असवद बिन क़ुतबा

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असवद बिन क़ुतबा तमीमी से भ्रमित न हों।
नहजुल बलाग़ा के पत्र 59 का अनुवाद:

यदि शासक की राय और विचार बदल जाते हैं, तो यह उसे न्याय (अदालत) करने से रोक देगा। अत: आपकी दृष्टि में जो सही है वही लोगों का कार्य होना चाहिए, क्योंकि अन्याय में न्याय की कोई क़ीमत नहीं होती। दूसरों की जो बात आपको पसंद नहीं है उससे बचें और ईश्वर से इनाम (सवाब) की उम्मीद करते हुए और उसकी सज़ा से डरते हुए स्वयं को वह करने के लिए मजबूर करें जो ईश्वर ने आप पर अनिवार्य कर दिया है। जान लो कि दुनिया परीक्षाओं का घर है और और सांसारिक उपासक इसमें एक घड़ी के लिए भी विश्राम नहीं करता, सिवाय इसके कि वह प्रलय (क़यामत) के दिन पछताएगा, और कोई भी चीज़ तुम्हें कभी भी सच्चाई से वंचित नहीं करेगी। आपके पास जो अधिकार हैं उनमें से एक यह है कि आप अपनी आत्मा की रक्षा करें और प्रजा के मामलों में जितना हो सके प्रयास करें, क्योंकि इस तरह से आप जो प्राप्त करते हैं वह अपनी शारीरिक ताक़त से जो खोते हैं उससे बेहतर है।[१]

असवद बिन क़ुतबा (फ़ारसी: اَسْوَد بن قُطبَه) इमाम अली (अ) के साथियों में से एक थे और हुलवान क्षेत्र में उनकी सेना के कमांडर थे।[२] इमाम अली (अ) द्वारा एक पत्र उन्हें संबोधित करते जारी किया गया था और इस पत्र का उल्लेख नहजुल बलाग़ा में किया गया है।[३] इस पत्र में, इमाम असवद को स्वार्थ और क्रूरता से बचने, लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने और उनकी सेवा करने के अवसर का उपयोग करने का आदेश देते हैं।[४] इमाम द्वारा असवद बिन क़ुतना (نون नून के साथ) को लिखा गया एक पत्र वक़्आ सिफ़्फ़ीन पुस्तक में वर्णित है, जिसकी सामग्री नहजुल बलाग़ा के पत्र 59 के समान है।[५]

मकातीब अल आइम्मा पुस्तक में अली अहमदी मियांजी (मृत्यु: 1379 शम्सी) के अनुसार, नहज अल बलाग़ा के इतिहासकार और टिप्पणीकार असवद के पिता के नाम के बारे में कि क़ुतबा या क़ुतना या क़ुतीना था में असहमत हैं।[६] शरहे इब्ने मीसम बहरानी में क़ुतीना शब्द दर्ज हुआ है।[७] इब्ने अबी अल हदीद, 7वीं शताब्दी हिजरी में नहज अल बलाग़ा के टिप्पणीकारों में से एक, असवद की वंशावली के बारे में, वह किताब अल इस्तियाब के दृष्टिकोण को मानते हैं, जिसमें उन्हें असवद बिन ज़ीद बिन क़ुतबा बिन ग़नम अंसारी के रूप में पेश किया है।[८] कुछ लोगों का मानना है कि असवद बिन क़ुतबा ने बद्र की लड़ाई में भाग लिया था।[९]

सय्यद मुर्तज़ा अस्करी (मृत्यु: 1386 शम्सी), एक शिया इतिहासकार, का मानना है कि नहजुल बलाग़ा में इमाम अली (अ) द्वारा जारी किया गया पत्र अवसद बिन क़ुतबा तमीमी को संबोधित नहीं है बल्कि यह पत्र सबाई क़हतानी को संबोधित है।[१०] उनकी राय में, असवद तमीमी इस्लामी इतिहास के काल्पनिक पात्रों में से एक है।[११]

फ़ुटनोट

  1. दश्ती, नहज अल बलाग़ा का अनुवाद, 1379 शम्सी, पृष्ठ 598-599।
  2. अमीन, आयान अल शिया, 1403 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 442; नहज अल बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संशोधित, पत्र 59, पृष्ठ 449।
  3. नहज अल बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संशोधित, पत्र 59, पृष्ठ 449।
  4. नहज अल बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संशोधित, पत्र 59, पृष्ठ 449।
  5. मिन्क़री, वक्आ सिफ़्फ़ीन, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 106।
  6. अहमदी मियांजी, मकातिब अल आइम्मा, 1426 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 362।
  7. इब्ने मीसम बहरानी, शरहे नहज अल बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 196।
  8. इब्ने अबी अल हदीद, शरहे नहज अल बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ 145।
  9. इब्ने अबी अल हदीद, शरहे नहज अल बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ 145।
  10. अस्करी, सद व पंजाह सहाबी साख़्तगी, 1387 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 53।
  11. अस्करी, सद व पंजाह सहाबी साख़्तगी, 1387 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 53।

स्रोत

  • नहज अल बलाग़ा, सुब्ही सालेह द्वारा संशोधित, क़ुम, मोअस्सेस ए दार अल हिजरा, 1414 हिजरी।
  • इब्ने अबी अल हदीद, अब्दुल हामिद बिन हेबतुल्लाह, शरहे नहज अल बलाग़ा, मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम द्वारा शोध, क़ुम, मकतब आयतुल्लाह उज़मा अल मरअशी अल नजफ़ी, 1404 हिजरी।
  • अहमदी मियांजी, अली, मकातिब अल आइम्मा, शोध: मुज्तबा फ़र्जी, क़ुम, दार अल हदीस, पहला संस्करण, 1426 हिजरी।
  • अमीन, सय्यद मोहसिन, आयान अल शिया, लेबनान, दार अल तआरुफ़, 1403 हिजरी।
  • इब्ने मीसम बहरानी, मीसम बिन अली, शरहे नहज अल बलाग़ा, तेहरान, दफ़्तरे नशर अल किताब, 1404 हिजरी।
  • दश्ती, मुहम्मद, नहज अल बलाग़ा का अनुवाद, क़ुम, मशहूर, 1379 शम्सी।
  • अस्करी, सय्यद मुर्तज़ा, सद व पंजाह सहाबी साख्तगी, क़ुम, दानिशक़देह उसूल अल दीन, 1387 शम्सी।
  • मिन्क़री, नस्र बिन मुज़ाहिम, वक़्आ सिफ़्फ़ीन, क़ुम, मकतबा आयतुल्लाह अल मरअशी अल नजफ़ी, दूसरा संस्करण, 1404 हिजरी।