पाखंडी

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(मुनाफ़ेक़ीन से अनुप्रेषित)

पाखंडी (अरबीः المنافق) अर्थात मुनाफ़िक़ वह व्यक्ति है जो अपने दिल में इस्लाम को स्वीकार नहीं करता है, लेकिन बाहर से खुद को आस्तिक (मोमिन) दिखाता है। पाखंड का मुद्दा पैगंबर (स) के उत्प्रवास (हिजरत) और मदीना में सत्ता में आने के बाद उठाया गया था। इस अवधि के दौरा कुछ इस्लाम विरोधी थे; लेकिन वे खुलकर इसका विरोध नहीं कर सकते थे इसी के चलते वह स्वंय को मुसलमान कहते थे।

पाखंड क़ुरआन में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली अवधारणाओं में से एक है और सूर ए मुनाफ़ेक़ून भी पाखंडियों की विशेषताओं और परिचय को बयान करता है। झूठ बोलना, संदेह करना, अपने को बड़ा आकना, सच्चाई का उपहास करना (मज़ाक उडाना), और पाप करना और व्यभिचार करना कुछ ऐसे लक्षण हैं जो कुरआन पाखंडियों के लिए गिनाता है।

अब्दुल्लाह बिन उबैय, अब्दुल्लाह बिन उयैना और असहाबे उक़बा की मशहूर पाखंडियों में गणना की जाती है। ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, पैगंबर (स) ने पाखंडियों को सहन किया और अप्रत्यक्ष रूप से उनके कार्यों को अप्रभावी बना दिया। मस्जिद ए ज़ेरार जो मदीना के पाखंडियों का केंद्र बन गया था, पैगंबर (स) के आदेश से ध्वस्त कर दी गई थी।

सूर ए निसा की आयत न 145 के अनुसार पाखंडियों का स्थान नर्क के सबसे निचले स्तर में है, और इस आयत का उल्लेख करने वाले मुफ़स्सिरो ने पाखंड को अविश्वास से भी बदतर माना है। पाखंडी के मृत शरीर पर पढ़ी जाने वाली नमाज़ आस्तिक के मृत शरीर पर पढ़ी जाने वाली नमाज़े मय्यत से भिन्न है, और क्षमा मांगने के बजाय, उस पर लानत की जाती है।

पाखंडी लोगों के बारे में लिखी गई किताबों में अबू नईम इस्फ़हानी द्वारा रचित सिफत अल-निफ़ाक़ वा नाअत अल-मुनाफ़ेक़ीन मिन सुनन अल-मासूरते अन रसूलिल्लाह, इब्ने क़य्यम जौज़ी की रचना सिफ़ात अल-मुनाफ़ेक़ीन और जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित अल-निफ़ाक़ वल मुनाफ़ेक़ीन फ़िल क़ुरआन अल-करीम उन किताबो मे से है जो पाखंडीयो के बारे मे लिखी गई है।

पाखंड क्या है?

पाखंडी वह व्यक्ति है जो अपने कुफ्र को छुपाता है और जो नहीं है उसे प्रकट करता है, और खुद को इस्लाम के साथ सुरक्षित करता है।[१] आस्तिक (मोमिन) और काफिर दो अवधारणाओं के खिलाफ पाखंडी का उपयोग किया जाता है।[२] मुर्तज़ा मुताहरी के अनुसार आस्तिक (मोमिन) व्यक्ति वह है जो अपने दिल, जबान और कार्यों से इस्लाम पर ईमान रखता है, काफिर वह है जिसने इस्लाम को आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से स्वीकार नहीं किया है और पाखंडी वह है जो अपने दिल से इस्लाम के खिलाफ है, लेकिन इस्लाम पर ईमान रखने का दावा करता है।[३]

नेफ़ाक़ और फ़िस्क़ मे अंतर

दिल से ईमान, ज़बान से स्वीकार, और कर्तव्यों का पालन करना ईमान कहलाता है। इस आधार पर जिस व्यक्ति के पास तीनों चीज़े है वह आस्तिक (मोमिन) है, और जिसके पास तीनों की कमी है वह काफ़िर है, और जो ज़बान से कबूल करता है (झूठा) लेकिन दिल में विश्वास नहीं करता है वह पाखंडी है, और जो दिल और जबान से ऐतेकाद रखता है, लेकिन उसको व्यवहारिक बनाने में विफल रहता है वह फ़ासिक़ है।[४]

