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"हज़रत अब्बास अलैहिस सलाम": अवतरणों में अंतर
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इराक और ईरान के कई शिया शहरों में सक्काई संस्कृति आम है [134] और सक्काई संस्कृति का प्रभाव हज़रत अब्बास के नाम पर बने प्याऊ स्थानो पर देखा जा सकता है। [135] | इराक और ईरान के कई शिया शहरों में सक्काई संस्कृति आम है [134] और सक्काई संस्कृति का प्रभाव हज़रत अब्बास के नाम पर बने प्याऊ स्थानो पर देखा जा सकता है। [135] | ||
* हज़रत अब्बास (अ) की क़सम खाना: हज़रत अब्बास की क़सम खाना शियाओं और यहां तक कि सुन्नियों के बीच भी एक आम बात है, इसलिए कुछ लोगो का कहना है कि शिया हज़रत अब्बास की क़सम खाकर अपने झगड़े खत्म कर लेते हैं। और कुछ लोग अब्बास के नाम की क़सम को ही एकमात्र सच्ची क़सम मानते हैं। [136] कुछ शिया कबीले हज़रत अब्बास (अ) की कसम खाकर अपने अनुबंधों, समझौतों, सौदों और अनुबंधों की पुष्टि करते हैं और उन्हें मजबूत करती हैं। [137] हज़रत अब्बास (अ) की क़सम पर विशेष ध्यान देने का कारण उनकी हिम्मत, वफ़ादारी, जोश, शिष्टता और शौर्य है। [138] हज़रत अब्बास की क़सम पर भरोसा करने के बारे में सुन्नियों, खासकर इराकियों के कुछ उद्धरण हैं। इराक के पूर्व रक्षा मंत्री, हरदान तिकरिती ने कहा है कि अहमद हसन अल-बक्र (इराक के पूर्व राष्ट्रपतियों में से एक) और सद्दाम और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, वे एक समझौता करना चाहते थे और अपने समझौते को मजबूत करना चाहते थे और एक दूसरे के साथ विश्वासघात न करने के लिए, उन्होंने क़सम खाने का फैसला किया हालांकि कुछ लोगों ने क़सम खाने के लिए अबू हनीफा की कब्रगाह का सुझाव दिया, लेकिन उन्होंने अंततः हज़रत अब्बास (अ) के रोज़े पर जाने और वहां क़सम खाने का फैसला किया। [139] | |||
* हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र: हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र एक विशेष नज़्र है जिसमे कुछ देशो मे यह महिला गेदरिंग होती है। [140] हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र विशेष अनुष्ठान और दुआ पढ़कर आयोजित की जाती है। सबसे महत्वपूर्ण और सामान्य नज़्रो में से एक "अबुलफजल" की नज़्र है। [141] | |||
* अब्बासीया या बैतुल-अब्बास: यह उन जगहों को कहा जाता है जो हज़रत अब्बास (अ) के नाम पर और मातम मनाने के लिए बनाई जाती हैं। कुछ लोगों ने कहा है कि इन जगहों पर कई अन्य कार्यक्रम भी किए जाते हैं और उनका कार्य इमामबारगाहो के समान है। [142] | |||
* जानबाज़ दिवस (पूर्व सैनिक दिवस): इस्लामिक गणराज्य ईरान के आधिकारिक कैलेंडर में, हज़रत अब्बास (अ) के जन्म दिवस 4 शाबान जानबाज़ दिवस के रूप में नामित किया गया है। [143] | |||
* पंजा या पंज चिन्ह, कुछ शिया क्षेत्रों में पंजे को अलम के ऊपर स्थापित किया जाता है जोकि हजरत अब्बास (अ) के कटे हुए हाथों का प्रतीक है। क्योकि पंजे मे पांच उंगलिया है इसको आधार मानते हुए कुछ शिया इसे पंजेतन का प्रतीक मानते हैं। [144] | |||
== हज़रत अब्बास (अ) से संबंधित स्थान और भवन == | |||
