नफ़्से अम्मारा
नफ़्से अम्मारा (अरबीः النفس الأمارة)आत्मा की एक अवस्था है जो व्यक्ति को बुराई और पाप की ओर ले जाती है। यह शब्द सूर ए यूसुफ़ की आयत 53 से लिया गया है। मनोवैज्ञानिक इच्छाओ को भी नफ़्से अम्मारा कहा जाता हैं। इसके अलावा, नफ़्स के साथ जिहाद या जिहादे अकबर, जिसका हदीसों में उल्लेख किया गया है, का अर्थ स्वयं के खिलाफ लड़ाई माना जाता है।
नफ़्से अम्मारा का उल्लेख नफ़्से लव्वामा और नफ़्से मुतमइन्ना के विपरीत किया गया है। नफ़्से अम्मारा नफ़्स का सबसे निचला दर्जा है उससे ऊपर नफ़्से लव्वामा है, जिसमें मनुष्य अपनी गलतियों के लिए स्वयं को दोषी मानता है। उसके ऊपर नफ़्से मुतमइन्ना है, जहां मनुष्य को शांति और आत्मविश्वास प्राप्त होता हैं।
परिभाषा
नफ़्से अम्मारा, अर्थात बुराईयो पर बहुत अधिक उत्साहित करने वाला और एक ऐसी नफ़्सानी अवस्था कि जिसके कारण जिसमें व्यक्ति बुद्धि का पालन नहीं करता है और पाप तथा भ्रष्टाचार की ओर मुड़ जाता है।[१] यह शब्द " إِنَّ النَّفْسَ لَأَمَّارَةٌ بِالسُّوءِ؛ इन्नन नफ़्सा लअम्मारता बिस सूऐ" नफ़्स निश्चित रूप से बुराई की आज्ञा देती है"[२] आयत से लिया गया है।[३] मनोवैज्ञानिक इच्छाओ को भी नफ़्से अम्मारा कहा जाता हैं।[४]
नफ़्से अम्मारा, नफ़्स का निम्नतम स्तर
कुछ लोग नफ़्स को कई स्तरो मे विभाजित करते हैं और नफ़्से अम्मारा को उसका निम्नतम स्तर मानते हैं। उनके अनुसार, नफ़्स की कई श्रेणियां होती हैं: सबसे निचली श्रेणी नफ़्से अम्मारा की होती है, जिसमें व्यक्ति बुद्धि का पालन नहीं करता है। उससे ऊपर नफ़्से लव्वामा है, जिसमें वह अपने बुरे कार्यों के लिए खुद को दोषी मानता है। इस पद से ऊपर नफ़्से मुतमइन्ना है।[५] इस स्तर पर, तर्क का पालन जारी रखने के परिणामस्वरूप, यह कार्य मल्का या आदत बन जाती है तथा आत्मविश्वास और शांति प्राप्त होती है।[६]
मानवीय पहचान की एकता के साथ नाना प्रकार के नफ़्सो का गैर-विरोधाभास
मुस्लिम विद्वानों का कहना है कि मनुष्य के पास केवल एक नफ़्स या पहचान है, और नफ़्से अम्मारा, नफ़्से लव्वामा और नफ़्से मुतमइन्ना यह सब नफ़्स की एकता का खंडन नहीं करते है। उनके अनुसार, ये शब्द आत्मा (नफ़्स) की विभिन्न अवस्थाओं और स्तरों को दर्शाते हैं;[७] अर्थात, जब आत्मा बुरे कार्यों का आदेश देती है, तो हम उसे नफ़्से अम्मारा, और जब वह गलती करने के लिए खुद को दोषी ठहराती है, तो उसे नफ़्से लव्वामा कहते हैं।[८]
अहंकार के विरुद्ध लड़ाई
- मुख्य लेख: जिहाद नफ़्स:
पैगंबर (स) की एक हदीस में, सैन्य युद्ध को जिहाद असग़र के रूप में वर्णित किया गया है और स्वयं के खिलाफ लड़ाई को जिहाद अकबर कहा जाता है।[९] अल्लामा तबातबाई ने इस हदीस में स्वयं के विरुद्ध लड़ने का अर्थ नफ़्से अम्मारा के विरुद्ध लड़ना माना है।[१०] इसके अलावा, अल्लामा मजलिसी एक हदीस -जिसमे मानव का सबसे बड़ा दुश्मन खुद उसके नफ़्स को बताया गया है[११] - का हवाला देते हुए मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन नफ़्से अम्मारा को मानते है। वह मनुष्य का "सबसे बड़ा शत्रु" उसकी आत्मा को मानते थे।[१२]
मुजाहिद वह है जो अपने नफ़्स से लड़ता है[१३] हदीस का हवाला देते हुए मुर्तज़ा मुताहरी ने लिखा कि नफ़्स से लड़ाई का अर्थ है नफ़्से अम्मारा के खिलाफ लड़ना।[१४]
ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी के अनुसार, नफ़्से अम्मारा मानव आत्मा का हैवानी स्तर है। इसका उत्तरदायित्व शरीर को बनाये रखने के लिए वासनाओं एवं इच्छाओ को प्राप्त करने का प्रयत्न करना है। किसी जानवर की आत्मा को प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता है, इसलिए उसे क्रोध की शक्ति से नियंत्रित किया जाना चाहिए ताकि उसकी फिजूलखर्ची आत्मा को नष्ट करने का कारण न बने।[१५]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ मिस्बाह यज़्दी, आईन परवाज़, 1399 शम्सी, पेज 27
- ↑ सूर ए युसूफ़, आयत न 53
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 67, पेज 37
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 67, पेज 36; मुताहरी, मजमूआ आसार, 1389 शम्सी, भाग 23, पेज 592
- ↑ मिस्बाह यज़्दी, आईन परवाज़, 1399 शम्सी, पेज 26-27; मुताहरी, मजमूआ आसार, 1389 शम्सी, भाग 3, पेज 595-596
- ↑ मिस्बाह यज़्दी, आईन परवाज़, 1399 शम्सी, पेज 27
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 67, पेज 36-37; मुताहरी, मजमूआ आसार, 1389 शम्सी, भाग 3, पेज 595; मिस्बाह यज़्दी, अखलाक़ व इरफ़ान इस्लामी, पेज 8
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1389 शम्सी, भाग 3, पेज 595
- ↑ देखेः कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, पेज 12
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 14, पेज 411
- ↑ मजमूआ वर्राम, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 59
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 67, पेज 36-37
- ↑ सय्यद रज़ी, अल मजाज़ात अल नबावीया, 1380 शम्सी, पेज 194
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1389 शम्सी, भाग 23, पेज 592
- ↑ ख्वाज़ा नसीरुद्दीन तूसी, अखलाके नासेरी, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 41
स्रोत
- सय्यद रज़ी, मुहम्मद बिन हुसैन, अल मजाज़ात अल नबावीया, क़ुम, दार अल हदीस, शोध और संशोधनः महदी हूशमंद, पहला संस्करण, 1380 शम्सी
- तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, क़ुम, दफतर इंतेशारात इस्लामी, पांचवा संस्करण, 1417 हिजरी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफी, शोध एंव संशोधनः अली अकबर गफ़्फ़ारी व मुहम्मद आखूंदी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार अल जामेअ लेदुरर अखबार आइम्मा अल अत्हार, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, दूसार संस्करण, 1403 हिजरी
- मिस्बाह यज़्दी, मुहम्मद तक़ी, आईन परवाज़, तलखीस जवाद मोहद्दिसी, क़ुम, इंतेशारात मोअस्सेसा आमूज़िशी व पुज़ूहिशी इमाम ख़ुमैनी, नवां संस्करण, 1399 शम्सी
- मिस्बाह यज़्दी, मुहम्मद तकी, अखलाक व इरफान इस्लामी, मारफ़त, क्रमांक 127, 1387 शम्सी
- मुताहरी, मुर्तज़ा, मजमूआ आसार, तेहरान, इंतेशारात सदरा, 1389 शम्सी
- नसीरुद्दीन तूसी, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अखलाक नासेरी, तेहरान, इल्मीया इस्लामीया, 1413 हिजरी
- वर्राम बिन अबी फ़रास, मसऊद बिन ईसा, मजमूआ वर्राम, क़ुम, किताब खाना फ़क़ीह, पहला संस्करण, 1410 हिजरी