज़ा इल्मिया के बुजुर्गों में से थे।[२८] मिर्ज़ा शिराजी और उनके शिष्यों के फ़िक़्ह व उसूल के शिक्षण और लेखन की शैली और तरीक़े को सामर्रा के स्कूल के रूप में जाना जाता है।[२९] मिर्ज़ा के वंशज सय्यद रज़ी शिराज़ी ने सामर्रा में उनके प्रवास के सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य को शिया और सुन्नी एकता का आकलन किया है।[३०] इसलिए, विभाजन से बचना और सुन्नियों के साथ बातचीत करना सामर्रा स्कूल की विशेषताओं में से एक माना जाता है।[३१]
तंबाकू प्रतिबंध
- मुख्य लेख: तम्बाकू आंदोलन
मिर्ज़ा शिराज़ी के नेतृत्व में घटी घटनाओं में से एक तम्बाकू प्रतिबंध आंदोलन था। ईरान के चार शहरों में रेजी कंपनी को तूतून और तम्बाकू का एकाधिकार देने के बाद, लोगों ने मिर्ज़ा शिराज़ी के चार छात्रों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। तेहरान में शेख़ फ़ज़लुल्लाह नूरी, इस्फ़हान में आग़ा नजफी इस्फ़हानी, शिराज में सय्यद अली अकबर फाल असिरी और तबरेज़ में मिर्ज़ा जवाद मुजतहिद तबरेज़ी इस विद्रोह के नेता थे।[३२] तम्बाकू एकाधिकार के बारे में उनके ऐतिहासिक फ़तवे ने इतने सारे लोगों को मंच पर ला खड़ा किया कि नासिर अल-दीन शाह काजार को, तंबाकू अनुबंध समाप्त करने पर मजबूर होना पड़ा।[३३]
छात्र
मिर्ज़ा शिराज़ी के बहुत से छात्र थे। आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी ने हादिया अल-राज़ी इलल इमाम अल-मुजद्दिद अल-शिराज़ी नामक किताब में उनके लगभग 500 छात्रों का नाम लिया है। [३४] उनमें से कुछ यह हैं:
- मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी शिराज़ी, मिर्ज़ा शिराज़ी II या मिर्ज़ा शिराज़ी कूचिक के नाम से जाने जाते हैं।
- सय्यद मोहम्मद फ़ेशारकी
- अब्दुल करीम हायरी यज़्दी, हौज़ा इल्मिया क़ुम के संस्थापक।
- मिर्ज़ा हुसैन नायनी [३५]
- शेख़ फ़ज़्लुल्लाह नूरी
- सय्यद अब्दुल हुसैन लारी
- मिर्ज़ा हसन अली तेहरानी [३६]
- मोहम्मद हादी तेहरानी
- सय्यद अबुल क़ासिम दहकुर्दी
- अब्बास अली केवान कज़विनी
- मेहदी खालसी [३७]
- मोहम्मद बाक़िर क़ायनी बीरजंदी [३८]
- सय्यद मोहम्मद हुसैनी लवासानी तेहरानी
- हबीब ख़ुरासानी
- मोहम्मद बाक़िर बहारी हमदानी
- मुहम्मद काज़िम ख़ुरासानी, केफ़ायातुल उसूल के लेखक
- सय्यद मुहम्मद काज़िम यज़्दी [३९]
- मिर्ज़ा मोहम्मद अरबाब क़ुमी [४०]
- मिर्ज़ा हुसैन नूरी [४१]
- सैयद इस्माइल सद्र [४२]
राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियां
तम्बाकू पर प्रतिबंध लगाने के अलावा, मिर्ज़ा शिराज़ी ने दूसरे राजनीतिक और सामाजिक कार्य भी किए हैं:
- 1309 हिजरी में अब्दुल रहमान (शासनकाल: 1259-1280 शम्सी) द्वारा अफ़गान हज़ारा शियों के नरसंहार को जारी रखने से रोकने के लिए इंग्लैंड की रानी को एक तार भेजना।[४३]
