सीरह मुतशर्रेआ
सीरह मुतशरिअह (फ़ारसीःسیره مُتَشَرِّعه) किसी धर्म या मजहब के सभी या अधिकांश अनुयायियों का किसी विशिष्ट प्रथा पर व्यावहारिक समझौते को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, मुसलमानों के मुसलमान होने और शरिया के नियमों का पालन करने के नाते अंजाम देने वाले अमल को सीरह मुतशर्रेआ कहा जाता है। सीरह मुतशर्रेआ उन मुद्दों में से एक है जिन पर न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विज्ञान (इल्म उसूल फ़िक़्ह) में चर्चा की जाती है। खबर वाहिद और ज़वाहिर की हुज्जियत (प्रमाणिकता) का मुद्दा को शरई हुक्म को निकालने की प्रक्रिया में मौलिक और महत्वपूर्ण मुद्दे माना जाता है, जिसे साबित करने के लिए सीरह मुतशर्रेआ से भी निकाला जाता है। इसके अलावा, न्यायविदों ने कुछ न्यायशास्त्रीय मुद्दों को साबित करने के लिए सीरह मुतशर्रेआ से मदद लेते है।
कुछ न्यायशास्त्रीयो के अनुसार सीरह मुतशर्रेआ जो इमाम मासूम (अ) के युग के दौरान चल रही हो और मासूम स्वयं भी इस पर अमल करने वालो मे से हो या मासूम की दृष्टि और समाअतो से गुजरने के बा वजूद इससे रोका ना गया हो तो प्रमाण (हुज्जत) है। न्यायशास्त्र के विद्वान इस प्रकार की जीवन शैलीयो को राय मासूम या बयान शारेअ को कश्फ करने वाला इज्माअ मानते है।
उसूलियो का कहना है कि सीरह मुतशर्रेआ केवल संबंधित अमल की मशरूईयत और हराम न होने या छोड़ने की मशरूईयत और उसके वुजूब के न होने का इंगित करती है, और वाजिब, मुस्तहब, हराम और मकरूह जैसे अहकाम को सीरह मुतशर्रेअ के माध्यम से साबित नही किया जा सकता।
परिभाषा और महत्व
किसी धर्म या मजहब के सभी या अधिकांश अनुयायियों का किसी विशिष्ट प्रथा पर व्यावहारिक समझौते को कहा जाता है।[१] दूसरे शब्दों में किसी विशेष धर्म या मज़हब के अनुयायियों के बीच किसी कार्य को करने या इसे त्यागने का एक सतत तरीका है।[२] मिर्ज़ा नाऐनी द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार, सीरह मुतशर्रेआ मुसलमानो का मुसलमान होने और शरिया पर अमल करने के हिसाब से अंजाम देने वाले अमल को कहा जाता है।[३]
न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में, सीरह मुतशर्रेआ के बहुत सारे संदर्भ दिए गए हैं[४], और इसकी वैधता की चर्चा को न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विज्ञान के मुद्दों में से एक माना जाता है, कुछ उसूलीयो की रचनाओ मे इस बारे मे चर्चा की गई है।[५]
सीरह मुतशर्रेआ की दलालत की सीमा के संबंध में कहा गया है कि यह केवल किसी कार्य की वैधता और उसकी अपवित्रता (हराम न होने), या किसी कार्य के त्याग की वैधता और उसके वाजिब न होने को इंगित करती है, और वुजूब, इस्तहबाब, हुरमत और कराहत जैसे अहकाम के साबित होने मे सीरह मुतशर्रेआ की कोई भूमिका नही है।[६]
सीरह मुतशर्रेआ और सीरह ओक़्ला मे अंतर
- मुख्य लेख: सीरह ओक़्ला
सीरह मुतशर्रेआ सीरह ओक़्ला की तुलना में अधिक खास है, और किसी विशेष अमल के अंजाम देने या छोड़ने के बारे मे केवल मुसलमानों या किसी विशेष धर्म या मज़हब के अनुयायियों की शैली को कहा जाता है[७] जबकि सीरह ओक़्ला किसी काम के अंजाम देने या छोड़ने पर सभी बुद्धिजीवीयो की सहमति को कहा जाता है।[८] प्रामाणिकता और वैधता की दृष्टि से दोनों के बीच अंतर के संबंध में कहा गया है कि सीरह मुतशर्रेआ अगर साबित हो जाए तो यह शरई हुक्म पर दलील भी बन जाती है, लेकिन सीरह ओक़्ला हुज्जत नही है जब तककि मासूम की ओर से उसकी पुष्टि और समर्थन न हो अर्थात शारेअ की ओर से इस से रोका न गया हो।[९]
