झूठ
झूठ (अरबीः کذب) बोलना नैतिक दोषों में से एक है, इसका अर्थ है कुछ ऐसा कहना जो सत्य के विपरीत हो। झूठ बोलना बड़े पाप में से एक है, जिसे कुरआन और हदीसों में मना किया गया है, और इसे सभी बुराइयों की कुंजी और ईमान के विनाश के कारण के रूप में पेश किया गया है। झूठ बोलना हराम है, लेकिन कुछ मामलों में इसकी अनुमति है; जैसे लोगों के मतभेदों को सुलझाना और उनके या अपने जीवन और संपत्ति की रक्षा करना।
हदीसों में झूठ बोलने के लिए सांसारिक और आख़िरत के परिणामो का उल्लेख किया गया है; जैसे कि लोगों द्वारा बदनाम और अपमानित होना, गरीबी, दैवीय दंड, विश्वास का विनाश और स्वर्गदूतों की लानत का हकदार होना।
झूठ बोलने के कारणों और प्रेरणाओं में ईर्ष्या, कृपणता, कमजोर ईमान आदि शामिल हैं। झूठ बोलने के प्रभावों और परिणामों पर ध्यान देना, साथ ही इसकी निंदा करने वाली आयतो और रिवायतो मे झूठ के इलाज के उपायों को बताया गया है।
परिभाषा
झूठ बोलना नैतिक दोषों में से एक है और इसका अर्थ है कुछ ऐसा कहना जो सत्य नहीं है[१] या किसी व्यक्ति की ओर ऐसी बात की निसबत देना जो उसने नहीं कहा।[२] झूठ सत्य का विलोम है और जो व्यक्ति झूठ बोलता है उसे झूठा कहा जाता है।[३]
स्थान और महत्व
झूठ बोलना सबसे बड़ी नैतिक बुराइयों में से है[४] और सबसे बदसूरत पाप[५] और कुछ रिवायतो में इसे सभी बुराइयों की कुंजी बताया गया है।[६] मुल्ला अहमद नराक़ी के अनुसार, कई आयतो और रिवायतो में झूठ की निंदा की ओर इशारा हुआ है।[७] साथ ही, हदीस[८] और नैतिक पुस्तकों में अलग-अलग अध्याय झूठ के लिए समर्पित हैं। उदाहरण के लिए किताब अल-काफ़ी मे झूठ के अध्याय में झूठ बोलने की निंदा में 22 हदीसों का वर्णन किया गया है।[९] कुरआन में, झूठे व्यक्ति को ईश्वर के अभिशाप और क्रोध के योग्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।[१०] झूठ बोलना भी नैतिक पुस्तकों में एक नैतिक दोष के रूप में लिया गया है।[११]
रोज़ा, हज, लेन-देन और क़सम[१२] के अध्यायों में न्यायशास्त्र की पुस्तकों में भी झूठ का उल्लेख किया गया है। उदाहरण के लिए, झूठ बोलना मोहर्रामाते एहराम (एहराम के निषेधों) में से एक है, जिसका उल्लेख हज के अनुष्ठानों में किया गया है।[१३] इसके अलावा, अल्लाह और पैगंबर (स) की ओर झूठ की निसबत देने से रोज़ा बातिल हो जाता है, जिसकी चर्चा रोज़े के अहकाम मे की गई है।[१४]
क्या झूठ बोलना बड़ा पाप है?
