wikishia:Good articles/2023/18
अज़ाबे क़ब्र अर्थात मनुष्य की मृत्यु के पश्चात आलमे बरज़ख़ मे जो पीड़ा होती है उसको कहते है। रिवायतो के अनुसार चुग़ली करना, पवित्रता और अपवित्रता (तहारत और निजासत) पर ध्यान न देना, पति का अपनी पत्नि के प्रति दुर्व्यवहार, परिवार के साथ बुरा व्यवहार, नमाज़ को महत्व न देना इत्यादि क़ब्र के अज़ाब के कारण है; दूसरी ओर इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत, नजफ़ मे दफ़न होना, पैगंबर (स) के परिवार वालो से मोहब्बत, बृहस्पतिवार के दिन ज़ोहोर से लेकर शुक्रवार के ज़ोहोर के बीच निधन होना इत्यादि क़ब्र के अज़ाब मे कमी होने के प्रभावित कारणो मे से है।
वासिल बिन अता के शिष्य ज़रार बिन उमर को छोड़कर सभी मुसलमान अज़ाबे क़ब्र पर विश्वास करते है। मुताकल्लेमीन (धर्मशास्त्रियो) ने क़ब्र के अज़ाब को कुरआन के सूरा ए ग़ाफ़िर की आयत न 11 से साबित किया है। सज़ा अर्थात अज़ाब मिसाली शरीर पर होगा या दुनयाई शरीर पर इस बारे मे मतभेद है, जबकि अधिकांश धर्मशास्त्रियो का मानना है कि क़ब्र का अज़ाब बरज़ख़ी शरीर पर होगा।
सुन्नी प्रसिद्ध विद्वान मुहम्मद बिन इस्माईल बुख़ारी ने अपनी सहीह किताब मे पैगंबर (स) से एक रिवायत बयान की है कि मुर्दे पर उसके परिवार वालो के रोने के कारण क़ब्र का अज़ाब होता है। सहीह मुस्लिम के व्याख्ता कर्ता याह्या बिन नवावै के अनुसार सुन्नी विद्वानो ने इस रिवायत की तावील की है; जीवित लोगो के रोने से मुर्दो पर अज़ाब क़ुरआन के सूरा ए फ़ातिर की आयत न 18 जिसमे कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे का बोझ नही उठाता के अनुकूल नही है। इसी तरह आयशा के अनुसार इस रिवायत को पैगंबर (स) से सही रूप से वर्णन नही किया गया है।
मनुष्य की मृत्यु के पश्चात आलमे बरज़ख़ मे जो पीड़ा होती है उसको क़ब्र का अज़ाब कहते है। आलमे क़ब्र ही आलमे बरज़ख़ है जोकि मुर्दे को दफ़न करने के साथ शुरू हो जाता है और क़यामत तक जारी रहता है। रिवायतो के अनुसार, अग्नि की आंच, ज़मीन का भीचना, जानवरो का काटना और वहशत का अधिक होना क़ब्र के अज़ाब के रूप मे परिचित कराए जाते है।
मन लायाहज़रोहुल फ़क़ीह किताब मे इमाम सादिक़ (अ) की रिवायत के आधार पर क़ब्र का अज़ाब उन सभी को सम्मिलित करता है जो दुनिया से जाता है चाहे वह दफ़न न भी हो। बिहार उल अनवार किताब मे इमाम सादिक़ (अ) की एक दूसरी रिवायत के अनुसार अधिकांश लोगो को क़ब्र के अज़ाब का सामना है।
मासूमीन (अ) की बताई हुई दुआ और मुनाजात मे क़ब्र के सख्त अज़ाब से पनाह मिली है। जैसे कि पैगंबर (स) ने अपनी बेटी रुक़य्या को दफ़न करने के बाद क़ब्र का अज़ाब हटाने के लिए दुआ की। या फ़ातेमा बिन्ते असद को दफ़न करने से पहले खुद क़ब्र मे लेट गए ताकि जो वादा दिया था
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