ऐसा कहा जाता है कि सीरह मुतशर्रेआ में शरई हुक्म को साबित करने में बुद्धिजीवीयो की शैली (सीरह ओक़्ला) को प्रभावित होने से रोक भी सकती है, लेकिन सीरह ओक़्ला मे सीरह मुतशर्रेआ की तुलना मे ऐसी योग्यता मौजूद नही है।[१०]
सीरह मुतशर्रेआ और इज्माअ के बीच संबंध
कुछ उसूलियो के अनुसार सीरह मुतशर्रेआ एक प्रकार की सर्वसम्मति (इज्माअ) है।[११] शिया विद्वान मुहम्मद रज़ा मुज़फ़्फ़र सीरह मुतशर्रेआ को इज्माअ का सर्वोच्च वर्ग मानते हैं; क्योंकि यह एक प्रकार से किसी काम के अंजाम देने या छोड़ने पर विद्वानों और गैर-विद्वानों की व्यावहारिक सहमति (अमली इज्माअ) है, जबकि अन्य प्रकार की सहमति कलामी इज्माअ है और वह भी केवल विद्वानों से मख़सूस है।[१२]
सीरह मुतशर्रेआ के प्रकार और उनकी प्रामाणिकता
न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विज्ञान (इल्म उसूल फ़िक़्ह) में सीरह मुतशर्रेआ के कुछ प्रकार का उल्लेख मिलता हैं, जो इस प्रकार हैं:
- मासूम के ज़माने मे प्रचलित शैली जिस पर मासूम ने भी अमल किया हो;[१३] जैसे मुसलमानो की सीरत थी कि वह विश्वसनीय रावीयो के माध्यम से मासूमीन (अ) से बयान होने वीली हदीसो पर भरोसा करते थे और उन रावीयो को मासूमीन और लोगो के बीच राबित के रूप मे स्वीकर करते थे[१४] उसूलियो के अनुसार इस प्रकार जीवन शैली के हुज्जत होने मे कोई संदेह नही है और यह जीवन शैली शरई हुक्म पर दलील भी है क्योकि यह इज्माअ के समान शरई हुक्म और मासूम की राय को कश्फ़ करती है।[१५]
- मासूम के ज़माने मे प्रचलित शैली जिस पर मासूम ने स्वंय तो अमल नही किया लेकिन उससे मासूम ने सहमति जताई हो, उदाहरण के लिए, शेख अंसारी ने इस प्रकार की जीवन शैली का उल्लेख करते हुए कहते है कि शरिया की शुरुआत से मुसलमानों, बल्कि दूसरे धर्मो के अनुयायीयो का यह तरीक़ा रहा है कि जब किसी काम के बारे मे शारेअ की ओर से रोका ना गया हो तो उस काम को छोड़ना ज़रूरी नही समझते थे।[१६] सीरह मुतशर्रेआ की इस प्रकार को भी हुज्जत (प्रमाण) और इज्माअ के समान इसे भी मासूम की राय को कश्फ़ करने वाला समझते है।[१७]
- सीरह मुस्तहदेसा जिसके बारे मे यकीन हो कि मासूम (अ) के ज़माने मे प्रचलित नही थी और न मासूम (अ) के ज़माने से समकालीन है[१८] कुछ विद्वानों का मानना है कि इस प्रकार की जीवनी शैली को हुज्जत नही समझते है।[१९]
- एक ऐसी जीवन शैली (सीरत) जिसके बारे में हमें संदेह है कि क्या यह मासूम (अ) के ज़माने से जुड़ी थी या नही अथवा मासूम की ओर से उसकी दृष्टि होने या होने मे संदेह हो[२०] कुछ उसूली इस प्रकार की सीरत को हुज्जत नहीं समझते है।[२१]
न्यायशास्त्र में सीरह मुतशर्रेआ का अनुप्रयोग
न्यायशास्त्र में सीरह मुतशर्रेआ के कुछ अनुप्रयोग इस प्रकार हैं:
- न्यायविदों की दृष्टि से सीरह मुतशर्रेआ इस तथ्य पर आधारित है कि यदि कोई चल एवं अनुमन्य संपत्ति से कुछ अर्जित करता है तो वह उसका मालिक बन जाता है। यह सीरत पवित्र पैग़म्बर (स) की दृष्टि और सुनवाई के अधीन था और इसके संबंध में कोई निषेध नहीं था।[२२]
