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हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब (अ) (4.61 हिजरी), जो शियों में इमाम हुसैन (अ), अबा अब्दिल्लाह और सय्यदुश शोहदा के नाम से भी प्रसिद्ध हैं, शियों के तीसरे इमाम हैं जिन्हे 10 मुहर्रम (आशूरा के दिन) करबला के मैदान में शहीद किया गया। आप इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के दूसरे बेटे और पैग़ंबर (स) के नवासे हैं। आपने अपने भाई के बाद लगभग 11 साल तक इमामत के पद को संभाला।
शिया और सुन्नी ऐतेहासिक स्रोत के अनुसार पैग़ंबर (स) ने आपके जन्म के समय आपकी शहादत की घोषणा की और आपका नाम हुसैन रखा। पैगंबर (स) हसनैन (इमाम हसन (अ) व इमाम हुसैन (अ)) से बहुत प्रेम करते थे। और इनसे प्रेम करने कि सलाह देते थे। आप (अ) असहाबे केसा में से एक हैं, मुबाहिले में भी उपस्थित थे और अहले बैते पैगंबर (स) में से हैं जिनके सम्मान में आय ए ततहीर नाज़िल हुई है। इमाम (अ) के गुणों (फ़ज़ीलत) से संबंधित अनेक रिवायात पैगंबर (स) से वर्णित हुई हैं जैसे: हसन और हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं और हुसैन मार्ग दर्शन (हिदायत) के दीपक (चिराग़) और निजात की कश्ती हैं।
पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद के तीस वर्षों में आपके जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध हैं। आप अमीरुल मोमिनीन (अ) के शासक काल (ख़िलाफ़त) में उनके साथ थे और उस काल के युद्धों में आपने भाग लिया। इमाम हसन (अ) के शासक काल में आप उनके साथ रहे और इमाम हसन (अ) की मुआविया से सुलह का समर्थन किया। इमाम हसन (अ) की शहादत से मुआविया की मृत्यु तक उसी वचन पर बाक़ी रहे और कूफ़ा के कुछ शियों ने जब आपको बनी उमय्या के ख़िलाफ़ आंदोलन और शियों का नेतृत्व संभालने का अनुरोध किया तो उन्होंने उन्हें मुआविया की मृत्यु तक धैर्य रखने की सलाह दी। हुसैन बिन अली (अ) की इमामत और मुआविया का शासक दोनो का समय एक था। कुछ ऐतेहासिक स्रोतों से यह जानकारी मिलती है कि आपके मुआविया के कुछ कार्यों पर कड़ी कारवाई की है। ख़ास तौर से हुज्र इब्ने अदी की हत्या पर मुआविया को फटकार भरा पत्र लिखा और जब यज़ीद को उत्तराधिकारी बनाया तो आपने उसकी बयअत से इंकार किया मुआविया और कुछ अन्य लोगों से इस कार्य की निंदा की और यज़ीद को अयोग्य व्यक्ति घोषित किया और पद (ख़िलाफ़त) का योग्य ख़ुद को घोषित किया। मेना में इमाम हुसैन (अ) का ख़ुतबा भी बनी उमय्या के ख़िलाफ़ आपके राजनीतिक रूख को समझाता है। इसके बावजूद मुआविया तीनों ख़लिफ़ाओं की तरह ज़ाहिरी तौर पर इमाम हुसैन (अ) का सम्मान करता था।
मुआविया की मृत्यु के बाद इमाम हुसैन (अ) ने यज़ीद की बयअत को शरीअत के विपरीत घोषित किया और यज़ीद की बयअत ना करने पर यज़ीद की तरफ़ से हत्या की धमकी मिलने पर 28 रजब 60 हिजरी को मदीना से मक्का गए। मक्का में चार महीने रहे और इसी दौरान कूफ़ा के लोगों की तरफ़ से शासन संभालने के लिए लिखे गए अनेक पत्रों के कारण मुस्लिम इब्ने अक़ील (अ) को कूफ़ा भेजा। मुस्लिम इब्ने अक़ील (अ) की तरफ़ से कूफ़ा वालों के समर्थन के बाद, 8 ज़िल हिज्जा को कूफ़ा वालों की बेवफ़ाई और मुस्लिम की शहादत का समाचार सुनने से पहले कूफ़ा की तरफ़ रवाना हुए।
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