ईरान और इराक में कुछ ऐसे स्थान हैं जिनका समय के साथ लोगों द्वारा सम्मान किया गया है, और लोग अपनी नज़्र व नियाज़ एंवं हदीया देने के लिए उस स्थान पर जाते हैं, और उनका अक़ीदा है कि दुआ करने और मन्नत करने से उनकी ज़रूरतें पूरी होती है। | |||
=== हज़रत अब्बास (अ) का हरम === | |||
'''मुख्य लेखः हज़रत अब्बास (अ) का हरम''' | |||
हज़रत अब्बास (अ) की कब्र इमाम हुसैन (अ) के हरम से 378 मीटर उत्तर पूर्व में कर्बला शहर में स्थित है और शियाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। हज़रत अब्बास (अ) के हरम और इमाम हुसैन (अ) के हरम के बीच की दूरी को बैनुल हरमैन कहा जाता है। [145] | |||
बहुत से इतिहासकारों के अनुसार अब्बास (अ) को उनकी शहादत के स्थान पर नहरे अलक़मा के पास दफनाया गया है। [146] क्योंकि अन्य शहीदों के विपरीत इमाम हुसैन (अ) ने उन्हें अपनी शहादत के स्थान से नहीं हटाया और उन्हे दूसरे शहीदो के पास लेकर नही गए। | |||
अब्दुल रज्जाक मुकर्रम जैसे कुछ लेखकों का मानना है कि इमाम हुसैन (अ) का हज़रत अब्बास के पार्थिव शरीर को ख़ेमे में नहीं ले जाने का कारण खुद हज़रत अब्बास का अनुरोध या हज़रत अब्बास के पार्थिव शरीर पर घावो के कारण स्थानांतरित करने में इमाम की अक्षमता नहीं थी। बल्कि इमाम हुसैन बिन अली (अ) चाहते थे कि उनके भाई का अलग हरम हो। [147] मुक़र्रम ने अपने इस बयान के लिए किसी दस्तावेज का उल्लेख नहीं किया है। | |||
=== मक़ाम कफ अल-अब्बास === | |||
'''मुख्य लेखः मक़ाम कफ अल-अब्बास''' | |||
मक़ाम कफ़ अल-अब्बास के नाम से उन दो जगहों का नाम है जहां कहा जाता है कि हजरत अब्बास (अ) के हाथ उनके शरीर से अलग होकर जमीन पर गिर गए थे। ये दो स्थान हज़रत अब्बास (अ) के हरम के बाहर उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व में और बाज़ार जैसी दो गलियों के प्रवेश द्वार पर स्थित हैं। इन दोनों जगहों पर प्रतीक बनाए गए हैं और ज़ाएरीन वहां जाते हैं। [148] | |||
=== क़दमगाह, सक़्क़ाखाने और सक़्कानिफ़ार === | |||
* क़दमगाहः हज़रत अब्बास के नाम पर ईरान में कई क़दमगाह हैं कि लोग हमेशा इन जगहों पर अपनी मन्नत मांगने और अपनी ज़रूरतें पूरी करने और अपनी धार्मिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए जाते हैं। [149] इन क़दमगाहो मे सिमनान, हुवैज़ा, बुशहर और शिराज का उल्लेखित है। [150] खलखली के अनुसार, लार शहर मे एक वेधशाला है जहां उस क्षेत्र के सुन्नी हर मंगलवार को अपने परिवारों के साथ अपनी मन्नतें पूरी होने पर नज़र और नियाज़ करते हैं। [151] | |||
* सक़्क़ाखाना (प्याऊ): यह शियाओं के धार्मिक प्रतीकों में से एक है। रास्ता चलने वाले मुसाफ़िरो को पानी पिलाने और सवाब हासिल करने के उद्देश्य से सार्वजनिक सड़को पर छोटे छोटे प्याऊ बनाए जाते है। शिया संस्कृति में प्याऊ हज़रत अब्बास (अ) का कर्बला की घटना में पानी पिलाने की याद मे बनाए जाते है, और इमाम हुसैन (अ) तथा हज़रत अब्बास (अ) के नाम से सजाए जाते है। [152] कुछ लोग मन्नते पूरी होने के लिए वहां मोमबत्तियां जलाते हैं या धागे बांधते है। [153] दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हज़रत अब्बास (अ) के नाम पर बहुत से प्याऊ बनाए गए हैं। [154] | |||
