क़र्ज़
क़र्ज़ (अरबीः القرض) दूसरे को धन उधार देना, प्राप्तकर्ता के दायित्व के साथ कि वह इसे क़र्ज़दाता को वापस करेगा। क़ुरआन की आयतो और हदीसो के अनुसार उधार देना मुस्तहब है और क़र्ज़ देने वाले को बड़ा इनाम (अज़ीम सवाब) मिलेगा। क़र्ज़ देने के महत्व में उल्लेख किया गया है कि क़र्ज़ अल-हस्ना भगवान को उधार देना है। क़र्ज़ हसन वह क़र्ज़ होता है जो वैध धन से होता है और मांगने या परेशान करने से बर्बाद नहीं होता है। हदीसों में कर्ज की वसूली में अच्छा व्यवहार करने का भी आदेश है।
क़र्ज़ की वैधता में सामान्य शर्तों जैसे बुलूग़, अक़्ल, इरादा और स्वतंत्र इच्छा (इख्तियार) के अलावा विशिष्ट शर्तों का भी उल्लेख किया गया है, जैसे कि यदि क़र्ज़ वापस करने के लिए समय की अवधि निर्धारित की जाती है, तो क़र्ज़दाता को अधिकार नहीं है समय समाप्त होने से पहले इसे वापस ले लें। साथ ही कर्ज चुकाने में देरी करना भी पाप माना जाता है।
क़र्ज़ राशि से अधिक चुकाने की शर्त ब्याज माना जाता है और वर्जित (हराम) है।
परिभाषा
क़र्ज़ का अर्थ है धन को दूसरे को देना, जिसके लिए प्राप्तकर्ता इसे चुकाने का दायित्व रखता है।[१] क़ुरआन की आयतों में, क़र्ज़ अल-हस्ना का उपयोग एक अच्छे क़र्ज़ के लिए किया जाता है।[२] इस आधार पर क़र्ज़ अल-हस्ना एक ऐसा क़र्ज़ है जो वैध संपत्ति से होना चाहिए और मांगने और परेशान करने से बर्बाद नहीं होना चाहिए।[३] क़र्ज़ अल-हस्ना का न्यायशास्त्रीय अर्थ एक ऐसा क़र्ज़ है जो ब्याज मुक्त है।[४]
महत्व और स्थिति
क़ुरआन की आयतों और परंपराओं में क़र्ज़ अल-हस्ना के महत्व पर जोर दिया गया है और इसे अल्लाह को उधार देने के रूप में माना जाता है।[५] पैगंबर (स) के एक कथन के अनुसार उधार देना दान से भी श्रेष्ठ है।[६] सूर ए बकरा की 245वीं, सूर ए हदीद की 12वीं, सूर ए माएदा की 11वीं और सूर ए तग़ाबुन की 17वीं तथा सूर ए मुज़म्मिल की 20वीं आयत क़र्ज़ के बारे में हैं।[७] क़ुरआन की आयतों पैगंबर (स) और अहले-बैत (अ) से वर्णित रिवायतो के अनुसार क़र्ज़ देना मुस्तहब है, और क़र्ज़ देने वाले को क़यामत के दिन बहुत इनाम दिया जाएगा।[८] क़र्ज़ वसूलने में अच्छा व्यवहार और क़र्ज़ लेने वाले के साथ सहनशीलता का भी आइम्म ए मासूमीन (अ) ने आदेश दिया गया है। इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत के अनुसार जो किसी जरूरतमंद को पैसा उधार देता है और उसे वापस लेने में अच्छा व्यवहार करता है, उसके पाप माफ हो जाएंगे।[९]
हदीसों में उधार देने के आदेश के बावजूद, उधार लेने की निंदा की गई है; इमाम अली (अ) से मंसूब एक रिवायत मे उधार लेने से मना किया गया है, क्योंकि उधार लेने को दिन मे अपमान और रात में उदासी का कारण बताया गया है।[१०]
क़र्ज़ के न्यायशास्त्रीय नियम
न्यायशास्त्र में क़र्ज़ का अर्थ है धन या संपत्ति को किसी की मिलकियत मे हस्तांतरित करना, जिसके बदले में वह उस संपत्ति (धन) को वापस करने का वचन देता है।[११] बुलूग़, बुद्धि, इरादा और इख़्तियार जैसी सामान्य शर्तों के अलावा क़र्ज़ के लिए विशेष शर्तें भी होती हैं। जैसेः संपत्ति नियंत्रण मे लेने योग्य हो, शराब और सूअर के मांस के विपरीत, जो चीज उधार दी जा रही है निर्धारित होनी चाहिए, अस्पष्ट नहीं होनी चाहिए।[१२]
क़र्ज़ के कुछ नियम
शिया न्यायशास्त्र के अनुसार यदि क़र्ज़ के अनुबंध में इसके पुनर्भुगतान के लिए एक अवधि निर्धारित की गई हो तो क़र्ज़दाता उस अवधि के अंत से पहले अपने क़र्ज़ की मांग नहीं कर सकता है; लेकिन यदि अवधि निर्दिष्ट नहीं है तो वह जब चाहे इसकी मांग कर सकता है।[१३] यदि क़र्ज़दाता दिए हुए क़र्ज़ की वापसी की मांग करता है, तो ऋणी को इसे तुरंत भुगतान करना होगा और क़र्ज़ चुकाने में देरी को पाप माना जाता है।[१४]
क़र्ज़ में ब्याज
- मुख़्य लेखः ब्याज
क़र्ज़ के मुद्दे से संबंधित न्यायिक मुद्दों (फ़िक़्ही मसाइल) में से एक ब्याज का मुद्दा है; क़र्ज़ में ब्याज़ का अर्थ है कि क़र्ज़दाता शर्त करे कि उसके द्वारा उधार दी गई राशि से अधिक वापस मिल जाएगा; उधार देते समय चाहे उसने इस बात को निर्दिष्ट किया हो या नहीं।[१५] जबकि कर्ज चुकाने के समय कर्जदार जो उधार के आलाव अपनी इच्छा से अतिरिक्त राशि देता है उसे शिया और सुन्नी न्यायविदों की राय के अनुसार ब्याज नही माना जाता और वह हराम भी नहीं है।[१६]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह, भाग 6, 1395 शम्सी, पेज 549
