शाम मे हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश

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कूफ़ा मे हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश से भ्रमित न हों।
शाम में हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश
विषयकर्बला की घटना की विकृति से निपटना, यज़ीद की क्रूरता और भ्रष्टाचार की निंदा करना, यज़ीद को कर्बला घटना के मुख्य कारण के रूप में पेश करना।
किस से नक़्ल हुईहज़रत ज़ैनब (स)
शिया स्रोतअल एहतेजाज अला अहलिल लुजाज, मुसीर अल-अहज़ान, अल-लोहूफ़ अला क़त्लत तोफ़ूफ़
सुन्नी स्रोतबलाग़ात अल-नेसा

शाम में हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश (अरबीः خطبة السيدة زينب (ع) فی الشام) उस उपदेश को संदर्भित करता है जो हज़रत ज़ैनब (स) ने कर्बला की घटना के बाद शाम (सीरिया) में यज़ीद बिन मुआविया की सभा में दिया था। यह उपदेश अपनी फ़साहत, बलाग़त के कारण सदैव शोधकर्ताओं के ध्यान को केन्द्रित करता रहा है। इस उपदेश में हज़रत ज़ैनब (स) ने बनी उमय्या सरकार के ख़िलाफ़ स्पष्ट बयान दिया।

इस उपदेश में हज़रत ज़ैनब (स) ने यज़ीद और उसके समर्थकों को अन्यायी और सज़ा के योग्य बताया, और युद्ध में उनकी जाहरी जीत को ईश्वर की ओर से मोहलत देने की सुन्नत बताया। इस उपदेश में, हजरत ज़ैनब (स) ने सबूतों का इस्तेमाल किया और समाज को यज़ीद के शासन की शून्यता के बारे में जागरूक होने के लिए बौद्धिक आधार प्रदान किया। इसके अलावा, उन्होने क़ुरआन की आयतों का हवाला देकर कुछ लोगों का मार्गदर्शन करने और कर्बला के क़ैदीयो को ख़ारजी कहने के तत्कालीन सरकार के आरोप को खारिज करने में सफ़ल हुई।

इस उपदेश को कर्बला में इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन को कामिल करने वाला माना गया है, क्योंकि हज़रत ज़ैनब (स) इस उपदेश को देकर कर्बला की घटना को तहरीफ़ होने से बचाया। फ़ारसी की विभिन्न कविताओ और साहित्य में इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन को पूरा करने में हज़रत ज़ैनब की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया गया है। सीरिया में हज़रत ज़ैनब (स) के उपदेश के बारे में विभिन्न शोध लिखे गए हैं, जिनमें से एक है "सीरिया में हज़रत ज़ैनब के उपदेश का विवरण", जिसके लेखक अली करीमी जहरमी हैं।

इस्लाम के इतिहास में उपदेश का महत्व

शाम में हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश इस्लाम के इतिहास में सबसे प्रभावशाली उपदेशों में से एक माना जाता है।[१] दरसी के हुसैन बे इंसानहा आमूख्त नामक किताब के लेखक सय्यद अब्दुल करीम हाशमी नेजाद ने एक बंदी महिला द्वारा दिए गए भाषण को जाबिर और अहंकारी शक्ति का अपमानजनक और चौंका देने वाला उपदेश माना।[२] शोधकर्ताओं ने इस उपदेश को कर्बला में इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का समापन माना है।[३] इमाम हुसैन और ईरान पुस्तक के लेखक कूर्त फ़रिश्लिर ने इस उपदेश को ऐतिहासिक बताते हुए इसे बहुत महत्वपूर्ण माना है।[४] शाम में हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश अपनी प्रभावशीलता, फ़साहत और बलाग़त के कारण लगातार शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित कर रहा है।[५]

इस उपदेश को कर्बला की घटना मे तहरीफ़ पैदा करने के षडयंत्र का मुक़ाबला समझा जाता है; क्योंकि यज़ीद कर्बला की घटना को इमाम हुसैन (अ) पर दैवीय सज़ा के रूप में पेश करना चाहता था[६] लेकिन हज़रत ज़ैनब (स) ने इस उपदेश में यज़ीद को कर्बला की घटना का असली मुजरिम बताया।[७] यज़ीद के सामने हज़रत ज़ैनब (स) के स्पष्ट और खुले शब्दो को आप (स) की बहादुरी की बे मिसाल निशानी का प्रतीक माना गया है; क्योंकि उस समय किसी ने यज़ीद की मौजूदगी में उसकी क्रूरता और भ्रष्टाचार के बारे में लोगों को बताने की हिम्मत नहीं की थी।[८] ईरान के इस्लामी गणराज्य के नेता आयतुल्लाह खामेनेई का मानना है कि कूफ़ा और शाम में हज़रत ज़ैनब (स) ने ऐसा माहेराना उपदेश दिया है कि दुश्मन भी इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।[९] कुर्त फ्रिश्लर के अनुसार, इस उपदेश को सदियाँ बीत चुकी हैं, इतिहासकार आज भी हज़रत ज़ैनब (स) के साहसी उपदेश से आश्चर्यचकित हैं।[१०]

हज़रत ज़ैनब (स) ने यह उपदेश तब दिया था जब यज़ीद ने इमाम हुसैन (अ) के कटे हुए सिर का अपमान किया था[११] और एक सीरियाई व्यक्ति ने यज़ीद से इमाम हुसैन (अ) की बेटी फातिमा को कनीज़ी के रूप में देने की मांग की थी।[१२] ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, जब वे कर्बला के बंदी सीरिया पहुंचे, तो यज़ीद ने अपने दरबारीयो को बुलाकर एक सभा बुलाई।[१३] इमाम हुसैन (अ) का सिर एक तश्त में रखा गया और कैदियों को यज़ीद की सभा में लाया गया।[१४] यज़ीद ने अपने हाथ में मौजूद छड़ी से इमाम हुसैन (अ) के होंटो पर मारना शुरू किया।[१५] उसने कविता की एक पक्ति पढ़ते हुए वही और पैग़म्बर (स) की नबूवत का खंडन किया,[१६] और घोषणा की कि उसने कर्बाल की घटना को अपने काफ़िर पूर्वज जो बद्र की लड़ाई मे पैग़म्बर अकरम (स) और हज़रत अली (अ) के हाथो मारे गए थे, के खून का प्रतिशोध लेने के लिए अंजाम दी है।[१७]

अश्आर का हिंदी उच्चारण अनुवाद अश्आर का अरबी उच्चारण
लैता अशयाख़ी बेबद्रे शहेदू *** जज़अल ख़ज़रजे मिन वक़्इल असल काश बद्र की लड़ाई के मेरे पूर्वज आज देखते *** ख़ज़रज जनजाति किस तरह नेज़ो के वार से रो रहे है لَیتَ أَشْیاخی بِبَدْر شَہِدُوا*** جَزَعَ الْخَزْرَجِ مِنْ وَقْعِ الاَْسَلْ
फ़अहल्लू वस तहल्लू फ़रहन *** सुम्मा क़ालू या यज़ीदो ला तशल[१८] उस समय वह खुशी से चीख कर *** कहता है: हे यज़ीद तुम्हारा धन्यवाद! فَأَہَلُّوا وَ اسْتَہَلُّوا فَرَحاً *** ثُمَّ قالُوا یایزیدُ لاتَشَلْ
लऐबत बनी हाशेमो बिल मुल्के फ़ला *** खबरुन जाआ वला वहयुन नज़ल[१९] हाशिम ने हुकूमत का ढोंग रचाया था *** ना कोई वही आई है और ना कोई खबर! لَعِبَتْ ہَاشِمُ بِالمُلْکِ فَلا *** خَبَرٌ جَاءَ وَ لَا وَحْیٌ نَزَل

