क़ब्र का अज़ाब

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(क़ब्र की पीड़ा से अनुप्रेषित)

अज़ाबे क़ब्र (अरबी:عذاب القبر) अर्थात मनुष्य की मृत्यु के पश्चात आलमे बरज़ख़ मे जो पीड़ा होती है उसको कहते है। रिवायतो के अनुसार चुग़ली करना, पवित्रता और अपवित्रता (तहारत और निजासत) पर ध्यान न देना, पति का अपनी पत्नि के प्रति दुर्व्यवहार, परिवार के साथ बुरा व्यवहार, नमाज़ को महत्व न देना इत्यादि क़ब्र के अज़ाब के कारण है; दूसरी ओर इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत, नजफ़ मे दफ़न होना, पैगंबर (स) के परिवार वालो से मोहब्बत, बृहस्पतिवार के दिन ज़ोहोर से लेकर शुक्रवार के ज़ोहर के बीच निधन होना इत्यादि क़ब्र के अज़ाब मे कमी होने के प्रभावित कारणो मे से है।

वासिल बिन अता के शिष्य ज़रार बिन उमर को छोड़कर सभी मुसलमान अज़ाबे क़ब्र पर विश्वास करते है। मुतकल्लेमीन (धर्मशास्त्रियो) ने क़ब्र के अज़ाब को क़ुरआन के सूरा ए ग़ाफ़िर की आयत न 11 से साबित किया है। सज़ा अर्थात अज़ाब मिसाली शरीर पर होगा या दुनयाई शरीर पर इस बारे मे मतभेद है, जबकि अधिकांश धर्मशास्त्रियो का मानना है कि क़ब्र का अज़ाब बरज़ख़ी शरीर पर होगा।

सुन्नी प्रसिद्ध विद्वान मुहम्मद बिन इस्माईल बुख़ारी ने अपनी सहीह किताब मे पैगंबर (स) से एक रिवायत बयान की है कि मुर्दे पर उसके परिवार वालो के रोने के कारण क़ब्र का अज़ाब होता है। सहीह मुस्लिम के व्याख्ता कर्ता यहया बिन नवावै के अनुसार सुन्नी विद्वानो ने इस रिवायत की तावील की है; जीवित लोगो के रोने से मुर्दो पर अज़ाब क़ुरआन के सूरा ए फ़ातिर की आयत न 18 जिसमे कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे का बोझ नही उठाता के अनुकूल नही है। इसी तरह आयशा के अनुसार इस रिवायत को पैगंबर (स) से सही रूप से वर्णन नही किया गया है।

शब्दार्थ और स्थान

मनुष्य की मृत्यु के पश्चात आलमे बरज़ख़ मे जो पीड़ा होती है उसको क़ब्र का अज़ाब कहते है। आलमे क़ब्र ही आलमे बरज़ख़ है जोकि मुर्दे को दफ़न करने के साथ शुरू हो जाता है और क़यामत तक जारी रहता है।[१] रिवायतो के अनुसार, अग्नि की आंच, ज़मीन का भीचना, जानवरो का काटना और वहशत का अधिक होना क़ब्र के अज़ाब के रूप मे परिचित कराए जाते है।[२]

मन ला यहज़ोरोहुल फ़क़ीह किताब मे इमाम सादिक़ (अ) की रिवायत के आधार पर क़ब्र का अज़ाब उन सभी को सम्मिलित करता है जो दुनिया से जाता है चाहे वह दफ़न न भी हो।[३] बिहार उल अनवार किताब मे इमाम सादिक़ (अ) की एक दूसरी रिवायत के अनुसार अधिकांश लोगो को क़ब्र के अज़ाब का सामना है।[४]

मासूमीन (अ) की बताई हुई दुआ और मुनाजात मे क़ब्र के सख्त अज़ाब से पनाह मिली है।[५] जैसे कि पैगंबर (स) ने अपनी बेटी रुक़य्या को दफ़्न करने के बाद क़ब्र का अज़ाब हटाने के लिए दुआ की।[६] या फ़ातेमा बिन्ते असद को दफ़न करने से पहले खुद क़ब्र मे लेट गए ताकि जो वादा दिया था उसके अनुसार खुदा फ़ातिमा को क़ब्र के अज़ाब से सुरक्षित रखे।[नोट १] [७] हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (अ) ने भी हज़रत अली (अ) को वसीयत की थी कि उन्हे दफ़्न करने के बाद क़ब्र पर कुरआन पढ़े और दुआ करे।[८]

