सच्चा सपना

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सच्चा सपना या वास्तविकता के अनुसार एक सपना (अरबीःالرؤيا الصادقة)वही कश्फ और शुहूद है जो एक सपने में होता है। सच्चे सपने का उल्लेख "अच्छे सपने" और "धार्मिक सपने" के अर्थों के साथ भी किया जाता है। हदीसों के अनुसार, पैग़म्बरों और इमामों के अलावा, विश्वासी भी सच्चे सपने देख सकते हैं, और यह दुनिया में विश्वासियों के लिए ईश्वर की ओर से दी गई ख़बरों में से एक है।

सादेक़ीन के सपने को तीन श्रेणियों में बांटा गया है; 1. एक सपना जिसे व्याख्या की आवश्यकता नहीं है; इस्माईल की क़ुरबानी के बारे में इब्राहीम के सपने की तरह; 2. एक सपना जिसके एक भाग को व्याख्या की आवश्यकता है और दूसरे भाग को नहीं; यूसुफ़ (अ) के सपने की तरह जिसमें सूरज, चाँद और सितारों को व्याख्या की ज़रूरत थी; परन्तु उनके सजदा की व्याख्या सज्दे का अतिरिक्त और कोई अर्थ न था; 3. एक सपना जिसकी पूरी व्याख्या की आवश्यकता है, जैसे यूसुफ (अ) के समय में मिस्र के राजा का सपना।

क़ुरआन में, सच्चे सपनों के कई उदाहरण हैं, जिनमें मक्का की विजय से पहले इस्लाम के पैग़म्बर (स) का सपना भी शामिल है, कि वह और उनके साथी मक्का में प्रवेश करेंगे और हज करेंगे। सूर ए फ़त्ह की आयत न 27 में इस सपने के पूरा होने का वादा किया गया है। सूर ए इस्रा की आयत न 60 में वर्णित शापित पेड़ (शजर ए मलऊना) के बारे में इस्लाम के पैग़म्बर (स) का सपना एक सच्चे सपने का एक और उदाहरण है। इस सपने में पैग़म्बर (स) ने कुछ बंदरों को अपने मिंबर पर उछल-कूद करते देखा। ऐसा कहा गया है कि इस सपने की व्याख्या पैग़म्बर (स) के बाद बनी उमय्या की खिलाफ़त है।

आत्मा की पवित्रता (नफ़सी की पाकी) और आत्मा की तपस्या (नफ़्स की रियाज़त) को सच्चे सपने को देखने का कारक माना जाता है और पाप, लोलुपता और स्वस्थ स्वभाव की कमी को इसका बाधक माना जाता है।

परिभाषा एवं महत्व

एक सच्चा सपना ऐसा सपना है जो वास्तविकता से मेल खाता है।[१] हदीसों में, एक सच्चे सपने का उल्लेख "अच्छे सपने"[२] और "धार्मिक सपने"[३] के अर्थों के साथ भी किया गया है। मुस्लिम दार्शनिक और रहस्यवादी सच्चे सपने को एक प्रकार की कश्फ़ और शुहूद अर्थात कश्फ़ व शुहूद मानते हैं जो सपने में घटित होता है।[४]

शिया[५] और सुन्नी[६] हदीसी स्रोतों में सच्चे सपने का उल्लेख किया गया है। हदीसों में, एक सच्चे सपने को ईश्वर की ओर से अच्छी खबर माना जाता है[७] और नबूवत के घटकों में से एक है।[८]

साथ ही, मुसलमानों के दार्शनिक और रहस्यमय लेखन में मुकाशेफ़ा और वही की पंक्ति में इसका उल्लेख किया गया है और यह क्या है और इसके कारण पर चर्चा की गई है[९] अल्लामा मजलिसी ने भी बिहार उल-अनवार में इस मुद्दे पर विस्तार से बात की है और इस विषय पर दार्शनिकों के विचारों की आलोचना की है।[१०]

