सीरह ओक़्ला
सीरह ओक़्ला या बेनाए ओक़्ला (फ़ारसीःسیره عُقلاء یا بنای عقلاء) किसी काम को अंजाम देने या छोड़ने मे लोगो की आदत और उनकी व्यावहारिक सहमति को सीरह ओक़्ला कहा जाता है। सीरह ओक़्ला न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों (उसूल ए फ़िक़्ह) में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाली इस्तेलाहात मे से एक है, और न्यायशास्त्र विशेष रूप से लेनदेन के अध्याय मे बहुत सारे अहकाम को साबित करने के लिए सीरह ओक़्ला से मदद ली जाती है। सीरह ओक़्ला इल्मे उसूल के मुद्दो मे से एक है इसी आधार पर इल्मे उसूल मे इसकी हुज्जत की शर्तो के बारे मे चर्चा की जाती है और दूसरी ओर सीरह ओक़्ला कुछ उसूली मुद्दे जैसे खबर वाहिद सिक़ा और ज़वाहिर की हुज्जत को साबित करने के लिए दलील भी बनती है।
सीरह ओक़्ला की हुज्जत शारेअ की पुष्टि पर निर्भर है, अर्थात शारेअ या मासूम की ओर से इस पर अमल करने से रोका न गया हो।
शरई अहकाम के विषयो की पहचान के लिए भी सीरह ओक़्ला का उपयोग किया जाता है, उदाहरण स्वरूप कोई शरई हुक्म क़ुरआन और सुन्नत या इनके अलावा किसी और तरीके से साबित हो जाता है लेकिन उसका विषय स्पष्ट नही हो पाता। ऐसी स्थिति मे सीरह ओक़्ला इन तरीक़ो मे से एक है जिनके माध्यम से इस प्रकार के विषयो को पहचाना जाता है। उदाहरण स्वरूप शरई तर्क से साबित है "जुआ उपकरण हराम है" अब यह सीरह ओक़्ला या उर्फ़ है जो इसको निर्धारित करती है कि कौनसी वस्तु जुआ के उपकरण मे शुमार होती है और कौनसी वस्तु नह ।
मासूम (अ) के युग के बाद बनाए गए सिरतो को सीरह मुस्तहदेसा (नई सीरत) कहा जाता है। सीरह मुस्तहदेसा की हुज्जत को लेकर मतभेद है। इल्म उसूल ने मासूम (अ) के युग या दूसरे ज़मानो मे मौजूद सीरह ओक़्ला की पहचान और उसकी मासूम (अ) द्वारा पुष्टि को साबित करने के विभिन्न तरीके बताए गए है।
परिभाषा और महत्व
किसी काम को अंजाम देने या छोड़ने मे लोगो की आदत और उनकी व्यावहारिक सहमति को सीरह ओक़्ला कहा जाता है।[१] सीरह ओक़्ला के बजाय, कभी-कभी "बेनाए ओक़्ला" और "लोगो की सीरत" का भी उपयोग किया जाता है।[२]
सीरह ओक़्ला की वैधता की चर्चा न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विज्ञान (इल्मे उसूले फ़िक़्ह) में सबसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक है[३] सीरह ओक़्ला का उपयोग कई न्यायशास्त्रीय नियमों की प्रामाणिकता और वैधता को साबित करने के लिए किया गया है, जैसे क़ाएदा ला ज़रार,[४] क़ाएदा नफ़ी हरज,[५] क़ाएदा अदल व इंसाफ़,[६] और क़ाएदा ग़रर[७] का उपयोग किया गया है।
“खबर वाहिद की हुज्जियत को साबित करने के लिए बेनाए ओक़्ला सबसे महत्वपुर्ण दलील है; इस तरह से कि अगर इसे साबित करने के लिए आने वाले अन्य सबूतों पर विवाद करना संभव है, तो बेनाए ओक़्ला के विश्वास और उनके दैनिक जीवन में विश्वास की खबरों पर निर्भरता के तरीके और आधार पर विवाद करने का कोई तरीका नहीं है।[८]
सीरह ओक़्ला और अन्य समान शब्दों के बीच अंतर
कुछ शब्द जैसे "उर्फ़", "सीरत" और "सीरह ओक़्ला" को जो न्यायविदों और उसूलीयो के साहित्य में उपयोग किए जाते हैं, पर्यायवाची मानते हुए उनका एक ही अर्थ माना है[९] और कुछ ने उनके बीच अंतर का उल्लेख किया है:
उर्फ़ और सीरह ओक़्ला मे अंतर
- मुख्य लेख: उर्फ़
प्राचीन काल से विभिन्न धर्मो और संप्रदायो के अनुयायीयो या दूसरे लोगो के ओक़्ला के बीच खबर सिक़ाह पर अमल करने की प्रथा चली आ रही है और यह प्रथा इस्लाम के शारेअ और आपके जीवन काल के बाद अब तक बाक़ी रही है और इस्लाम के पैग़म्बर (स) और मासूम इमामो मे से किसी की ओर से इस पर अमल करने से रोका नही गया है, क्योकि यदि किसी की ओर से रोका गया होता तो वह बयान हो चुका होता और लोगो के बीच मशहूर हो चुका होता, इस से यह स्पष्ट हो जाता है कि खबर वाहिद पर अमल करने मे शारेअ की अनुमति मौजूद है।
