"इमाम अली नक़ी अलैहिस सलाम": अवतरणों में अंतर
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इमाम अली बिन मुहम्मद 220 हिजरी में आठ साल की उम्र में [[इमामत]] पर पहुंचे। <ref> क़ुम्मी, मुंतहा अल-आमाल, 1379, खंड 3, पृष्ठ 1878</ref> सूत्रों के अनुसार, इमामत की शुरुआत में इमाम हादी (अ.स.) की कम उम्र के कारण [[इमामिया|शियों]] के बीच संदेह पैदा नहीं हुआ; क्योंकि उनके पिता [[इमाम मुहम्मद तक़ी (अ)]] की इमामत भी कम उम्र में ही शुरू हो गई थी। <ref> हुसैन, बारहवें इमाम की अनुपस्थिति का राजनीतिक इतिहास, 2005, पृष्ठ 81।</ref> [[शेख़ मुफ़ीद]] के अनुसार, नौवें इमाम के बाद, शियों ने, कुछ लोगों को छोड़कर, इमाम हादी (अ.स.) की इमामत स्वीकार कर ली। <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 300।</ref> उन्होने [[मूसा मुबरक़ा]] को अपना इमाम माना। हालाँकि, कुछ समय बाद, वे अपने विश्वास से वापस लौट आये और सामान्य शिया में शामिल हो गये। <ref> नोबख्ती, फ़ेर्क़ अल-शिया, दार अल-अज़वा, पीपी. 91-92.</ref> | इमाम अली बिन मुहम्मद 220 हिजरी में आठ साल की उम्र में [[इमामत]] पर पहुंचे। <ref> क़ुम्मी, मुंतहा अल-आमाल, 1379, खंड 3, पृष्ठ 1878</ref> सूत्रों के अनुसार, इमामत की शुरुआत में इमाम हादी (अ.स.) की कम उम्र के कारण [[इमामिया|शियों]] के बीच संदेह पैदा नहीं हुआ; क्योंकि उनके पिता [[इमाम मुहम्मद तक़ी (अ)]] की इमामत भी कम उम्र में ही शुरू हो गई थी। <ref> हुसैन, बारहवें इमाम की अनुपस्थिति का राजनीतिक इतिहास, 2005, पृष्ठ 81।</ref> [[शेख़ मुफ़ीद]] के अनुसार, नौवें इमाम के बाद, शियों ने, कुछ लोगों को छोड़कर, इमाम हादी (अ.स.) की इमामत स्वीकार कर ली। <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 300।</ref> उन्होने [[मूसा मुबरक़ा]] को अपना इमाम माना। हालाँकि, कुछ समय बाद, वे अपने विश्वास से वापस लौट आये और सामान्य शिया में शामिल हो गये। <ref> नोबख्ती, फ़ेर्क़ अल-शिया, दार अल-अज़वा, पीपी. 91-92.</ref> | ||
साद बिन अब्दुल्लाह अशअरी ने उन लोगों के इमाम हादी (अ.स.) के पास वापस लौट आने को उनके प्रति मूसा मुबारका की नापसंदगी का परिणाम माना है। <ref> अशअरी क़ोमी, निबंध और अंतर, 1361, पृष्ठ 99।</ref> [[शेख़ मुफ़ीद]] | साद बिन अब्दुल्लाह अशअरी ने उन लोगों के इमाम हादी (अ.स.) के पास वापस लौट आने को उनके प्रति मूसा मुबारका की नापसंदगी का परिणाम माना है। <ref> अशअरी क़ोमी, निबंध और अंतर, 1361, पृष्ठ 99।</ref> [[शेख़ मुफ़ीद]] <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 300।</ref> और [[इब्न शहर आशोब]], <ref> इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 402।</ref> ने इमाम हादी (अ.स.) की इमामत पर शियों की सहमति और उनके अलावा किसी अन्य द्वारा इमामत का दावा न करने को उनकी इमामत का एक मज़बूत सबूत माना है। <ref> अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 20।</ref> [[मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी]] और शेख़ मुफीद ने अपने कार्यों में उनकी इमामत के प्रमाण से संबंधित ग्रंथों को सूचीबद्ध किया है। <ref> कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृ. 323-325; मोफिद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 298।</ref> | ||
