उज्ब
उज्ब (अरबीःالعُجْب) नैतिक बुराइयो मे से एक है, जिसका अर्थ है अपने अच्छे कर्मो को ज़ाती कमालात – नाकि उन्हें ईश्वर की ओर से तौफ़ीक- समझते हुए उन पर प्रसन्न होना और अपने को महान समझना है। नैतिकशास्त्र में बल, सौन्दर्य, वंश और सन्तान की प्रचुरता जैसी बातों को उज्ब का कारण बताया गया है, और अच्छे कर्मों का नष्ट होना, अहंकार और विवेक की भ्रष्टता को इसके परिणाम माना गया है।
नैतिक विद्वानों का मानना है कि उज्ब अज्ञानता के कारण होता है और इसका इलाज जागरूकता और ज्ञान से किया जा सकता है। यह इस तथ्य पर भी आधारित है कि इस नैतिक बुराई का इलाज इसके कारणों और जड़ों के समापन से ही संभव है।
परिभाषा
उज्ब का अर्थ है अपने अच्छे कर्मों की सराहना करना और उनसे प्रसन्न होना, और यह भूला देना कि यह सब कुछ ईश्वर की ओर से है, बल्कि उसे अपनी ओर से समझे और उनके विनाश से न डरे।[१] हालांकि मुल्ला अहमद नराक़ी की दृष्टि से उज्ब स्वंय को बड़ा व्यक्ति और कमालात से परिपूर्ण समझना है।[२]
अहंकार और इदलाल से संबंधित
उज्ब का अर्थ अहंकार के करीब होता है, अंतर यह है कि उज्ब मे व्यक्ति स्वंय की दूसरो से तुलना नही करता लेकिन अहंकार मे व्यक्ति स्वंय को दूसरो से श्रेष्ठ और ऊंचा समझता है।[३]
उज्ब और इदलाल के बीच अंतर यह है कि उज्ब मे मनुष्य कुछ कर्मो और इबादतो को अंजाम देकर ईश्वर पर एहसान जतलाता है और अपने कर्मो को बड़ा समझता है, लेकिन इदलाल मे इसके अलावा मनुष्य स्वयं को इस अधिकार का हकदार समझता है जिसके बावजूद उसको किसी चीज़ का भय नही है।[४]
कारण
नैतिक विद्वानों ने उज्ब के विभिन्न कारण बताए हैं। अल-महज्जातुल बैयज़ा में फैज़ काशानी ने सुंदरता और सौंदर्य, ताकत और क्षमता, चतुराई और बुद्धि, वंश और परिवार, सुल्तानों और शक्तिशाली लोगों से वावस्ता होना, बच्चों की प्रचुरता, धन और संपत्ति, और विचार को उज्ब के कारण बताया हैं।[५] उन्होने सूर ए तौबा की आयत "وَ یوْمَ حُنَین اذْ اعْجَبَتْکمْ کثْرتُکمْ वा यौमा हुनैन इज़ आज़ाबतकुम कसरतोकुम",[६] सूर ए हश्र की आयत न 2, और सूर ए कहफ़ की आयत न 104 को उज्ब से संबंधित बताया है।[७] नराक़ी ने कहा है कि उज्ब और इबादत मे विरोधाभास पाया जाता है, क्योकि इबादत अर्थात भगवान के सामने ज़लील और इंकेसारी जाहिर करना जबकि उज्ब मे यह नही है।[८]
प्रभाव और परिणाम
रिवयतो मे उज्ब के प्रभाव और परिणाम बताए गए हैं जोकि निम्मलिखित है;
- अच्छे कर्मों का नष्ट हो जाना; पैगंबर (स) से वर्णित है कि उज्ब मनुष्य के 70 वर्षों के कर्मों को नष्ट कर देता है।[९] इसके अलावा इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित एक रिवायत के आधार पर, दो लोग एक फ़ासिक़ और एक आबिद, मस्जिद में दाखिल हुए, लेकिन जब वे मस्जिद से बाहर आये, तो फ़ासिक़ आबिद और आबिद फ़ासिक़ हो गया था क्योंकि आबिद मस्जिद में उज्ब की स्थिति में था और अपनी इबादत की प्रशंसा कर रहा था, लेकिन फ़ासिक़ पश्चाताप के बारे में सोच रहा था और क्षमा मांग रहा था।[१०]
- अभिमान; उज्ब को अहंकार का स्रोत माना गया है।[११]
- पापों को भूलना या कम करके देखना।
- अपने कर्मों को बड़ा समझना और ईश्वर पर एहसान करना।[१२]
रिवायतो में बुद्धि भ्रष्ट होना[१३][१४], विनाश[१५] और अकेलापन[१६] उज्ब के परिणाम है, इसी प्रकार उज्ब ज्ञान हासिल करने[१७] और कमाल (पूर्णता) तक पहुँचने में बाधा है।[१८]
नहज अल-बलागा में एक कथन के अनुसार, एक पाप जो किसी व्यक्ति को परेशान करता है और उसे माफी मांगने पर मजबूर करता है, वह उस अच्छे काम से बेहतर है जो उसे उज्ब मे लिप्त कर दे।[१९]
इलाज
फ़ैज़ काशानी के दृष्टिकोण से उज्ब एक ऐसी बीमारी हैं जिसका कारण अज्ञानता है, और जहा तक वो प्रत्येक बीमारी का इलाज उसके मारक से किया जा सकता है, उनका मानना है कि उज्ब का इलाज जागरूकता और ज्ञान से करना संभव है।[२०] फ़ैज़ और कुछ अन्य नैतिक विद्वान इस बात को मानते है कि उज्ब का इलाज करने के लिए उसके कारणों और जड़ों पर ध्यान देना चाहिए; यदि उज्ब का कारण ईश्वर के आशीर्वादों में से एक है जैसे सुंदरता, शक्ति और बच्चों की प्रचुरता, तो मनुष्य को इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि जिस ईश्वर ने उसे ये आशीर्वाद दिए हैं, वह पलक झपकते ही उन्हें उससे छीन भी सकता है। जैसा कि हमेशा ऐसे लोगो के उदाहण हमारे पास मौजूद है कि जिनके पास तमाम आशीर्वाद थे लेकिन उनका सही तरीके से उपयोग नहीं करने के कारण वंचित हो गए, ऐसे उदाहरणो से हमे सीख लेनी चाहिए। और उज्ब का कारण शक्ति और क्षमता है, तो दैवीय शक्ति और महानता पर ध्यान देना चाहिए, और इसी प्रकार मनुष्य अपनी रचना के चरणो पर ध्यान दे कि उसकी रचना किस चीज से हुई है। और यदि उसके उज्ब का कारण उसका विचार है तो हमेशा अपने विचार की निंदा करे मगर यह कि क़ुरआन या रिवायतो से कोई निश्चित प्रमाण उसके सही होने की गवाही दे, इसी प्रकार उसको जनाकार लोगो के सामने पेश किया जाए।[२१]