कुछ शोधकर्ताओं ने सीरह ओक़्ला और उर्फ़ के बीच अंतर का उल्लेख करते हुए कहा है कि सीरह ओक़्ला उर्फ़ के विपरीत, केवल उन आचरण और तरीकों के लिए समर्पित है जिनकी उत्पत्ति ओक़्लानी है; जबकि उर्फ़ की उत्पत्ति यूं ही नहीं होती और यह अनुसरण और आदतों का परिणाम भी हो सकती है।[१०] क्योंकि सीरह ओक़्ला में केवल क्रियाएं शामिल होती हैं, जबकि उर्फ़ में क्रियाओं के अलावा कथन और तर्के फ़ेल भी शामिल होता है।[११] इस बीच, बहुत से उसूलीयो ने सीरह ओक़्ला को उर्फ़ आम - अर्थात जिस उर्फ़ को सभी या अधिकतर लोग स्वीकार करते है- मानते है।[१२]
ओक़्लाई इरतेकाज़ और सीरह ओक़्ला मे अंतर
सीरह ओक़्ला और ओक़्लाई इरतेकाज़ के बीच अंतर के बारे में कहा गया है कि सीरह ओक़्ला या बेना ए ओक़्ला किसी काम के अंजाम देने या उसे छोड़ने के हवाले से होने वाले सुलूक और व्यवहार को कहा जाता है, जबकि इरतेकाज़ बाहर से संबंधित नही, बल्कि यह केवल ओक़्ला के दिमाग मे ही होता है, बाहर इसका कोई अस्तित्व नही होता।[१३] ओक़्लाई इरतेकाज़ को सीरह ओक़्ला की तुलना मे मूल्यवान और वैध माना जाता है, क्योंकि अधिकांश मामलों में ओक़्लाई इरतेकाज़ प्रकृति और अक़्ले अमली और इलाही पैगम्बरों और उनके अत्तराधिकारीयो की शिक्षाओं जैसी चीज़ों के कारण होती है; जबकि ओक़्ला का व्यावहारिक और खारजी सीरत की उत्पत्ति कभी-कभी केवल दूसरों की नकल करना और उनका अनुसरण करना, मात्र अवलोकन करना है।[१४]
सीरह मुतशर्रेआ और सीरह ओक़्ला मे अंतर
- मुख्य लेख: सीरह मुतशर्रेआ
सीरह मुतशर्रेआ सीरह ओक़्ला की तुलना मे अधिक विशिष्ट है, और यह किसी काम के करने या छोड़ने के हवाले से केवल मुसलमानों के तरीक़े को शामिल करती है।[१५] इन दोनों की हुज्जियत के संबंध में कहा जाता है कि सीरह मुतशर्रेआ अगर साबित हो जाए तो शरई अहकाम पर यही सीरह मुतशर्रेआ स्वंय दलील (प्रमाण) है, लेकिन सीरह ओक़्ला हुज्जत (प्रमाण) नही मगर यह कि मासूम द्वारा हस्ताक्षरित और अनुमोदित न हो, अर्थात जब तक कि यह मासूम द्वारा हस्ताक्षरित और अनुमोदित न हो, या मासूम की ओर से कोई प्रतिबंध न हो स्वंय हुज्जत नही है।[१६]
हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के शिक्षक और न्यायविद अबुल क़ासिम अलीदोस्त ने कहा कि "सीरह" शब्द जब किसी चीज़ को जोड़े बिना और पूर्ण रूप में आता है, तो इसका अर्थ अक्सर सीरह ओक़्ला होता है।[१७]
न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांत में सीरह ओक़्ला का दायरा
न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में "सीरह ओक़्ला" के आवेदन के दायरे के बारे में कहा जाता है, कि एक लिहाज़ से सीरह ओक़्ला स्वंय एक उसूल है; क्योंकि अधिकांश मौको विशेष रूप से लेन-देन के अध्याय मे इसका उल्लेख किया जाता है इस आधार पर न्यायशास्त्र के सिद्धांतो के विज्ञान (इल्म उसूल फ़िक़्ह) मे सीरह ओक़्ला की हुज्जित और शरई अहकाम को साबित करने मे उसकी बैधता पर चर्चा की जाती है।[१८]
दूसरी ओर, न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विज्ञान के कई मुद्दों की वैधता साबित करने के लिए, जैसे ज़वाहिर और खबर सेक़ा इत्यादि जिन्हे न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विज्ञान के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे माना जाता है, साथ ही साथ न्यायशास्त्र में शरई अकहाम प्राप्त करने के महत्वपूर्ण अमारात [नोट १] मे शुमार होती है, को साबित करने के लिए सीरह ओक़्ला का हवाला दिया जाता है।[१९]