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(अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 304।) | (अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 हिजरी, पृष्ठ 304।) | ||
इब्न शहर आशोब के अनुसार, शिया पिछले इमामों के कथनों के माध्यम से इमाम अली बिन मुहम्मद की इमामत से आगाह हुए; ऐसी हदीसों के ज़रिये से जो इस्माइल बिन मेहरान और [[अबू जाफ़र अशअरी]] जैसे रावियों द्वारा उल्लेख की गई हैं। | इब्न शहर आशोब के अनुसार, शिया पिछले इमामों के कथनों के माध्यम से इमाम अली बिन मुहम्मद की इमामत से आगाह हुए; ऐसी हदीसों के ज़रिये से जो इस्माइल बिन मेहरान और [[अबू जाफ़र अशअरी]] जैसे रावियों द्वारा उल्लेख की गई हैं। <ref> इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 एएच, खंड 4, पृष्ठ 402।</ref> | ||
*'''समकालीन ख़लीफ़ा''' | *'''समकालीन ख़लीफ़ा''' | ||
इमाम हादी (अ.स.) 33 वर्षों तक इमामत के प्रभारी रहे (220-254 हिजरी) | इमाम हादी (अ.स.) 33 वर्षों तक इमामत के प्रभारी रहे (220-254 हिजरी) <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 297; तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 109।</ref> इस अवधि के दौरान, कई अब्बासी ख़लीफ़ा सत्ता में आए। उनकी इमामत की शुरुआत मोअतसिम की खिलाफ़त के साथ हुई और इसका अंत मोअतज़ की खिलाफ़त के साथ हुआ। <ref> तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 109।</ref> लेकिन, इब्न शहर आशोब ने उनकी इमामत के अंत का समय मोअतमिद के ज़माने में माना है। <ref> इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1379 एएच, खंड 4, पृष्ठ 401।</ref> | ||
शियों के 10वें इमाम ने अब्बासी ख़लीफा [[मोअतसिम]] की ख़िलाफ़त के दौरान अपनी इमामत के सात साल बिताए। | शियों के 10वें इमाम ने अब्बासी ख़लीफा [[मोअतसिम]] की ख़िलाफ़त के दौरान अपनी इमामत के सात साल बिताए। <ref> पिशवाई, सीरए पेशवायान, 1374, पृष्ठ 595।</ref> तारीख़े सियासी ग़ैबत इमामे दवाज़दहुम (अ) पुस्तक के लेखक जासिम हुसैन के अनुसार, मोतसिम इमाम अली नक़ी के समय में इमाम मुहम्मद तक़ी के समय की तुलना में शियों पर कम सख्त था। और वह अलवियों के प्रति अधिक सहिष्णु हो गया था, और उसके दृष्टिकोण में यह बदलाव आर्थिक स्थिति में सुधार और अलवियों की बग़ावत में कमी के कारण हुआ था। <ref> जसीम, बारहवें इमाम की अनुपस्थिति का राजनीतिक इतिहास, 1376, पृष्ठ 81।</ref> इसके अलावा, 10वें इमाम की इमामत के समय से लगभग पांच साल, वासिक़ की खिलाफ़त के साथ, चौदह साल [[मुतवक्किल]] की खिलाफ़त के साथ, छह महीने मुस्तनसर की खिलाफ़त के साथ, दो साल नौ महीने मुस्तईन की खिलाफ़त के साथ, और आठ साल से अधिक समय तक [[मोअतज़]] की ख़िलाफ़त के साथ रहे। <ref> तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृ. 109 और 110।</ref> | ||