गुप्त बातों या भविष्य की घटनाओं की जानकारी देने वाले सच्चे सपनों को आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण माना जाता है।[११]

इज़्ग़ासे ऐहलाम

ज़ेअस का शाब्दिक अर्थ है कांटों का गुच्छा।[१२] पवित्र क़ुरआन में, सूर ए यूसुफ की आयत न 44 और सूर ए अम्बिया की आयत न 5 में, परेशान सपनों की तुलना कांटों से की गई है। दार्शनिक और क़ुरआन के टिप्पणीकार अल्लामा तबातबाई का मानना है कि कुछ सपने अलग-अलग सपनों का एक भ्रमित रूप हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अलग व्याख्या होती है, और चूंकि उनमें से प्रत्येक स्पष्ट नहीं है और एक साथ मिश्रित है, इसलिए पाठक के लिए उनकी व्याख्या समझना कठिन हो गया है।[१३]

सच्चे सपने कौन देखता है?

बिहार उल-अनवार में मुहम्मद बाक़िर मजलिसी के अनुसार, पैग़म्बर (स), इमाम (अ) और विश्वासी सच्चे सपने देखते हैं। उनके अनुसार पैग़म्बरों के सभी स्वप्न सच्चे स्वप्न हैं और पैग़म्बरों के ये सच्चे स्वप्न वास्तव में एक प्रकार का रहस्योद्घाटन हैं। अल्लामा मजलिसी का मानना है कि इमाम भी सच्चा सपना देखते हैं हालांकि इसे रहस्योद्घाटन नहीं कहा जाता है; लेकिन यह रहस्योद्घाटन के हुक्म में है।[१४] वह पैगंम्बर (स) से हदीसों को भी नकल करते है और कहते है कि पैग़म्बर (स) के बाद, सच्चे सपने को छोड़कर नबूवत के सभी घटक गायब हो जाते हैं।[१५]

अल्लामा मजलिसी रिवायतो का हवाला देते हुए कहते है कि विश्वासी सच्चा सपना देखते हैं।[१६] शिया और सुन्नी तफ़सीरो में "لَهُمُ الْبُشْرى‏ فِي الْحَياةِ الدُّنْيا وَ فِي الْآخِرَةِ लहोमुल बुश्रा फ़िद दुनिया व फ़िल आख़ेरते" आयत के अंतर्गत (उनके लिए दुनिया और आख़िरत की खुशखबरी है।)[१७] यह कहा गया है कि दुनिया में एक मोमिन (विश्वासी) की खुशखबरी वह सच्चा सपना है जो वह नींद में देखता है।[१८]

वही से अंतर

मोहयुद्दीन इब्न अरबी के अनुसार, एक सच्चा सपना वही से अलग नहीं है, और वे एक ही जगह से उत्पन्न होते हैं, और एकमात्र अंतर यह है कि रहस्योद्घाटन (वही) जागने की अवस्था में होती है, लेकिन सच्चा सपना आलमे रौया में होता है।[१९] सच्चे सपने को व्याख्या की आवश्यकता नहीं है, जैसे कि हुदैबिया में मक्का की विजय से पहले मस्जिद उल-हराम में प्रवेश करने का प़ैगम्बर (स) का सपना। इसी कारण सच्चे सपने को नवूबत के 46 भागों में से एक माना जाता है। ऐसा व्यक्ति ही रहस्योद्घाटन (वही) प्राप्त कर सकता है जो एक मजबूत नफ्स (क़वी नफ्स) से लाभान्वित होता है और इसके साथ आलमे मुजर्रेदात से जुड़ सकता है। आत्मा की यह शक्ति ही उससे करामात, चमत्कारों और विचित्र चीज़ो के जारी होने का कारण है।[२०]

