अबू बक्र मख़्ज़ूमी
अबू बक्र मख़्ज़ूमी (अरबी: أبو بكر المخزومي) जिन्हें राहिबे क़ुरैश के रूप में जाना जाता है (मृत्यु 93-95 हिजरी), ताबेईन और मदीना के सात न्यायविदों में से एक थे। उन्होंने मक्का में इमाम हुसैन (अ) से मुलाक़ात की और उनसे कूफ़ा न जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इस परोपकार का कारण रिश्तेदारी है क्योंकि वे दोनों क़ुरैश जनजाति से थे।
जन्म और मृत्यु
अबू बक्र मख़्ज़ूमी मदीना के सात सुन्नी न्यायशास्त्रियों और क़ुरैश के बुज़ुर्गों में से एक थे। उनका जन्म उमर बिन ख़त्ताब के ख़िलाफ़त के दौरान हुआ था और उनकी मृत्यु वर्ष 93 या 94 या 95 हिजरी में हुई थी।[१]
नाम, वंश और प्रसिद्धि
अबू बक्र मख़्ज़ूमी के नाम और उपनाम को लेकर विवाद है; तहज़ीब अल-तहज़ीब में कहा गया है कि कुछ लोगों का मानना है कि उसका नाम मुहम्मद और उपनाम अबू बक्र था, जबकि अन्य के अनुसार उसका नाम अबू बक्र और उपनाम अबू अब्दुर्रहमान था। इब्ने हजर ने कहा है कि अबू बक्र उसका नाम और उपनाम था।[२]
अबू बक्र का पिता अब्दुर्रहमान बिन हारिस बिन हेशाम था।[३] हालांकि कुछ स्रोतों में उसका उल्लेख अबू बक्र बिन हारिस बिन हेशाम के रूप में भी किया गया है।[४] हारिस बिन हेशाम बनी मख़्ज़ूम जनजाति से था, जो अपने भाई अबू जहल के साथ बद्र की लड़ाई में बहुदेववादियों की श्रेणी में था, अबू जहल इस लड़ाई में मारा गया और हारिस भाग निकला।[५] ओहद की लड़ाई में वह भी बहुदेववादियों की श्रेणी में था और मक्का की विजय के दौरान उसने इस्लाम धर्म अपना लिया।[६]
बनी मख्ज़ूम जनजाति से संबंधित होने के कारण उन्हें अबू बक्र मख्ज़ूमी के नाम से जाना जाता था। इसके अलावा, इब्ने हजर अस्क़लानी के अनुसार, क्योंकि वह बहुत नमाज़ पढ़ते थे, लोग उन्हें राहिबे क़ुरैश कहते थे।[७]
इमाम हुसैन (अ) से मुलाक़ात
मक्का में कर्बला की घटना के दौरान अबू बक्र मख़्ज़ूमी ने इमाम हुसैन (अ) से मुलाक़ात की और दयालुता दिखाते हुए उन्हें कूफ़ा जाने से मना किया। उन्होंने इमाम हुसैन (अ) के साथ अपनी रिश्तेदारी को अपनी उदारता का कारण बताया और उन्हें इमाम अली (अ) और इमाम हसन (अ) के प्रति कूफ़ा के लोगों की बेवफाई की याद दिलाई। इमाम हुसैन (अ) ने उनकी उदारता के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। चौथी शताब्दी हिजरी के शिया इतिहासकार अली बिन हुसैन मसऊदी ने इमाम हुसैन (अ) के साथ अपनी बातचीत का उल्लेख किया है।[८]
रवायत
अबू बक्र मख़्ज़ूमी को सुन्नी हदीस कथावाचकों में से एक माना जाता है। उन्होंने अपने पिता, अबू हुरैरा, अम्मार बिन यासिर, नोफ़ल बिन मुआविया, आयशा, उम्मे सल्मा, उम्मे मअक़ल असदी, अब्दुर्रहमान बिन मुतीअ, अबी मसऊद अंसारी और अन्य से हदीसों का वर्णन किया है। इसके अलावा, ज़ोहरी, उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ और हकम बिन उतैबा जैसे कथावाचकों ने उनसे हदीसें वर्णन की हैं। उनकी हदीसों का उल्लेख सुन्नी स्रोतों में किया गया है और कुछ सुन्नी लोग उन्हें भरोसेमंद (सेक़ा) मानते हैं: इब्ने हजर की रिपोर्ट के अनुसार, इब्ने हिब्बान ने उन्हें भरोसेमंद लोगों में शामिल किया है।[९] हालाँकि, शिया स्रोतों में, इमाम हुसैन (अ) के साथ उनकी बातचीत का उल्लेख किया गया है।[१०]
फ़ुटनोट
- ↑ इब्ने हजर, तहज़ीब अल-तहजीब, 1404 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 28।
- ↑ इब्ने हजर, तहज़ीब अल-तहजीब, 1404 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 28।
- ↑ इब्ने असीर, असद अल-ग़ाबा, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 327; इब्ने हजर, तहज़ीब अल-तहजीब, 1404 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 28।
- ↑ मसऊदी, मोरुज अल ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 56।
- ↑ इब्ने अब्दुल बर्र, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 301।
- ↑ इब्ने अब्दुल बर्र, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 302।
- ↑ इब्ने हजर, तहज़ीब अल-तहजीब, 1404 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 28।
- ↑ मसऊदी, मोरुज अल ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 56।
- ↑ इब्ने हजर, तहज़ीब अल-तहजीब, 1404 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 28।
- ↑ मसऊदी, मोरुज अल ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 56।
स्रोत
- इब्ने असीर, अली इब्ने मुहम्मद, असद अल ग़ाबा फ़ी मारेफ़त अल सहाबा, बेरूत, दार अल-फ़िक्र,1409 हिजरी/1989 ईस्वी।
- इब्ने हजर असक्लानी, तहज़ीब अल-तहज़ीब, बेरूत, दार अल-फ़िक्र लिल-तबाआ व अल नशर व अल तौज़िअ, 1404 हिजरी/1984 ईस्वी।
- इब्ने अब्दुल बर्र, यूसुफ़ बिन अब्दुल्लाह, अल-इस्तियाब फ़ी मारेफ़त अल असहाब, अली मुहम्मद बजावी द्वारा शोध, बेरूत, दार अल-जील, 1412 हिजरी/1992 ईस्वी।
- पाकेतची, अहमद, मदख़ले इस्लाम दर दाएरतुल मआरिफ़ बुज़ुर्ग इस्लामी, तेहरान, मरकज़े दाएरतुल मआरिफ़ बुज़ुर्ग इस्लामी।
- मसऊदी, अली बिन हुसैन, मोरुज अल ज़हब व मआदिन अल-जौहर, अनुसंधान: असद दाग़िर, क़ुम, दार अल-हिजरा, 1409 हिजरी।