'''सामर्रा के लिये समन''' | '''सामर्रा के लिये समन''' | ||
233 हिजरी में, [[मुतावक्किल अब्बासी]] ने इमाम हादी (अ.स.) को मदीना से सामर्रा आने के लिए मजबूर किया। | 233 हिजरी में, [[मुतावक्किल अब्बासी]] ने इमाम हादी (अ.स.) को मदीना से सामर्रा आने के लिए मजबूर किया। <ref> याकूबी, तारिख़ याकूबी, बेरूत, खंड 2, पृष्ठ 484।</ref> [[शेख़ मुफ़ीद]] ने मुतावक्किल की इस कार्रवाई को 243 हिजरी में उल्लेख किया है; <ref> शेख मोफिद, अल-अरशाद, खंड 2, पृष्ठ 310।</ref> लेकिन इस्लामी इतिहास के शोधकर्ता रसूल जाफ़रियान के अनुसार, यह तारीख़ सही नहीं है। <ref> जाफ़रियान, इमामों का बौद्धिक और राजनीतिक जीवन, 2013, पृष्ठ 503।</ref> कहा गया है कि इस कार्रवाई का कारण मदीना में अब्बासी सरकार के एजेंट अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 309।</ref> और ख़लीफा द्वारा मक्का और मदीना में नियुक्त, [[इमाम ए जमाअत|मंडली के इमाम]] बरिहा अब्बासी की इमाम (अ) का ख़िलाफ़ चुग़ली है। <ref> मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 233।</ref> और इसी तरह से [[इमामिया|शियों]] के 10वें [[इमाम]] के लिए लोगों की चाहत की भी खबरें बयान की गईं हैं। <ref> इब्न जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1426 एएच, खंड 2, पृष्ठ 493।</ref> | ||
मसऊदी की रिपोर्ट के अनुसार, बरिहा ने मुतावक्किल को लिखे एक पत्र में उनसे कहा: "यदि आप [[मक्का]] और मदीना चाहते हैं, तो अली बिन मुहम्मद को वहां से निकाल दें; क्योंकि वह लोगों को खुद को आमंत्रित करते हैं और उन्होने अपने चारों ओर एक बड़ी संख्या को इकट्ठा कर लिया है।" | मसऊदी की रिपोर्ट के अनुसार, बरिहा ने मुतावक्किल को लिखे एक पत्र में उनसे कहा: "यदि आप [[मक्का]] और मदीना चाहते हैं, तो अली बिन मुहम्मद को वहां से निकाल दें; क्योंकि वह लोगों को खुद को आमंत्रित करते हैं और उन्होने अपने चारों ओर एक बड़ी संख्या को इकट्ठा कर लिया है।" <ref> मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 233।</ref> तदनुसार, मुतावक्किल द्वारा यहया बिन हरसमा को इमाम हादी को सामर्रा में स्थानांतरित करने के लिए नियुक्त किया गया। <ref> मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 233।</ref> इमाम हादी (अ.स.) ने मुतावक्किल को एक पत्र लिखा और उसमें उन्होंने अपने खिलाफ़ कही गईं बातों को ख़ारिज कर दिया। <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 309।</ref> लेकिन जवाब में मुतावक्किल ने सम्मानपूर्वक उन्हें सामर्रा की ओर यात्रा करने के लिए कहा। <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 309।</ref> मुतावक्किल के पत्र का पाठ [[शेख़ मुफ़ीद]] और [[शेख़ कुलैनी]] की किताबों में उद्धृत किया गया है। <ref मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 309; कुलिनी, अल-काफ़ी, 1407 एएच, खंड 1, पृष्ठ 501।</ref> | ||
