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नशीले पदार्थ

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नशीले पदार्थ या मादक पदार्थ (फ़ारसीःمواد مخدر) ऐसी चीजो को कहा जाता हैं जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं, जिससे व्यक्ति की चेतना में कमी आ जाती है और शरीर में आलस्य पैदा होता है। कई बार इनका सेवन करने के बाद इनकी आदत पड़ जाती है और व्यक्ति नशे का आदी हो जाता है। न्यायविद इस बात पर सहमत हैं कि मादक पदार्थों का सेवन हराम है और इसके लिए वे विभिन्न धार्मिक प्रमाणों जैसे कि आयतो, हदीसो, अक़ल और "काएदा ला ज़रर" (किसी को हानि न पहुंचाने का सिद्धांत) का हवाला देते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि मादक पदार्थों और नशे के प्रभाव में समानता यह है कि दोनों से व्यक्ति की होशियारी खत्म हो जाती है। हालांकि, अधिकांश न्याविद मादक पदार्थों को सामाजिक रूप से नशे की श्रेणी में नहीं रखते और इसके लिए अलग से अहकाम लागू नहीं करते। इसलिए, मादक पदार्थों का सेवन ताज़ीरी अपराध माना जाता है।

न्यायविदो ने मादक पदार्थों के उत्पादन, तस्करी, खरीद-फरोख्त और वितरण को हराम ठहराने के लिए विभिन्न तर्क दिए हैं। कुछ का कहना है कि इनका कोई वैध और लाभकारी उद्देश्य नहीं है, जबकि अन्य ने इसके व्यक्तिगत और सामाजिक नुकसान को ध्यान में रखते हुए नशीले पदार्थो के तस्करों को "मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़ " मानकर उनके लिए मौत की सजा निर्धारित की है।

परिभाषा और महत्व

नशीले पदार्थ उस चीज़ को कहा जाता है जो व्यक्ति में असामान्य खुशी और वलवले का एहसास कराती है और उसे इस पदार्थ की आदत पड़ जाती है। जिससे वह नशे का आदी हो जाता है।[] इसके अलावा, कोई भी ऐसी चीज जो शरीर में कमजोरी और आलस्य लाती है, उसे भी मादक पदार्थ माना जाता है।[]

इस्लामी रिवायतो में कुछ मादक पदार्थों का उल्लेख "बंज", "मुफ़्तिर", "मादक" और "अफीम" जैसे नामों से किया गया है और इनका सेवन न करने की सख्त चेतावनी दी गई है।[]

फिक़्ह (इस्लामी कानून) की किताबों में मादक पदार्थों के लिए अलग से कोई अध्याय नहीं है, लेकिन इसके संबंध में कुछ नियम अन्य जैसे अपराध (हुदूद) और दंड (ताज़ीरात),[] तहारत और निजासत,[] नमाज़,[] तलाक,[] मुहारेबा,[] दियात[], खाने-पीने की चीजों[१०] के विषयों में दिए गए हैं।

मादक पदार्थों और नशे की वस्तुओं की समानता

मुहम्मद बाक़िर सद्र (मृत्यु 1359 शम्सी) ने अपनी किताब "बोहूस फ़ी शरह अल उरवातुव वुस्क़ा" में मादक पदार्थों और नशे की चीजों (मुस्केरात अर्थात मस्त करने वीले चीज़ो) के बीच समानता को इस तरह बताया है कि दोनों का असर होशियारी को खत्म करना होता है। वे कहते हैं कि दोनों मानसिक स्थिति को बिगाड़ते हैं, शरीर में कमजोरी लाते हैं।[११] यह भी कहा जाता है कि दोनों ही मानसिक भ्रष्टाचार और शरीर के अंगों में कमजोरी उत्पन्न करने में समान रूप से योगदान करते हैं, और नशेड़ी व्यक्ति को नशे की लत और निर्भरता का शिकार बना देते हैं। इसके अलावा, ये बुरे और भ्रष्ट विचारों को जन्म देते हैं जो कुछ अपराधों और जघन्य अपराधों को अंजाम देने की ओर ले जाते हैं।[१२] इसके अलावा, हर एक मादक पदार्थ और नशा करने वाली चीजें लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाती हैं।[१३]