सीरह ओक़्ला के प्रकार एवं उनकी प्रामाणिकता के मानदंड
सीरह ओक़्ला को दो प्रकारों में विभाजित किया गया है और उनमें से प्रत्येक की प्रामाणिकता के लिए एक विशिष्ट मानदंड है:[२०]
शरई हुक्म को साबित करने वाली सीरत
कभी-कभी शरई हुक्म को सीरह ओक़्ला के माध्यम से साबित किया जाता है।[२१] उदाहरण के लिए, इमाम खुमैनी हयाज़त के माध्यम से मिलकियत (संपत्ति) साबित करने के बारे मे कहते है कि मानव इतिहास के शुरुआत से ही मुसल्लम सीरत चली आ रही है कि हयाज़त और पुनरुद्धार को स्वामित्व की निशानी माना गया है, और किसी भी पैग़म्बर और औलिया और विश्वासियों ने इसका खंडन नहीं किया है और इसे मना नहीं किया है।[२२] उसूली विद्वानो के अनुसार, सीरत का यह प्रकार केवल उस समय हुज्जत है जब उस पर शारेअ द्वारा हस्ताक्षरित और अनुमोदित हो।[२३]
शरई हुक्म के विषय को निर्धारित करने वाली सीरत
कुछ मामलों मे शरई हुक्म किताब और सुन्नत या दोनों के सबूतों से साबित किया गया है, और सीरह ओक़्ला केवल उस हुक्म के विषय को निर्धारित करती है।[२४] उदाहरण के लिए, शरई रूप से साबित है कि "जुए के उपकरण हराम है।" यहा पर सीरह ओक़्ला या उर्फ़ है जोकि यह निर्धारित करती है कि कौनसी वस्तु जुए के उपकरण मे शामिल है और कौनसी वस्तु जुए के उपकरण मे शामिल नही।[२५]
इस्तिस्हाब की हुज्जियत साबित करने के लिए जिन चीजों पर भरोसा किया जाता है उनमें से एक सीरह ओक़्ला भी है; कहने का तात्पर्य यह है कि ओक़्ला की सीरत रहे है कि अपने जीवन के सभी मुद्दों और मामलों में पिछली स्थिति के अनुसार अमल किया जाता है...;क्योकि यदि ऐसा न हो तो मानव जीवन की व्यवस्था उथल पुथल हो जाएगी।
यह भी कहा जाता है कि सीरह ओक़्ला शारेअ की किसी दलील के ज़ोहूर या शारेअ की मुराद को भी निर्धारित कर सकती है।[२६] उदाहरण के लिए, एक हदीस में कहा गया है कि यदि कोई विक्रेता कोई उत्पाद बेचता है, लेकिन उसे ग्राहक के हवाले न किया हो और ग्राहक से उसका मूल्य भी नही लिया हो तो ऐसी स्थिति मे यदि तीन दिन के भीतर यदि ग्राहक विक्रेता को पैसा देता है, तो लेनदेन आवश्यक (मामला लाजिम) अर्थात ठीक है; अन्यथा उन दोनों के बीच कोई लेनदेन अंजाम नहीं पाया है (فلا بیعَ بَینَہُما फ़ला बैआ बैनाहोमा)।[२७] यहा पर (فلا بیعَ بَینَہُما फ़ला बैआ बैनाहोमा) के ज़ाहिर से इस लेनदेन का बातिल होना समझ मे आता है, जबकि सीरह ओक़्ला और अक़्ली इरतेकाज़ के अनुसार यहा पर शारेअ की मुराद यह है कि उनके बीच होने वाला मामला लाज़िम और ज़रूरी नही है बल्कि उसमे ख्यारे ताखीर (देरी का विक्लप) साबित हो जाता है और दोनो पार्टिया लेनदेन जारी रख सकती है या इसे रद्द कर सकती हैं।[२८]
ऐसा कहा जाता है कि इस प्रकार की सीरह ओक़्ला मे शरई हुक्म को साबित करना उद्देश्य नहीं है बल्कि शरई हुक्म के विषय का निर्धारण करना उद्देश्य है इस प्रकार की सीरह की हुज्जियत के लिए मासूम और शारेअ द्वारा हस्ताक्षरित और अनुमोदित करने की आवश्यकता नहीं है।[२९]
उत्पत्ति की दृष्टि से सीरह ओक़्ला के प्रकार
सीरह ओक़्ला को उत्पत्ति के अनुसार भी कई प्रकार में विभाजित किया गया है:[३०]
- अक़्ले अमली के माध्यम से अस्त्तित्व मे आने वाली सीरत;[३१] जैसे कि अन्याय को बुरा मानने और न्याय को अच्छा मानने का वर्तमान तर्कसंगत तरीका (ओक़्लाई सीरत) या अज्ञानी का ज्ञानी की ओर मुड़ने का तर्कसंगत तरीका।[३२] ऐसा कहा जाता है चूँकि इस प्रकार की सीरत की यह अक़्ल के हुक्म के माध्यम से अस्तित्व मे आती है, इसलिए प्रामाणिकता आंतरिक (ज़ाती) है और इसकी प्रामाणिकता को साबित करने के लिए शारेअ द्वारा हस्ताक्षरित और अनुमोदित होने की आवश्यकता नहीं है।[३३]