* सक़्क़ानिफार: या साक़ीनिफ़ार या सक़्कातालार ईरान के माज़ंदरान क्षेत्र में पारंपरिक इमारतों का नाम है, जिनका उपयोग धार्मिक शोक समारोह आयोजित करने और नज़रो नियाज़ के लिए किया जाता है। ये इमारतें आम तौर पर एक धार्मिक स्थान, जैसे कि मस्जिद, तकिया अथवा इमामबारगाह के आसपास बनाई जाती हैं। सक़्क़ानिफ़ार का श्रेय हज़रत अब्बास (अ) को दिया जाता है और कुछ लोग इन्हें "अबुल फ़ज़ली" कहते हैं। [155] | |||
== हज़रत अब्बास (अ) से मंसूब तस्वीर == | |||
कुछ स्थानो पर कुछ ऐसी पेंटिग है जो हज़रत अब्बास बिन अली (अ) की तस्वीर से प्रसिद्ध है। इन तस्वीरो का इस्तेमाल धार्मिक प्रतिनिधिमंडलों और तकियों में भी किया जाता है। शिया मराज ए तक़लीद के अनुसार इन तस्वीरो को हज़रत अब्बास (अ) से विशिष्ठ करना आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि उन्होंने कहा कि इन छवियों को इमामबारगाहो और तकियों में स्थापित करने मे अगर हराम या अपमानजनक कार्य का कारण नहीं बनती है तो कोई शरई समस्या नहीं है, लेकिन उन्होंने इन तस्वीरो से बचने की सिफारिश की है। [156] | |||
हाल के वर्षों में, आशूरा घटना पर केंद्रित दो फिल्में बनाई गईं, जिन्हें मुख्तारनामा और रस्ताखीज़ कहा जाता है, मुख्तारनामे में मराज ए तक़लीद की आपत्ति जताने के कारण हज़रत अब्बास (अ) का चेहरा नही दिखाया गया। [157] और रस्ताखीज़ फ़िल्म को संशोधन के बावजूद रिलीज़ होने की अनुमति नही दी गई। [158] [नोट 3] | |||
== मोनोग्राफ़ी == | |||
हज़रत अब्बास (अ) के संबंध मे अब तक बहुत सी किताबो की रचना हुई है जिनमे से फ़ारसी भाषा मे कुछ निम्मलिखित हैः | |||
# जिंदागानी क़मर ए बनी हाशिमः ज़ह़ूर इश्क आला, हुसैन बद्रुद्दीन, तेहारन, महताब, 1382 शम्सी | |||
# साक़ी ए ख़ूबानः अबुल फ़ज़्लिल अब्बास के जीवन की व्याख्या पर आधारित मुहम्मद चक़ाई अराकी द्वारा लिखित है और इस किताब को नश्रे मुर्तज़ा क़ुम ने 1376 शम्सी मे प्रकाशित किया है। | |||
# जिंगदानी ए हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास अलमदारे कर्बलाः रज़ा दश्ती द्वारा रचित किताब को मोअस्सेसा पाज़ीना तेहरान ने 1382 शम्सी मे प्रकाशित किया। | |||
# चेहरा ए दरखशान कमर ए बनी हाशिम अबुल फ़ज़्लिल अब्बासः अली रब्बानी ख़लख़ाली ने लिखा और मकतबातुल हुसैन ने 1378 शम्सी मे क़ुम से प्रकाशित किया। | |||
# अबुल क़ुर्बाः अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) की जीवन व्याख्या पर आधारित है इस किताब के लेखक मजीद ज़जाजी मुजर्रद काशानी है इस किताब को सुबहान ने 1379 शम्सी मे तेहरान से 3 खंडो मे प्रकाशित किया। | |||
# अब्बास (अ) सिपेहसालार कर्बलाः अब्बास शबगाही शबिस्तरी द्वारा जीवन परिचय पर आधारित किताब है जोकि 1381 शम्सी मे हुरूफ़िया तेहरान से प्रकाशित हुई। | |||
# अब्बास बिन अली (अ) जवाद मोहद्दीसी, मजमूआ ए आशनाई बा उस्वेहा का नौवा अंक है, जोकि इंतेशाराते बोस्तान किताब द्वारा 8 वां संस्करण प्रकाशित किया गया। [159] | |||
# अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, पुज़ूहिशी दर सीरा ए वा सीमा ए अब्बास बिन अली (अ), जवाद ख़ुर्रमयान द्वारा लिखित और 1386 शम्सी मे पहला संस्करण नश्रे राहे सब्ज द्वारा प्रकाशित है। | |||
== संबंधित लेख == | |||
* आशूरा घटना की तारीख | |||
* आशूरा की घटना (सांख्यिकी की दृष्टि से) | |||
* हज़रत अब्बास (अ) की मुसीबत | |||