रसूल जाफ़रियान के अनुसार, मुतवक्किल ने इमाम हादी (अ.स.) को [[सामर्रा]] में स्थानांतरित करने की योजना इस तरह बनाई थी कि लोगों की संवेदनाएँ न भड़कें और इमाम की जबरन यात्रा का कोई ख़तरनाक परिणाम न निकले; | रसूल जाफ़रियान के अनुसार, मुतवक्किल ने इमाम हादी (अ.स.) को [[सामर्रा]] में स्थानांतरित करने की योजना इस तरह बनाई थी कि लोगों की संवेदनाएँ न भड़कें और इमाम की जबरन यात्रा का कोई ख़तरनाक परिणाम न निकले; <ref> जाफ़रियान, रसूल, इमामों का बौद्धिक और राजनीतिक जीवन, 2008, पृष्ठ 505।</ref> लेकिन सुन्नी विद्वानों में से एक सिब्ते बिन जौज़ी ने यहया बिन हरसमा की एक रिपोर्ट उल्लेख की है, जिसके अनुसार मदीना के लोग बहुत परेशान और उत्तेजित हो गये थे, और उनका संकट इस स्तर तक पहुंच गया कि वे विलाप करने और चिल्लाने लगे, जो मदीना में उससे पहले कभी नहीं देखा गया। <ref> इब्न जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1426 एएच, खंड 2, पृष्ठ 492।</ref> [[मदीना]] छोड़ने के बाद इमाम हादी (अ.स.) काज़मैन में दाखिल हुए और वहां के लोगों ने उनका स्वागत किया गया। <ref> मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 236-237।</ref> [[काज़मैन]] में, वह ख़ुजिमा बिन हाज़िम के घर गए और वहां से उन्हें सामर्रा की ओर भेज दिया गया। <ref> मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 236-237।</ref> | ||
[[शेख़ मुफ़ीद]] के अनुसार, मुतवक्किल स्पष्ट रूप से इमाम (अ) सम्मान करता था; लेकिन वह उनके खिलाफ़ साजिश रचता रहता था। | [[शेख़ मुफ़ीद]] के अनुसार, मुतवक्किल स्पष्ट रूप से इमाम (अ) सम्मान करता था; लेकिन वह उनके खिलाफ़ साजिश रचता रहता था। <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 311।</ref> [[तबरसी]] की रिपोर्ट के अनुसार, मुतावक्किल का उद्देश्य लोगों की नजर में इमाम (अ) की महानता और इज़्ज़त को कम करना था। <ref> तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 एएच, खंड 2, पृष्ठ 126।</ref> शेख़ मोफ़ीद के अनुसार, जब पहले दिन इमाम ने सामरा में प्रवेश किया तो उन्हे मुतावक्किल के आदेश से एक दिन उन्होंने उन्हे "ख़ाने सआलीक़" (वह स्थान जहां भिखारी और ग़रीब इकट्ठा होते हैं) में रखा और अगले दिन वे उन्हे उस घर में ले गए जो उसके निवास के लिए था। <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 311।</ref> सालेह बिन सईद के अनुसार, यह कार्रवाई इमाम हादी (अ.स.) को अपमानित करने के इरादे से की गई थी। <ref> मोफिद, अल-अरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 311।</ref> | ||