क़ुरआन में सच्चे सपने

ऐसा कहा गया है कि क़ुरआन में सच्चे सपनों के कम से कम सात उदाहरण हैं: • मक्का पर विजय प्राप्त करने से पहले इस्लाम के पैग़म्बर (स) का सपना, इस बात पर आधारित था कि वह और उनके साथी मक्का में प्रवेश करेंगे और हज करेंगे। सूर ए फ़त्ह की आयत न 27 में इस सपने के पूरा होने का वादा किया गया है। • शापित पेड़ (शजरा ए मलऊना) के बारे में इस्लाम के पैग़म्बर (स) का सपना, जिसका उल्लेख सूर ए इस्रा की आयत न 60 में किया गया है। इस सपने में पैग़म्बर (स) ने कुछ बंदरों को अपने मिंबर पर उछल-कूद करते देखा। ऐसा कहा गया है कि इस सपने की व्याख्या पैगम्बर (स) के बाद बनि उमय्या का शासन है। • हजरत इब्राहीम का अपने बेटे इस्माईल को क़ुरबान करने का सपना, वह सूर ए साफ़्फ़ात की आयत न 102 में बताया गया है। इस सूरे की आयत न 104 और 105 में इस स्वप्न की सत्यता की पुष्टि की गई है। • एक बच्चे के रूप में पैग़म्बर यूसुफ का सपना, जिसके अनुसार ग्यारह सितारे, सूरज, चांद ने उन्हें सज्दा किया था (सूर ए यूसुफ, आयत न4)। क़ुरआन की आयतों के अनुसार, यह सपना वर्षों बाद सच हुआ, जब यूसुफ अज़ीज़े मिस्र (मिस्र के बादशाह) बने और उसके ग्यारह भाई मिस्र गए और याकूब और उसकी पत्नी ने उसके सामने सज्दा किया (सूर ए यूसुफ, आयत न 100)। • यूसुफ़ के दो सह-कैदियों के सपने, एक ने देखा कि वह अंगूरों से शराब बना रहा है, और दूसरे ने देखा कि उसने रोटी सर पर रखी है और पक्षी उसे खा रहे हैं (सूर ए यूसुफ़, आयत न36)। उसी सूरे की आयत न 41 के आधार पर, यूसुफ ने इन दोनों सपनों की व्याख्या इस प्रकार की कि पहला जेल से रिहा हो जाएगा और राजा का नौकर बन जाएगा, और दूसरा क्रूस पर बांध दिया जाएगा और पक्षी उसका दिमाग खा जाएंगे। • मिस्र के राजा का सपना, जिसमें सात दुबली गायों ने सात मोटी गायों को खा लिया, और सात सूखी बालें और सात हरी बालें थीं (सूर ए यूसुफ, आयत न 43)। उसी सूरे की आयत न 46 और 47 के आधार पर, यूसुफ ने इस सपने की व्याख्या सात साल बाढ़ और उसके बाद सात साल के सूखे की घटना के रूप में की।[२१]

प्रकार

11वीं और 12वीं चंद्र शताब्दी के शब्दावली विशेषज्ञ थानवी ने सच्चे सपने को तीन प्रकारों में विभाजित किया है:

  1. एक सपना जिसे व्याख्या की आवश्यकता नहीं है; जैसे इब्राहीम का इस्माईल की क़ुरबानी का स्वप्न।
  2. एक सपना जिसके एक भाग को व्याख्या की आवश्यकता है और दूसरे भाग को नहीं; यूसुफ़ (अ) के सपने की तरह जिसमें सूरज, चाँद और सितारों को व्याख्या की ज़रूरत थी, लेकिन उनके सजदे की कोई व्याख्या नहीं थी सिवाय सजदे के।
  3. एक सपना जिसकी पूरी व्याख्या की आवश्यकता है; जैसा कि पैगंबर यूसुफ (अ) के समय में मिस्र के राजा का सपना।[२२]