नशीले पदार्थों के हराम होने के कारण और प्रमाण

न्याविदो की ओर से नशीले पदार्थो के हराम होने पर दिए जाने वाले तर्क और प्रमाण निम्नलिखित है। नशीले पदार्थों के हराम होने के बारे में हदीस:

पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया:

"सावधान, हर नशीला पदार्थ और मस्त करने वाली चीज़ हराम है, और जो चीज़ ज्यादा मस्त करती है, उसकी थोड़ी मात्रा भी हराम है, और जो चीज़ दिमाग को भ्रमित, बेहोश या प्रभावित करती है, वह भी हराम है।"[१४]

  • क़ुरआन करीम: नासिर मकारिम शिराज़ी ने आय ए तहलोका के एक भाग का जिक्र करते हुए, (वला त़ुलक़ू बेअयदीकुम ऐलत तहलोका) नशीले पदार्थों का सेवन खुद को हलाकत में डालने और नष्ट करने के स्पष्ट उदाहरणों में से माना है, और क़ुरआन की आयत के आदेश के आधार पर इसे हराम माना गया है।[१५] फ़िक़्ह और उसूल के शोधकर्ता मुहम्मद जवाद मेहरी ने अपनी किताब दरसनामा मवादे मुखद्दिर मे क़ुरआन की आयतों जैसे आय ए तहलोका, आय ए तेजारत, सूर ए इस्रा की आयत न 27 और सूर ए आराफ़ की आयत न 157 के आधार पर नशीले पदार्थों को खरीदना- बेचना और सेवन को अकल माल बिल बातिल (ह़राम माल खाना), खुद को हलाकत में डालने, और ग़लत रास्ते पर खर्च करना माना है। उनके अनुसार नशीले पदार्थ हानिकारक, वीभत्स और मन को नष्ट करने वाले पदार्थ हैं; इसलिए इसका सेवन करना और खरीदना-बेचना हराम है।[१६]
  • इस्लामी रिवायतें: कुछ न्यायविद रिवायतो का उल्लेख करते हैं जैसे कि "हर नशीला पदार्थ हराम है और मादक पदार्थ हराम है" [नोट १] और यह भी कि "हर अगर उसके प्रभाव और परिणाम नशीले पदार्थों के समान हैं वह भी हराम है" [नोट २] नशीले पदार्थो को हराम मानते हैं[१७] लेकिन मूसवी अर्दबेली (1395-1304) अपनी पुस्तक फ़िक़्ह अल-हुदूद वत-ताज़ीरत में उन नशीली पदार्थो के उपयोग के हराम होने के प्रमाण के रुप मे जिन रिवाई किताबो में वर्णन शामिल है उनके दस्तावेज़ कमज़ोर है। इसलिए उनके ख़िलाफ़ बहस करना सही नहीं है।[१८]
  • अक़ली दलील: सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र के अनुसार, शरीयत का फैसला कि मादक पदार्थों का उपयोग हराम है, अक़ल के माध्यम से खोजा गया है[१९] उनके अनुसार, नशीले पदार्थों की तुलना मस्त करने वाले पदार्थो से करने के कारण तर्क यह बताता है कि यह हराम है। क्या दवाओं का उपयोग करना मना है क्योंकि यह हानिकारक है?[२०]

क्या नशीले पदार्थो का उपयोग करना हराम है क्योंकि यह हानिकारक है?

नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार, हालांकि क़ाएदा ला ज़रर का विषय दूसरों को नुकसान पहुंचाना है, इसमें खुद को नुकसान पहुंचाना भी शामिल है और इसी आधार पर उनका कहना है कि नशीले पदार्थ निश्चित रूप से खुद को और दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं, और इसीलिए इसे हराम किया गया है।[२१]

सय्यद मुहम्मद बाकिर सद्र के अनुसार, शराब पीने के हराम होने का कारण इसका नशीला प्रभाव है, और नशीली पदार्थो के उपयोग के हराम होने का कारण उनका हानिकारक होना है।[२२]

