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आय ए लैलातुल मबीत
आय ए लैलातुल मबीत

"आय ए लैलातुल मबीत" या "आय ए शिरा" (सूरा ए बक़रा आयत न. 207) लैलातुल मबीत में हज़रत अली (अ) की फ़िदाकारी के बारे में नाज़िल हुई है, जो पैगंबर (स) के जीवन को बचाने के लिए उनके बिस्तर पर सोए थे । इस आयत में उन लोगों की प्रशंसा की गई है जो अल्लाह की खुशनूदी प्राप्त करने के बदले अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार हैं।

अल्लामा तबातबाई अल-मीज़ान मे लिखते है कि आय ए शिरा लैलातुल मबीत मे नाज़िल हुई है। सुन्नी मोतज़ली विद्वान इब्ने अबिल हदीद ने नहजुल बलाग़ा मे लिखा है कि सभी मुफस्सेरीन इस बात पर विश्वास करते है कि यह आयत हज़रत अली (अ) की शान मे लैलातुल मबीत मे नाज़िल हुई। लैलातुल मबीत मे मुशरेकीन (बहुदेववादियो) का एकत्रित होकर मक्का मे पैंगबर (स) के घर पर हमला करने और उनकी हत्या करने का इरादा था। इसी रात हज़रत अली (अ) पैगंबर (स) के जीवन को बचाने के लिए उनके बिस्तार पर सो गए, इस तरह पैगंबर (स) बहुदेववादियो (मुशरेकीन) की योजना से बच गए।

कुछ सुन्नी विद्वानों ने रिवायतो का हवाला देते हुए इस आयत को अबू-ज़र, सोहैब बिन सिनान, अम्मार यासिर और उनके माता-पिता, ख़ब्बाब बिन अरत और बिलाल हब्शी जैसे लोगों के बारे में माना है। हालाँकि, इन रिवायतो की वैधता पर संदेह किया गया है और कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, तअस्सुब के कारण और इमाम अली (अ) के फ़ज़ाइल को छुपाने के उद्देश्य से इन रिवायतो को बनाया गया है।

आयत में "यश्री" शब्द "शिरा" से लिया गया है। जोकि बेचने का अर्थ देता है। आय ए शिरा को उन लोगों के वर्णन में माना गया है जो अल्लाह की खुशी चाहते हैं और इसके लिए अपनी जान देने को तैयार हैं। ये लोग दूसरे समूह के सामने हैं जिनका वर्णन आयत न 204-206 मे किया गया है; इसका मतलब स्वार्थी, जिद्दी, शत्रुतापूर्ण और पाखंडी लोग हैं जो परोपकारी होने का दिखावा करते हैं, लेकिन उनका लक्ष्य भ्रष्टाचार है। अल्लामा तबातबाई के अनुसार, इन आयतो के संदर्भ से पता चलता है कि पैगंबर के समय में इन दो समूहों के उदाहरण मौजूद थे। हालांकि कुछ अनुवादकों ने आयत के अंतिम वाक्य का अनुवाद किया है (وَالله رَءُوفٌ بِالْعِبَادِ वल्लाहो रऊफ़ुम बिल एबाद) को बंदो की निसबत अल्लाह की राफ़त के रूप में (जो अल्लाह की ख़ुशनूदी चाहते हैं), का अनुवाद किया है।

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