सच्चा सपना देखने के कारक एवं बाधाएँ

इस्लामी स्रोतों में सच्चे सपनों के कारकों और बाधाओं का भी उल्लेख किया गया है। मुल्ला सदरा ने सच्चे सपने को देखने के कारणों के रूप में आत्मा की पवित्रता (नफ़्स की पाकी) , दुनिया से घृणा और आत्मा की तपस्या (नफ़्स की रियाज़त) का उल्लेख किया है।[२३] अल्लामा तबातबाई ने दैनिक देखभाल को सच्चे सपने को संयुक्त रूप से प्राप्त करने का कारण माना है। पाप, लोलुपता, अस्वस्थ स्वभाव और नशे को सच्चे सपने में बाधा माना जाता है।[२४]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. जमई अज़ मुहक़्क़ेक़ान, फ़रहंग नामा उलूमे क़ुरआनी, 1394 शम्सी, पेज 573 मकारिम शिराज़ी व दिगरान, पयाम क़ुरआन, 1368 शम्सी, भाग 1, पेज 278
  2. देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 8, पेज 90-91 शेख सदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 133-134 इब्ने फ़हद हिल्ली, इद्दुत दाई, 1407 हिजरी, पेज 278
  3. देखेः इब्न अबि जम्हूर, अवाली उल-लयाली, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 162 इब्ने फ़हद हिल्ली, इद्दुत दाई, 1407 हिजरी, पेज 278 बहरानी, अल-बुरहान, 1374 शम्सी, पेज 41
  4. सज्जादी, फ़रहंग उलूम इस्लामी, 1373 शम्सी, भाग 2, पेज 928
  5. देखेः इब्न शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 356 कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 8, पेज 90-91 शेख सदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 133-134 भाग 2, पेज 584 इब्ने फ़हद हिल्ली, इद्दुत दाई, 1407 हिजरी, पेज 278 इब्न अबि जम्हूर, अवाली उल-लयाली, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 162 बहरानी, अल-बुरहान, 1374 शम्सी, भाग 3, पेज 41
  6. देखेः मुत्तक़ी हिंदी, कन्ज़ुल उम्माल, 1409 हिजरी, पेज 362-372
  7. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 48, पेज 192
  8. देखेः इब्ने फ़हद हिल्ली, इद्दुत दाई, 1407 हिजरी, पेज 277 शेख सदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 584
  9. देखेः इब्न सीना, अल-मबदा वल मआद, 1363 शम्सी, पेज 117-119 मुल्ला सदरा, अल-मबदा वल मआद, 1354 शम्सी, पेज 467-469
  10. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 58, पेज 195-219
  11. मोहसिनी, रूह अज़ नजरे दीन, अक़्ल व इल्म रूही जदीद, 1376 शम्सी, पेज 10
  12. राग़िब इस्फ़हानी, अल-मुफ़रेदात फ़ी गरीब अल-क़ुरआन, 1383 शम्सी, भाग 2, पेज 459
  13. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1374 शम्सी, भाग 11, पेज 255
  14. देखेः मजलिसी, बिहार उल-अवार, 1403 हिजरी, भाग 58, पेज 210
  15. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 58, पेज 192
  16. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 58, पेज 190-192
  17. सूर ए यासीन, आयत न 64
  18. बहरानी, अल-बुरहान, 1374 शम्सी, भाग 3, पेज 41 सीवती, अल-दुर अल-मंसूर, 1404 हिजरी, भाग 3, पेज 311
  19. इब्न अल-अरबी, तफसीर इब्न अरबी, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 229
  20. इब्न अल-अरबी, तफ़सीर इब्न अरबी, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 229
  21. मकारिम शिराज़ी व दिगरान, पयाम क़ुरआन, 1368 शम्सी, भाग 1, पेज 278-287
  22. अल थानवी, कश्शाफ़ इस्तेलाहात अल-फ़ुनूनन व उलूम, 1996 , भाग 1, पेज 886
  23. मुल्ला सदरा, अल-मबदा वल मआद, 1354 शम्सी, पेज 467
  24. मजलिसी, बिहार उल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 58, पेज 209-210


