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फ़दक की घटना, पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद हुई घटनाओं में से एक है, जिसमें मुसलमानो के पहले खल़ीफ़ा अबू बक्र के आदेश से फ़दक को हज़रत फातिमा (स) से छीन कर राजकोष मे सम्मिलित किया गया। मुसलमानो के पहले ख़लीफ़ा अबू बक्र ने पैगंबर (स) से एक हदीस (जिसके संबंध मे कहा जाता है कि अबू बक्र के अलावा किसी और ने नहीं सुना) का हवाला देते हुए दावा किया कि अम्बिया किसी भी चीज को धरोहर (विरासत) के रूप मे नही छोड़ते। जिस पर हज़रत फ़ातिमा (स) ने कहा कि पैगंबर (स) ने अपने स्वर्गवास से पहले मुझे बख्श़ दिया था। हज़रत ज़हरा (स) ने इमाम अली (अ) और उम्मे अयमन को अपने दावे को साबित करने के लिए गवाह के रूप में पेश किया। शिया और कुछ सुन्नी विद्वानों के अनुसार पैगंबर (स) ने फ़दक हज़रत ज़हरा (स) को उस बख्श दिया था जब "आय ए ज़ुल-क़ुर्बा" नाज़िल हुई और पैगंबर (स) को आदेश दिया गया कि हकदार को उसका हक़ दिया जाए।
कुछ सूत्रों के अनुसार हज़रत ज़हरा (स) की बातचीत को सुनने के बाद अबू बक्र ने फ़दक पर हज़रत ज़हरा (स) के स्वामित्व को स्वीकार करते हुए एक दस्तावेज़ लिखा। लेकिन दूसरे ख़लीफ़ा उमर ने हज़रत फ़ातिमा (स) से यह दस्तावेज छीन कर फाड़ दिया। एक अन्य कथन के अनुसार अबू बक्र ने हज़रत ज़हरा (स) के गवाहों को खारिज करते हुए फ़दक वापस करने से इनकार कर दिया, इस अवसर पर हज़रत फ़ातिमा (स) ने मस्जिद अल-नबी की ओर रुख किया और वहां एक विस्तृत धर्मोपदेश (ख़ुत्बा) दिया, जो खुतबा ए फ़दक के नाम से प्रसिद्ध है। इस धर्मोपदेश में, खिलाफत के हड़पने का उल्लेख करते हुए, पैंगबरो के धरोहर न छोड़ने पर आधारित अबू बक्र की बात को कुरआन की आयतों के पूर्ण उल्लंघन के रूप वर्णित करते हुए इस मामले पुनरुत्थान के दिन अल्लाह की अदालत पर स्थगित कर दिया। इस घटना के बाद हज़रत ज़हरा (स) अबू बक्र और उमर से नाराज़ हो गईं और नाराज़गी की हालत में इस दुनिया से विदा हो गई।
फ़दक का क्षेत्र खैबर की लड़ाई में यहूदियों के साथ सुलह के परिणामस्वरूप पैगंबर की मिलकियत में आ गया, जो उन्होंने अपनी इकलौती बेटी हज़रत फ़ातिमा को दिया था। लेकिन पैगंबर के स्वर्गवास पश्चात अबू बक्र ने इसे आप से छीन लिया और उसके बाद एक के बाद एक बनी उमय्या और बनी अब्बास के ख़लीफ़ाओ के बीच स्थानांतरित होता रहा। इस बीच उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ और मामून अब्बासी ने फ़दक या उसकी आमदनी को हज़रत फातिमा के वंशजों को दे दिया।
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