- सामर्रा के सुन्नी आबादी वाले शहर में शिया हौज़ा इल्मिया की स्थापना करके, शिया सुन्नी एकता को मज़बूत करना, सुन्नी छात्रों और विद्वानों को पेंशन और वित्तीय सहायता देना, और शिया व सुन्नी के बीच इख़्तेलाफ़ डालने वालों से निपटना।[४४]
- भारत, कश्मीर, अफ़गानिस्तान, काकेशस और इराक़ जैसे संवेदनशील और अधीन क्षेत्रों के लिए विशेष मिशनरियों को प्रशिक्षण और भेजना।[४५]
- सामर्रा में दो मदरसों का निर्माण।[४६]
- दजला नदी के किनारों को जोड़ने के लिए एक पुल का निर्माण।[४७]
- एक बाज़ार का निर्माण।[४८]
- तीर्थयात्रियों और यात्रियों के लिए कारवां सराय का निर्माण।
- हुसैनिया का निर्माण।
- पुरुषों और महिलाओं के लिए स्नानघरों का निर्माण।[४९]
रचनाएं
मिर्ज़ा शिराज़ी ने न्यायशास्त्र और सिद्धांतों के क्षेत्र में लिखा है। आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी ने अपनी किताब तबक़ात आलाम अल-शिया में उनके लिए निम्नलिखित कार्यों को सूचीबद्ध किया है:
- इजतेमाए अम्र व नही पर एक ग्रंथ
- न्यायशास्त्र में मकासिब के शुरु से लेकर मुआमेलात के अंत तक एक किताब
- रेज़ाअ पर एक ग्रंथ
- किताब अल नुख़बा पर हाशिया
- साहिबे जवाहिर की किताब नेजातुल एबाद पर हाशिया
- शेख अंसारी द्वारा व्याख्यान पर तक़रीरात
- उस किताब पर हाशिया जिसमें शेख अंसारी ने अपने अनुयायियों (मुक़ल्लेदीन) के लिए एक टिप्पणी लिखी थी।[५०]
किताब अल सलात, वहीद बहबहानी द्वारा लेन-देन (मुआमेलात) की पुस्तक पर टिप्पणी, लुमहा के विवरण की पुस्तक पर टिप्पणी और शेख़ अंसारी की फ़रायद अल-उसूल पर टिप्पणी उनके कार्यों में से हैं। [५१]
मिर्ज़ा शिराज़ी के न्यायशास्त्र पाठ और सिद्धांतों की भी विभिन्न व्याख्याएँ हैं। नासिर अल-दीन अंसारी ने मिर्जा के लगभग 20 छात्रों का नाम लिया, जिनमें सय्यद इब्राहिम दामग़ानी खुरासानी (मृत्यु 1291 हिजरी) और मिर्ज़ा इब्राहिम महाल्लाती शिराज़ी (मृत्यु 1336 हिजरी) शामिल हैं, जिन्होंने उनके न्यायशास्त्र और सिद्धांतों की व्याख्या की है।[५२] मिर्ज़ा के कुछ फतवों और विचारों को अन्य पुस्तकों के हाशियों या मुसतक़िल किताबों में भी प्रकाशित किया गया है, जिनमें शामिल हैं:
- मंहज अल-नेजात; मिर्ज़ा शिराज़ी के फ़तवे से लिया गया व्यावहारिक ग्रंथ (तौज़ीहुल मसायल) शेख़ अली नजफ़ी इस्फ़हानी द्वारा 1304 हिजरी में संकलित किया गया था। प्रश्न और उत्तर के रूप में और फ़ारसी में लिखे गए इस काम में, केवल उन उत्तरों का उल्लेख है जो मिर्जा द्वारा लिखे गए या हस्ताक्षर किए गए थे।[५३]
- मजमउल मसायल: यह किताब मिर्जा शिराज़ी के आदेश से और सय्यद असदुल्ला क़ज़वीनी द्वारा लिखी गई थी। इसमें सरवर अल-इबाद, नेजात अल-इबाद, सेरात अल-नेजात, तरीक़ अल-नेजात, प्रश्न और उत्तर, और अल-नुख़बा किताबों पर लिखे गये मिर्जा के नोट्स एकत्रित किए गए हैं।[५४]