हदीस के ग्रंथो मे कब्र से संबंधित हदीसों को एक विशेष अध्याय मे एकत्र किया गया है, और अल्लामा मजलिसी ने इस संबंध में "अहवालुल बरज़ख़े वल क़ब्रे वा अज़ाबोहू वा सवालोहू वा साएरे मा यताअल्लक़ो बेज़ालिक" अध्याय में बिहार उल अनवार मे 128 हदीसे बयान की है।[९]

कारण

एलालुश शराय नामक किताब मे इमाम अली (अ) की रिवायत के आधार पर चुग़ली करना, तहारत और निजासत से लापरवाही और पति का पत्नि से दुर्व्यवहार इत्यादि क़ब्र के अज़ाब के कारण है।[१०]

اَللَّهُمَّ إِنِّی أَعُوذُ بِک مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ وَ مِنْ ضِیقِ الْقَبْرِ وَ مِنْ ضَغْطَةِ الْقبر

अल्लाहुमा इन्नी आऊज़ो बेका मिन अज़ाबिल क़ब्र व मिन ज़ीकिल क़ब्र व मिन ज़ग़ततिल क़ब्र[११] (अनुवाद:हे ईश्वर, मैं क़ब्र के आज़ाब और क़ब्र की तंगी और क़ब्र के दबाव (फ़ेशार) से तेरी पनाह मांगता हूं।

शेख़ अब्बास क़ुम्मी ने उपरोक्त रिवायत की ओर इशारा करते हुए तीनो बातो को क़ब्र के अज़ाब का मुख्य कारण माना है।[१२] और दूसरी चीज़े जोकि क़ब्र के अज़ाब का कारण बनती है निम्नलिखित हैः

  • अनैतिकता: पैगंबर (स) की एक रिवायत के अनुसार, साद बिन माज़ पर कब्र मे अज़ाब का कारण उनके परिवार के साथ अनैतिकता थी।[१३]
  • नमाज़ को महत्व न देना: अल-मवाएज़ुल अदादिया अली मिश्कीनी नामक किताब मे बयान की गई रिवायत के आधार पर नमाज़ अदा करने में सुस्ती करना क़ब्र के अज़ाब और क़ब्र के तंग होने का कारण है।[१४]
  • अल्लाह की नेमतों को बर्बाद करना:[१५] एक हदीस के अनुसार, आस्तिक की कब्र की पीड़ा उन नेमतों का कफ़्फ़ारा है जो उसने बर्बाद कर दी है।[१६]

इसके अलावा, रिवायतो के अनुसार, ग़ीबत करना[१७] आइम्मा ए मासूमीन (अ) की विलायत का इक़रार न करना,[१८] पीड़ितों की मदद नहीं करना,[१९] और बिना वुज़ू के नमाज़ पढ़ना[२०] कब्र की पीड़ा का कारण बनता है। जामे अल-सआदात किताब में मौत और क़ब्र के अज़ाब को गंभीर बताया गया है जिस व्यक्ति मां उससे नाखुश हो।[२१]