शिया स्रोतों मे अल एहतेजाज अला अहलिल लुजाज[२०], मुसीर अल-अहज़ान,[२१] अल-लोहूफ़ अला क़त्लत तोफ़ूफ़[२२] और सुन्नी स्रोतों से, बलाग़ात अल निसा[२३] आदि मे इस उपदेश को जगह दी है।

कंटेंट

कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, कूफ़ा में अपने भावनात्मक उपदेश के विपरीत, हज़रत ज़ैनब (स) ने शाम के उपदेश में साक्ष्य और तर्कपूर्ण सामग्री का अधिक और भावनात्मक सामग्री का कम उपयोग किया।[२४] शाम मे हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश 7 बुनयादी हिस्सो पर आधारित थाः

शाम में हज़रत ज़ैनब के उपदेश का अंश:

«فَكِدْ كَيْدَكَ وَ اسْعَ سَعْيَكَ وَ نَاصِبْ جُهْدَكَ فَوَ اللَّهِ لَا تَمْحُو ذِكْرَنَا وَ لَا تُمِيتُ وَحْيَنَا وَ لَا تُدْرِكُ أَمَدَنَا وَ لَا تَرْحَضُ عَنْكَ عَارَهَا‏» "फ़किद कयदका वसआ सअयका व नासिब जोहदका फ़व्ललाहे ला तमहू ज़िक्रना वला तोमीतो वहयना वला तुदरेको अमदना वला तरहज़ो अन्का आरबन"


अनुवाद: हे यज़ीद, जो भी चाल चाहो अपनाओ, और जितना चाहो आज़माओ, मैं ईश्वर की कसम खाती हूं कि तू हमारी स्मृति और नाम को कभी नहीं मिटा पाएंगा और हमारे रहस्योद्घाटन को खत्म कर पाएंगा, तू हमारा कभी मुक़ाबला नही कर सकता और यह अपमान तुझ से दूर नहीं होगा।

सय्यद इब्न ताऊस, अल लोहूफ़ अला क़तलित तोफ़ूफ, 1348 हिजरी, पेज 185
  1. क़ुरआन की आयतों से बहस करके यज़ीद के घमंड को कुचलना;
  2. मक्का की विजय के दौरान यजीद के पूर्वजों से साथ पैग़म्बर (स) के अच्छे व्यवहार की पैग़म्बर (स) के परिवार के क़ैदीयो के साथ यजीद की कार्रवाई की तुलना;
  3. यजीद के कुफ्र आमेज़ शब्दो की ओर संकेत करते हुए उसकी विश्वास की कमी पर जोर देना;
  4. शहीदों की उच्च स्थिति पर जोर, विशेष रूप से पैग़म्बर (स) के परिवार के शहीदों;
  5. न्याय के दिन अल्लाह की अदालत में यज़ीद की उपस्थिति का जिक्र;
  6. यज़ीद को बात करने के अयोग्य समझकर उसे अपमानित करना;
  7. पैग़म्बर (स) के परिवार को दया, सम्मान और शहादत प्रदान करने के लिए भगवान के कई आशीर्वादों के लिए आभार व्यक्त करना।[२५]

हज़रत ज़ैनब (स) ने इस उपदेश में कई आयतो का उल्लेख किया; क्योंकि वह सीरिया के लोगों के साथ अपने सामान्य प्रवचन (यानी क़ुरआन) का उपयोग करना चाहती थी, एक तरफ उनका मार्गदर्शन करना चाहती थी, और दूसरी तरफ वर्तमान सरकार अहले-बैत (अ) को खारजी बता रही थी तोकि लोगो को अहले-बैत (अ) से दूर किया जा सके।[२६] हज़रत ज़ैनब (स) ने इस उपदेश मे सूर ए रूम की आयत न10 का हवाला देते हुए, क़ुरआन की आयत के साथ यज़ीद के प्रति अनादर को उसके कई पापों का परिणाम बताया है।[२७] इसी तरह सूर ए आले इमरान की आयत न 178 का हवाला देते हुए यज़ीद की जाहिरी विजय को ईश्वर की ओर से मोहलत बताया।[२८] इस उपदेश में ज़ैनब (स) ने क़ुरआन की विभिन्न आयतों का हवाला देते हुए यज़ीद और उसके समर्थकों को कर्बाल की घटना जैसे बड़ी घटना के घटित होने के कारक अत्याचार, दुनिया मे अपमान के आनंद और आख़िरत मे सज़ा का मुस्तहक़ बताया।[२९]

हज़रत ज़ैनब (स) ने यज़ीद को "या इब्न अल-तोलक़ा" (जिसका अर्थ है: आज़ाद शुदा औरत का बेटा) के रूप में संदर्भित करते हुए, मक्का की विजय में यज़ीद के पूर्वजों के साथ पैग़म्बर (स) की उदार क्षमा की तुलना पैगम्बर (स) के परिवार को बंदी बनाने पर यज़ीद के दुर्व्यहार के साथ तुलना की।[३०] शिया मुजतहिद आयतुल्लाह साफ़ी गुलपाएगानी के अनुसार हज़रत ज़ैनब (स) ने इस उपदेश के अंतिम भाग मे उस अदृश्य समाचार को बयान किया है कि अहले-बैत (अ) का ज़िक्र कभी नहीं भुलाया जाएगा।[३१]

उपदेश के परिणाम

ऐतिहासिक शोधकर्ताओं के अनुसार, शाम में हज़रत ज़ैनब (स) के उपदेश के निम्नलिखित परिणाम थे:

अली करीमी जहरमी द्वारा लिखित किताब शरहो खुत्बा हज़रत ज़ैनब दर शाम
  • बनी उमय्या की हुकूमत का हिलना। यज़ीद की सभा में यह उपदेश सुनने के बाद फ़ज़ल बिन अब्बास रबीआ जैसे लोग इमाम हुसैन (अ) के खून का प्रतिशोध मांगने के लिए उठ खड़े हुए।[३२]
  • बनी उमय्या सरकार सव्य को कर्बला की विजेता मानती थी लेकिन इस उपदेश से लोगो पर स्पष्ट हो गया कि बनी उमय्या इस युद्ध का पराजित होने वाला घटक है[३३]
  • कर्बला के कैदियों को खारजी बताने की सरकार के षडयंत्र की असफलता[३४]
  • यज़ीद के शासन को बातिल समझने के लिए समाज की बौद्धिक पृष्ठभूमि प्रदान करना[३५]
  • शाम के लोगों के लिए यज़ीद और उसके आसपास के लोगों के पाखंडी चरित्र को उजागर करना।[३६]