अल्लामा तबताबाई ने भी पाखंड और विश्वास की कमजोरी को दो अलग-अलग चीजें माना, पहला यह है कि एक व्यक्ति कुछ ऐसा कहता है जिस पर वह विश्वास नहीं करता है और उसको व्यवहारिक नही बनाता है, और दूसरा यह है जो कहता है और विश्वास करता है इच्छाशक्ति और प्रयास की कमजोरी के कारण अंजाम नही देता।[५]

इस्लाम में पाखंड का स्रोत

तफसीरे नमूना के अनुसार, मदीना में पैगंबर (स) के उत्प्रवास (हिजरत) के बाद इस्लाम में पाखंड का मुद्दा उठा। मक्का में विरोधियों ने खुलकर इस्लाम के खिलाफ़ प्रचार किया; लेकिन मुसलमानों के मदीना में सत्ता हासिल करने के बाद, दुश्मन कमजोर हो गए और पैगंबर (स) और मुसलमानों के खिलाफ अपनी योजनाओं को जारी रखने के लिए, वे स्पष्ट रूप से मुसलमानों की श्रेणी में शामिल हो गए भले ही उन्होंने विश्वास नहीं किया था। [६]

पाखंडियों के बारे में सूर ए मुनाफ़ेक़ून नाज़िल हुआ। इसमें पाखंडियों का वर्णन करते हुए मुसलमानों से उनकी प्रबल शत्रुता का उल्लेख है। इसके अलावा इस सूरे में पैगंबर (स) को पाखंडियों के खतरे से सावधान रहने का आदेश दिया गया है।[७] सूर ए तौबा में कई आयतें पाखंडियों से संबंधित हैं।[८] सय्यद मुहम्मद हुसैन तबताबाई का मानना है कि क़ुरआन की आयतो को आधार बना कर ऐतिहासिक विश्लेषण होना चाहिए ताकि भ्रष्टाचार, विनाश और उन परेशानीयो को स्पष्ट किया जाए जो उन्होने इस्लामी समाज मे पैदा की।[९]

इस्लाम की शुरूआत मे पाखंडीयो का परिचय

ऐतिहासिक और हदीसो स्रोतों में इस्लाम के कुछ प्रारम्भिक पाखंडीयो को परिचित कराया गया है। मक़रीज़ी ने "इम्ता अल-अस्मा" किताब में औस और खज़रज कबीलों के पाखंडियों को पेश करते हुए इस्लाम और पैगंबर (स) के साथ दुश्मनी में उनके कार्यों को सूचीबद्ध किया। अब्दुल्लाह बिन उबैय जिसने अप्रवासियों (मुहाजिरो को) मदीना से बाहर निकालने की धमकी दी थी, और अब्दुल्लाह बिन उयैना जिसने अपने साथियों को पैगंबर (स) की हत्या करने लिए प्रोत्साहित किया था।[१०]

असहाबे अक़बा की गिनती भी मुनाफिकों में होती है। असहाब का एक समूह था जिसने तबूक के अभियान से वापस होते समय रास्ते मे पैगंबर की हत्या करने की योजना बनाई थी, लेकिन वे सफल नहीं हुए।[११] इतिहासकारों और जीवनीकारों ने 12 और 15 के बीच असहाबे अक़्बा की संख्या का उल्लेख किया है।[१२] इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) की रिवायत के अनुसार उनकी संख्या 12 थी, जिनमें से 8 कुरैश से थे।[१३] शेख़ सदूक़ एक रिवायत के आधार पर उनमें से 12 को बनी उमय्या और 5 अन्य जनजातियों से मानते है।[१४] सुन्नी विद्वान सुयूती ने असहाबे अक़्बा के नामो का उल्लेख किया है; इनमें साद बिन अबी सरह, अबू हाज़िर आराबी, जुलास बिन सुवेद, मजमा बिन जारिया, मुलैह तैमी, हुसैन बिन नुमैर, तोएयमाह बिन ओबैरिक और मुर्राह बिन रबी शामिल हैं।[१५]