कुछ रिवायतो मे झूठ को बड़े पाप के रूप मे पेश किया गया है।[१५] शहीदे सानी ने झूठ को बड़े पापो की श्रेणी मे रखा है जोकि व्यक्ति को आदिल (न्यायविद) होने से बाहर कर देता है।[१६] शेख अंसारी ने एक दूसरी रिवायत[१७] का हवाला देते हुए इस बात की संभावना जताई है कि झूठ बोलना से अगर कोई नुकसान हो तो उस समय बड़ा पाप है।[१८]
जोएलतिल ख़बाएसो कुल्लोहा फ़ी बैत व जोएला मिफ़ताहोहा अल कज़ेबा (अनुवाद: एक घर में सारी बुराईयों को रख दिया गया है और उसकी चाबी झूठ है।)
इसी प्रकार कुछ दूसरी रिवायतो मे अल्लाह और उसके रसूल की ओर किसी झूठ की निसबत देना बड़े पापों मे से है।[१९] कुछ इस रिवायत का हवाला देते हुए कहते है कि झूठ का बड़े पाप मे से होना इसी बात पर निर्भर होगा या यह कि यह हदीसे इस मामले मे झूठ की शिद्दत पर दलालत करती है।[२०]
झूठ बोलने के कारण और उद्देश्य
झूठ बोलने के विभिन्न कारणो और उद्देश्यो का उल्लेख किया गया है; एक रिवायत के आधार पर झूठ आत्मा की दीनता में निहित है।[२१] साथ ही कमजोर विश्वास और शैतान के प्रलोभन, लालच और ईर्ष्या जैसी चीजें अन्य कारणों में से हैं, और धन और स्थिति प्राप्त करना झूठ बोलने के प्रेरणाओं में से हैं।[२२]
प्रभाव और परिणाम
झूठ बोलने के कुछ दुष्परिणाम इस प्रकार हैं:
- झूठे की अविश्वासनीयता: इमाम अली (अ) का फ़रमान है झूठे के साथ दोस्ती करने से बचना चाहिए; क्योंकि वह इतना अधिक झूठ बोलता हैं कि उसकी सत्य बात पर भी विश्वास नहीं करते।[२३]
- झूठे के ईमान की समाप्ति: इमाम बाक़िर (अ) की हदीस के आधार पर, झूठ ईमान के घर को नष्ट कर देता है।[२४]
- दैवीय दंड: अल्लाह के रसूल (स) से यह वर्णन किया गया है कि आपको झूठ से बचना चाहिए, झूठ अनैतिक और अन्यायपूर्ण है, और झूठे लोगों के लिए आग में जगह है।[२५]
- फ़रिश्तों की लानत का हक़दार: पैगंबर (स) से रिवायत है: "जब भी कोई मोमिन बिना किसी बहाने के झूठ बोलता है, तो सत्तर हज़ार फ़रिश्ते उस पर लानत करते है और उसके दिल से एक बुरी गंध निकल कर अर्श तक जाती है और अल्लाह उस झूठ के बदले मे 70 बलात्कार का पाप लिखता है जिसमे सबसे कम पाप मा के साथ बलात्कार करना है उसके पाप को लिखता है।[२६]
इसके अलावा, अपमान,[२७] गरीबी[२८] और भूलने की बीमारी[२९] झूठ बोलने के अन्य दुष्परिणाम हैं जिनका उल्लेख रिवायतो में किया गया है। मेराज अल-सआदा किताब में मुल्ला अहमद नराक़ी के अनुसार, झूठ बोलना एक व्यक्ति को अपमानित करता है और उसे बदनाम करता है और लोगों की आंखों में उसकी प्रतिष्ठा खो देता है और उसे इस दुनिया में और उसके बाद काला बना देता है।[३०]
झूठ बोलने से बचने के तरीके
मुल्ला अहमद नराक़ी का मानना है कि झूठ बोलने से बचने के लिए कुछ चरणो का पालन करना चाहिए ताकि सत्य बोलने पर उसको महारत प्राप्त हो जाए; जैसे:
- झूठ बोलने की निंदा में शामिल आयतो और रिवायतो पर ध्यान देना;
- झूठ बोलने के सांसारिक और परलोक में होने वाले प्रभावों पर ध्यान देना, जैसे परलोक में दण्ड और इस संसार में लोगो के बीच बदनामी और अविश्वासनीय होना;
- सत्य के प्रभावों और लाभों पर चिंतन;
- बोलने से पहले सोचना;
- झूठों और पापियों की संगति से दूर रहना[३१]
ला यजेदो अब्दुन तामल ईमाने हत्ता यतरोकल कज़ेबा हज़लहू व जिद्दहू (अनुवाद: कोई बन्दा ईमान का मज़ा नहीं चखता मगर यह कि वह मज़ाक और गंभीर दोनो हालत में झूठ बोलना छोड़ दे।)