क़ब्र के अज़ाब को कम करने वाली चीज़े

रिवाई ग्रन्थों में क़ब्र के अज़ाब से मुक्ति या उसे कम करने के लिए कारकों का उल्लेख मिलता है, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • अहले-बैत (अ) से मोहब्बत: बिहार उल-अनवार में पैगंबर (स) की रिवायत के अनुसार, पैगंबर (स) और उनके अहले-बैत से मोहब्बत सात जगहों पर लाभदायक है; उनमे से एक क़ब्र मे ।[२२]
  • विशेष मुस्तहब नमाज़ो का पढ़ना: सय्यद इब्ने ताऊस की किताब इक़बालुल आमाल किताब में बयान की गई मासूमीन (अ) की रिवायत के आधार पर रजब और शाबान (इस्लामी कैलेंडर के सातवें और आठवें) महीनों में विशेष मुस्तहब नमाज़ को पढ़ने से क़ब्र का अज़ाब दूर हो जाता है।[२३]
  • नजफ़ में दफ़नाया जाना: इरशादुल-क़ुलूब किताब में हसन बिन मुहम्मद दैलमी के अनुसार, जैसा कि हदीसों में उल्लेख किया गया है, कि नजफ़ की मिट्टी की एक विशेषता यह है कि नजफ़ मे दफ़नाए जाने वाले व्यक्ति से क़ब्र का अज़ाब और मुनकिर व नकीर के सवालात उठा लिए जाते है।[२४]
  • कुरआन का पढ़ना: रिवायती स्रोतो मे सूरो की फ़ज़ीलतो के बारे में हदीसें हैं, जिनके अनुसार क़ुरआन के कुछ सूरों को पढ़ने से क़ब्र का अज़ाब दूर हो जाता है; उनमें से हर शुक्रवार को सूरा ए ज़ुख़रफ़ और सूरा ए निसा की तिलावत करते रहना[२५] और सोते समय सूरा ए तकासुर की तिलावत करना है।[२६]
  • क़ब्र में मुर्दों के पास दो गीली लकड़ी रखना: अल-काफ़ी किताब मे इमाम सादिक़ (अ) की रिवायत के आधार पर, क़ब्र में मुर्दों के साथ दो गीली लकड़ी (जरीदतैन) रखने का फ़लसफ़ा क़ब्र के अज़ाब को ख़त्म करना है।[२७] एक रिवायत के आधार पर दफनाने के बाद मृत व्यक्ति की कब्र पर पानी छिड़कना कब्र का अज़ाब ख़त्म होने का कारण बनता है।[२८]

कुछ दूसरी चीज़े जो हदीसों के अनुसार कब्र का अज़ाब ख़त्म होने या कम करने का कारण बनती हैं:

शरह चेहल हदीस नामक किताब मे इमाम ख़ुमैनी के अनुसार, क़ब्र और आलमे बरज़ख की लंबाई दुनिया और सांसारिक बंधन पर निर्भर है, दुनियावी संबंध जितने कम होंगे, बरज़ख और क़ब्र उतनी ही उज्जवल और व्यापक होगी और उसमे व्यक्ति का विराम उतना ही कम होगा।[३७]

क्या मृतक के परिजनों का रोना उसकी कब्र के अज़ाब का कारण बनता है?

सुन्नी हदीसी किताबो में एक रिवायत पैगंबर (स) से मंसूब की गई है जिसके अनुसार मृत व्यक्ति पर उसकी कब्र के आसपास के लोगों के रोने से अज़ाब होता है।[३८] इस हदीस के रावी मुसलमानो के दूसरे खलीफा और अब्दुल्लाह बिन उमर है, जिन्होंने आइशा के अनुसार इसे सही रूप से नक़ल नही किया गया है;[३९] पैगंबर (स) फ़रमाया: "मृतकों को उनके पापों के लिए कब्र में दंडित किया जाता है, जबकि उनके परिजन भी उस समय उनके लिए रोते हैं"।[४०] सहीह मुस्लिम के व्याख्याकर्ता नवावै के अनुसार, सुन्नी विद्वान उक्त कथन की व्याख्या के बारे में असहमत हैं; कुछ ने इसे मृतकों से संबंधित माना है, जिन्होंने अपनी मृत्यु के बाद उन पर रोने के लिए वसीयत की थी, और दूसरों ने, जीवित लोगों के कर्मों के कारण मृतकों की पीड़ा को "وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ वला तज़ेरो वाज़ेरतुन विज़्रा उख़रा; कोई भी दूसरे के (पाप) का बोझ नहीं उठाता"[४१] के अनुकूल नही मानते।[४२]

बरज़खी या दुनयावी शरीर पर अज़ाब?