इमाम के प्रवास के दौरान अब्बासी शासकों उनसे कठोर व्यवहार किया। उदाहरण के लिए, उनके रहने के कमरे में एक क़ब्र खोद कर रखी थी। इसके अलावा, वह उन्हे रात में और बिना किसी सूचना के ख़लीफा के महल में पेश करते थे और वह शियों को उनके साथ संवाद करने से रोकते थे। | इमाम के प्रवास के दौरान अब्बासी शासकों उनसे कठोर व्यवहार किया। उदाहरण के लिए, उनके रहने के कमरे में एक क़ब्र खोद कर रखी थी। इसके अलावा, वह उन्हे रात में और बिना किसी सूचना के ख़लीफा के महल में पेश करते थे और वह शियों को उनके साथ संवाद करने से रोकते थे। <ref> मजलेसी, बिहार अनवर, 1403 एएच, खंड 59, पृष्ठ 20।</ref> कुछ लेखकों ने इमाम हादी के साथ मुतवक्किल के शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारणों को इस प्रकार लिखा है: | ||
* धार्मिक दृष्टिकोण से, मुतवक्किल का झुकाव [[अहले-हदीस]] की ओर था, जो मोअतज़ेला और शिया के खिलाफ़ थे, और अहले-हदीस उसे शियों के खिलाफ़ भड़काया करते थे। | * धार्मिक दृष्टिकोण से, मुतवक्किल का झुकाव [[अहले-हदीस]] की ओर था, जो मोअतज़ेला और शिया के खिलाफ़ थे, और अहले-हदीस उसे शियों के खिलाफ़ भड़काया करते थे। | ||
* मुतावक्किल अपनी सामाजिक स्थिति को लेकर चिंतित था और [[शियों के इमाम|शिया इमामों]] के साथ लोगों के संबंध से डरता था। इसलिए, वह इस संबंध को ख़त्म कर देने की कोशिश करता था। | * मुतावक्किल अपनी सामाजिक स्थिति को लेकर चिंतित था और [[शियों के इमाम|शिया इमामों]] के साथ लोगों के संबंध से डरता था। इसलिए, वह इस संबंध को ख़त्म कर देने की कोशिश करता था। <ref> तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 एएच, पृष्ठ 438।</ref> इसी संबंध में, मुतवक्किल ने [[इमाम हुसैन (अ.स.)]] के रौज़े को नष्ट कर दिया और इमाम हुसैन के तीर्थयात्रियों के साथ सख्त व्यवहार किया करता था। <ref> अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल-तालेबेयिन, 1987, पृष्ठ 478 | ||
मुतवक्किल के बाद उसका बेटा मुंतसिर ख़िलाफ़त की गद्दी पर आया। इस अवधि के दौरान, इमाम हादी (अ.स.) सहित अलवी परिवार पर से सरकार का दबाव कम हो गया था। | </ref> | ||
मुतवक्किल के बाद उसका बेटा मुंतसिर ख़िलाफ़त की गद्दी पर आया। इस अवधि के दौरान, इमाम हादी (अ.स.) सहित अलवी परिवार पर से सरकार का दबाव कम हो गया था। <ref> जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, 2013, पृष्ठ 511।</ref> | |||
'''ग़ालियों से मुक़ाबेला''' | '''ग़ालियों से मुक़ाबेला''' | ||