कुछ न्यायविद नशीले पदार्थो के उपयोग के नुकसान को जहर और जहरीले पदार्थों के उपयोग के समान मानते हैं और मानते हैं कि जो शरीर के लिए हानिकारक है, जैसे जहर खाना (थोड़ा या बहुत, ठोस या तरल)[२३] हराम है[२४] लेकिन उसका कम उपयोग करना हानिकारक न हो; अफीम की तरह इसका प्रयोग तब तक हराम नहीं है जब तक यह शरीर के लिए हानिकारक न हो; लेकिन जब यह हानिकारक होने की सीमा तक पहुँच जाता है, तो थोड़ी मात्रा में भी इसका उपयोग हराम हो जाएगा।[२५] इस आधार पर, सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई, (मृत्यु: 1371) जैसे कुछ न्यायविदों का मानना है कि नशीले पदार्थो का उपयोग किया जाना, जहर खाने और नुकसान पहुंचाने के जैसा है, शरीर और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरे में डालना हराम है; चाहे यह इसकी बड़ी मात्रा के कारण हो या इसके निरंतर उपयोग के कारण।[२६] इमाम खुमैनी[२७] और आयतुल्लाह ख़ामेनई[२८] जैसे कुछ लोगों ने इसके नुकसान और क्षति पर ध्यान दिया है और इसके हराम होने को व्यक्तिगत और सामूहिक माना है।

नशीले पदार्थो की हानिकारकता की कसौटी एवं मात्रा

न्यायविदो के अनुसार जिस चीज़ का एक या दो बार सेवन करना हानिकारक नहीं है, लेकिन उसका लगातार और बार-बार सेवन और उसकी लत हानिकारक है, उसे दोहराना और जारी रखना हराम है,[२९] इसी आधार पर तबरेज़ी[३०] मुहम्मद तक़ी बहजत (मृत्यु 1388)[३१] और फ़ाज़िल लंकरानी (मृत्यु 1386)[३२] जैसे न्यायविदो के अनुसार नशीले पदार्थो के हराम होने की कसौटी उन पदार्थो की लत है, न कि केवल उनका उपयोग; क्योंकि उनका मानना है कि नशीले पदार्थो के बारे में जो हानिकारक है वह उन पदार्थो की लत है और उनके सेवन की अनुमति नहीं है जो लत की ओर ले जाते हैं; अतः न्यायविदो का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति नशे का आदी है, लेकिन उसके पास नशे को छोड़ने की ताकत और क्षमता नहीं है, तो उसके लिए शरीयत की दृष्टि से जान की रक्षा और आवश्यकता के कारण नशीले पदार्थ का सेवन करने में कोई हर्ज नहीं है।[३३]

नशीले पदार्थो के सेवन की सजा

इमामिया न्यायविदों के बीच इस बात पर मतभेद पाया जाता है कि क्या नशीले पदार्थ मस्त करने वालो मे हैं और क्या उनके आपराधिक फैसलों में नशीले पदार्थ शामिल हैं या नहीं। न्यायशास्त्र की पुस्तकों में जो कहा गया है वह यह है कि नशीले पदार्थो को मस्त करने वाली चीज़ो मे मिलाना मुसल्लम नहीं है और यह मतभेद का विषय है। अधिकांश न्यायविद नशीले पदार्थों को मस्त करने वाला नहीं मानते हैं और नशीले पदार्थों पर अपने विभिन्न फैसलों को लागू नहीं करते हैं;[३४] इस कारण से, वे नशीले पदार्थों के सेवन को ताज़ीरी अपराध मानते हैं।[३५] इस समूह के विपरीत, कुछ अन्य न्यायविदों का मानना है कि नशीले पदार्थो के सेवन के हराम होने का कारण यह है कि वे मस्त करने वाले होते हैं।[३६] और नशीले पदार्थो के लिए शरई सजा (हद) को लागू करने का मानक उनका मस्त करने वाला होना है। जैसा की चंद्र कैलेंडर की 8वीं शताब्दी के शिया न्यायविद और धर्मशास्त्री अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल-अहकाम[३७] किताब में और इमाम खुमैनी, तहरीर अल-वसीला[३८] किताब में मानते हैं कि हर मस्त करने वाली , चाहे ठोस हो या तरल, शराब से संबंधित है जैसे चरस।