- इमाम खुमैनी ने बैअ मोआताती में मिलकियत के बारे में कहा, सीरह मुतशर्रेआ, विद्वानों और धर्मियों से लेकर अन्य लोगों तक, जब वे ईजाब और क़ुबूल के बिना रोटी या मांस इत्यादि खरीदते थे तो उनका आधार पूरी तरह से इबाहा पर आधारित नही था, बल्कि संपत्ति पर था।[२३]
- न्यायविदों के अनुसार, मुताहेरात के प्रकारों में से एक जानवर के शरीर से निजासत का दूर करना है[२४] आगा रज़ा हमदानी के अनुसार, इस फतवे का एक प्रमाण जानवरों से निपटने में सीरह मुतशर्रेआ है। क्योकि वे जानते थे कि उनके शरीर का जन्म नजिस रक्त से हुआ है, लेकिन जैसे ही ऐने निजासत को हटा दिया जाता है, उसे पाक माना जाता है।[२५]
- जाफ़र सुब्हानी ने मृतक की तकलीद पर बाक़ी रहने की एक दलील सीरह मुतशर्रेआ को माना है[२६] और उन्होंने कहा कि सीरह मुतशर्रेआ सभी देशों में वैध है, विशेष रूप से उन देशों में जहां खराब संचार है, के आधार पर तथ्य यह है कि उस समय एक मुजतहिद ने उसके जीवनकाल के दौरान उसकी तक़लीद (अनुसरण) की, और उसकी मृत्यु के बाद भी उन्होंने उसकी तकलीद की, जब तक कि उन्हें उसके जैसा या उससे बेहतर कोई नहीं मिला।[२७]
न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के मुद्दों में सीरह मुतशर्रेआ का अनुप्रयोग
न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विज्ञान (इल्म उसूले फ़िक़्ह) में, इस विज्ञान के दो बुनियादी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए, यानी खबरे वाहिद की हुज्जियत साबित करना और ज़वाहिर की हुज्जियत (प्रामाणिकता) साबित करने के लिए सीरह मुतशर्रेआ का हवाला दिया गाया है।[२८] उदाहरण स्वरूप मुसलमानों का मुतशर्रेआ की सीरह सभी युगो हत्ता पैग़म्बर (स) और मासूम इमाम (अ) और उनके साथियों के बीच, स़ेक़ा खबर पर भरोसा किया गया और उस पर उमल करने मे पैग़म्बर (स) और मासूम इमामों का कोई निषेध नहीं था[२९], इसी तरह से ज़वाहिर के हुज्जियत के बारे में उन्होंने कहा है कि सभी मुसलमानों और यहाँ तक कि इमामों (अ) के साथियों का जीवन इस तथ्य पर आधारित था कि वे जवाहिर के अर्थ और उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कहने वाले पर भरोसा करते थे और ऐसा करने से मना नहीं किया गया था।[३०]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ जमी अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 131
- ↑ जमी अज़ नवीसंदेगान, फ़रहंग नामा उसूल फ़िक़्ह, 1389 शम्सी, पेज 496
- ↑ काज़मी ख़ुरासानी, फ़वाइद अल उसूल, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, भाग 3, पेज 192
- ↑ जमी अज़ नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, 1444 हिजरी, पेज 131
- ↑ देखेः मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155; हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र), 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 233; सैफ़ी माज़ंदरानी, बयाअ अल बोहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1429 हिजरी, भाग 9, पेज 267
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 158
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बयाअ अल बोहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1429 हिजरी, भाग 9, पेज 258
- ↑ देखेः इस्फ़हानी, हाशिया अल मकासिब, 1418 हिजरी, भाग 1, पेज 104