पाखंडियों के साथ पैगंबर का व्यवहार

शोधकर्ताओं के अनुसार, पैगंबर (स) ने पाखंडियों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया, उसके बारे में सभी ऐतिहासिक साक्षो से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उन्होंने हमेशा मुनाफिकों के साथ यथासंभव सहनशीलता और क्षमा का व्यवहार किया।[१६] पैगंबर (स) पाखंडीयो के कुफर छिपाना से अवगत थे और कई मामलों में कुआन की आयतो ने उनको परिचित कराया है।[१७] आप (स) उन लोगों को बार-बार मना करते थे, जो पाखंडियों को मारने का प्रस्ताव रखते थे। इन सबके बावजूद सबका कहना है कि पैगंबर (स) की क्षमा और सहनशीलता ने उन्हें इस्लामी समाज की उपेक्षा करने का कारण नहीं बनाया। पैगंबर ने पाखंडियों के आंदोलनों की निगरानी करते हुए उनकी योजनाओं को विफल कर दिया और अफवाहें फैलाने वाले मुसलमानों के तथ्यों को जागरूकता में लाया। बेशक बहुत कम मामलों मे आप (स) ने पाखंडियों से निर्णायक रूप से निपटा है, जिनमें से मस्जिदे ज़रार का विनाश है।[१८]

कुरआन में पाखंडी की विशेषता

क़ुरआन और हदीसों में मुनाफिकों के लक्षण और विशेषताओ का उल्लेख हैं। उदाहरण स्वरूप तफसीरे नमूना के लेखकों के अनुसार, सूर ए मुनाफेक़ून में उनके लिए दस विशेषताओं का उल्लेख किया गया है: झूठ बोलना, झूठी कसम खाना, सच्चाई की सही समझ न होना, बाहरी सज धज और चरब ज़बानी, सच बोलने की अनम्यता, संदेह और किसी घटना का डर, सच्चाई का उपहास, भ्रष्टता और पाप, स्वयं को हर चीज का मालिक होना और दूसरों को अपना मोहचाज समझना, संव्य को ऊचा और दूसरों को नीचा दिखाना इत्यादि।[१९] तफ़सीर अल-मीज़ान मे "ख़ोशोबुन मुशन्नेदा" को सूर ए मुनाफ़ेक़ून मे पाखंडियों की निंदा व्यक्त करते हुए कहा कि यद्यपि उनके शरीर सुंदर और प्रशंसित हैं, उनके पास एक प्रेरक और मीठी और वाक्पटु जीभ है, लेकिन वे दीवार पर झुकी हुई छड़ियों की भांति आत्माहीन हैं जिनके अस्तित्व से ना कोई अच्छाई है और ना ही कोई लाभ है।[२०]

मुहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी ने नहज अल-बलाग़ा के ख़ुत्बा न 194 का उल्लेख करते हुए पाखंडियों के लिए इन विशेषताओं जैसे गुप्त विधि का उपयोग करना, बाहरी सजावट और अंदर की गंदगी, विश्वासियों के द्वेष और दूसरों के साथ अपने संबंधों में लाभ की तलाश करने को सूचीबद्ध किया है।[२१]

पाखंडी के झूठ का विश्लेषण

क़ुरआन उन पाखंडियों के शब्दों का वर्णन करता है जिन्होंने पैगंबर की रिसालत की गवाही दी, लेकिन उन्हें झूठा कहा (وَاللهُ یشْهَدُ إِنَّ الْمُنَافِقِینَ لَکاذِبُونَ वल्लाहु यशहदु इन्ना अल-मुनाफ़ेकीना ला काज़ेबुन)[२२] जिसका अर्थ है कि पैगंबर निश्चित रूप से भगवान के दूत हैं, लेकिन पाखंडी जो कि पैगंबर (स) की रिसालत की गवाही देता हैं लेकिन जो वह कहता है उस पर विश्वास नहीं करता वह झूठा है। इस आधार पर मुखबिर के झूठ में ढोंगी पकड़ा जाता है। यानी भले ही वह सही बात कहे और खबर में सच्चाई हो, लेकिन वह खुद इस पर विश्वास नहीं करता है। वास्तव में पाखंडियों का खंडन उन्हें किसी ऐसी चीज़ के बारे में बताना है जिस पर वे विश्वास नहीं करते हैं, न कि यह कि नबी की रिसालत के बारे में उनकी खबर झूठ है।[२३] तफ़सीरे नूर के लेखक के अनुसार, पाखंड वास्तव में एक व्यावहारिक झूठ है जो अविश्वास को छुपाता है और (झूठा) विश्वास को स्वीकार करता है।[२४]