- ↑ देखेः सूर ए बक़रा आयत न 245; सूर ए मुज़म्मिल आयत न 20; सूर ए तग़ाबुन आयत न 17; सूर ए हदीद, आयत न 11 और 18
- ↑ तबरसी, मज्मा अल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 2, पजे 607
- ↑ जवादी आमोली, तसनीम, 1385 शम्सी, भाग 11, पेज 583
- ↑ मकारिम शिराज़ी, रेबा वा बांकदारी इस्लामी, 1380 शम्सी, पेज 127
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 10
- ↑ मकारिम शिराज़ी, रेबा वा बांकदारी इस्लामी, 1380 शम्सी, पेज 127
- ↑ फ़ल्लाहज़ादे, अहकाम ए दीन, 1374 शम्सी, पेज 186; इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1390 हिजरी, भाग 1, पेज 652
- ↑ सदूक़, सवाब अल-आमाल, 1406 हिजरी, पेज 289
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, पेज 95, हदीस 11; देखेः आमदी, ग़ेरर अल-हिकम, 1410 हिजरी, पेज 363, हदीस 8214; इब्ने अबिल हदीद, शरह नहज अल-बलाग़ा, 1964 ई, भाग 20, पेज 306, हदीस 503
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1390 हिजरी, भाग 1, पेज 651
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1390 हिजरी, भाग 1, पेज 651
- ↑ उसूली, रेसाला तौज़ीह अल-मसाइल (मराजेअ), दफ़्तर इंतेशारात इस्लामी, भाग 2, पेज 391, मस्अला 2275
- ↑ उसूली, रेसाला तौज़ीह अल-मसाइल (मराजेअ), दफ़्तर इंतेशारात इस्लामी, भाग 2, पेज 391, मस्अला 2276
- ↑ नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 25, पेज 5-7; मकारिम शिराज़ी, बररसी तोरूक फ़रार अज़ रेबा, 1380 शम्सी, पेज 17-19
- ↑ शफ़ीई माज़ंदरानी, वाम वा रेबा दर निगरिश इस्लामी, पेज 75
स्रोत
- क़ुरआन करीम
- आमदी, अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद, ग़ेरर अल-हिकम वा देरर अल-कलम, क़ुम, दार अल-किताब अल इस्लामी, 1410 हिजरी
- इब्ने अबिल हदीद, अब्दुल हमीद, शरह नजह अल-बलाग़, क़ुम, मकतब आयतुल्लाह अल-मरअशी नजफी, 1964 ई
- अहमदी, मियानजी, अली, ख़ातेरात आयतुल्लाह अली अहमदी मियांजी, बर असास नुस्ख़ा किताब खाना दीजीताल नूर
- उसूली, अहसान वा मुहम्मद हसन बनी हाशमी ख़ुमैनी, रेसाले तौज़ीह अल-मसाइल (मराजेअ), क़ुम, दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी
- इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, तहरीर अल-वसीला, अल-नजफ अल-अशफ़, मतबा अल-आदाब, 1390 हिजरी
- जवादी आमोली, अब्दुल्लाह, तसनीम, क़ुम, नशर इस्रा, 1385 शम्सी
- शरीफ़ राज़ी, मुहम्मद, गंजीन ए दानिशमंदान, भाग 9, क़ुम, नाशिरः लेखक 1370 शम्सी
- शफ़ीई माज़ंदरानी, मुहम्मद, वाम वा रेबा दर निगरिश इस्लामी, मशहद, आसतान क़ुद्स रजवी, 1379 शम्सी
- साफ़ी गुलपाएगानी, लुत्फ़ुल्लाह, जामे अल-अहकाम, क़ुम, दफ्तर नशरे आसारे हज़रत आयतुल्लाह अल-उज़मा साफ़ी गुलपाएगानी, 1385 शम्सी
- सदूक़, मुहम्मद बिन अली, सवाब अल-आमाल व एकाब अल-आमाल, क़ुम, दार अल शरीफ अल रज़ी लिन्नशर, 1406 हिजरी
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मज्मा अल-बयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, मुकद्दमा मुहम्मद जवाद बलाग़ी, तेहरान, इंतेशारात नासिर ख़ुसरो, 1372 शम्सी
- फ़ल्लाह जादे, मुहम्मद हुसैन, अहकाम दीनः मुताबिक़ बा फ़तावा ए मराजेअ बुज़ुर्ग तक़लीद, तेहरान, नशर मशअर, 1386 शम्सी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1407 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, बर रसी तोरुक फ़रार अज़ रेबा, तहय्ये वा तदवीन अबुल क़ासिम अल-यान नेज़ादी, क़ुम, मदरसा अल इमाम अली इब्ने अबी तालिब, 1380 शम्सी
- मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह मुताबिक मज़हब अहले-बैत, क़ुम, मरकज़ दाएरातुल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, 1382 शम्सी
- नजफी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम फ़ी शरह शरा ए अल-इस्लाम, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1362-1369 शम्सी