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आय ए सलवात
आय ए सलवात

आय ए सलवात सूर ए अहज़ाब की आयत संख्या 56 है, जिसमें ईश्वर और फ़रिश्तों की तरफ़ से पैगंबर (स) पर सलवात भेजने का उल्लेख किया है, और मोनेनीन को भी पैगंबर (स) पर सलवात भेजने की सलाह दी गई है। शिया इस आयत को सुनते ही मुहम्मद और उनके परिवार पर सलवात भेजते हैं। मग़रिब की नमाज़ के बाद उपरोक्त आयत का पाठ करने की सिफ़ारिश की गई है।

तफ़सीरे अल मीज़ान में अल्लामा तबाताबाई सलवात भेजने को अल्लाह और फ़रिशतों की पैरवी मानते हैं। और इसी तरह, आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने किताब पयामे क़ुरआन में अहले-सुन्नत के हदीसी और तफ़सीरी स्रोतों में नक़्ल हदीसों को दलील बनाते हुए पैगंबर (स) के परिवार पर सलवात भेजने को सलवात का हिस्सा माना है।

शेख़ तूसी की किताब मिस्बाहुल मोताहज्जद ने मग़रिब की नमाज़ के बाद हज़रत ज़हरा (स) की तस्बीहात के बाद इस आयत के पाठ की सिफ़ारिश की है। शेख़ अब्बास क़़ुम्मी ने भी मफ़ातिहुल जेनान में इसी मतलब को किताब मिस्बाहुल मोताहज्जद से उद्धृत किया है।

पंद्रहवीं शताब्दी हिजरी के शिया टीकाकार अल्लामा तबताबाई, तफ़सीरे अल-मीज़ान में,शिया और सुन्नी स्रोतों में नक़्ल कुछ हदीसों के आधार पर, कहते हैं कि सलवात की विधि यह है कि मोमेनीन ख़ुदा से पैगंबर (स) और आपके परिवार पर सलवात भेजने का अनुरोध करें।

इसी तरह, आप कहते हैं कि जब मोमेनिन मुहम्मद और मुहम्मद के परिवार पर सलवात भेजते हैं, तो वास्तव में वो इस काम में ख़ुदा और फ़रिशतों का अनुसरण कर रहे होते हैं, और बाद की आयत में निषेध (मनाही) पर जोर दिया जाता है

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