- रिसाल ए सवाल जवाब: इस ग्रंथ में मिर्जा शिराज़ी के उत्तरों के साथ शेख़ फ़ज़लुल्लाह नूरी द्वारा 236 प्रश्नों का संग्रह किया गया है। यह पुस्तक तेहरान में 1305 हिजरी में प्रकाशित हुई थी।[५५]
- मजमउल-मसायल: यह पुस्तक मोहम्मद हसन बिन मोहम्मद इब्राहिम जेजी इस्फ़हानी द्वारा 1310 हिजरी में मिर्जा शिराज़ी के फ़तवे के आधार पर संकलित की गई थी। यह काम फ़ारसी भाषा में है और इसमें न्यायशास्त्र के सभी अध्याय शामिल हैं। आखुंद ख़ोरासानी, सय्यद मोहम्मद काज़िम यज़्दी और सय्यद इस्माइल सद्र ने उस पर हाशिया लिखा है। [५६]
मोनोग्राफ़ी
मिर्ज़ा शिराज़ी के बारे में रचनाएँ लिखी गई हैं:
- किताब हदिया अल-राज़ी इलल इमाम अल-मुजद्दिद अल-शिराज़ी, लेखक आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी द्वारा मिर्ज़ा शिराज़ी और उनके छात्रों के जीवन के बारे में है।[५७] नसरुद्दीन अंसारी के अनुसार, यह किताब मिर्ज़ा शिराज़ी के बारे में सबसे संपूर्ण काम है।[५८] इसका फारसी अनुवाद 1362 में मोहम्मद देज़फुली द्वारा प्रकाशित किया गया था।
- किताब हयात अल-इमाम अल-मुजद्दिद अल-शिराज़ी, मोहम्मद अली उर्दूबादी (मृत्यु 1380 हिजरी) द्वारा मिर्जा शिराज़ी और उनके कुछ छात्रों और समकालीनों की जीवनी के बारे में है।[५९]
- पुस्तक "सबायक अल-तबर फिमा क़ीला फ़ी अल-इमाम अल-शिराज़ी मन अल-शेअर" लेखक मोहम्मद अली उर्दूबादी, यह मिर्ज़ा शिराज़ी के बारे में है, जिसमें उन्होंने 600 पृष्ठों में कविताओं का उल्लेख करने के साथ-साथ मिर्ज़ा और उनके कुछ प्रसिद्ध छात्रों के समकालीन कवियों का परिचय कराया है।[६०] आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी के अनुसार। यह काम हयात अल-इमाम अल-मुजद्दिद शिराज़ी पुस्तक का दूसरा खंड है।[६१]
- मीर्ज़ा शीराज़ी एहयागरे क़ुदरते फ़तवा, लेखक सय्यद महमूद मदनी। यह पुस्तक 1371 में क़ुम में प्रकाशित हुई थी। [६२]
फ़ुटनोट
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 440।
- ↑ मदनी बजिस्तानी, "मिर्ज़ा शिराज़ी", पृष्ठ 385।
- ↑ मुत्तलेबी, "नुजूमे उम्मत: हजरत आयतुल्लाहिल उज़मा हाज मिर्ज़ा सय्यद मोहम्मद हसन शिराज़ी", पृष्ठ 66।
- ↑ मदनी, मिर्ज़ा शिराज़ी: एहयागरे क़ुदरते फ़तवा, 1371, पृष्ठ 38।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 439।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 440।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 440।
- ↑ मदनी, मिर्ज़ा शिराज़ी: एहयागरे क़ुदरते फ़तवा, 1371, पृष्ठ 392 देखें।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 437।
- ↑ मदनी, मिर्ज़ा शिराज़ी: एहयागरे क़ुदरते फ़तवा, 1371, पृष्ठ 27।
- ↑ मदनी, मिर्ज़ा शिराज़ी: एहयागरे क़ुदरते फ़तवा, 1371, पृष्ठ 28।
- ↑ मुत्तलेबी, "नुजूमे उम्मत: हजरत आयतुल्लाहिल उज़मा हाज मिर्ज़ा सय्यद मोहम्मद हसन शिराज़ी", पृष्ठ 67।
- ↑ मदनी, मिर्ज़ा शिराज़ी: एहयागरे क़ुदरते फ़तवा, 1371, पीपी. 30 और 31.