ग़ाली इमाम हादी की इमामत के दौरान सक्रिय थे। वह खुद को इमाम हादी के साथियों और क़रीबियों के रूप में पेश करते थे और इमाम हादी सहित [[शियों के इमाम|शिया इमामों]] को ओर कुछ बातों की निस्बत देते थे, जिन्हे [[अहमद बिन मुहम्मद बिन ईसा अशअरी]] के इमाम हादी को लिखे पत्र के अनुसार, सुनकर दिलों में घृणा पैदा हो जाती थी। दूसरी ओर, चूँकि इसका श्रेय इमामों को दिया गया था, इसलिए उनमें उन्हें नकारने या अस्वीकार करने का साहस नहीं होता था। ग़ाली दायित्वों (वाजिबात) एवं निषेधों (मुहर्रेमात) की व्याख्या (तावील) करते थे। उदाहरण के लिए, आयत '''وَأَقِيمُواْ الصَّلاَةَ وَآتُواْ الزَّكَاةَ''' वाक़िमवा अल-सलता वा अतुवा अल-ज़कात | ग़ाली इमाम हादी की इमामत के दौरान सक्रिय थे। वह खुद को इमाम हादी के साथियों और क़रीबियों के रूप में पेश करते थे और इमाम हादी सहित [[शियों के इमाम|शिया इमामों]] को ओर कुछ बातों की निस्बत देते थे, जिन्हे [[अहमद बिन मुहम्मद बिन ईसा अशअरी]] के इमाम हादी को लिखे पत्र के अनुसार, सुनकर दिलों में घृणा पैदा हो जाती थी। दूसरी ओर, चूँकि इसका श्रेय इमामों को दिया गया था, इसलिए उनमें उन्हें नकारने या अस्वीकार करने का साहस नहीं होता था। ग़ाली दायित्वों (वाजिबात) एवं निषेधों (मुहर्रेमात) की व्याख्या (तावील) करते थे। उदाहरण के लिए, आयत '''وَأَقِيمُواْ الصَّلاَةَ وَآتُواْ الزَّكَاةَ''' वाक़िमवा अल-सलता वा अतुवा अल-ज़कात <ref> सूरह बक़रह, आयत 43</ref> में [[नमाज़]] और [[ज़कात]] का अर्थ नमाज़ पढ़ने और माल देने के बजाय विशेष लोगों को मानते थे। इमाम हादी ने अहमद बिन मुहम्मद के जवाब में लिखा कि ऐसी व्याख्याएँ हमारे धर्म का हिस्सा नहीं हैं। उनसे बचें। <ref> कश्शी, रेजाल अल-कश्शी, 1409 एएच, पृष्ठ 517।</ref> फ़तह बिन यज़ीद जुरजानी का मानना था कि खाना-पीना इमामत के साथ संगत नहीं है और इमामों को खाने-पीने की ज़रूरत नहीं है। उनके जवाब में, इमाम हादी ने [[अंबिया|पैग़म्बरों]] के खाने-पीने और उनके बाजार में चलने फिरने का ज़िक्र किया और कहा: "हर शरीर इसी तरह होता है, भगवान को छोड़कर, जिसने शरीर को आकार दिया है।" <ref> अर्बेली, कशफ़ अल-ग़ुम्मा, 1381 एएच, खंड 2, पृष्ठ 338।</ref> | ||
सहल बिन ज़ियाद के पत्र के जवाब में शियों के 10वें [[इमाम]] ने अली बिन हसक़ा के ग़ुलू के बारे में जानकारी दी थी, उन्होंने अली बिन हसका की [[अहले-बैत]] से संबद्धता को ख़ारिज कर दिया, उसके शब्दों को अमान्य माना और शियों को उससे दूर रहने के लिए कहा और उसके क़त्ल का आदेश भी जारी किया। इस पत्र के अनुसार, अली बिन हस्का इमाम हादी की दिव्यता (ईश्वर होने) में विश्वास करता था और उनकी ओर से खुद को बाब और पैगंबर के रूप में पेश करता था। | सहल बिन ज़ियाद के पत्र के जवाब में शियों के 10वें [[इमाम]] ने अली बिन हसक़ा के ग़ुलू के बारे में जानकारी दी थी, उन्होंने अली बिन हसका की [[अहले-बैत]] से संबद्धता को ख़ारिज कर दिया, उसके शब्दों को अमान्य माना और शियों को उससे दूर रहने के लिए कहा और उसके क़त्ल का आदेश भी जारी किया। इस पत्र के अनुसार, अली बिन हस्का इमाम हादी की दिव्यता (ईश्वर होने) में विश्वास करता था और उनकी ओर से खुद को बाब और पैगंबर के रूप में पेश करता था। <ref> कश्शी, रेजाल अल-कश्शी, 1409 एएच, पीपी 518-519।</ref> इमाम हादी ने ग़ालियों जैसे, नुसैरिया संप्रदाय के संस्थापक मुहम्मद बिन नुसैर निमिरी, <ref> नौबख्ती, फ़ेर्क अल-शिया, दार अल-अज़वा, पृष्ठ 93।</ref> हसन बिन मुहम्मद जिसे इब्न बाबा के नाम से जाना जाता है और फ़ारिस बिन हातिम क़ज़विनी को भी शाप दिया था। <ref> कश्शी, रेजाल अल-कश्शी, 1409 एएच, पृष्ठ 520।</ref> | ||