- जीवन का एक तरीका जो मानव प्रवृत्ति, प्रकृति, अवलोकन, अनुभव या प्रेरण के कारण होता है।[३४] सीरह ओक़्ला की अधिकांश तरीक़े इसी प्रकार के माने जाते हैं।[३५] सीरत की इस प्रकार की हुज्जियत को साबित करने के लिए शारेअ के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है।[३६]
असरे मासूम (अ) की सीरत और मुस्तहदेसा सीरत
मुस्तहदेसा सीरत का अर्थ वह सीरत है जो असरे मासूम के बाद अस्तित्व मे आई हो और यह उन सीरतो के विपरीत है जो असरे मासूम में मौजूद थी[३७] उसूली विद्वानो के अनुसार उसरे मासूम मे मौजूद सीरत की प्रामाणिकता उनके हस्ताक्षर पर निर्भर करती है; कि ये अनुष्ठान मासूमों के देखने और सुनने के लिए खुले थे और साथ ही, वे इसके बारे में चुप रहे और इसे मना नहीं किया।[३८]
मुस्तहदेसा सीरत की प्रामाणिकता के बारे में मतभेद है: कुछ का मानना है कि यह केवल उस स्थिति मे सत्यापित है जब उसके बारे मे मालूम हो कि यह असरे मासूम से जुड़ी थी और मासूमीन के समय के दौरान भी यह सीरत प्रचलित थी और उन्होने इसको रोके बिना चुप रहे।[३९] जबकि कुछ लोग सीरह ओक़्ला की प्रमाणिकता मे असरे मासूम से जुड़े होने या जुड़े न होने की शर्त नही समझते है।[४०]
सीरह ओक़्ला को साबित करने के तरीके
कुछ सबसे महत्वपूर्ण तरीके जिनके द्वारा मासूम की उपस्थिति की समकालीन और गैर-समसामयिक दोनों परंपराओं का पता लगाना संभव है:
तक़लीद के वाजिब होने पर सबसे महत्वपूर्ण तर्क अज्ञानी व्यक्ति का विद्वान और ज्ञानी लोगों की ओर रुजूअ करने की ओक़्लाई सीरत है। क्योकि इस प्रथा के हवाले से शारेअ की ओर से कोई रोक टोक बयान नही हुई है इस आधार पर यह साबित हो जाता है कि यह अमल एक वैध अमल है जिस पर शारेअ की अनुमति है।
- इस्तिक़्रा: कभी-कभी, पता लगाने के बाद, एक ही समाज या अलग-अलग समाज के लोगों में यह देखा जाता है कि अलग-अलग स्वाद और संस्कृति होने के बावजूद, उन सभी का जीवन जीने का तरीका एक जैसा होता है, इस तरह यह सामान्य सामाजिक जीवन जीने का तरीका हो सकता है। इसे समाज या अन्य समाजों के सभी सदस्यों पर लागू किया जाना चाहिए और यहां तक कि समाज ने असर मासूम की उपस्थिति के समय को भी जिम्मेदार ठहराया और उनके जीवन का सत्यापन किया।[४१]
- फ़ित्री विशलेषण: कभी-कभी किसी व्यक्ति के विवेक के सामने कोई समस्या आती है, और वह उस समस्या के संबंध में एक दृष्टिकोण और स्थिति अपना लेता है, जिसका उसके समय और स्थान की स्थिति और उसकी विशेष रुचि से कोई लेना-देना नहीं होता है, और इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उसे लगता है कि वह अपने विवेक से जो समझता है वह एक तर्कसंगत स्थिति है जो सामान्य है।[४२]
- सामाजिक आवश्यकता: कभी-कभी सीरह ओक़्ला का विषय सामाजिक आवश्यकताओं और अनिवार्य मुद्दों में से एक होता है, इस प्रकार कि यदि ऐसा न हो तो मानव समाज और समाज की व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न होता है[४३] उदाहरण के लिए, मनुष्य के हाथ में जो चीज़ है, वह उस पर उसके स्वामित्व का प्रयोग है, जिसे कायदा यद के रूप में परिभाषित किया गया है। यदि ऐसा नहीं है, तो सभी समाजों में, शरिया की उपस्थिति और जीवन के युग की परवाह किए बिना, मानव सामाजिक व्यवस्था में गड़बड़ी है।[४४]
- ऐतिहासिक वर्णन: प्रामाणिक ऐतिहासिक वर्णन के साथ, असरे मासूम (अ) की उपस्थिति के युग के पाठ्यक्रम का पता लगाना संभव है।[४५] प्रामाणिक ऐतिहासिक वर्णन का अर्थ उन कथनों से है जो अधिक बयान होने या विभिन्न साक्ष्यो की सहायता से जिन पर भरोसा किया जा सकता है।[४६]