क्या कब्र का अज़ाब बरज़खी शरीर से संबंधित है या दुनयावी शरीर से इस बारे में मतभेद है; यह कहा गया है कि मुतकल्लेमीन और फ़लसफ़ीयो की प्रचलित मान्यता के अनुसार, मृत्यु के बाद मानव आत्मा एक मिसाली शरीर (दुनयावी शरीर की तरह एक शरीर है, इस अंतर के साथ कि इसमें पदार्थ और इसके गुण नहीं होते हैं) से संबंधित है।[४३] हालांकि इसका श्रेय सय्यद मुर्तजा और इमामिया धर्मशास्त्रियों में से एक सदीदुद्दीन हुम्सी राज़ी को दिया गया है, जिनका मानना है कि मृत्यु के बाद, आत्मा शरीर में वापस आ जाती है और कब्र के दबाव को दुनयावी शरीर द्वारा समझा जाता है।[४४] अब्दुर रज़्ज़ाक़ लाहीजी के कथन अनुसार जो लोग इस बात को मानते है कि आत्मा बाक़ी नही रहती, वो क़ब्र के अज़ाब को शरीर से जोड़ते है, लेकिन जो लोग मृत्यु के बाद आत्मा के जीवित रहने मे विश्वास करते है उनका मानना है कि मृत्यु के बाद आत्मा शरीर मे वापस आ जाती है और क़ब्र का अज़ाब आत्मा से विशिष्ट है, या यह कि इसमें आत्मा और शरीर दोनों शामिल हैं।[४५]

अश्अरी स्कूल के संस्थापक अबुल हसन अश्अरी के अनुसार, क़ब्र की सज़ा के बारे में मुसलमानों में मतभेद है; उन्होंने अधिकांश मुसलमानों को कब्र की सजा में विश्वास करने वाला माना और इसके लिए मोअतज़ेला और ख्वारिज को जिम्मेदार ठहराया जो कब्र की सजा में विश्वास नहीं रखते।[४६] लेकिन इब्ने अबिल-हदीद ने क़ाज़ीउल कुज़ात से तबक़ातुल मोअतज़ेला मे नक़ल किया, वासिल बिन अता के शिष्य ज़रार बिन उमर क़ब्र के अज़ाब में विश्वास नही रखते। उन्होंने इसे सभी मोअतज़ेली की ओर निसबत दी है, जबकि मोअतज़ेला क़ब्र के अज़ाब को जायज़ मानते है, हालाँकि उनमें से कुछ क़ब्र की सज़ा को नहीं मानते, लेकिन उनमें से ज़्यादातर का मानना है कि क़ब्र की सज़ा मौजूद है, इस अंतर के साथ कि वे इसे शरीर से नहीं आत्मा से संबंधित मानते हैं।[४७]

क़ुरआनिक तर्क

शेख़ बहाई के माध्यम से अल्लामा मजलिसी के अनुसार धर्मशास्त्रीय (कलामी) पुस्तकों मे:

अनुवाद: परवरदिगार! तूने हमें दो बार मारा और दो बार हमें जिंदा किया।"[४८] अज़ाबे क़ब्र साबित करने के लिए इस प्रकार दलील दी जाती है; कि पहली मौत दुनिया में और दूसरी मौत कब्र में है, इसी तरह पहली बार क़ब्र मे और दूसरी बरा क़यामत मे जिंदा होना है।[४९] अल्लामा मजलिसी के अनुसार कुछ मुफ़स्सेरीन जैसे अब्दुल्लाह बिन उमर बैज़ावी और फ़ज़्ल बिन हसन तबरसी ने जवामेउल जामेअ किताब मे उल्लेखित आयत में दो मौतों और दो जीवन अर्थात गर्भाधान से पहले मौत और दुनिया में मौत इसी तरह गर्भाधान के बाद जीवन और क़यामत मे जीवन जाना है।[५०] इसी प्रकार उन्होने पहले वाले दृष्टिकोण का फ़ज़्ल बिन हसन तबरसी की मजमाउल बयान और फ़ख्र राज़ी को इसका श्रेय दिया है।[५१]

अल्लामा मजलिसी ने:

अनुवादः जो कोई भी मेरे (अल्लाह) की याद से मुह फेरेगा, बस उसकी जीविका तंग हो जाएगी और कयामत मे हम उसको अंधा उठाएंगे।"[५२] आयत में "मईशतन ज़नक़ा" को अज़ाबे क़ब्र से तफसीर किया है।[५३]

छठी शताब्दी मे लिखी जाने वाली "मजमा उल-बयान" में कुछ मुफ़स्सिरो द्वारा यह उल्लेख किया गया है कि:

अनुवादः उनको दो बार अज़ाब करेंगे और अंत में उन्हें नरक की कठोर अनन्त सजा में वापस कर दिया जाएगा।[५४] आयत मे दो मे से एक बार अज़ाब को अज़ाबे क़ब्र और दूसरी बार अज़ाब को क़यामत मे अज़ाब से तफ़सीर किया गया है।[५५] शिया मुफ़स्सिर अल्लामा तबातबाई (मृत्यु 1360 शम्सी) के अनुसार " النَّارُ يُعْرَضُونَ عَلَيْهَا غُدُوًّا وَعَشِيًّا وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ أَدْخِلُوا آلَ فِرْعَوْنَ أَشَدَّ الْعَذَابِ अन्नारो योअरेज़ूना अलैहा ग़ोदोवन वाअशीयन वा यौमा तक़ूमुस साअतो अदख़ेलू आला फ़िरऔना अशद्दल अज़ाबे, अनुवादः हर सुबह और शाम आग उन पर उजागर की जाएगी, और दिन क़यामत होगी तो वो आवाज आएगी कि फ़िरऔन के परिवार को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए।[५६] आयत इस बात पर दलालत करती है कि फ़िरऔन के परिवार पर दो बार अज़ाब होगा, पहले उन पर आग भड़काई जाएगी और फिर उन्हे आग मे डाला जाएगा, आग का भड़काया जाना क़यामत से पहले और यही अज़ाब बरज़ख मे (अज़ाबे क़ब्र) है।[५७]

मोनाग्राफ़ी

अज़ाबे क़ब्र का उल्लेख शेख अब्बास क़ुमी ने "मनाज़ेलुल आख़ेरत", मुहम्मद शुजाई ने "उरूजे रूह", नेमातुल्लाह सालेही हाजीआबादी ने "इंसान अज़ मर्ग ता बरज़ख़" नामक किताबों में किया गया है। इसी तरह अज़ाबे क़ब्र से संबंधित पुस्तकें लिखी गई हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • तहक़ीक़ी ए क़ुरआनी वा रिवाई दरबारा ए अज़ाबे क़ब्रः महदी फ़रबूदी की रचना जोकि 1368 शम्सी मे प्रकाशित हुई और इसी प्रकार "अज़ाबहाए क़ब्रः तहक़ीक़ी ए क़ुरआनी वा रिवाई दरबारा ए आलमे क़ब्र" शीर्षक के अंतर्गत भी प्रकाशित हुई है।[५८]
  • आलमे क़ब्रः राज़े बुज़ुर्गः जाबिर रिज़वानी द्वारा लिखित।[५९]

संबंधित लेख

नोट

  1. ذَكَرْتُ ضَغْطَةَ الْقَبْرِ فَقَالَتْ وَا ضَعْفَاهْ فَضَمِنْتُ لَهَا أَنْ يَكْفِيَهَا اللهُ ذَلِكَ فَكَفَّنْتُهَا بِقَمِيصِي وَ اضْطَجَعْتُ فِي قَبْرِهَا لِذَلِكَ ज़करतो ज़ग़तातल क़ब्रे फ़क़ालत वज़ाअफ़ाहो फ़ज़मिनतो लहा अय यकफ़ीहल्लाहो ज़ालेका फ़कफ़नतोहा बेकमीसी वज़तज्अतो फ़ी क़ब्रेहा लेज़ालिका, अनुवादः मैंने कब्र के फिशार को याद किया, उसने कहा: हाय मेरी कमजोरी है, और मैंने गारंटी दी कि अल्लाह उसे आराम देगा, इसलिए मैंने उसे अपनी कमीस में लपेट लिया और उसकी कब्र में लिटा दिया