चंद्र कैलेंडर की 8वीं सदी के शिया न्यायविद शहीद अव्वल ने चरस का सेवन हराम होने के संबंध में दो दृष्टिकोणो और उसके परिणाम की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि अगर किसी चीज़ की हराम होने की वजह नशे में लाने वाली होना है, तो यह शरई सजा (हद) का कारण बनेगी, और अगर यह अकल को खराब करने की वजह से हराम है, तो यह ताज़ीर (कोड़े मारने की सजा) का कारण बनेगी।[३९]

नशीले दवाओं के उत्पादन, तस्करी और खरीदने-बेचने का हुक्म

भांग और चरस जैसे ठोस नशीले पदार्थों के संबंध में इमामिया न्यायविदों के बीच मतभेद शुद्धता और अशुद्धता के संदर्भ में इन नशीले पदार्थों के हुक्म तक ही सीमित है; अन्यथा, वे इस बात से सहमत हैं कि सभी प्रकार की नशीले पदार्थो का सेवन करना हराम है। उनमें से कुछ का मत है कि ठोस नशीले पदार्थ शुद्ध होते हैं और यदि उनमें कोई ऐसी चीज डाल दी जाए जो द्रव में बदल जाए तो भी वह शुद्ध है।[४०] इस समूह के विपरीत, कुछ अन्य न्यायविदों ने फतवा दिया है कि हर मस्त करने वाली चीज़ नजिस है[४१]

चंद्र कैलेंडर के 8वीं सदी के शिया न्यायविद और धर्मशास्त्री अल्लामा हिल्ली, नशीले पदार्थो की खरीद-फरोख्त को हराम की कसौटी पर इन पदार्थों को नशीले पदार्थों में शामिल करना मानते हैं[४२] लेकिन अधिकांश न्यायविद इसे कसौटी मानते हैं; नशीले पदार्थों की तस्करी और लेनदेन की पवित्रता में हलाल और तर्कसंगत हितों की कमी और हराम लाभ का इरादा रखा गया है उन्होंने कहा है कि यदि ये चीजें दवा और अन्य तर्कसंगत चीजों सहित हलाल उपयोग के लिए हैं, तो यह अनुमेय है और अन्यथा यह हराम है[४३] उदाहरण के लिए, सय्यद अली खामेनई (जन्म 1318), नशीले पदार्थो का सेवन[४४] साथ ही; इसे खरीदना-बेचना और परिवहन तथा रखना हराम माना जाता है क्योंकि इससे व्यक्तिगत और सामाजिक नुकसान होता है, बीमारी के इलाज को छोड़कर, और वह एक सक्षम और विश्वसनीय डॉक्टर के निदान के अनुसार होता है। ऐसे में इसे आवश्यकतानुसार सेवन करने में कोई दिक्कत नहीं है।[४५]

नासिर मकारिम शिराज़ी, (जन्म 1305 में), अफ़ीम और अन्य नशीले पदार्थों के उपयोग के साथ-साथ उन्हें खरीदने और बेचने और उन बैठकों में भाग लेने को बड़े पाप मानते हैं जहाँ नशीले पदार्थों का सेवन किया जाता है। उन्होंने इसकी खेती, बिक्री, परिवहन और सेवन में किसी भी प्रकार की सहायता को स्पष्ट दैवीय निषेध माना है।[४६] उनके अनुसार, जो कोई भी इन सामग्रियों की खेती, तैयारी, परिवहन और वितरण में मदद करता है उसने कुछ हराम किया है और इसके अधीन है यह एक दैवीय दंड होगा और इससे प्राप्त कोई भी आय हराम और नाजायज है।[४७]

मिर्ज़ा जवाद तबरीज़ी (मृत्यु: 2005 ई) जैसे कुछ अन्य लोगों ने समाज में भ्रष्टाचार और लत के प्रसार और प्रचार को हराम होने की कसौटी माना है। कुछ अन्य न्यायविदों, जैसे कि इमाम खुमैनी और सय्यद काज़िम हाएरी (जन्म1317 हिजी) ने हराम होने की कसौटी को इस्लामी सरकार के नियमों और कानूनों का विरोध माना है।[४८]

क्या नशीले पदार्थो के तस्कर दुनिया में भ्रष्टाचारियों के उदाहरण हैं?