शारेअ द्वारा गैर-अस्वीकृति को सत्यापित करने के तरीके
निम्नलिखित तरीकों से यह पता लगाया जा सकता है कि शारेअ ने किसी धार्मिक अनुष्ठान को रोका या प्रतिबंधित नहीं किया है:
- संबंधित सीरत के हवाले से शारेअ की रोक टोक हम तक पहुचना उस सीरत के इस्तेहकाम और और व्यापकता पर निर्भर करती है;[४७] इसका मतलब यह है कि यदि कोई परंपरा दृढ़ है और महत्व और व्यापकता रखती है, तो भी वह शारेअ द्वारा निषिद्ध है यह हम तक किसी कमज़ोर ख़बर के ज़रिए नहीं पहुंचा, इससे पता चलता है कि शारेअ को उस प्रथा पर कोई आपत्ति नहीं थी और वह उससे सहमत थे। क्योंकि यदि कोई निषेध था, तो उसे व्यक्त किया जाना चाहिए था और अगली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाना चाहिए था।[४८]
- इस तथ्य से कि सामाजिक जीवन में जिस जीवन शैली से बचने का कोई रास्ता नहीं है, उसका कोई विकल्प नहीं है, यह समझा जाता है कि इसके खिलाफ कोई निषेध नहीं है; क्योंकि यदि प्रतिबन्ध लगाया गया था तो कम से कम उस जीवन-पद्धति का कोई विकल्प तो होना ही चाहिए जो सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक है, और अब जब उसका कोई विकल्प नहीं है तो वही जीवन-पद्धति प्रचलित है और स्वीकृत है।[४९] उदाहरण के लिए, दुनिया की बौद्धिक नींव हमेशा इस तथ्य पर आधारित रही है कि शब्दों के अर्थ और धर्मशास्त्री के अर्थ को समझने के लिए, वे ज़वाहिर पर अमल करते हैं, और चूंकि इसका कोई विकल्प नहीं है, यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मासूम (अ) की उपस्थिति के दौरान जीवन का यह तरीका भी अस्तित्व में था और इसके संबंध में उनकी ओर से कोई निषेध नहीं था।[५०]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 153; सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 13; जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 10
- ↑ देखेः आशतियानी, तक़रीरात आयतुल्लाह अल मुजद्दिद अल शिराज़ी, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 63; मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 153
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 9
- ↑ मुहक़्क़िक़ दामाद, कवाइद फ़िक़्ह, 1406 हिजरी, भाग 1, पेज 151
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, मबानी अल फ़िक़्ह अल फ़आल फ़िल कवाइद अल फ़िक्हीया अल असासीया, 1425 हिजरी, भाग 4, पेज 129
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, मबानी अल फ़िक़्ह अल फ़आल फ़िल कवाइद अल फ़िक्हीया अल असासीया, 1425 हिजरी, भाग 4, पेज 129
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, अल कवाइद अल फ़िक़्हीया, 1383 शम्सी, पेज 222
- ↑ काज़मी ख़ुरासानी, फ़वाइद अल उसूल, मोअस्सेसा अल नश्र अल इस्लामी, भाग 3, पेज 194
- ↑ सुब्हानी, अल मबसूत फ़ी उसूल अल फ़िक़्ह, 1431 हिजरी, भाग 3, पेज 332; साफ़ी इस्फ़हानी, तरजुमा, शरह व तालीक़ात बर अल मूजिज़ फ़ी उसूल अल फ़िक़्ह, 1394 हिजरी, भाग 2, पेज 97
- ↑ अली दोस्त, फ़िक्ह व उर्फ़, 1384 शम्सी, भाग 2, पेज 121
- ↑ बेनाजादेह, कारक्रद उर्फ़ दर इस्तिंबात अहकाम शरई बा ताकीद बर नज़र इमाम खुमैनी, पेज 29
- ↑ देखेः काज़मी ख़ुरासानी, फ़वाइद अल उसूल (तकरीरात दरस खारिज उसूल मिर्ज़ाए नाइनी), 1376 शम्सी, भाग 3, पेज 192; सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 1, पेज 337
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 10
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 10-11