फ़ुटनोट

  1. अल्लामा तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 15, पेज 68 अरदबेली, तक़रीरात ए फ़लसफा, 1385 शम्सी, भाग 3, पेज 239-240
  2. क़ुमी, मनाज़ेलुल आखेरा, मोअस्सेसा अल-नश्र अल-इस्लामी, पेज 137-149
  3. शेख सुदूक़, मन ला यहज़ोरोहुल फ़क़ीह, 1367 शम्सी, भाग 1, पेज 279
  4. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 261
  5. देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 526 इब्ने ताऊस, इक़बालुल आमाल, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 338, 439
  6. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 261
  7. कुलैनी, उसूले काफ़ी, भाग 1, पेज 454
  8. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 79, पेज 27
  9. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 0-282
  10. शेख सुदूक़, एलालुश शराए, 1385 शम्सी, भाग 1, पेज 310
  11. तबरसी, मकारेमुल अखलाक़, दुआ ए हर सुबह वा शाम, 1370 शम्सी, पेज 279
  12. क़ुमी, मनाज़ेलुल आख़ेरा, मोअस्सेसा अल-नश्र अल-इस्लामी, पेज 138
  13. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 261
  14. मिश्कीनी, तहरीरुल मवाइज़िल अददिया, 1382 शम्सी, पेज 23-233
  15. शेख सुदूक़, एलालुश शराए, 1385 शम्सी, भाग 1, पेज 309
  16. शेख सुदूक़, अल-अमाली, 1376 शम्सी, पेज 50
  17. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 245
  18. देखेः अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 262
  19. शेख सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 58
  20. शेख सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 58 एलालुश शराए, 1385 शम्सी, भाग 1, पेज 309
  21. नराक़ी, जामेउस सादात, 1383 शम्सी, भाग 2, पेज 263
  22. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 7, पेज 248
  23. देखेः सय्यद इब्ने ताऊस, इक़बालुल आमाल, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 629,664, 656,665, 683 और 723
  24. दैलमी, इरशाद उल क़ुलूब, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 439
  25. क़ुमी, सफ़ीनातुल बिहार, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 397
  26. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 89, पेज 336
  27. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 3, पेज 103
  28. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 3, पेज 200
  29. इब्ने क़ूलावह, कामिल उज़ ज़ियारात, 1356 शम्सी, पेज 142-143
  30. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 3, पेज 321
  31. क़ुमी, सफ़ीनातुल बिहार, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 397
  32. इब्ने ताऊस, इक़बालुल आमाल, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 397
  33. शेख सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1367 शम्सी, भाग 1, पेज 83
  34. मिश्कीनी, मवाइजुल अददिया, 1382, पेज 75
  35. मिश्कीनी, मवाइजुल अददिया, 1382, पेज 75
  36. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 6, पेज 3-4
  37. इमाम ख़ुमैनी, शरह चेहल हदीस, 1380 शम्सी, पेज 124
  38. बुख़ारी, सहीहुल बुख़ारी, 1422 हिजरी, भाग 2, पेज 80 बाबो मा नोकेरहू मिनल निहायते अलल मय्यते, हदीस 1391-1292
  39. नोववी, अल-मनाहिज शरह सहीह मुस्लिम बिन अल-हुज्जाज, 1392 हिजरी, भाग 6, पेज 228
  40. नोववी, अल-मनाहिज शरह सहीह मुस्लिम बिन अल-हुज्जाज, 1392 हिजरी, भाग 6, पेज 228
  41. सूरा ए अनआम, आयत न 164
  42. नोववी, अल-मनाहिज शरह सहीह मुस्लिम बिन अल-हुज्जाज, 1392 हिजरी, भाग 6, पेज 228
  43. मलाएरी, नजरयेहाए बदन बरज़खी-बररसी व नक़्द, पेज 109-115
  44. मलाएरी, नजरयेहाए बदन बरज़खी-बररसी व नक़्द, पेज 113-115
  45. लाहीजी, गैहरे मुराद, 1383 शम्सी, पेज 649-650
  46. अशअरी, मकालातुल इस्लामीयीन, 1400 हिजरी, पेज 430
  47. इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलागा, 1404 हिजरी, भाग 6, पेज 273
  48. सूरा ए ग़ाफ़िर, आयत न 11
  49. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 211
  50. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 214
  51. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 214
  52. सूरा ए ताहा, आयत न 124
  53. अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 6, पेज 215
  54. सूरा ए तौबा, आयत न 101
  55. तबरसी, मजमा उल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 100
  56. सूरा ए ग़ाफ़िर, आयत न 46 57. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हि
  57. जरी, भाग 17, पेज 335
  58. आलमे क़ब्र, साइट बाज़ार किताब
  59. आलमे क़ब्र, राज़े बुज़ुर्ग, साइट किताब खाना मिल्ली