पाखंडी की मनःस्थिति का दृष्टांत

सूर ए बकरा की आयत 17 से 19 के अनुसार मुनाफ़िक़ उस शख्स की तरह है जो अंधे अँधेरे में है और रास्ता नहीं पहचानता। वह चारों ओर देखने के लिए प्रकाश की तलाश करता है, वह आग जलाता है, लेकिन भगवान उसकी आग को हवा या बारिश जैसे साधनों से बुझा देते हैं, और वह फिर से उसी अंधेरे में फंस जाता है। वास्तव में, क्योंकि पाखंडी विश्वास करने का दिखावा करता है, वह धर्म के कुछ लाभों का आनंद लेता है, उदाहरण के लिए, उसको मोमेनीन से विरासत में मिलती है, उनसे शादी करता है इत्यादि, लेकिन मृत्यु के समय जब वह विश्वास के प्रभाव का आनंद लेता है, तो परमेश्वर उससे अपने प्रकाश (नूर) को दूर कर देता है और जो उसने धर्म के रूप में किया है उसे अमान्य कर देता है, और उसे दो अंधकारों के बीच रखा जाता है, एक उसका मूल अंधकार है और दूसरा वह अंधकार है जो उसके कार्यों के कारण हुआ है।

एक दूसरे उदाहरण में पाखंडी उस व्यक्ति के समान है जो अंधेरे के साथ बारिश की एक धारा से टकरा गया है, चारों ओर से भयानक गरज और बिजली ने उसे भयभीत कर दिया है, उसे रहने के लिए जगह नहीं मिल रही है। उस अँधेरे में वह सामने नहीं देखता और कुछ भी पहचान नहीं पाता, वॉली की तीव्रता उसे भागने पर मजबूर कर देती है, लेकिन अँधेरा उसे कदम से कदम मिलाकर चलने नहीं देता। यह आकाश की बिजली के प्रकाश का उपयोग करता है, लेकिन जैसे ही बिजली चली जाती है, यह फिर से अंधेरे में डूब जाता है।

इन दृष्टांतों से पता चलता है कि पाखंडी को विश्वास पसंद नहीं है, लेकिन आवश्यकता से विश्वास करने का नाटक करता है, लेकिन क्योंकि उसका दिल उसकी जबान के समान नहीं है, वह जीवन का मार्ग नहीं खोजता। ऐसा व्यक्ति हमेशा गलती करता है और फिसल जाता है, वह एक कदम के लिए मुसलमानों का साथ देता है लेकिन फिर रुक जाता है।[२५]

पाखंडियों का नरक में स्थान

सूर ए निसा की आयत न 145 के अनुसा नरक मे पाखंडी सबसे निचले स्थान (दरक अल-असफ़ल) में हैं: " إِنَّ الْمُنافِقینَ فِی الدَّرْک الْأَسْفَلِ مِنَ النَّارِ इन्ना अल-मुनाफ़ेकीना फ़ि अल-दरक अल-असफ़ले मिन अल-नार" (पाखंडी नरक के सबसे नीचे स्तर मे हैं)। यह आयत पाखंडियों के सरअंजाम का वर्णन करती है।[२६] शिया मुफस्सिर नासिर मकारिम शिराज़ी का मानना है कि क़ुरआन की आयतों के अनुसा, पाखंड कुफ्र से अधिक गंभीर है, और पाखंडी ईश्वर से सबसे दूर का प्राणी हैं।[२७]

