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हज़रत अब्बास (अ) के हरम का गुंबद, कर्बला
हज़रत अब्बास (अ) के हरम का गुंबद, कर्बला

अब्बास बिन अली बिन अबी तालिब (अ) (26-61 हिजरी) अबूल-फ़ज़्ल के नाम से मशहूर इमाम अली (अ) के पांचवे और उम्मुल बनीन के बड़े बेटे है। आपके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा कर्बला की घटना मे आपकी उपस्थिति और आशूर के दिन आपकी शहादत है। 61 हिजरी के मोहर्रम से पहले आपके जीवन और परिस्थितियों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, सिवाय इसके कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार, वह सिफ़्फीन के युद्द में मौजूद थे।

कर्बला की घटना मे आप इमाम हुसैन (अ) की सेना के सेनापति और धव्जधारक थे। इमाम हुसैन (अ) के साथीयो के लिए फ़ुरात से पानी लाए। आप और आपके भाईयो ने उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के दो शरण पत्रो को नकारते हुए इमाम हुसैन (अ) की सेना मे रह कर युद्ध किया और शहीद हुए। मक़ातिल की कुछ किताबो ने लिखा है कि आपकी दोनो भुजाए कट गई थी और सिर पर गुर्ज़ लगा था और इसी हालत मे शहीद हुए। कुछ किताबो मे आप के लाशे पर इमाम हुसैन (अ) के गिरया करने का भी उल्लेख किया है।

कुछ स्रोतो मे आपका क़द लंबा और सुंदर चेहरा लिखा है। शियो के इमामो ने स्वर्ग में हज़रत अब्बास के लिए उच्च स्थान बयान किया है, और बहुत सी करामातो का भी उल्लेख हुआ है उनमे से एक हाजत रवाई है। यहा तक कि ग़ैर शिया (सुन्नी), गैर मुस्लिम (कुफ्फ़ार) की भी हाजत रवाई करते है।

शिया हज़रत अब्बास के लिए एक बड़े आध्यात्मिक मक़ाम के क़ायल हैं; वो उन्हे बाबुल-हवाइज कहते हैं और उनसे अपील (मुतवस्सिल होते) करते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौज़े के पास हज़रत अब्बास का रौज़ा शियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इसके अलावा, शिया उन्हें सक़्क़ा ए कर्बला भी कहते हैं और मुहर्रम की 9वीं जबकि कुछ देशों मे शिया 8वीं तारीख़ को हज़रत अब्बास के नाम से अज़ादारी करते हैं। जबकि ईरान में 9वीं मोहर्रम (तासूआ) आपसे विशिष्ठ है और इस दिन ईरान मे आप से सार्वजनिक अवकाश रहता है।

आपकी माता का इमाम अली (अ) से अक़ील – जोकि वंशावली विशेषज्ञ थे - ने परिचित कराया था। इमाम अली (अ) ने अक़ील को अपने लिए एक ऐसी जीवन साथी (पत्नी) खोजने के लिए कहा जो बहादुर बच्चों को जन्म दे। कहा जाता है कि आशूर की रात जब ज़ुहैर बिन क़ैन को इस बात का पता चला कि शिम्र ने अब्बास को शरण पत्र भेजा है तो कहाः हे अमीरुल मोमिनीन के बेटे, जब तुम्हारे पिता ने विवाह करना चाहा था तो तुम्हारे चाचा अक़ील से कहा कि उनके लिए ऐसी महिला खोजे जिसकी वंशावली मे बहादुरी हो ताकि उनसे बहादुर बेटा जन्म ले, ऐसा बेटा जो कर्बला में हुसैन का सहायक बने।

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