मोनोग्राफ़ी

शाम में हज़रत ज़ैनब (स) के उपदेश के बारे में साहित्यिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और पद्धतिगत दृष्टिकोण के साथ विभिन्न शोध लिखे गए हैं[३७] इस उपदेश के विवरण में लिखी गई कुछ किताबें हैं:

  • निगाही बे खुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स) दर कुफा व शाम; अब्दुल करीम पाकनिया द्वारा लिखित इस पुस्तक के विषयों को चार अध्यायों में व्यवस्थित किया गया है, जिसका तीसरा अध्याय शाम में हज़रत ज़ैनब (स) के उपदेश और उसके परिणामों के अध्ययन के लिए समर्पित है।[३८] यह पुस्तक सन 1389 शम्सी को इंतेशारात फ़रहंग अहले-बैत के प्रयासो से 130 पृष्ठो मे प्रकाशित हुई।[३९]
  • शरह खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम, अली करीमी जहरमी द्वारा लिखित; बोस्तान किताब पब्लिशिंग हाउस कुम ने इस पुस्तक को 2015 ई में दूसरी बार प्रकाशित किया है।[४०]
  • शरहो खुत्बा अल सय्यदा ज़ैनब (स) फ़ी मजलिस यज़ीद बिन मुआविया, रजब बिन हसन द्वारा लिखित; यह पुस्तक 2021 ई मे मीरास मांदेगार पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित की गई थी।[४१]