मराजा ए तक़लीद और क़ुरआन के टीकाकारों में से एक नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार, "अख़लाक दर क़ुरआन" नामक पुस्तक में, झूठ का इलाज उसकी जड़ों का उपचार करके किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि झूठ बोलने की प्रेरणा कमजोर ईमान है, तो ईमान को मजबूत किया जाना चाहिए, और यदि लालच और ईर्ष्या है, तो उन्हें दूर कर देना चाहिए। आपको ऐसे लोगों से भी बचना चाहिए जो झूठ बोलते हैं या ऐसे स्थान जहां वे झूठ बोलने को प्रोत्साहित करते हैं।[३२]
जायज़ झूठ
- मुख्य लेखः मस्लहत आमीज़ झूठ
झूठ बोलना हराम है।[३३] हालांकि, यह उन मामलों में अनुमेय और अनिवार्य माना जाता है जहां इसका (झूठ) महत्वपूर्ण लाभ हो:[३४]
- आवश्यकता के समय: यदि आवश्यकता (अनिच्छा और अत्यावश्यकता) तकादा करे तो झूठ बोलने की अनुमति है;[३५] जैसे कि जब खुसद का जीवन, संपत्ति या किसी और का जीवन खतरे में हो।[३६]
- ज़ात उल-बय्इन को सुधारना: लोगों के बीच सुधार और मेल-मिलाप के उद्देश्य से झूठ बोलना जायज़ है।[३७]
- शत्रु के साथ युद्ध में: रिवायतो के अनुसार, शत्रु को धोखा देने के लिए युद्ध में झूठ बोलना जायज़ है।[३८]
जीवन साथी और बच्चों से झूठे वादे करना
कुछ रिवायतो के अनुसार, अपने जीवनसाथी से झूठे वादे करना जायज़ है।[३९] इसलिए, नैतिक पुस्तकों में, जीवनसाथी और बच्चों से वादे करना भी झूठ बोलने के हराम होने से बाहर रखा गया है।[४०] हालाँकि, शिया फ़ुक़्हा जीवनसाथी से भी झूठ बोलने को जायज़ नही मानते।[४१] कहा गया है कि ये रिवायते उन आयतों के साथ असंगत हैं जिन आयतो मे वादा खिलाफ़ी को अवैध माना गया हैं[४२] और जो हदीसे वादा पूरा करने के इरादे के बिना वादा करने से मना करती हैं।[४३] इस आधार पर कुछ शोधकर्ताओ का मानना है कि इस तरह की रिवायतो पर अमल करना एक बुरी शिक्षा है और बच्चों को झूठ बोलने और वादों को तोड़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।[४४]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
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- ↑ शेअरानी, नस्रे तूबा, इंतेशाराते इस्लामीया, भाग 2, पेज 331
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- ↑ नराक़ी, मेराज उस-सआदा, हिजरत, पेज 573
- ↑ देखेः नराक़ी, जामे उस-सआदात, मोअस्सेसा आ-लमी लिल मुतबूआत, भाग 2, पेज 332
- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 69, पेज 263
- ↑ नराक़ी, मेराज उस-सआदा, हिजरत, पेज 573
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 338-343
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 338-343
- ↑ सूरा ए नूर, आयत न 7
- ↑ देखेः नराक़ी, जामे उस-सआदात, मोअस्सेसा आ-लमी लिल मुतबूआत, भाग 2, पेज 333-338
- ↑ देखेः इमाम ख़ुमैनी, तहरीर उल-वसीला, मोअस्सेसा तंज़ीम वा नश्र आसारे इमाम ख़ुमैनी, भाग 2, पेज 110-111
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- ↑ शहीद सानी, अल-रौज़ातुल बहईया, 1398 हिजरी, भाग 3, पेज 129
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- ↑ मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 101, पेज 73
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स्रोत
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- नराक़ी, मुहम्मद महदी, जामे उस-सआदात, तालीक़ मुहम्मद कलांतर, बैरूत, मोअस्सेसा आ-लमी लिल मतबूआत, चौथा प्रकाशन, बैरुत