खुद को इमाम हादी (अ.स.) के साथी के रूप में पेश करने वाले अन्य लोगों में अहमद बिन मुहम्मद सयारी भी था, | खुद को इमाम हादी (अ.स.) के साथी के रूप में पेश करने वाले अन्य लोगों में अहमद बिन मुहम्मद सयारी भी था, <ref> अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 एएच, पृष्ठ 323।</ref> जिसे अधिकांश विद्वान ग़ाली और धर्म भ्रष्ट मानते थे। <ref> देखें: नज्जाशी, रेजाल अल-नज्जाशी, 1365, पृष्ठ 80, तूसी, अल फ़हरिस्त, 1420 एएच, पृष्ठ 57।</ref> उसकी किताब अल क़राआत उन कथनों के मुख्य स्रोतों में से है जिसे कुछ लोगों ने [[क़ुरआन]] को विकृत करने (तहरीफ़) के लिए उपयोग किया है। <ref> जाफ़रियान, शिया और सुन्नत के बीच एकज़ुबा तहरीफ़ अल-कुरान, 1413 एएच, पीपी 76-77।</ref> इमाम हादी (अ.स.) ने इब्ने शोअबा हर्रानी द्वारा वर्णित एक ग्रंथ में क़ुरआन के अल्लाह की ओर से होने और उसके वहयी होने पर ज़ोर दिया और इसे हदीसों का मूल्यांकन करने और सही को ग़लत से अलग करने के लिए एक सटीक मानदंड के रूप में पेश किया।। <ref> इब्ने शोअबा हर्रानी, तोहफ़ अल-उक़ूल, 1404 एएच, पीपी. 459-458</ref> इसके अलावा, इमाम हादी ने उन शियों का बचाव किया जिन पर ग़लत तौर से ग़ुलू का आरोप लगाया गया था। उदाहरण के लिए, जब क़ुम वालों ने मुहम्मद बिन उरमा को ग़ुलू के आरोप में [[क़ुम]] से निष्कासित कर दिया, तो उन्होंने क़ुम के लोगों को एक पत्र लिखा और उन्हें ग़ुलू के आरोप से बरी किया। <ref> नज्जाशी, रेजाल अल-नज्जाशी, 1365, पृष्ठ 329।</ref> | ||
'''शियों के साथ संचार''' | '''शियों के साथ संचार''' | ||
इस तथ्य के बावजूद कि इमाम हादी के समय में, सत्तारूढ़ अब्बासी ख़लीफ़ाओं द्वारा गंभीर उत्पीड़न किया जा रहा था, इमाम हादी (अ.स.) और [[इराक़]], [[यमन]], [[मिस्र]] और अन्य क्षेत्रों के शियों के बीच एक संबंध स्थापित था। | इस तथ्य के बावजूद कि इमाम हादी के समय में, सत्तारूढ़ अब्बासी ख़लीफ़ाओं द्वारा गंभीर उत्पीड़न किया जा रहा था, इमाम हादी (अ.स.) और [[इराक़]], [[यमन]], [[मिस्र]] और अन्य क्षेत्रों के शियों के बीच एक संबंध स्थापित था। <ref> जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, पृष्ठ 631।</ref> वह वकालत संगठन और पत्र लेखन के माध्यम से शियों के साथ संपर्क में थे। रसूल जाफ़रियान के अनुसार, इमाम हादी (अ.स.) के समय में, क़ुम ईरान के शियों का सबसे महत्वपूर्ण सभा केंद्र था, और इस शहर के शियों और [[शियो के इमाम|इमामों (अ.स.)]] के बीच मजबूत संबंध थे। <ref> जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, पृष्ठ 654।