कुछ न्यायविदों ने नशीले पदार्तो के तस्करों और बड़े पैमाने पर वेश्यावृत्ति केंद्र बनाने वालों को "मुफ़्सिद फ़ि अल अर्ज़" शीर्षक का आदर्श उदाहरण माना है; जैसा कि नासिर मकारिम शिराज़ी मुफसिद फ़िल अल अर्ज की परिभाषा में लिखते हैं: "मुफ़सिद फ़ि अल अर्ज़ का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो पर्यावरण में व्यापक भ्रष्टाचार का स्रोत बन जाता है; भले ही यह हथियारों का सहारा लिए बिना हो; जैसे नशीले पदार्थो के तस्कर और वे जो बड़े पैमाने पर वेश्यावृत्ति केंद्र बनाते हैं।"[४९]

नशीले पदार्थो से जुड़े अपराधों में भ्रष्टाचार के संबंध में इमाम खुमैनी का मानना है कि इस मामले में भ्रष्टाचार यह है कि वितरित किए जाने वाले पदार्थ ऐसे हैं जो कई लोगों को बीमार करते हैं, या वे ऐसा करने का इरादा रखते हैं या उन्हें इस कार्रवाई के प्रभावों का ज्ञान है;[५०] इसलिए, न्यायिक अदालतों में मुफ़सिद फ़ि अल अर्ज़ के लिए मौत की सजा के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रमुख सय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्दाबेली (1304-1395) के पत्र के जवाब में, उन्होंने उन्हें हुसैन अली मुंतज़री (1301-1388) की राय के अनुसार कार्य करने की अनुमति दी।[५१] मुंतज़री ने मुफ़सिद फ़ि अल अर्ज़ को फांसी देना जायज़ माना[५२] और केवल तभी जब भ्रष्ट व्यक्ति के शीर्षक की सच्चाई के बारे में संदेह हो। काएद ए ऐहतीयात दर देमा के आधार पर फ़ांसी को जायज़ नही माना।[५३]

ईरान के इस्लामी गणराज्य में, 1367 में स्वीकृत एंटी-नारकोटिक्स कानून के अनुच्छेद 6 और 9 में, मादक द्रव्य अपराधों के अपराधियों, जिनके पदार्थो की मात्रा एक निश्चित सीमा तक पहुंचती है, को मुफ़सिद फ़ि अल अर्ज़ मे वर्गीकृत किया गया था; हालाँकि, 1376 में इस कानून के अनुच्छेद 6 से "मुफ़सिद फ़ि अल अर्ज़" का शीर्षक बदलने की अवधि के बाद, 1396 में फिर से, नए बदलावों के साथ और अनुच्छेद 45 जोड़कर, इसने "मुफ़सिद फ़ि अल अर्ज़" के अपराधी बनने के उदाहरणों को निर्दिष्ट किया।[५४]