इमाम बाक़िर (अ) की ओर से जाबिर बिन यज़ीद जोअफ़ी को की जाने वाली वसीयत के आधार पर, स्वयं को जानकर उज्ब का रास्ता रोका जा सकता है।[२२]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ फ़ैज़ काशानी, अल महज्जातुल बैयज़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 6, पेज 276
- ↑ नराक़ी, मेराज अल सआदा, 1378 शम्सी, सिफते चहारदहुम उज्ब व खुद बुज़ुर्गबीनी व मज़्ज़म्मते आन
- ↑ देखेः इब्ने कद्दामा मुकद्दसी, मुख्तसर मिनहाज अल क़ासेदीन, 1398 हिजरी, पेज 227-228 बे नक़ल अज़ दानिशनामे जहान इस्लाम मदख़लः तकब्बुर
- ↑ फ़ैज़ काशानी, अल महज्जातुल बैयज़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 6, पेज 276
- ↑ फ़ैज़ काशानी, अल महज्जातुल बैयज़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 6, पेज 276
- ↑ सूरा ए तौबा, आयत न 25
- ↑ फ़ैज़ काशानी, अल महज्जातुल बैयज़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 6, पेज 236
- ↑ नराक़ी, जामे अल सआदात, 1383 हिजरी, भाग 1, पेज 333
- ↑ पायंदे, नहजुल फसाहत, 1382 शम्सी, पेज 285
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 314
- ↑ फ़ैज़ काशानी, अल महज्जातुल बैयज़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 6, पेज 275; नराक़ी, जामे अल सआदात, 1383 हिजरी, भाग 1, पेज 325
- ↑ फ़ैज़ काशानी, अल महज्जातुल बैयज़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 6, पेज 275; नराक़ी, जामे अल सआदात, 1383 हिजरी, भाग 1, पेज 325
- ↑ तमीमी आमदी, ग़ेरारुल हिकम, 1410 हिजरी, भाग 388
- ↑ इब्ने शैबा हर्रानी, तोहफ अल उकूव, 1363 हिजरी, पेज 6 नहज अल बलाग़ा, 1414 हिजरी, पेज 397
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 313
- ↑ इब्ने शैयबा हर्रानी, तोहफ अल उक़ूल, 1363 हिजरी, भाग 6
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 69, पेज 199
- ↑ नहज अल बलाग़ा, 1414 हिजरी, पेज 817
- ↑ नहज अल बलाग़ा, 1414 हिजरी, पेज 477
- ↑ फ़ैज़ काशानी, अल महज्जातुल बैयज़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 6, पेज 277
- ↑ फ़ैज़ काशानी, अल महज्जातुल बैयज़ा, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 6, पेज 282-289; नराक़ी, जामे अल सआदात, 1383 हिजरी, भाग 1, पेज 336-344
- ↑ इब्ने शैयबा हर्रानी, तोहफ अल उक़ूल, 1363 हिजरी, पेज 285
स्रोत
- इब्ने शैयबा हर्रानी, हसन बिन अली, तोहफ अल उक़ूल, संशोधनः अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, क़ुम, जामे मुदर्रेसीन, 1363 हिजरी
- इब्ने कद्दामा मुकद्देसी, मुख्तसर मिनहाज अल क़ासेदीन, छाप शोऐब वा अब्दुल क़ादिर अर्नऊत, दमिश्क, 1398 हिजरी-1978ई
- पायंदे, अबुल क़ासिम, नहज अल फ़साहा, तेहरान, दानिश, 1382 शम्सी
- तमीमी आमदी, अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद, ग़ेरारुल हिकम व दुरारुल कलिम, संशोदनः महदी रजाई, क़ुम, दार अल कुतुब अल इस्लामी, 1410 हिजरी
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, अल महज्जातुल बैयज़ा फ़ी तहज़ीब अल एहया, संशोधनः अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर् अल इस्लामी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, संसोधनः अली अकबर ग़फ़्फ़ारी वा मुहम्मद आख़ूंदी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1407 हिजरी
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1403 हिजरी
- नराक़ी, अहमद, मेराज अल सआदत, क़ुम, इंतेशारात हिजरत, 1378 शम्सी
- नराक़ी, मुहम्मद महदी, जामे अल सआदत, क़ुम, मोअस्सेसा मतबूआती ईरानीयान, 1963 ई-1383 हिजरी
- नहज अल बलाग़ा, संशोधनः सुबही सालेह, क़ुम, हिजरत, 1414 हिजरी