मोनोग्राफ़ी

पाखंडी के बारे में न्यायशास्त्र और भाष्य पुस्तकों में उठाई गई चर्चाओं के अलावा, इस क्षेत्र में स्वतंत्र लेखन भी हैं, जिनमें से कुछ का इतिहास पुराना है; जैसे "सिफ्त अल-निफ़ाक़ वा ज़म अल-मुनाफ़ेक़ीन", जफ़र बिन मुहम्मद अल-फ़रयानी (207-301 हिजरी) द्वारा लिखित और "सिफत अल-निफ़ाक़ वा नाअत अल-मुनाफ़ेक़ीन मिन सुनन अल-मासूरते अन रसूलिल्लाह" अबू नईम इस्फ़हानी (334-430 हिजरी) की रचना तथा "सिफत अल-मुनाफ़ेक़ीन" इब्ने क़य्यिम जौज़ी (691-751 हिजरी) के अलावा भी कुछ अन्य किताबे लिखी गई हैः

  • अल-मुनाफ़ेकुन फ़िल क़ुरआन, सय्यद हुसैन सदर की रचना,
  • अल-निफ़ाक़ वल मुनाफ़ेक़ून फ़िल कुरआन अल-करीम, जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित,
  • ज़ाहेरातुन नेफ़ाक़ वा खबाइस अल-मुनाफ़ेक़ीन फ़ित तारीख़, अब्दुल रहमान हसन हबंका अल मैदानी द्वारा लिखित,
  • अल-मुवाजेहतो बैनन नबी (स) वा बैन अल-मुनाफ़ेक़ीन, अब्दुल करीम नैरी द्वारा लिखित,
  • सुवर अल-मुनाफ़ेक़ीन फ़िल कुरआन अल-करीम, बुखारी सबाई द्वारा संकलित,
  • नेफ़ाक़ वा मुनाफ़िक़ अज़ दीदगाहे शहीद मुताहरी, ज़हरा आशियान और फ़रिश्ते सलामी द्वारा लिखित
  • चेहर ए मुनाफ़ेक़ान दर क़ुरआन बा इस्तेफ़ादे अज़ तफसीर पुर अरज़िश नमूना, जीम. फ़राज़मंद द्वारा लिखित।

फ़ुटनोट

  1. तुरैही, मजमा अल-बहरैन, 1416 हिजरी, भाग 5, पेज 241
  2. मुताहरी, मजमूआ ए आसार, 1390 शम्सी, भाग 25, पेज 201-202
  3. मुताहरी, मजमूआ ए आसार, 1390 शम्सी, भाग 25, पेज 206
  4. हुसैनी शाह अब्दुल अज़ीमी, तफसीर इस्ना अशरी, 1363 शम्सी, भाग 13, पेज 177; क़राती, तफसीर ए नूर, 1383 शम्सी, भाग 10, पेज 50
  5. तबातबाई, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, भाग 19, पेज 249
  6. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 24, पेज 146
  7. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 19, पेज 287
  8. देखेः क़ुवैदिल, मुनाफ़ेक़ान दर क़ुरआन
  9. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1391 हिजरी, भाग 9, पेज 414
  10. मक़रीज़ी, इम्ताअ अल-अस्मा, 1420 हिजरी, भाग 14, पेज 343-364
  11. मक़रीज़ी, इम्ताअ अल-अस्मा, 1420 हिजरी, भाग 2, पेज 74
  12. वाक़ेदी, अल-मग़ाज़ी, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 1044-1045; इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1398 हिजरी, भाग 5, पेज 20
  13. तबरसी, मजमा अल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 79
  14. शेख सदूक़, अल-ख़िसाल, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 398
  15. सीवती, अल-दुर अल-मंसूर, दार अल-फ़िक्र, भाग 4, पेज 243
  16. दानिश, रसूले ख़ुदा (स) वा इस्त्रातेज़ी ईशान दर बराबरे ख़त्ते निफ़ाक़, पेज 23
  17. दानिश, रसूले ख़ुदा (स) वा इस्त्रातेज़ी ईशान दर बराबरे ख़त्ते निफ़ाक़, पेज 23
  18. जाफ़रयान, तारीख सियासी इस्लाम, 1380 शम्सी, पेज 650; दानिश, रसूले ख़ुदा (स) वा इस्त्रातेज़ी ईशान दर बराबरे ख़त्ते निफ़ाक़, पेज 21-22
  19. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 24, पेज 164
  20. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1394 हिजरी, भाग 19, पेज 281
  21. मिस्बाह यज़्दी, अख़लाक़े इस्लामी, पेज 4
  22. सूर ए मुनाफ़ेक़ून, आयत न 1
  23. तबातबाई, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, भाग 9, पेज 315 व भाग 19, पेज 279
  24. क़राती, तफसीर नूर, 1383 शम्सी, भाग 10, पेज 89
  25. तबातबाई, तरजुमा तफ़सीरे अल-मीज़ान, 1374 शम्सी, भाग 1, पेज 89
  26. मकारिम, अल-अम्सल, 1421 हिजरी, भाग 3, पेज 505
  27. मकारिम, अल-अम्सल, 1421 हिजरी, भाग 3, पेज 504

