wikishia:Good articles/2023/33
धर्मत्याग एक न्यायशास्त्रीय शब्द (फ़िक़्ही इस्तेलाह) है और न्यायविदो (फ़ुक़्हा) ने इसे इस्लाम से ख़ारिज होने के रूप में परिभाषित किया हैं। मुसलमान जिसने इस्लाम धर्म को छोड़ दिया है, उसे धर्मत्यागी (मुरतद्द) कहा जाता है। न्यायशास्त्रीय (फ़िक़्ही) पुस्तको के शुद्धता (तहारत), सलात (नमाज़), ज़कात, सौम (रोज़ा), हज, व्यापार (तेजारत), निकाह और विरासत जैसे विभिन्न अध्यायो मे चर्चा की जाती है। कुछ न्यायशास्त्रीय पुस्तकों में, "किताब अल-मुर्तद्द" नामक एक स्वतंत्र खंड धर्मत्याग (इरतेदाद) से समर्पित है।
मुरतद्द् के दो प्रकार हैं और प्रत्येक के अपने नियम हैं: मुरतद्दे फ़ितरी वह है जोकि मुसलमान पैदा हुआ है; अर्थात् उसके माता-पिता या उनमें से कोई एक मुसलमान है। फिर वह इस्लाम से ख़ारिज हो जाए। जबकि मुरतद्दे मिल्ली वह है जो पहले गैर-मुस्लिम था फिर मुस्लमान हुआ उसके बाद इस्लाम से निकल जाए।
कथन द्वारा धर्मत्याग तब साबित होता है जब कोई ऐसी बात कहे जो इस्लाम से ख़ारिज होने की ओर इशारा करे। जैसे कोई कहे कि ईश्वर का अस्तित्व (अल्लाह वुजूद नही रखता) नहीं है, या हज़रत मुहम्मद (स) पैगंबर नहीं हैं, या इस्लाम सत्य का धर्म नहीं है। धर्म की आवश्यकता (ज़रूरियात ए दीन) को नकारना भी इसी प्रकार है। धर्म की आवश्यकता जैसे कि नमाज़, रोज़ा और हज की बाध्यता (वुजूब); जिन्हे साबित करने के लिए किसी तर्क की आवश्यकता नहीं है और सभी मुसलमान इसे स्वीकार करते हैं।
कर्म द्वारा धर्मत्याग का अर्थ है कि कोई व्यक्ति ईशनिंदा जानते हुए जान बूझकर ईशनिंदा करे। जैसे मूर्ति को सज्दा करे, चंद्रमा या सूर्य की इबादत करे या काबा जैसे धार्मिक पवित्र स्थानों का "खुलेआम अपमान" करे।
आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकरानी के अनुसार, एकेश्वरवाद (तौहीद) और नबूवत के बारे में संदेह (शक) इंकार की ओर नही ले जाता तब तक इरतेदाद (धर्मत्याग) का कारण नही है। अल्लामा शेरानी की व्याख्या के अनुसार, "एक शोधकर्ता जो सबूत और तर्क के साथ सच्चे धर्म को खोजने की कोशिश करता है और इस अवधि के दौरान उसे संदेह का सामना करना पड़ता है लेकिन अपनी ज़बान से इंकार नही करता तो अनुसंधान अवधि के दौरान संदेह उसके कुफ्र और इरतेदाद (अविश्वास और धर्मत्याग) का कारण नहीं बनता।
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