उपदेश का पाठ और अनुवाद

उपदेश का हिंदी उच्चारण अनुवाद उपदेश का अरबी उच्चारण
फ़क़ामत ज़ैनबो बिन्तो अली इब्न अली तालेबिन (अ) फ़क़ालत अल्हमदो लिल्लाहे रब्बिल आलामीना व सल लल्लाहो अला रसूलेहि व आलेहि अज्मईना सदकल्लाहो सुब्हानहो कज़ालेका यक़ूलो [सुम्मा काना आक़ेबतल लज़ीना असाउस सूआ अन कज़्ज़बू बेआयातिल्लाहे व कानू बेहा यसतहज़ेऊना (रूमः 10)] सभी प्रशंसा उस ईश्वर के लिए हैं जो ब्रह्मांड का स्वामी है। और दुरूद और सलाम हो पवित्र पैग़म्बर (स) और उनके पवित्र परिवार पर और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल हो। उसके बाद! अंततः, उन लोगों का अंत बुरा होता है जिन्होंने अपने जीवन को बुराइयों की स्याही से दाग दिया है, अपने ईश्वर की निशानीयो को अस्वीकार कर दिया है और ईस्वर की निशानीयो का मजाक उड़ाया है। فَقَامَتْ زَيْنَبُ بِنْتُ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ ع فَقَالَتْ الْحَمْدُ لِلهِ رَبِّ الْعالَمِينَ وَ صَلَّى اللهُ عَلَى رَسُولِهِ وَ آلِهِ أَجْمَعِينَ صَدَقَ اللهُ سُبْحَانَهُ كَذَلِكَ يَقُولُ: ﴿ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِينَ أَسَاءُوا السُّوءَى أَنْ كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللَّهِ وَكَانُوا بِهَا يَسْتَهْزِئُونَ
आ ज़न्नता या यज़ीदो हैसो अख़ज़्ता अलैना अक़्तारल अर्ज़े व आफ़ाक़स समाए फ़अस्बहना नोसाक़ो कमा तोसाक़ुल ओसराओ अन्ना बेना हवानन अलैहे व बेका अलैहे करामतन व अन्ना ज़ालेका लेऐज़मे ख़तरेका इंदहू फ़शमख़्ता बेअंफ़ेका व नज़रता फ़ी इतफ़ेका जज़लाना मसरूरन हैसो रआयतत दुनिया लका मुस्तौसेक़तन वल ओमूरा मुत्तसेक़तन व हीना सफ़ा लका मुल्कोना व सुल्तानोना फ़महलन महला अनसीता क़ौलल्लाहे तआला [वला तहसबन्नल्लज़ीना कफ़रू अन्नमा नुमलि लहुम ख़ैरुन लेअंफ़ोसेहिम इन्नमा नुमलि लहुम लेयज़्दादू इस्मन वलहुम अज़ाबुन मोहीन (आले इमरानः 178)] मिनल अद्ले यब्नत तोलक़ाए तखदीरोका हराएरका व इमाअका व सौक़ोका बनाते रसूलिल्लाहे सल लल्लाहो अलैहे व आलेहि सबाया क़द हतकता सोतूरोहुन्ना व अब्दयता वोजूहहुन्ना तहदू बेहिन्नल आअदाओ मिन बलदिन ऐला बलदिन व यस्तशरेफ़ोहुन्ना अहलुल मनाहेले वल मनाक़ेले व यतसफ़्फ़हो वोजूहोहुन्नल करीबो वल बईदो वद दनीयो वश शरीफ़ो लैसा मअहुन्ना मिन रेजालेहिन्ना वलीयुन वला मिन हुमातेहिन्ना हमीयुन व कैफ़ा युरतजा मुराक़बतो मन लफ़ज़ा फ़ूहो अकबादल अज़कियाए व नबता लहमोहू मिन देमाइश शोहादाए व कैफ़ा यस्तबतेओ फ़ी बुग़्ज़ेना अहलल बैते मन नज़रा इलैना बिश शनफ़े वश शनाआने वल एहने वल अज़ग़ाने सुम्मा तक़ूलो ग़ैरा मुताअस्सेमिन वला मुस्तअज़ेमिन हे यज़ीद! क्या तू समझता है कि तूने धरती के कोनों और आकाश के किनारों को हमारे लिए [अलग-अलग तरीकों से] तंग कर दिया है, और पैग़म्बर (स) के परिवार को रस्सियों और जंजीरों से बांध कर दर ब दर फ़िराने से तू ईश्वर के सामने महान और हम बदनाम हो गए हैं? क्या तेरी समझ मे हम मज़लूम होकर अपमानित हो गए और तू अत्याचारी होकर सर बुलंद हुआ है? क्या तू सोचता है कि हम पर अत्याचार करके तुझे परमेश्वर की उपस्थिति में सम्मान और पद प्राप्त हो गया है? आज तू अपनी प्रत्यक्ष जीत की खुशी में मगन है, हर्ष और उल्लास से भरपूर है, अपनी जीत का जश्न मना रहा है। और हमारे मुस्लिम नेतृत्व के अधिकारों [ख़िलाफ़त] को हड़प कर ख़ुशी मनाने में लगा हुआ है। अपनी गलत सोच पर घमंड न कर और सचेत होकर सांस लें। क्या तूने ईश्वर के आदेश को भुला दिया है कि जो लोग सत्य से इनकार करते हैं वे यह न समझें कि हमने उन्हें जो मोहलत दी है वह उनके लिए बेहतर है। बल्कि हमने उन्हें खुला छोड़ दिया है ताकि वे अपने पापों को बढ़ाएँ। और उनके लिये भयानक अज़ाब निर्धारित किया जा चुका है। उसके बाद उन्होंने फ़रमाया: ऐ आज़ाद शुदा महिला के बेटे (स्वतंत्र गुलामों के वंशज), क्या यह तेरा न्याय है कि तूने अपनी रखैलों और महिलाओ को चार दीवारों की सुरक्षा में पर्दे में ढक कर रखा है, और रसूलज़ादियों को नंगे सिर अंदर ले आए और लोग रसूलज़ादियो को नंगे सिर देख कर अनका उपहास कर रहे है और दूर एंव नज़दीक के रहने वाले सभी लोग उनकी ओर आंखे उठा उठा कर देख रहे है। हर शरीफ और कमीने की नज़रे इन पवित्र बीबीयो के नंगे सिरो पर जमी हुई है। आज रसूल ज़ादियो के साथ हमदर्दी करने वाला कोई नही है। आज इन बंदी महिलाओ के साथ इनके पुरूष मौजूद नही है जो इनकी देख भाल करें। आज मुहम्मद की संतान का सहायत और मदगार कोई नही है। उस व्यक्ति से भलाई की क्या आशा हो सकती है जिसकी माता (यज़ीद की दादी) ने पवित्र लोगो के जिगर को चबाया हो। और उस व्यक्ति से न्याय की क्या आशा हो सकती है जिसने शहीदो का ख़ून पी रखा हो। वह व्यक्ति किस प्रकार हम अहले-बैत (अ) पर अत्याचार करने मे कमी कर सकता है जो बुग़्ज़ और अदावत और कीने से भरे हुए दिल के साथ हमे देखता है। أَ ظَنَنْتَ يَا يَزِيدُ حَيْثُ أَخَذْتَ عَلَيْنَا أَقْطَارَ الْأَرْضِ وَ آفَاقَ السَّمَاءِ فَأَصْبَحْنَا نُسَاقُ كَمَا تُسَاقُ الْأُسَرَاءُ أَنَّ بِنَا هَوَاناً عَلَيْهِ وَ بِكَ عَلَيْهِ كَرَامَةً وَ أَنَّ ذَلِكَ‏ لِعِظَمِ خَطَرِكَ عِنْدَهُ فَشَمَخْتَ بِأَنْفِكَ وَ نَظَرْتَ فِي عِطْفِكَ جَذْلَانَ مَسْرُوراً حَيْثُ رَأَيْتَ الدُّنْيَا لَكَ مُسْتَوْثِقَةً وَ الْأُمُورَ مُتَّسِقَةً وَ حِينَ صَفَا لَكَ مُلْكُنَا وَ سُلْطَانُنَا فَمَهْلًا مَهْلًا أَ نَسِيتَ قَوْلَ اللهِ تَعَالَى: ﴿وَلَا يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ خَيْرٌ لِأَنْفُسِهِمْ إِنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ لِيَزْدَادُوا إِثْمًا وَلَهُمْ عَذَابٌ مُهِينٌ ١٧٨﴾ [آل عمران:178] أَ مِنَ الْعَدْلِ يَا ابْنَ الطُّلَقَاءِ تَخْدِيرُكَ حَرَائِرَكَ وَ إِمَاءَكَ وَ سَوْقُكَ بَنَاتِ رَسُولِ الله صلی الله علیه وآله سَبَايَا قَدْ هَتَكْتَ سُتُورَهُنَّ وَ أَبْدَيْتَ وُجُوهَهُنَّ تَحْدُو بِهِنَّ الْأَعْدَاءُ مِنْ بَلَدٍ إِلَى بَلَدٍ وَ يَسْتَشْرِفُهُنَّ أَهْلُ الْمَنَاهِلِ وَ الْمَنَاقِلِ وَ يَتَصَفَّحُ وُجُوهَهُنَّ الْقَرِيبُ وَ الْبَعِيدُ وَ الدَّنِيُّ وَ الشَّرِيفُ لَيْسَ مَعَهُنَّ مِنْ رِجَالِهِنَّ وَلِيٌّ وَ لَا مِنْ حُمَاتِهِنَّ حَمِيٌّ وَ كَيْفَ يُرْتَجَى مُرَاقَبَةُ مَنْ لَفَظَ فُوهُ أَكْبَادَ الْأَزْكِيَاءِ وَ نَبَتَ لَحْمُهُ مِنْ‏ دِمَاءِ الشُّهَدَاءِ وَ كَيْفَ يَسْتَبْطِئُ فِي بُغْضِنَا أَهْلَ الْبَيْتِ مَنْ نَظَرَ إِلَيْنَا بِالشَّنَفِ وَ الشَّنَئَانِ وَ الْإِحَنِ وَ الْأَضْغَانِ ثُمَّ تَقُولُ غَيْرَ مُتَأَثِّمٍ وَ لَا مُسْتَعْظِمٍ