मोनोग्राफ़ी

अली अकबर बासरी द्वारा लिखित किताब मवाद्दे मुखद्दिर दर मनाबेअ फ़िक़्ही व फ़तावाए मराज ए ऐज़ाम तक़लीद है। इस पुस्तक में, लेखक ने नशीले पदार्थो के सेवन और उसकी सज़ा को इस्लामी न्यायशास्त्र के स्रोतों और स्कूलों में हुक्म की जांच की है और इसमें मराज ए तक़लीद के फतवे भी जोड़े हैं। यह पुस्तक 2008 में खिरसंदी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई थी।[५५]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. माहयार, दाएरातुल मआरिफ़ ऐतीयाद व मवाद्दे मुखद्दिर, 1387 शम्सी, पेज 21; सलमान पुर, मबानी फ़िक़्ही हुरमत इस्लेमाल व क़ाचाक़ मवाद्दे मुखद्दिर व जराइम मरबूत बे आन, पेज 122
  2. देखेः हुसैनी, फ़रहंग इस्तेलाहात फ़िक़्ही, 1389 शम्सी, पेज 456; मोईन, फ़रहंग मोईन, मुद्दिर शब्द के अंतर्गत
  3. देखः नुरी, मुस्तदरक अल वसाइ,, 1408 हिजरी, भाग 17, पेज 86
  4. शेख मुफ़ीद, अल-मुक़्नेआ, 1413 हिजरी, पेज 805
  5. शहीद सानी, मसालिक अल अफ़हाम, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 122
  6. शेख तूसी, अल मबसूत फ़िल फ़िक़्ह अल इमामीया, 1387 हिजरी, भाग 1, पेज 128
  7. शेख तूसी, किताब अल खिलाफ़, मोअस्सेसा नशर इस्लामी, भाग 4, पेज 480
  8. शेख मुफ़ीद, अल-मुक़्नेआ, 1413 हिजरी, पेज 805
  9. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 42, पेज 187
  10. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 36, पेज 370
  11. सद्र, बोहूस फ़ी शरह अल उलवातुल वुस्क़ा, 1408 हिजरी, भाग 3, पेज 367
  12. तय्यार, अल मुखद्देरात फ़ी फ़िक़्ह अल इस्लामी, 1418 हिजरी, पेज 89
  13. फ़त्ही बहनसी, अल मौसूआ अल जनाईया फ़ि अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 394
  14. कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 408
  15. मकारिम शिराज़ी, इस्तिफ़तेआत जदीद, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 171
  16. महरी, दरसनामा मवाद्दे मुखद्दिर, 1401 शम्सी, पेज 207-215
  17. देखेः अंसारी, किताब अल तहारत, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 210
  18. मूसवी अरदबेली, फ़िक़्ह अल हुदूद वत तआज़ीरात, 1427 हिजरी, भाग 2, पेज 562
  19. सद्र, दुरूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1406 हिजरी, भाग 1, पेज 279
  20. सद्र, दुरूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1406 हिजरी, भाग 1, पेज 279
  21. मकारिम शिराज़ी, इस्तिफ़तेआत जदीद, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 173-174
  22. सद्र, बोहूस फ़ी शरह अल उलवातुल वुस्क़ा, 1408 हिजरी, भाग 3, पेज 367
  23. शहीद सानी, मसालिक अल अफ़हाम, 1413 हिजरी, भाग 12, पेज 70
  24. शहीद सानी, अल रौज़ा अल बह्हीया फ़ी शरह अल लुम्अतित दमिश्क़ीया, 1410 हिजरी, भाग 7, पेज 329
  25. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 36, पेज 372
  26. ख़ूई, मिनहाज अल सालेहीन, 1410 हिजरी, भाग 2, पेज 347
  27. इमाम ख़ुमैनी, इस्तिफ़तेआत, 1420 हिजरी, भाग 2, पेज 35-37
  28. खानेनई, अजवबतुल इस्तिफ़तेआत, 1420 हिजरी, भाग 2, पेज 53
  29. देखेः इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1392 हिजी, भाग 2, पेज 164
  30. तबरेज़ी, इस्तिफ़्तेआत जदीद, 1385 शम्सी, भाग 2, पेज 483
  31. बहजत, इस्तिफ़्तेआत, 1386 शम्सी, भाग 4, पेज 558
  32. फ़ाज़िल लंकरानी, जामेअ अल मसाइल, 1383 शम्सी, भाग 2, पेज 271
  33. देखेः मकारिम शिराज़ी, इस्तिफतेआत जदीद, 1427 हिजरी, भाग 1, पेज 161
  34. देखेः नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 449
  35. फ़ाज़िल मिक़्दाद, अल तंक़ीह अल रबाऐ लेमुखतसर अल शराए, 1404 हिजरी, भाग 4, पेज 366; शहीद अव्वल, अल कवाइद वल फ़वाइद, किताब फ़रोशी मुफ़ीद, भाग 2, पेज 76
  36. देखेः अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 120; अल्लामा हिल्ली, अजवबतुल मसाइल अल मोहन्नाईया, 1401 हिजरी, भाग 1, पेज 32
  37. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1419 हिजरी, भाग 3, पेज 332
  38. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1392 शम्सी, भाग 2, पेज 166
  39. शहीद अव्वल, अल क़वाइद वल फ़वाइद, किताब फ़रोशी मुफ़ीद, भाग 2, पेज 73
  40. इमाम खुमैनी, तोज़ीह अल मसाइल, 1372 शम्सी, पेज 15; मसरफ़ दुखानियात व मवाद्दे मुखद्दिर, वेबगाह दफतर हिफ़्ज़ व नशर आसार आयतुल्लाह ख़ामेनई
  41. खूई, अल तंक़ीह फ़ी शरह अल उरवातुल वुस्क़ा, 1410 हिजरी, भाग 2, पेज 99
  42. अल्लामा हिल्ली, क़वाइद अल अहकाम, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 120
  43. बासेरी, अली अकबर, मवाद्दे मुखद्दिर दर मनाबेअ फ़िक़्ही व फ़तावाए मराज ए तक़लीद, पेज 87-118 (असल इस्तिफ़्तेआत इस किताब मे बयान हुए है)
  44. मसरफ दुखानियात व मवाद्दे मुखद्दिर, वेबगाह दफ्तर हिफ़्ज़ व नशर आसार आयतुल्लाह ख़ामेनई
  45. खामोनई, अजवबतुल इस्तिफ़्तेआत, 1420 हिजरी, भाग 2, पेज 53
  46. मकारिम शिराज़ी, इस्तिफतेआत जदीद, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 173-174
  47. मकारिम शिराज़ी, इस्तिफतेआत जदीद, 1427 हिजरी, भाग 2, पेज 242
  48. बासेरी, अली अकबर, मवाद्दे मुखद्द्र दर मनाबेअ फ़िक्ही व फतावाए मराज ए तक़लीद, 87-118
  49. मकारिम शिराज़ी, इस्तिफतेआत जदीद, 1427 हिजरी, भाग 2, पेज 499
  50. इमाम ख़ुमैनी, सहीफा इमाम, 1378 शम्सी, भाग 18, पेज 354
  51. इमाम ख़ुमैनी, सहीफा इमाम, 1379 शम्सी, भाग 20, पेज 397
  52. मुंतज़री, रेसाला इस्तिफतेआत, 1384 शम्सी, भाग 1, पेज 252
  53. मुंतज़री, रेसाला इस्तिफतेआत, 1384 शम्सी, भाग 1, पेज 252
  54. जब़ही, शरह जामेअ क़ानून मुबारज़े बा मवाद्दे मुखद्दिर, 1397 शम्सी, भाग 2, पेज 202
  55. मवाद्दे मुखद्दिर दर मनाबेअ फ़िक़्ही व फ़तावाए मराज तक़लीद ऐज़ाम, पाएगाह इत्तेला रसानी किताब खानेहाए ईरान