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 437।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 437।
- ↑ एक लेख, "नुजूमे उम्मत: हजरत आयतुल्लाहिल उज़मा हाज मिर्ज़ा सय्यद मोहम्मद हसन शिराज़ी", पृष्ठ 67।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 437।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 437।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 438।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 438।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 438।
- ↑ मदनी, मिर्ज़ा शिराज़ी: एहयागरे क़ुदरते फ़तवा, 1371, पृष्ठ 387।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 438।
- ↑ मुत्तलेबी, "नुजूमे उम्मत: हजरत आयतुल्लाहिल उज़मा हाज मिर्ज़ा सय्यद मोहम्मद हसन शिराज़ी", पृष्ठ 70।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 438।
- ↑ शुबैरी ज़ंजानी, जुरअई अज़ दरिया, 1389, खंड 1, पृष्ठ 111।
- ↑ दारबी, "हौज़ा इल्मिया तक़रीब गराय सामर्रा व नक़्शे मीर्ज़ा शिराज़ी", पेज 41।
- ↑ देखें सेहती सर्दरूदी, गुज़ीदा सिमाई सामर्रा सीनाए सेह मूसा, 2008, पेज 144-148।
- ↑ हुसैनी, "निगाही बे मदरसा क़ुम व नजफ़", पृष्ठ 42।
- ↑ दारबी, "हौज़ा इल्मिया तक़रीब गराय सामर्रा व नक़्शे मीर्ज़ा शिराज़ी", पेज 41।
- ↑ दारबी, "हौज़ा इल्मिया तक़रीब गराय सामर्रा व नक़्शे मीर्ज़ा शिराज़ी", पेज 42।
- ↑ इस्फ़हानी, करबलाई, तारीख़े दुख़ानियह, 1377 हिजरी, पेज 104, 108
- ↑ बामदाद, शरहे हाल रेजाले ईरान, 1384, खंड 1, पृष्ठ 338; इस्फ़हानी कर्बलाई, तारीख़े दुख़नियाह, 1377, पेज 172-173।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, तबक़ात आलाम अल-शिया, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 437।
- ↑ मदनी, मिर्ज़ा शिराज़ी: एहयागरे क़ुदरते फ़तवा, 1371, पृष्ठ 79।।
- ↑ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल-ज़रिया, 1403 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 379
- ↑ हिरज़ुद्दीन, खंड 3, पृष्ठ 147; मूसवी एसफहानी, खंड 2, पेज 123-124; केफाई, पी. 139
- ↑ रहमान सताइश, "मुअर्रेफ़ी किताब अल-फवाद अल-रेजालियह"।
- ↑ मदनी बजिस्तानी, "मिर्ज़ा शिराज़ी", पृष्ठ 387।
- ↑ अरबाब क़ुमी, अरबाईन हुसैनीह, 1379, पृष्ठ 9।
- ↑ अमीन, आयान अल-शिया, 1403 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 144।
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