</ref> मुहम्मद बिन दाऊद क़ुम्मी और मुहम्मद तलहा क़ुम और आसपास के शहरों से इमाम हादी तक लोगों के खुम्स, उपहार और प्रश्न पहुचाया करते थे। <ref> अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-हादी, 1410 एएच, पृष्ठ 45।</ref> जाफेरियान के अनुसार, इमाम के वकील खुम्स इकट्ठा करने और इसे इमाम को भेजने के अलावा, धार्मिक और न्यायिक समस्याओं को हल करने के साथ-साथ अपने क्षेत्र में अगले [[इमाम]] की इमामत स्थापित करने में भी भूमिका निभाते थे। <ref> जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, पृष्ठ 631।</ref> साज़मान ए वकालत नामक पुस्तक के लेखक मोहम्मद रज़ा जब्बारी ने अली बिन जाफ़र हमानी, अबू अली बिन राशिद और हसन बिन अब्द रब्बेह का उल्लेख इमाम हादी के वकील के रूप में किया है। <ref> जब्बारी, वकील संगठन, 2013, खंड 2, पृ. 513-514, 537।</ref> | ||
'''क़ुरआन के ख़ल्क़ होने का मसला''' | '''क़ुरआन के ख़ल्क़ होने का मसला''' | ||
शियों में से एक को लिखे पत्र में, इमाम हादी (अ.स.) ने उनसे क़ुरआन के ख़ल्क़ होने के मुद्दे पर टिप्पणी न करने के लिये कहा। और [[क़ुरआन]] के [[हादिस]] या [[क़दीम]] होने के सिद्धांत में से कोई पक्ष न लेने के लिए कहा। इस पत्र में उन्होंने क़ुरआन के ख़ल्क़ होने के मुद्दे को फ़ितना कहा और इस चर्चा में शामिल होने को विनाश माना है। उन्होंने इस तथ्य पर भी ज़ोर दिया कि क़ुरआन ईश्वर का शब्द है और इस पर चर्चा करने को एक बिदअत के रूप में माना, जिसमें प्रश्नकर्ता और उत्तर देने वाला दोनों इसके [[पाप]] में भागीदार हैं। | शियों में से एक को लिखे पत्र में, इमाम हादी (अ.स.) ने उनसे क़ुरआन के ख़ल्क़ होने के मुद्दे पर टिप्पणी न करने के लिये कहा। और [[क़ुरआन]] के [[हादिस]] या [[क़दीम]] होने के सिद्धांत में से कोई पक्ष न लेने के लिए कहा। इस पत्र में उन्होंने क़ुरआन के ख़ल्क़ होने के मुद्दे को फ़ितना कहा और इस चर्चा में शामिल होने को विनाश माना है। उन्होंने इस तथ्य पर भी ज़ोर दिया कि क़ुरआन ईश्वर का शब्द है और इस पर चर्चा करने को एक बिदअत के रूप में माना, जिसमें प्रश्नकर्ता और उत्तर देने वाला दोनों इसके [[पाप]] में भागीदार हैं। <ref> शेख़ सदूक़, अल-तौहीद, 1398 एएच, पृष्ठ 224।</ref> उस अवधि में, [[क़ुरआन]] के हादिस व क़दीम होने के मुद्दे पर बहस के कारण सुन्नियों के बीच लोग संप्रदायों और समूहों में बट गये। [[मामून]] और [[मोअतसिम]] ने क़ुरआन के ख़ल्क़ होने के सिद्धांत का पक्ष लिया और विरोधियों पर दबाव डाला; इस प्रकार कि इसे कठिन परिश्रम का काल कहा जाता है; हालाँकि, [[मुतावक्किल]] क़ुरआन की प्राचीनता (क़दीम होने) का समर्थन करता था और वह शियों सहित विरोधियों को विधर्मी घोषित किया करता था। <ref> जाफ़रियान, शिया इमामों का बौद्धिक-राजनीतिक जीवन, 1393, पृष्ठ 650।</ref> | ||
==हदीसें== | ==हदीसें== |