अलफ़ुसूल अलग़रविया फ़ी अलउसूल अलफ़िक़्हिया (पुस्तक)
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लेखक | मुहम्मद हुसैन हायरी इस्फ़हानी |
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विषय | न्यायशास्त्र के सिद्धांत |
भाषा | अरबी |
प्रकाशक | दार अल-अहया अल-उलुम अल-इस्लामिया |
प्रकाशन तिथि | 1404/1983-4 |
अल-फ़ुसूल अल-गरविया फ़ी अल-उसूल अल-फ़िक़्हिया, न्यायशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित अरबी भाषा में लिखी गई एक किताब है, जिसके लेखक मुहम्मद हुसैन हायरी इस्फ़हानी हैं, जिन्हें साहिबे-फुसूल के नाम से जाना जाता है। वह 13 वीं शताब्दी हिजरी में प्रसिद्ध शिया न्यायविदों में से एक थे। यह पुस्तक मदरसों (हौज़ा इल्मिया) की पाठ्यपुस्तकों में से एक थी, और आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी ने अल-ज़रिया में इस पर लिखे गये पंद्रह मार्जिन का उल्लेख किया है।
अल-फ़ुसूल में एक परिचय और तीन भाग हैं, उसके परिचय में न्यायशास्त्र के सिद्धातों की परिभाषा, वज़्अ, मजाज़ व हक़ीक़त, शरअ और मुतशर्रेया का सत्य, सहीह और सामान्य (अअम) और व्युत्पन्न (मुशतक़) जैसे विषयों का उल्लेख किया गया है, और प्रथम भाग में आज्ञा का स्वरूप (सीग़ए अम्र), अनिवार्य के प्रकार (वाजिब की क़िस्में), निषेध (नहयी) और इज्तेमाए अम्र व नहयी आदि विषयों का ज़िक्र किया गया है। दूसरे भाग में क़ुरआन के प्रमाण होने, सर्वसम्मति, ख़बरे वाहिद और चौदह मासूम (अ) के क्रियाओं, तक़रीर और मौन की बहस की गई है, और तीसरे भाग में तर्कसंगत तर्क (अक़्ली दलीलों), इज्तेहाद और तक़लीद, संतुलन और प्राथमिकताएं (तआदुल व तराजीह) जैसे मुद्दों का उल्लेख किया गया हैं।
फ़ुसूल अल ग़रविया पुस्तक 1232 हिजरी में प्रकाशित हुई थी और इसके विभिन्न संस्करण हैं। इस कार्य की एक पांडुलिपि (लिखित तिथि: 1249 हिजरी) आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी की लाइब्रेरी में रखी हुई है।
पुस्तक का महत्व
अल-फ़ुसूल अल-ग़रविया फ़ी अल-उसूल अल-फ़िक़्हिया न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विज्ञान पर शिया मदरसों की एक पाठ्यपुस्तक थी और विद्वानों के बीच प्रसिद्ध थी।[1] कहा जाता है कि अल-फ़ुसूल अल-ग़रविया की प्रसिद्धि के कारण इसके लेखक को साहिब अल-फ़ुसूल [2] के नाम से भी जाना जाने लगा।[2]
"रौज़ात अल-जन्नात" पुस्तक के लेखक सय्यद मोहम्मद बाक़िर ख़ुनसारी ने इसे न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के ज्ञान और गहन विचारों से युक्त सर्वोत्तम कार्यों और पुस्तकों में से एक माना है।[3] शिया मदरसों में अल-फ़ुसूल के पढ़ाये जाने के कारण, इसके बारे में विभिन्न राय व्यक्त की गई हैं, उनमें से जैसे, शेख़ मुर्तज़ा अंसारी ने अपनी किताब रसायल में बहुत बार अल-फ़ुसूल के दृृष्टिकोणों की समीक्षा और आलोचना की है। [4] कहा गया है कि मोहम्मद काज़िम ख़ुरासानी ने अपनी किताब किफ़ायतुल उसूल में 70 मामलों में लेखक के उसूले फ़िक़्ह के नज़रियों को प्रस्तुत किया है। [5]
लेखक
- मुख्य लेख: मोहम्मद हुसैन हायरी इस्फ़हानी
मुहम्मद हुसैन बिन अब्दुल रहीम इस्फ़हानी हायरी (मृत्यु 1254 हिजरी [6] या 1261 हिजरी [7] के आसपास) 13वीं चंद्र शताब्दी में शिया न्यायविदों और उसूले फ़िक़्ह के विद्वानों में से एक हैं।[8] उन्होंने अपने भाई मोहम्मद तक़ी इस्फ़हानी, हिदायतुल-मुस्तर्शेदीन के लेखक और अली बिन जाफ़र काशिफ़ अल-गे़ता के अधीन अध्ययन किया। [9] वह कर्बला में न्यायशास्त्र और उसके सिद्धांत पढ़ाया करते थे [10] और वह एक मरजए तक़लीद थे। [11]
ऐसा कहा गया है कि साहिबे फ़ुसूल के बहुत से छात्र थे; जिसमें सय्यद हुसैन कोह कमरेई, सय्यद अली नक़ी तबातबाई, सय्यद ज़ैनुल आबेदीन तबातबाई और मुहम्मद हुसैन आले यासीन शामिल थे। [12] वह इमाम हुसैन (अ) के रौज़े के इमाम थे और उनके स्वर्गगवास के बाद उन्हें वहीं दफ़्न किया गया है।[13]