वा अहल्लू वस्तहल्लू फ़रहन / सुम्मा क़ालू या यज़ीदो ला तोशला मुंतहेयन अला सनाया अबि अब्दिल्लाहे सय्यदे शबाबे अहलिल जन्नते तनकोतोहा बेमिख़सरतेका व कैफ़ा ला तक़ूलो ज़ालेका व क़द नकअतल क़रहता वस तासलतश शाफ़ता बेएराक़तेका देमाआ ज़ुर्रीयते मुहम्मदिन (स) व नोज़ूमिल अर्ज़े मिन आले अब्दिल मुत्तलिबे व तहतेफ़ो बेअशयाख़ेका ज़अम्ता अन्नका तोनादीहिम फ़लतरेदन्ना वशीकन मोरेदहम व लतवद्दन्ना अन्नका शललता व बकिम्ता वलम तकुन क़ुल्ता मा क़ुल्ता व फ़अलता मा फ़अलता अल्लहुम्मा ख़ुज़ लना बेहक़्केना वनतक़िम मिन ज़ालेमेना व अहलिल ग़ज़बका बेमन सफ़का देमाआना व क़त्ला होमातना फ़वल्लाहे मा फ़रयता इल्ला जिलदका वला हज़्ज़ता इल्ला लहमका व लतरेजन्ना अला रसूलिल्लाहे (स) बेमा तहम्मलता मिन सफ़के देमाए ज़ुर्रीयतेहि वनतहकता मिन हुरमतेहि फ़ी इतरतेही व लोहमतेहि हैसो यज्मउल्लाहो शमलहुम व यलुम्मो शअसहुम व याख़ोज़ो बेहक़्क़ेहिम [वला तहसबन्नल लज़ीना क़ोतेलू फ़ी सबीलिल्लाहे अमवाता बल अहयाउन इन्द रब्बेहिम युरज़क़ून (आले इमरानः169)] हे यज़ीद! क्या तुझे शर्म नहीं आती कि इतना बड़ा अपराध और इतना बड़ा पाप करने के बाद भी तू शेखी बघारते हुए कह रहा हैं कि यदि आज मेरे पूर्वज होते तो उनका हृदय आनंद से भर जाता और वे मुझे आशिर्वाद देते हुए कहते हे यज़ीद तेरे हाथ शल न हो। हे यज़ीद! क्या तुझे शर्म नहीं आती कि तू जन्नत के युवाओं के सरदार हुसैन इब्न अली (अ) के धन्य दांत पर छड़ी मारकर उनका अपमान कर रहा हैं? हे यज़ीद, तू खुश क्यों न हो और गर्व और शेखी के कसीदे क्यों नहीं पढ़े क्योंकि तूने अपनी क्रूरता और अत्याचार से ईश्वर के रसूल के बेटे और अब्दुल मुत्तलिब के परिवार के सितारों का खून बहाकर हमारे दिलों के घावों को गहरा कर दिया है। तूने शजर ए तय्यबा की जड़ों को काटने का जघन्य अपराध किया हैं। तूने पैगंबर के बच्चों के खून में अपने हाथ रंगे हैं। तूने अब्दुल मुत्तलिब के परिवार के युवाओं को मार डाला है, जिनकी महानता और चरित्र के चमकते सितारे पृथ्वी के कोने-कोने को रोशन कर रहे हैं। आज, रसूल के परिवार को मारने के बाद, तूने अपने तथाकथित [बुरे] पूर्ववर्तियों को बुला कर उन्हे अपनी जीत के बारे में गान सुना रहा है। तू समझता है कि वो तेरी आवाज़ सुन रहे है? ! (जल्दी मत कर) जल्द ही बही अपने उन अविश्वासी बड़ों से जा मिलेगा और उस समय अपनी वाणी और चरित्र पर पछतावा करते हुए चाहेगा कि काश मेरे हाथ शुल हो जाते और मेरी जीभ बोलने में असमर्थ हो गई होती और जो कुछ मेने किया और कहा उससे बाज रहता। उसके बाद हज़रत ज़ैनब (स) ने आसमान की ओर रुख किया और ईश्वरीय दरबार में प्रार्थना की! ऐ हमारे रब, हमें इन ज़ालिमों से हमारा हक़ दिला और उनसे हमारे हक़ का बदला ले। हे परवरदिगार, इन उत्पीड़कों से हमारा बदला ले। और हे परमेश्वर, उन लोगों पर अपना अज़ाब भेज जिन्होंने हमारे प्रियजनों को खून से नहलाया और हमारे सहायकों को मार डाला। हे यज़ीद! (ईश्वर की सौगंध) तूने जो गलत किया है, आपने स्वयं के साथ अन्याय किया है। तूने किसी की नहीं बल्कि अपनी ही त्वचा को खरोंचा है। और तू ने किसी का नहीं, अपना ही मांस काटा है। तुझे एक अपराधी के रूप में ईश्वर के रसूल के सामने लाया जाएगा और तुझे तेरे जघन्य अपराध के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा कि तूने पैग़म्बर (स) के बच्चों का खून अन्यायपूर्वक क्यों बहाया और तूने रसूल के वंशजों को क्यों नष्ट किया। साथ ही, पैग़्म्बर (स) के जिगर पर अत्याचार क्यों किया गया? हे यज़ीद! याद रख कि ईश्वर तुझसे पैग़म्बर (स) के परिवार का प्रतिशोध लेगा और उन्हें उत्पीड़ितों का अधिकार देगा। और उन्हें सुख और शांति के आशीर्वाद से समृद्ध करेगा। ख़ुदा कहता है कि तुम यह न समझो कि जो लोग ख़ुदा की राह में मारे गये, वे मर गये। बल्कि उन्हें अनन्त जीवन मिला है और वे परमेश्वर से जीविका पा रहे हैं। لَأَهَلُّوا وَ اسْتَهَلُّوا فَرَحاً/ ثُمَّ قَالُوا يَا يَزِيدُ لَا تُشَلَ‏» مُنْتَحِياً عَلَى ثَنَايَا أَبِي عَبْدِ اللهِ سَيِّدِ شَبَابِ أَهْلِ الْجَنَّةِ تَنْكُتُهَا بِمِخْصَرَتِكَ وَ كَيْفَ لَا تَقُولُ ذَلِكَ وَ قَدْ نَكَأْتَ الْقَرْحَةَ وَ اسْتَأْصَلْتَ الشَّافَةَ بِإِرَاقَتِكَ دِمَاءَ ذُرِّيَّةِ مُحَمَّدٍ ص وَ نُجُومِ الْأَرْضِ مِنْ آلِ عَبْدِ الْمُطَّلِبِ وَ تَهْتِفُ بِأَشْيَاخِكَ زَعَمْتَ أَنَّكَ تُنَادِيهِمْ فَلَتَرِدَنَّ وَشِيكاً مَوْرِدَهُمْ وَ لَتَوَدَّنَّ أَنَّكَ شَلَلْتَ وَ بَكِمْتَ وَ لَمْ تَكُنْ قُلْتَ مَا قُلْتَ وَ فَعَلْتَ مَا فَعَلْتَ اللَّهُمَّ خُذْ لَنَا بِحَقِّنَا وَ انْتَقِمْ مِنْ ظَالِمِنَا وَ أَحْلِلْ غَضَبَكَ بِمَنْ سَفَكَ دِمَاءَنَا وَ قَتَلَ حُمَاتَنَا فَوَ الله مَا فَرَيْتَ إِلَّا جِلْدَكَ وَ لَا حَزَزْتَ إِلَّا لَحْمَكَ وَ لَتَرِدَنَّ عَلَى رَسُولِ اللهِ ص بِمَا تَحَمَّلْتَ مِنْ سَفْكِ دِمَاءِ ذُرِّيَّتِهِ وَ انْتَهَكْتَ مِنْ حُرْمَتِهِ فِي عِتْرَتِهِ وَ لُحْمَتِهِ حَيْثُ يَجْمَعُ اللهُ شَمْلَهُمْ وَ يَلُمُّ شَعَثَهُمْ وَ يَأْخُذُ بِحَقِّهِمْ ﴿وَلَا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ قُتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَمْوَاتًا بَلْ أَحْيَاءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُونَ
व हसबोका बिल्लाहे हाकेमन व बेमुहम्मदिन (स) ख़सीमन व बे जबराईला ज़हीरन व सयअलमो मन सव्वला लका व मक्कनका मिन रेक़ाबिल मुस्लेमीना बेअस लिज़्ज़ालेमीना बदलन व अय्योकुम शर्रुन मकानन व अज़अफ़ो जुनदन व लइन जर्रत अलय्यद दवाही मुख़ातबतका इन्नी लअसतसग़ेरो क़दरका व असतअज़ेमो तक़रीअका व असतकसेरो तौबीख़ेका लाकिन्नल ओयूना अब्री वस सोदोर हर्री अला फ़लअज्बो कुल्लुल अजबे लेक़त्ले हिज़्बिल्लाहिन नोजबाए बेहिज़्बिश शैतानित तोलक़ाए फ़हाज़ेहिल ऐदी तंतेफ़ो मिन देमाएना वल अफ़वाहो ततहल्लबो मिन लोहूमेना व तिलकल जोससुत तवाहेरुजड ज़वाकी तनताबोहल अवासेलो व तोअफ़्फ़ेरोहा उम्महातुल फ़राऐले व लऐनित तखज़तना मग़नमन लतजेदन्ना वशीकन मग़रमन हीना ला तजेदो इल्ला मा क़द्दमत यदाका व मा रब्बोका बेज़ल्लामिन लिल अबीदे फ़एलल्लाहिल मुशतका व अलैहिल मोअव्वलो हे यज़ीद! याद रख कि तूने मुहम्मद के परिवार पर जो अन्याय किया है, उसके लिए अल्लाह के रसूल ईश्वरीय अदालत में तेरे खिलाफ शिकायत करेंगे। और जिब्राईल पैग़म्बरों की गवाही देगा। तब परमेश्वर अपने न्याय से तुझे कठोर दण्ड देगा। और यही तेरे बुरे अंत के लिए काफी है। जल्द ही वे लोग भी अपने अंजाम तक पहुंच जाएंगे जिन्होंने तेर लिए अत्याचार की नींव मजबूत की और तेरे तानाशाही साम्राज्य की रूपरेखा तैयार करके तुझे मुसलमानो पर थोप दिया। इन लोगों को बहुत जल्द पता चल जाएगा कि ज़ालिमों का हश्र बुरा है और किसके साथी अपंगता के शिकार हैं। उसके बाद उन्होंने फ़रमायाः ऐ यज़ीद! ये दिनों और घटनाओं का चक्र रोज़गार का ही असर है कि मुझे तुम जैसे बुरे इंसान से बात करनी पड़ी और मैं तुम जैसे क्रूर और ज़ालिम इंसान से बात कर रही हूँ। लेकिन याद रख, मेरी नजर में वह बहुत ही नीच और कमीना आदमी है, जिससे बात करना भी शरीफ़ो का अपमान है। मेरे इस वीरतापूर्ण भाषण के लिए तू मुझे अपनी प्रताड़ना का पात्र ही क्यों न बनायें, परन्तु मैं इसे एक बड़ी परीक्षा समझूंगी और धैर्य और दृढ़ता से काम लूंगी और तेरे बुरे शब्द और दुर्व्यवहार मेरे दृढ़ संकल्प और दृढ़ता को प्रभावित नहीं कर सकेंगे। हे यज़ीद! आज हमारी आंखें आंसुओं से भरी हैं और हृदय में दुःख की ज्वाला जल रही है। अफ़सोस की बात है कि शैतान के अनुयायियों और कुख्यात लोगों ने रहमान के सैनिकों और मुत्तक़ी लोगों को मार डाला। और अभी भी इस दुष्ट समूह के हाथों से हमारे शुद्ध रक्त की बूँदें टपक रही हैं। उनके अशुद्ध शरीर हमारे मांस को चबाने में व्यस्त हैं और रेगिस्तान के भेड़िये इन पवित्र शहीदों के उत्पीड़ित शरीरों के चारों ओर घूम रहे हैं और जंगल के अशुद्ध जानवर इन पवित्र शरीरों को अपवित्र कर रहे हैं। हे यज़ीद! अगर आज तू हमारे ऊपर ज़ुल्म से ख़ुश हो रहा है और उसे अपने दिल की तसल्ली का ज़रिया समझ रहा है तो याद रख कि जब क़यामत के दिन तुझे तेरे बुरे व्यवहार की सज़ा मिलेगी तो तू उसे बर्दाश्त नहीं कर पाऐगा। ईश्वर न्यायकारी है और वह अपने बंदो पर अत्याचार नहीं करता। हम अपने उत्पीड़न को अपने ईश्वर के सामने प्रस्तुत करते हैं। और सभी स्थितियों में हमें उसकी कृपा और न्याय पर भरोसा है وَ حَسْبُكَ بِاللهِ حَاكِماً وَ بِمُحَمَّدٍ ص خَصِيماً وَ بِجَبْرَئِيلَ ظَهِيراً وَ سَيَعْلَمُ مَنْ سَوَّلَ لَكَ وَ مَكَّنَكَ مِنْ رِقَابِ الْمُسْلِمِينَ بِئْسَ لِلظَّالِمِينَ بَدَلًا وَ أَيُّكُمْ شَرٌّ مَكاناً وَ أَضْعَفُ جُنْداً وَ لَئِنْ جَرَّتْ عَلَيَّ الدَّوَاهِي مُخَاطَبَتَكَ إِنِّي لَأَسْتَصْغِرُ قَدْرَكَ وَ أَسْتَعْظِمُ تَقْرِيعَكَ وَ أَسْتَكْثِرُ تَوْبِيخَكَ لَكِنَّ الْعُيُونَ عبْرَى وَ الصُّدُورَ حَرَّى أَلَا فَالْعَجَبُ كُلُّ الْعَجَبِ لِقَتْلِ حِزْبِ الله النُّجَبَاءِ بِحِزْبِ الشَّيْطَانِ الطُّلَقَاءِ فَهَذِهِ الْأَيْدِي تَنْطِفُ مِنْ دِمَائِنَا وَ الْأَفْوَاهُ تَتَحَلَّبُ مِنْ لُحُومِنَا وَ تِلْكَ الْجُثَثُ الطَّوَاهِرُ الزَّوَاكِي تَنْتَابُهَا الْعَوَاسِلُ وَ تُعَفِّرُهَا أُمَّهَاتُ الْفَرَاعِلِ وَ لَئِنِ اتَّخَذْتَنَا مَغْنَماً لَتَجِدَنَّا وَشِيكاً مَغْرَماً حِينَ لَا تَجِدُ إِلَّا مَا قَدَّمَتْ يَدَاكَ وَ ما رَبُّكَ بِظَلَّامٍ لِلْعَبِيدِ فَإِلَى اللهِ الْمُشْتَكَى وَ عَلَيْهِ الْمُعَوَّلُ
फ़किद कैदका वस्आ सअयका व नासिब जोहदका फ़वल्लाहे ला तमहू ज़िक्रना वला तमीतो वहयना वला तुदरेको अमदना वला तरहज़ो अनका आराहा व हल रायोका इल्ला फ़नदुन व अय्यामोका इल्ला अददुन व जम्ओका इल्ला बददुन यौमा योनादिल मुनादी अला लअनतुल्लाहे अलज़ ज़ालेमीना फ़ल्हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीनल लज़ी ख़तमा लेअव्वलेना बिस सआदते वल मग़फ़ेरते व लेआखेरेना बिश शहादते वर रहमते व नस्अलुल्लाहा अन युकमेला लहोमुस सवाबा व यूजेबा लहोमुल मज़ीदा व योहसेना अलैनल ख़िलाफ़ता इन्नहू रहीमुन वदूदुन व हसबोनल्लाहा व नेअमल वकील हे यज़ीद! तू जितना चाहें उतना मक्र व फ़रेब कर ले और भरपूर प्रयास करके देख ले मगर तुझे ज्ञात होना चाहिए कि तू न तो हमारी या लोगो के ह्दयो से मिटा सकता है और न ही वही इलाही के पवित्र संकेतो को मिटा सकता है। तू यह ख्याल ख़ाम अपने ह्दय से निकाल दे कि दिखावे के माध्यम से हमारी शान और इज्जत प्राप्त कर लेगा। तूने जो घिनौना अपराध किया है उसका घिनौना दाग तू नहीं धो पाएगा। तेरी विचारधारा बहुत कमजोर और घटिया है तेरी सरकार में गिनती के कुछ दिन बचे हैं। तेरे सभी साथी तुम्हें छोड़ देंगे। उस दिन पछतावे और चिंता के अलावा तेरे पास कुछ नहीं बचेगा। जब आवाज़ लगाने वाला चिल्लाएगा कि क्रूर और उत्पीड़ित लोगों के लिए ईश्वर का अभिशाप है। हम अल्लाह तआला के आभारी हैं कि उसने हमारे परिवार के पहले सदस्य हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स) को खुशी और क्षमा का आशीर्वाद दिया और इमाम हुसैन (अ) को शहादत और दया का आशीर्वाद दिया। हम बारगाहे ऐज़्दी मे दुआ करते हैं कि वह हमारे शहीदों के सवाब और दरजात को बढ़ाए और पूरा करे और हम सभी को अपनी कृपा से आशीर्वाद दे, वास्तव में, ईश्वर सच्चे अर्थों में दयालु और महान है। हमें ईश्वर के आशीर्वाद के अलावा किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है और हम केवल उसी पर भरोसा करते हैं क्योंकि उससे बेहतर कोई सहारा नहीं है।” فَكِدْ كَيْدَكَ وَ اسْعَ سَعْيَكَ وَ نَاصِبْ جُهْدَكَ فَوَ الله لَا تَمْحُو ذِكْرَنَا وَ لَا تُمِيتُ وَحْيَنَا وَ لَا تُدْرِكُ أَمَدَنَا وَ لَا تَرْحَضُ عَنْكَ عَارَهَا وَ هَلْ رَأْيُكَ إِلَّا فَنَدٌ وَ أَيَّامُكَ إِلَّا عَدَدٌ وَ جَمْعُكَ إِلَّا بَدَدٌ يَوْمَ يُنَادِي الْمُنَادِي أَلا لَعْنَةُ الله عَلَى الظَّالِمِينَ فَالْحَمْدُ لِله رَبِّ الْعالَمِينَ الَّذِي خَتَمَ لِأَوَّلِنَا بِالسَّعَادَةِ وَ الْمَغْفِرَةِ وَ لِآخِرِنَا بِالشَّهَادَةِ وَ الرَّحْمَةِ وَ نَسْأَلُ الله أَنْ يُكْمِلَ لَهُمُ الثَّوَابَ وَ يُوجِبَ لَهُمُ الْمَزِيدَ وَ يُحْسِنَ عَلَيْنَا الْخِلَافَةَ إِنَّهُ رَحِيمٌ وَدُودٌ وَ حَسْبُنَا الله وَ نِعْمَ الْوَكِيلُ

