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किताब अल फ़िरक़ा अल नाजिया, लेखक इब्राहीम बिन सुलेमान क़तीफ़ी
किताब अल फ़िरक़ा अल नाजिया, लेखक इब्राहीम बिन सुलेमान क़तीफ़ी

फ़िरक़ ए नाजिया या नेजात पाने वाला संप्रदाय, एक मुहावरा है, हदीसे इफ़तेराक़ में जिसकी व्याख्या शिया इमामिया के रुप में की गई है। पैगंबर (स) से मंसूब एक हदीस में यह उल्लेख किया गया है कि उनके बाद, इस्लामी उम्मत संप्रदायों में विभाजित हो जायेगी और उनमें से केवल एक संप्रदाय नेजात पायेगा। पैगंबर (स) और इमाम अली (अ) से यह वर्णन किया गया है कि नेजात पाने वाला संप्रदाय केवल अली (अ) के शिया हैं। नाजिया पंथ के उदाहरण और प्रकृति के बारे में रचनाएँ लिखी गई हैं।

नाजिया संप्रदाय का अर्थ है ऐसा समूह या संप्रदाय है जो क़यामत में न्याय के दिन नेजात पायेगा, यह ऐसी अभिव्यक्ति है जो हदीस में पैगंबर (स) से उल्लेख हुई है, उस हदीस को हदीसे इफ़तेराक़ कहा जाता है। इस हदीस के अनुसार, पैगंबर (स) ने भविष्यवाणी की थी कि उनकी उम्मत उनके बाद 73 फ़िरक़ों में विभाजित हो जाएगी, जबकि उनमें से केवल एक संप्रदाय मोक्ष पाने वाला हैं। प्रत्येक मुस्लिम संप्रदाय ने मापदंड व्यक्त करने की कोशिश की है ताकि वे स्वयं नाजिया संप्रदाय का एक उदाहरण बन सकें।

इफ़तेराक़ की हदीस की वैधता के बारे में विभिन्न बहसें हैं। सुन्नी विद्वानों में से एक, इब्न हज़्म अल-अंदलुसी (मृत्यु 456 हिजरी), ने इसे ग़ैर क़ाबिले बहस और ग़लत माना है और ज़ैदी धार्मिक न्यायविद इब्ने वज़ीर (मृत्यु 840 हिजरी) की राय में भी, इसका अंतिम भाग (केवल एक को छोड़कर बाक़ी सब संप्रदाय नार्कीय हैं) नक़ली है। हालांकि, शिया और सुन्नियों की कुछ हदीस पुस्तकों और कुछ इतिहासकारों व जीवनी लेखकों ने इस हदीस को उद्धृत और स्वीकार किया है। इसलिए, यह कहा गया है कि इफ्तेराक़ की हदीस न केवल प्रसिद्ध और मुस्तफ़ीज़ है, बल्कि मुतावातिर या मुतावतिर के क़रीब है।

कहा गया है कि इस हदीस के ख़बरे वाहिद (ऐसी हदीस जिसका मासूम द्वारा जारी करना निश्चित नहीं है। यह मुतावातिर हदीस के मुक़ाबले में प्रयोग होती है।) होने के कारण नाजिया संप्रदाय के ऐतेक़ादात को साबित करने और उसका निर्धारण करने के लिए इस पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है।

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