- ↑ सैफ़ी माज़ंदरानी, बयाअ अल बोहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1429 हिजरी, भाग 9, पेज 273
- ↑ देखेः मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ शेख़ अंसारी, फ़राइद अल उसूल, भाग 1, पेज 343
- ↑ काज़मी ख़ुरासानी, फ़वाइद अल उसूल, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, भाग 3, पेज 192; मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155; हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 247
- ↑ शेख़ अंसारी, फ़राइद अल उसूल, भाग 2, पेज 55
- ↑ शेख़ अंसारी, फ़राइद अल उसूल, भाग 5, पेज 55; मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155; हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 247
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ मुज़फ़्फ़र, उसूल अल फ़िक़्ह, 1405 हिजरी, भाग 2, पेज 155
- ↑ हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 236
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, किताब अल बैय, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 55
- ↑ देखेः तबातबाई यज़्दी, अल उरवातुल वुस्क़ा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 287
- ↑ हमदानी, मिस्बाह अल फ़क़ीह, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 363
- ↑ सुब्हानी, अल मबसूत फ़ी उसूल अल फ़िक़्ह, 1432 हिजरी, भाग 1, पेज 407
- ↑ सुब्हानी, अल मबसूत फ़ी उसूल अल फ़िक़्ह, 1432 हिजरी, भाग 1, पेज 407
- ↑ 28. देखेः शेख अंसारी, फ़राइद अल उसूल, भाग 1, पेज 343; हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र), 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 249
- ↑ शेख अंसारी, फ़राइद अल उसूल, भाग 1, पेज 343; हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र), 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 421
- ↑ हाशमी शाहरूदी, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र), 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 249
स्रोत
- इस्फ़हानी, मुहम्मद हुसैन, हाशिया अल मकासिब, क़ुम, दार उल मुस्तफ़ा लेएहया अल तुरास, पहला संस्करण 1418 हिजरी
- इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाअ, किताब अल बैय, क़ुम, नशर इस्माईलीयान, 1410 हिजरी
- जमी अज नवीसंदेगान, फ़रहंग नामा उसूल फ़िक़्ह, क़ुम, पुज़ूहिशगाह उलूम व फ़रहंग इस्लामी, 1389 शम्सी
- जमी अज नवीसंदेगान, अल फ़ाइक़ फ़िल उसूल, क़ुम, मोअस्सेसा अल नश्र लिल हौज़ात इल्मिया, 1444
- सुब्हानी, जाफ़र, अल मबसूत फ़ि इल्म अल उसूल, क़ुम, मोअस्सेसा इमाम सादिक़ (अ), पहला संस्करण, 1431 हिजरी
- सैफ़ी माज़ंदरानी, अली अकबर, बिदायेउल बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, तीसरा संस्करण, 1436 हिजरी
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- मुज़फ़्फ़र, मुहम्मद रज़ा, उसूल अल फ़िक़्ह, क़ुम, नशर दानिश इस्लामी, 1405 हिजरी
- हाशमी शाहरूदी, सय्यद महमूद, बुहूस फ़ी इल्म अल उसूल (तक़रीरात दरस उसूल सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र), क़ुम, मरकज़ अल ग़दीर लिल देरासात अल इस्लामी, दूसरा संस्करण 1417 हिजरी
- हमदानी, रज़ा, मिस्बाह अल फ़क़ीह, क़ुम, अल मोअस्सेसा अल जाफ़रीया लेएहया, अल तुरास, 1376 शम्सी