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
मक़ामें महमूद, (अरबी:مقام محمود) मक़ामे महमूद का अर्थ है एक उच्च और प्रशंसित पद, जो ईश्वर ने इस्लाम के पैगंबर (स) को नमाज़े शब और रात में जाग कर इबादत के कारण दिया था। सूर ए इसरा की आयत 79 के तहत मुफ़स्सेरीन ने इस मक़ाम की व्याख्या पैगंबर (स) के शिफ़ाअत के मक़ाम के रूप में की है।
कुछ व्याख्या करने वालों ने मक़ामे महमूद को सभी प्राणियों से पैगंबर (स) के श्रेष्ठ होने और भगवान के साथ उनकी अंतिम स्तर पर निकटता का अर्थ माना है। बेशक, इन दोनो अर्थों में मक़ामे शिफ़ाअत शामिल है। ज़ियारते आशूरा के वाक्य के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) को भी मक़ामे महमूद प्राप्त है।
मुस्लिम विद्वानों और मुफ़स्सेरीन ने मक़ामे महमूद को एक उच्च और प्रशंसनीय मक़ाम के रूप में माना है जो कि तहज्जुद (इबादते के लिये रात में जागने और नमाज़े शब पढ़ने) के कारण भगवान ने पैगंबर (स) को दिया है। मक़ामे महमूद के अर्थ के बारे में विद्वानों के जो कथन पाये जाते है उन सब में मक़ामे शिफ़ाअत समान है:
मक़ामे शिफ़ाअत: बहुत से शिया और सुन्नी मुफ़स्सेरीन, हदीसों का उपयोग करते हुए, मक़ामें महमूद को वही मक़ामे शिफ़ाअत मानते हैं। उनमें से एक हदीस के आधार पर, पैगंबर (स) ने सूर ए इसरा के 79 वी आयत में मक़ामें महमूद को उसी मक़ाम के रूप में माना है जिसमें वह अपनी उम्मत (क़ौम) के लिए शिफ़ाअत करेगें। या उस हदीस के अनुसार जो इमाम बाक़िर (अ) या इमाम सादिक़ (अ) से इस आयत की व्याख्या के बारे में ज़िक्र हुई है, उसमें मक़ामें महमूद को मक़ामें शिफ़ाअत से परिभाषित किया गया है। मुफ़स्सेरीन के एक समूह ने इस मक़ाम को शिफ़ाअत की उच्च श्रेणी से उल्लेख किया है। सैय्यद मुहम्मद हुसैन तेहरानी (1345-1416 हिजरी) के अनुसार, मक़ामे शिफ़ाअत जो ईश्वर ने पैगंबर (स) को अता किया था, वह मक़ामे महमूद के कारणवश है। उनके दृष्टिकोण से, मक़ामे महमूद में सभी सुंदरता (जमाल) और पूर्णता (कमाल) मौजूद हैं और यह पद पैगंबर (स) को पूर्ण रूप से और बिना किसी क़ैद और शर्त दिया गया था। इस मायने में कि हर प्रशंसा करने वाले की प्रशंसा चाहे वह किसी भी प्रशंसा होने वाले के लिये हो, उसी से संबंधित है।
प्राणियों में श्रेष्ठ: मुफ़स्सेरीन का एक समूह मक़ामे महमूद को एक ऐसे मक़ाम के रूप में मानता है जहां पैगंबर (स) का सभी प्राणियों पर अधिकार है और वह जो कुछ भी चाहता है, जिसमें मक़ामे शिफ़ाअत भी शामिल है, उसे भगवान द्वारा दिया जाता है।
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