स्रोत

  • क़ुरआन करीम
  • इब्न अबि जमहूर, मुहम्मद बिन जैनुद्दीन, अवाली उल-लयाली अल-अज़ीज़ा फ़िल अहादीस अल-दीनिया, शोध व संशोधनः मुज्तबा इराकी, दार सय्यद अल-शोहदा लिन नशर, पहला संस्करण, 1405 हिजरी
  • इब्न सीना, हुसैन बिन अब्दुल्लाह, अल-मब्दा वल मआद, तेहरान, मोअस्सेसा मुतालेआत इस्लामी, पहला संस्करण, 1363 शम्सी
  • इब्न शहर आशोब माज़नदरानी, मुहम्मद बिन अली, मनाक़िब आले अबि तालिब अलैहिस सलाम, क़ुम, अल्लामा, पहला संस्करण, 1379 हिजरी
  • इब्न अल-अरबी, मोहयुद्दीन, तफ़सीर इब्न अरबी, शोध एवं संशोधनः अल-शेख अब्दुल वारिस महुम्मद अली, बैरूत, दार उल-कुतुब अल-इल्मीया, 1422 हिजरी
  • इब्ने फहद हिल्ली, अहमद बिन मुहम्मद, एद्दतुद दाई व नेजाह अल साई, शोध एवं संशोधन) अहमद मुवाहदि क़ुम्मी, दार उल कुतुब अल-इस्लामी, पहला संस्करण, 1407 हिजरी
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  • थानवी, मुहम्मद अली बिन मुहम्मद, मौसूआ कश्शाफ़ इस्तेलाहात अल-फ़ुनून वल उलूम, बैरूत, नाशेरून, पहला संस्करण, 1996 ई
  • जमई अज़ मोहक़्क़ेक़ान, फ़रहंग नामा उलूम क़ुरआनी, क़ुम, दफ्तर तबलीगात इस्लामी, पुजूहिशगाह उलूम व फ़रहंग इस्लामी, पहला संस्करण, 1394 शम्सी
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  • सज्जादी, जाफ़र, फ़रहंग इस्लामी, तेहरान, कूमिश, 1373 शम्सी
  • सीवती, जलालुद्दीन, अल-दुर्र अल-मंसूर फ़ी तफसीर अल मासूर, क़ुम, किताब खाना आयतुल्लाह मरअशी नजफी, 1404 हिजरी
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  • तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, तफसीर अल-मीज़ान, अनुवादः मुहम्मद बाक़िर मूसवी हमदानी, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशारात इस्लामी जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम, भाग 5, 1374 शम्सी
  • क़ुलैनी मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, संसोधन अली अकबर ग़फ़्फ़ारी व मुहम्मद आखूंदी, तेहरान, दार उल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1407 हिजरी
  • मुत्तक़ी हिंदी, अली बिन हेसामुद्दीन, कंज़ुल उम्माल फ़ी सुनन वल अक़वाल, बैरूत, मोअस्सेसा अल रेसालात, 1409 हिजरी
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल-अनवार अल-जामेअ लेदुरर अखबार अल-आइम्मातिल अत्हार, बैरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, दूसरा संस्करण 1403 हिजरी
  • मोहसिनी, मुहम्मद आसिफ़, रूह अज़ नजर दीन, अक़्ल व इल्म रूही जदीद, 1376 शम्सी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर व दिगरान, पयाम क़ुरआन, तेहरान, दार उल कुतुब अल इस्लामिया, 1368 शम्सी
  • मुल्ला सदरा, मुहम्मद बिन इब्राहीम, अल-मबदा वल मआद, तेहरान, अंजुमन हिकमत व फ़लसफ़ा ईरान, 1354 शम्सी