नोट

  1. अला इन्ना कुल्ला मुसकेरिन हरामुन, व कुल्ला मुखद्देरिन हरामुन, वमा अस्करा कसीरोहू हरामुन क़लीलोहू, वमा ख़म्मरल अक़्ला फ़होवा हरामुन पैग़म्बर (स) जान लो कि हर नशा हराम है, हर मसत करने वाली चीज हराम है, और जो चीज बहुत ज्यादा मस्त करती है, उसका थोड़ा सा भी हराम है, और जो चीज बुद्धि को नष्ट करती है वह भी हराम है। (कुलैनी, अल काफी, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 408)
  2. इन्नल्लाहा अज़्ज़ा व जल लम योहर्रेमिल ख़मरा लेइस्मेहा, वलकिन्नहू हर्रमाहा लेआक़ेबतेहा, फ़मा काना आक़ेबतोहू आक़ेबतल खमरे फ़होवा ख़मरुन, इमाम काज़िम (अ) अल्लाह तआला ने शराब को उसके अपने नाम के लिए हराम नहीं किया; बल्कि उसने इसके प्रभावों और परिणामों के कारण इसे हराम किया, और इसके परिणाम शराब की तरह जो भी हों, वह भी शराब ही है। (कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 412)

स्रोत

  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रुहुल्लाह, इस्तेफ़तेआत, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी, पहला संस्करण, 1372 शम्सी
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