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ देखेः इस्फ़हानी, हाशिया अल मकासिब, 1218 हिजरी, भाग 1, पेज 104
- ↑ अली दोस्त, फ़िक्ह व उर्फ़, 1384 शम्सी, भाग 2, पेज 122
- ↑ हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस मुहम्मद बाक़िर सद्र) 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 233; जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 9
- ↑ हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस मुहम्मद बाक़िर सद्र) 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 233; जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 9
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 13
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 13
- ↑ देखेः इमाम ख़ुमैनी, किताब अल बैय, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 38
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 153 जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 11
- ↑ हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस मुहम्मद बाक़िर सद्र) 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 234
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 15
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 15
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- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 18
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 20
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 20
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 20
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 20
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 20
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 20
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 20-21
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 11
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 32
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 32
- ↑ देखेः इमाम ख़ुमैनी, अल रसाइल, 1410 हिजरी, भाग 2, पेज 130
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 60-62
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 60
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 61
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 61
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बिदाय अल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1436 हिजरी, भाग 2, पेज 32
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 64
- ↑ जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 68
- ↑ आखुंद ख़ुरासानी, किफाया अल उसूल, 1437 हिजरी, भाग 2, पेज 80; हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस मुहम्मद बाक़िर सद्र) 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 244
- ↑ हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस मुहम्मद बाक़िर सद्र) 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 241
- ↑ आखुंद ख़ुरासानी, किफाया अल उसूल, 1437 हिजरी, भाग 2, पेज 80
नोट
- ↑ वह चीज़ जिसकी शारेअ ने शरई अहकाम तक पहुचंने के लिए अनुमति दी हो। जैसे खबर वाहिद सिक़े (जमई अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1389 शम्सी, पेज 241)
स्रोत
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