स्रोत

  • क़ुरआन
  • अरदबेली, सय्यद अब्दुल ग़नी, तक़रीरात फ़लसफ़ा, तेहरान, मोअस्सेसा तंज़ीम व नश्र आसारे इमाम ख़ुमैनी, 1385 शम्सी
  • इब्ने अबि हदीद, अब्दुल हमीद बिन हैबातुल्लाह, शरह नहजुल बलागा, संशोधन मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल, क़ुम, मकतबा आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी, 1404 हिजरी
  • इब्ने ताऊस, अली बिन मूसा, इक़बालुल आमाल, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, 1409 हिजरी
  • इब्ने क़ूलावह, जाफ़र बिन मुहम्मद, कामिल अल-ज़ियारात, संशोधन अब्दुल हुसैन अमीनी, नजफ़, दार उल मुर्तज़वीया, 1356 शम्सी
  • अश्अरी, अबुल हसन, मक़ालातुल इस्लामीयीन वा इख़्तेलाफ़िल मुसल्लीन, जर्मनी-वेसबाडन, फ्रांस शताईज़, 1400 हिजरी
  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, शरह चेहेल हदीस, क़ुम, मोअस्सेसा तंज़ीम व नश्रे आसारे इमाम ख़ुमैनी, 1380 शम्सी
  • बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सहीहुल बुख़ारी, शोध मुहम्मद जुहैर बिन नासिर अल-नासिर, दार उत तौक़, 1422 हिजरी
  • दयलमी, हसन बिन मुहम्मद, इरशादल क़ुलूब एला सवाब, क़ुम, अल-शरीफ़ अल-रज़ी, क़ुम, 1412 हिजरी
  • शेख सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल-अमाली, तेहरान, किताबची, 1376 शम्सी
  • शेख सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, तेहरान, नश्रे सुदूक़, 1367 शम्सी
  • शेख सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, एलालुश शराए, क़ुम, किताब फरोशी दावरी, 1385 शम्सी
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफसीरिल कुरआन, मुकद्दमा मुहम्मद जवाद बलाग़ी, तेहरान, इंतेशारात नाशिर खुसरू, 1372 शम्सी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-अमाली, संशोधन मोअस्सेसा अल-बेसत, क़ुम, दार उश सक़ाफ़ा, क़ुम 1414 हिजरी
  • क़ुमी, शेख अब्बास, सफ़ीनातुल बिहार वा मदीनातुल हकम वल आसार, दफ्तरे इंतेशारत इस्लामी, 1378 शम्सी
  • क़ुमी, शेख अब्बास, मनाज़ेलुल आख़ेरा, मनाज़ेलुल आख़ेरत वल मतालिबुल फ़ाख़ेरा, शोध सय्यद यासीन मूसवी, मोअस्सेसा अल-नश्र अल-इस्लामी
  • आलमे क़ब्र, राज़े बुज़ुर्ग, साइट किताब खाना मिल्ली, तारीख वीजीट 10 मेहेर 1399 शम्सी
  • आलमे क़ब्र, साइट बाजार किताब, तारीख वीजीट 10 मेहेर 1399 शम्सी
  • अल्लामा तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, क़ुम, मकतबा अल-नश्र अल-इस्लामी, 1417 हिजरी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, काफ़ी, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, 1407 हिजरी
  • लाहीजी, अब्दुर रज़्ज़ाक़, गौहरे मुराद, मुकद्दमा ज़ैनुल आबेदीन क़ुरबानी, तेहरान, साया, 1383 शम्सी
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर बिन मुहम्मद तक़ी, बिहार उल अनवार, संशोधन जमई अज़ मोहक़्क़ेक़ान, बैरूत, दार एहयाइत तुरास अल-अरबी, 1403 हिजरी
  • मिश्कीनी अरदबेली, अली, तहरीर अल-मुवाएज़िल अददिया, क़ुम, इंतेशारत अल-हादी, 1382 शम्सी
  • मलाएरी, मूसा, नज़रयेहाए बदन बरज़खी-बररसी वा नक़द, पुजूहिश दीनी, क्रमांक 21, जमिस्तीन 1389 शम्सी
  • नराक़ी, मुहम्मद महदी, जामे उस सादात, क़ुम, मोअस्सेसा मतबूआती इरानीयान, 1383 शम्सी
  • नूरी, मिर्ज़ा हुसैन, मुस्तदरकुल वसाइल, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत लेएहयाइत तुरास, 1407 हिजरी
  • नौवी, याह्या बिन शरफ, अलमनाहिज फ़ी शरह सहीह मुस्लिम बिन अल-हज्जाज, बैरूत, दार एहयाइत तुरास अल-अरबी, 1392 हिजरी