स्रोत

  • इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, बैरूत, दार अल-फ़िक्र, 1398 हिजरी
  • जाफ़रयान, रसूल, तारीखे सियासी इस्लाम, क़ुम, दलीले मा, 1380 शम्सी
  • दानिश, मुहम्मद कदीर, रसूले खुदा (स) व इस्तरातेजी ईशान दर बराबर खत्ते निफ़ाक़, मजल्ला मारफत, क्रमांक 129, 1387 शम्सी
  • सीवती, जलालुद्दीन, अल-दुर अल-मंसूर फ़ी अल-तफसीर बिलमासूर, बैरूत, दार अल-फ़िक्र
  • शेख सदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल-ख़िसाल, तस्हीहः अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, जामे मुदर्रेसीन, क़ुम, 1362 शम्सी
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, क़ुम, इंतेशारात इस्लामी, 1417 हिजरी
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, तरजुमा तफ़सीर अल-मीज़ान, क़ुम, दफ्तर इनतेशारात इस्लामी, पांचवा संस्करण, 1374 शम्सी
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा अल-बयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, मुकद्दमा मुहम्मद जवाद बलाग़ी, नासिर ख़ुसरो, तेहरान, 1372 शम्सी
  • तुरैही, फ़ख्रुद्दीन, मज्मा अल-बहरैन, तहक़ीक़ सय्यद अहमद हुसैनी, तेहरान, किताब फ़रोशी मुर्तजवी, 1416 हिजरी
  • क़वीदिल, मुस्तफ़ा, मुनाफ़ेक़ान दर क़ुरआन, पासदारे इस्लाम, क्रमांक 270, 1383 शम्सी
  • मिस्बाह यज़्दी, मुहम्मद तक़ी, अख़लाक़े इस्लामी, मजल्ला मारफ़त, क्रमांक 4, 1372 शम्सी
  • मुताहरी, मुर्तुज़ा, मजमूआ आसार, तेहरान, इंतेशारात सदरा, 1390 शम्सी
  • मक़रीज़ी, अहमद बिन अली, इम्ता अल-अस्मा बेमिल लिन नबी मन अहवाल वल अमवाल वल हफ़ेदते वल मताए, तहक़ीक़ मुहम्मद अब्दुल हमीद अलनसीमी, बैरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, 1420 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, अल-अम्सल फ़ी तफ़सीर किताब अल्लाह अल-मुंज़ल, क़ुम, मदरसा इमाम अली इब्ने अबी तालीब, (अ), पहला संस्करण, 1421 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर व जमई अज़ नवीसंदेगान, तफ़सीरे नमूना, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1374 शम्सी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम फ़ी शरह शरा ए अल-इस्लाम, तस्हीह अब्बास क़ूचानी वा अली आख़ूंदी, बैरत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, सातवां संस्करण
  • वाक़ेदी, मुहम्मद बिन उमर, अल-मग़ाज़ी, तहक़ीक़ मारसदन जूनस, बैरत, मोअस्सेसा अल-आलमी, 1409 हिजरी