फ़ुटनोट

  1. दाऊदी, व महदी रुस्तम नेज़ाद, आशूरा, रीशेहा, अंगीज़ेहा, रुईदादहा, पयामदहा, 1386 शम्सी, पेज 592
  2. हाशमी नेज़ाद, दरसी के हुसैन बे इंसानहा आमूख़्त, 1382 शम्सी, पेज 220-221
  3. रोशनफ़िक्र, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ्तेमान अदबी खुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स), पेज 134
  4. फ़रिश्लर, इमाम हुसैन व ईरान, 1366 शम्सी, पेज 517
  5. देखेः मकालेहाएः रंजबर हुसैनी, व मरयम इसलामीपूर, तहलील इक्तेबासहाए क़ुरआनी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम; रज़ाई व मोहद्देसा दलारामनेज़ाद, तहलील फ़रानक़श अंदीशगानी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) बर असास दस्तूर नक़्श गेराई हुलैदी; यारे अहमदी, व ज़हरा ख़ैरुल्लाही, मआरिफ़ क़ुरआनी दर खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स); ख़िरसंदी, व दिगरान, तहलील बलाग़ी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स); नसरावी, दर आमदी बर गुफ्तमान कावी तारीखी, मुतालेआ मुरिदी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम; रौशनफ़िक्र, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ्तमान अदबी खुत्बाहाए हज़रत ज़ैनब (स)
  6. रौशनफ़िक्र, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ्तमान अदबी खुत्बाहाए हज़रत ज़ैनब (स), पेज 134
  7. सय्यद इब्न ताऊस, अल लोहूफ़ अला कत्लित तोफ़ूफ़, 1348 शम्सी, पेज 184
  8. फ़रिश्लर, इमाम हुसैन व ईरान, 1366 शम्सी, पेज 520
  9. हुसैनी ख़ामेनई, बयानात दर दीदार जमई अज़ पीशकुस्तान जेहाद व शहादत व खातेरेगूयान दफ्तर अदबयात व हुनर मुक़ावेमत
  10. फ़रिश्लर, इमाम हुसैन व ईरान, 1366 शम्सी, पेज 520
  11. इब्न तैफ़ूर, बलाग़ात उन नेसा, अल शरीफ़ अल रज़ी, पेज 34
  12. इब्न नेमा हिल्ली, मुसीर अल अहज़ान, 1406 हिजरी, पेज 100-101
  13. सय्यद इब्न ताऊस, अल लोहूफ़ अला कत्लित तोफ़ूफ़, 1348 शम्सी, पेज 178
  14. इब्न तैफ़ूर, बलाग़ात उन नेसा, अल शरीफ़ अल रज़ी, पेज 34
  15. अबू मिख़नफ़, वक़्अतुत तफ़, 1417 हिजरी, पेज 269
  16. फ़त्ताल नेशापूरी, रोज़ातुल वाऐज़ीन, 1375 शम्सी, पेज 191
  17. इब्न तैफ़ूर, बलाग़ात उन नेसा, अल शरीफ़ अल रज़ी, पेज 34
  18. इब्न तैफ़ूर, बलाग़ात उन नेसा, अल शरीफ़ अल रज़ी, पेज 34
  19. फ़त्ताल नेशापूरी, रोज़ातुल वाऐज़ीन, 1375 शम्सी, पेज 191
  20. तबरेसी, अल ऐहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 308-310
  21. इब्न नेमा हिल्ली, मुसीर अल अहज़ान, 1406 हिजरी, पेज 101-102
  22. सय्यद इब्न ताऊस, अल लोहूफ़ अला कत्लित तोफ़ूफ़, 1348 शम्सी, पेज 181-186
  23. इब्न तैफ़ूर, बलाग़ात उन नेसा, अल शरीफ़ अल रज़ी, पेज 35-36
  24. रौशनफ़िक्र, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ्तमान अदबी खुत्बाहाए हज़रत ज़ैनब (स), पेज 134
  25. दाऊदी, व महदी रुस्तम नेज़ाद, आशूरा, रीशेहा, अंगीज़ेहा, रुईदादहा, पयामदहा, 1386 शम्सी, पेज 592-293
  26. ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर ख़ुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स), अहदाफ़ व नाइज, पेज 70-72
  27. रौशनफ़िक्र, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ्तमान अदबी खुत्बाहाए हज़रत ज़ैनब (स), पेज 142
  28. रौशनफ़िक्र, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ्तमान अदबी खुत्बाहाए हज़रत ज़ैनब (स), पेज 142
  29. रंजबर हुसैनी, व मरयम इस्लामी पूर, तहलील इक्तेबासहाए क़ुरआनी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम, पेज 24
  30. देखेः सय्यद इब्न ताऊस, अल लोहूफ़ अला कत्लित तोफ़ूफ़, 1348 शम्सी, पेज 182
  31. साफ़ी गुलपाएगानी, हुसैन (अ) शहीद आगाह, 1366 शम्सी, पेज 385-386
  32. फ़रिश्लर, इमाम हुसैन व ईरान, 1366 शम्सी, पेज523-524
  33. सरावी, दर आमदी बर गुफ़्तेमान कावी तारीख़ी, मुतालेआ मूरिदी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम, पेज 87
  34. सरावी, दर आमदी बर गुफ़्तेमान कावी तारीख़ी, मुतालेआ मूरिदी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम, पेज 87
  35. हाशमी नेजाद, दरसी के हुसैन (अ) बे इंसानहा आमूख़्त, 1382 शम्सी, पेज 221
  36. ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर ख़ुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स), अहदाफ़ व नाइज, पेज 82
  37. रंजबर हुसैनी, व मरयम इस्लामी पूर, तहलील इक़्तेबासहाए क़ुरआनी ख़ुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम, पेज 8
  38. पाक नेया, निगाही बे ख़ुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स), 1389 शम्सी, सफहा फहरिस्त किताब
  39. पाक नेया, निगाही बे ख़ुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स), 1389 शम्सी, सफहा शनासनामा किताब
  40. करीमी जहरमी, शरह खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स), 1394 शम्सी, सफहा शनासनामा किताब
  41. इब्न हसन, शरह खुत्बा अल सय्यदा ज़ैनब (स), 1400 शम्सी, सफहा शनासनामा किताब


