मुहम्मद आसिफ़ मोहसिनी कंधारी

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मोहम्मद आसिफ़ मोहसिनी कंधारी (1314-1398 शम्सी) अफ़ग़ानिस्तान में रहने वाले मराजे ए तक़लीद में से एक थे। वह इस्लामी धर्मों की एकता के रक्षक, अफ़गान शिया उलमा परिषद के प्रमुख और काबुल में ख़ातम अल-नबीयीन हौज़ा इल्मिया और विश्वविद्यालय के संस्थापक थे। इसी तरह से वह अहले-बैत विश्व असेंबली की सर्वोच्च परिषद के सदस्य, अफ़गान इस्लामिक मूवमेंट पार्टी के पूर्व नेता और तमद्दुन टीवी के संस्थापक भी थे।

न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में, मोहम्मद आसिफ़ मोहसिनी सय्यद मोहसिन हकीम और सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई के छात्रों में से एक हैं, और उन्होंने रेजाल, न्यायशास्त्र और हदीस जैसे विषयों पर काम किया है। "बुहूस फ़ी इल्म अल रेजाल" पुस्तक को शोधकर्ताओं ने उनकी हदीस के ज्ञान के विषय पर सबसे स्थायी कार्यों में से एक माना है।

जीवनी

मोहम्मद मिर्ज़ा मोहसिनी के बेटे मोहम्मद आसिफ़ मोहसिनी का जन्म 5 उर्दीबहिश्त, 1314 शम्सी को कंधार, अफ़ग़ानिस्तान में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्कूल में शुरू की और दस साल की उम्र से अपने पिता के पास पढ़ना और लिखना शुरू कर दिया। [1] वह 14 साल (1328 शम्सी) की उम्र में वह अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए और कोएटा शहर में उर्दू सीखी। पाकिस्तान से लौटने के बाद उन्होंने कुछ समय तक बिजली कंपनी में काम किया और फिर 1330 शम्सी में उन्होंने कंधार चैंबर ऑफ कॉमर्स में काम करना शुरू किया।[2]

आसिफ़ मोहसेनी ने 1340 शम्सी में अपनी फूफी की बेटी से शादी की और उनसे उनके यहाँ अब्दुल्लाह, हाफ़िज़ और हबीब नाम के तीन बेटे पैदा हुए। उनकी पहली पत्नी और सबसे बड़े बेटे की मृत्यु उनसे पहले हो गई थी।[3] मोहसेनी की मृत्यु 14 मुरदाद 1398 शम्सी को बीमारी के कारण काबुल में हुई [4] और उन्हें 15 मुरदाद को काबुल के ख़ातम अल-नबीयिन मदरसा में दफ़्न किया गया।[5]

मदरसा शिक्षा

मोहसिनी ने सबसे पहले कंधार में 6 महीने तक धार्मिक विज्ञान की बुनियादी बातों का अध्ययन किया, और उसके बाद वह अफ़गानिस्तान के गज़नी प्रांत में जाग़ोरी ज़िले के वल्सवानी नाम के एक गांव में गए, और 8 महीने में [6] उन्होने वहाँ हिदाया, सुयूती और हाशिया मुल्ला अब्दुल्लाह जैसी किताबे पढ़ीं और मआलिम और लुमआ के कुछ भाग पढ़ें।[7]

मोहम्मद आसिफ़ मोहसिनी ने 12 तीर, 1332 शम्सी को नजफ़ में प्रवेश किया और 3 साल से भी कम समय में बाकी स्तरों (सुतूह) को पूरा किया। जैसा कि उन्होंने खुद कहा है, मदरसा की छुट्टियां उनके लिए सुखद नहीं थीं और वह छुट्टियों में पढ़ाई में व्यस्त रहते थे।[8]

उन्होंने मुदर्रिस अफ़गानी से मुतव्वल, शेख़ मुजतबा लंकारानी से केफ़ाया का पहला खंड, सदरा बादकूबेई से केफ़ाया का दूसरा खंड, शेख़ काज़िम यज़्दी से रसायल और कई अन्य शिक्षकों से मकासिब जैसे किताबें पढ़ीं। शेख़ आसिफ़ मोहसेनी की रुचि दर्शनशास्त्र में भी थी, लेकिन नजफ़ में दर्शनशास्त्र पढ़ाने पर प्रतिबंध के कारण उन्होंने व्यक्तिगत अध्ययन शुरू किया और उन्होने बाब हादी अशर पुस्तक पर एक टिप्पणी लिखी। उन्होंने असफ़ार और हिकमत अल-इशराक़ जैसी अन्य पुस्तकों और धार्मिक कार्यों का भी अध्ययन किया।[9]

उनके साथ बहस व मुबाहेसा करने वालें में क़ुरबान अली मोहक़्क़िक़ काबुली, इस्माइल मोहक़्क़िक़ और मूसा आलमी बामियानी शामिल थे।[10]

नौ वर्षों तक, शेख़ आसिफ़ मोहसिनी ने सय्यद मोहसिन हकीम, सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई, सय्यद हुसैन हिल्ली और सय्यद अब्दुल अली सब्ज़वारी के न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के व्याख्यानों में भाग लिया।[11]