स्रोत

  • अबू मिख़नफ़, लूत बिन याह्या, वक़्अतुत तफ़, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी, 1417 हिजरी
  • इब्न तैफ़ूर, अहमद बिन अबि ताहिर, वलाग़ातुन नेसा, क़ुम, अल शरीफ़ अल रज़ी
  • इब्न नेमा हिल्ली, जाफ़र बिन मुहम्मद, मुसीर अल अहज़ान, क़ुम, मदरसा इमाम महदी (अ), 1406 हिजरी
  • अमीन, हसन, परतऔई अज़ तारीख तशय्यो, अनुवादः मुहम्मद हसन आयतुल्लाही, क़ुम, मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक्ह इस्लामी, 1385 शम्सी
  • बिन हसन, रजब, शरहो खुत्बा अल सय्यदा ज़ैनब (स) फ़ी मजलिसे यज़ीद बिन मुआविया, क़ुम, मीरास मानदेगार, 1400 शम्सी
  • पाक नेया, अब्दुल करीम, निगाही बे खुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स) दर कूफा व शाम, फरहंग अहले-बैत (अ), 1389 शम्सी
  • हुसैनी ख़ामेनई, सय्यद अली, बयानात दर दीदार जमई अज़ पीशकुसूतान जेहाद व शहादत व खातेरगूयान दफ्तर अदबयात व हुनर मुकावेमत, दर पाएगाह इंटनेटी दफ्तर हिफ़्ज व नशर आसार आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली खामेनई, प्रविष्ठ की तारीख 31 शहरीवर 1384 शम्सी, वीजिट की तारीख 16 मेहर 1403 शम्सी
  • ख़ानी मुक़द्दम, महयार, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ व नताइज, दर मजल्ले मिशकात, जमिस्तान, 1394 शम्सी
  • खिरसंदी, महमूद, व दिगरान, तहलील बलाग़ी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स), दर मजल्ले मुतालेआत अदबी मुतून इस्लामी, क्रमांक 2, पाईज़ 1391 शम्सी
  • दाऊदी, सईद, व महदी रुस्तम नेजाद, आशूरा, रीशेहा, अंगीज़ेहा, रुईदादहा, पयामदहा, कुम, इमाम अली बिन अबि तालिब अलैहिस सलाम, आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराजी की देख रेख, 1388 शम्सी, पेज 596
  • रेज़ाई, रज़ा, व मुहद्देसा दलाराम नेज़ाद, तहलील फ़रानक़श अंदीशगानी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) बर असास दस्तूर नक़श गेराई हुलैदी, दर फसल नामा लेसान मुबीन, क्रमांक 48, ताबिस्तान 1401 शम्सी
  • रंजबर हुसैनी, मुहम्मद, व मरयम इस्लामपूर, तहलील इक़्तेबासहाए क़ुरआनी ख़ुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) द शाम, दर पुजूहिशनामा मआरिफ हुसैनी, क्रमांक 17, बहार 1399 शम्सी
  • रौशनफ़िक्र, कुबरा, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ्तमान अदबी खुत्बेहाए हज़रत ज़ैनब (स), दर मजल्ले मुतालेआत क़ुरआनी व हदीस सफ़ीना, क्रमांक 22, बहार, 1388 शम्सी
  • सय्यद इब्न ताऊस, अली बिन मूसा, अल लोहूफ अला कत्लित तोफ़ूफ़, अनुवादः अहमद फहरि ज़ंजानी, तेहरान, जहान, 1348 शम्सी
  • साफ़ी गुलपाएगानी, लुत्फ़ुल्लाह, हुसैन (अ) शहीदे आगाह व रहबर निजात बख्श इस्लाम, मशहद, मोअस्सेसा नशर व तबलीग़, 1366 शम्सी
  • सरावी, मुहम्मद, दर आमदी बर गुफ्तेमान कावी तारीख़ी, मुतालेआ मुरिदी ख़ुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम, दर मजल्ला मुतालेआत तारीखी कुरआनी व हदीस, क्रमांक 57, बहार व ताबिस्तान 1394 शम्सी
  • तबरेसी, अहमद, बिन अली, अल ऐहतेजाज अला अहले लुजाज, मशहद, नशर मुर्तज़ा, 1403 हिजरी
  • फ़त्ताल नेशाबुरी, मुहम्मद बिन अहमद, रोज़तुल वाएज़ीन व बसीरतुल मुताइज़्ज़ीन, क़ुम, इंतेशारात रज़ी, 1375 शम्सी
  • फ़रिशलिर, कूर्त, इमाम हुसैन व ईरान, अनुवादः ज़बीहुल्लाह मंसूरी, तेहरान, जावेदान, तीसरा संस्करण, 1366 शम्सी
  • करीमी जहरमी, अली, शरह खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर शाम, बूस्तान किताब, 1394 शम्सी
  • मुजाहेदी, मुहम्मद अली, कारवान शेअर आशूरा, क़ुम, ज़मजम हिदायत, 1386 शम्सी
  • हाशेमी नेज़ाद, अब्दुल करीम, दरसी के हुसैन (अ) बे इंसानहा आमूख़त, मशहद, बे नशर 1382 शम्सी
  • यारे अहमदी, आज़र व ज़हरा खैरुल्लाही, मआरिफ़ क़ुरआन दर ख़ुत्बा हज़रत ज़ैनब (स), दर मजल्ले बय्येनात, क्रमांक 105, 106 बहार व ताबिस्तान 1399 शम्सी