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"शिया धर्म के सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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==स्थान==
==स्थान==
शिया धर्म के सिद्धांतों की स्थिति को पांच सिद्धांत (एकेश्वरवाद, नबूवत, क़यामत, इमामत और न्याय) कहा जाता है जो शिया धर्म का आधार बनाते हैं। इन सब सिद्धांतों पर विश्वास करने से व्यक्ति शिया बन जाता है और इनमें से किसी पर विश्वास न करने से वह शिया धर्म से बाहर हो जाता है। बेशक, एकेश्वरवाद, नबूवत और क़यामत के तीन सिद्धांत धर्म के सिद्धांतों में से हैं, और उनमें से किसी पर भी विश्वास नहीं करने से इंसान [[काफ़िर]] और इस्लाम से बाहर हो जाता है।
शिया धर्म के सिद्धांतों की स्थिति को पांच सिद्धांत (एकेश्वरवाद, नबूवत, क़यामत, इमामत और न्याय) कहा जाता है<ref>देखें: मोहम्मदी रयशहरी, इस्लामिक विश्वासों का विश्वकोश, 2005, खंड 8, पृष्ठ 99।</ref> जो शिया धर्म का आधार बनाते हैं।<ref>देखें मोहम्मदी रयशहरी, इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इस्लामिक बिलीफ्स, 1385, खंड 8, पृ.97।<ref> इन सब सिद्धांतों पर विश्वास करने से व्यक्ति शिया बन जाता है और इनमें से किसी पर विश्वास न करने से वह शिया धर्म से बाहर हो जाता है। बेशक, एकेश्वरवाद, नबूवत और क़यामत के तीन सिद्धांत धर्म के सिद्धांतों में से हैं, और उनमें से किसी पर भी विश्वास नहीं करने से इंसान [[काफ़िर]] और इस्लाम से बाहर हो जाता है।<ref> काशिफ़ अल-ग़ेता, असल अल-शिया व उसूलुहा, इमाम अली (एएस), पी. 210; इमाम खुमैनी, किताब अल-तहारत, 1427 एएच, वॉल्यूम 3, पीपी 437-438 देखें।</ref>


==विशेष सिद्धांत==
==विशेष सिद्धांत==


इमामत और न्याय (अद्ल), शिया धर्म के दो विशिष्ट सिद्धांत हैं:
इमामत<ref>लाहिजी, गौहरे मुराद, 2003, पृष्ठ 467; सुबहानी, अल-इलाहियात, 1417 एएच, खंड 4, पृ.10 देखें।</ref> और न्याय (अद्ल)<ref>मिस्बाह यज़्दी, टीचिंग बिलीफ़्स, 2004, पृष्ठ 161।</ref>, शिया धर्म के दो विशिष्ट सिद्धांत हैं:
===इमामत===
===इमामत===
शियों का अक़ीदा है कि [[इमामत]] (इस्लामी समाज का नेतृत्व और [[पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.स)]] का उत्तराधिकारी) ईश्वर की ओर से दिया गया पद है। और ईश्वर की ओर से पैगंबर (स) के बारह पुत्रों को इस पद पर नियुक्त किया गया है। उन इमामों के नाम इस प्रकार हैं: इमाम अली (अ.स.), इमाम हसन (अ.स.), इमाम हुसैन (अ.स.), इमाम सज्जाद (अ.स.), इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.), इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.), इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) इमाम अली रज़ा (अ.स.), इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.), इमाम अली नक़ी (अ.स.), इमाम हसन अस्करी (अ.स.), इमाम महदी (अ.स.)
शियों का अक़ीदा है कि [[इमामत]] (इस्लामी समाज का नेतृत्व और [[पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.स)]] का उत्तराधिकारी) ईश्वर की ओर से दिया गया पद है।<ref>काशिफ अल-ग़ेता, असल अल-शिया और उसुलुहा, इमाम अली फाउंडेशन, पृष्ठ 211।</ref> और ईश्वर की ओर से पैगंबर (स) के बारह पुत्रों को इस पद पर नियुक्त किया गया है।<ref>देखिए लाहिजी, गोहरे मुराद, 2003, पृ. 585।</ref> उन इमामों के नाम इस प्रकार हैं: इमाम अली (अ.स.), इमाम हसन (अ.स.), इमाम हुसैन (अ.स.), इमाम सज्जाद (अ.स.), इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.), इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.), इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) इमाम अली रज़ा (अ.स.), इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.), इमाम अली नक़ी (अ.स.), इमाम हसन अस्करी (अ.स.), इमाम महदी (अ.स.)<ref>खज़ाज़ राज़ी, केफ़ाया अल-असर, 1401 एएच, पीपी. 53-55; सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 एएच, वॉल्यूम 1, पीपी 254-253।</ref>


===इमामत धर्म के सिद्धांतों में से एक क्यों है===
===इमामत धर्म के सिद्धांतों में से एक क्यों है===
[[मुहम्मद हुसैन काशिफ़ुल ग़ेता]] की किताब [[असलुश शिया वा उसूलुहा]] के अनुसार, यह मुख्य इमामत है जो शिया को अन्य इस्लामी संप्रदायों से अलग करता है। इसी वजह से बारह इमामों की इमामत को मानने वालों को इमामिया के नाम से जाना जाता है। इमामत शिया धर्म के सिद्धांतों में से एक है और जो कोई इसे स्वीकार नहीं करेगा वह शिया धर्म के घेरे से बाहर हो जाएगा।
[[मुहम्मद हुसैन काशिफ़ुल ग़ेता]] की किताब [[असलुश शिया वा उसूलुहा]] के अनुसार, यह मुख्य इमामत है जो शिया को अन्य इस्लामी संप्रदायों से अलग करता है।<ref>काशिफ़ अल-ग़ेता, अस्ल अल-शिया व उसूलहा, इमाम अली (अ.स.), पृष्ठ 221।</ref> इसी वजह से बारह इमामों की इमामत को मानने वालों को इमामिया के नाम से जाना जाता है।<ref>काशिफ अल-ग़ेता, अस्ल अल-शिया और उसूलुहा, इमाम अली (अ.स.), पृष्ठ 212।</ref> इमामत शिया धर्म के सिद्धांतों में से एक है<ref>"न्याय" और "इमाते" शिया धर्म के सिद्धांतों में से हैं और क्यों?", ऐन रहमत।</ref> और जो कोई इसे स्वीकार नहीं करेगा वह शिया धर्म के घेरे से बाहर हो जाएगा।<ref>काशिफ़ अल-ग़ेता, असल अल-शिया और सिद्धांत, इमाम अली (अ.स.), पृष्ठ 212।</ref>


===अद्ल (न्याय)===
===अद्ल (न्याय)===
विश्वास व अक़ीदा है कि ईश्वर, सृष्टि की व्यवस्था (तकवीन ऐतेबार) और कानून व्यवस्था (तशरीई ऐतेबार) दोनों में, सही व्यवहार करता है और उत्पीड़न (ज़ुल्म) नहीं करता है। [[अदलिया]] (शिया और [[मोअतज़ेला]]) चीजों के अच्छे और बुरे (हुस्न व क़ुब्ह) को तर्कसंगत (अक़्ली) मानते हैं और मानते हैं कि ईश्वर न्यायी (आदिल) है। इसका मतलब है कि वह चीजों की अच्छाई के आधार पर कार्य करता है, और अन्याय नहीं करता है क्योंकि यह बुराई है। इसके विपरीत, अशरियों का मानना है कि न्यायपूर्ण व्यवहार की कसौटी ईश्वर की कार्रवाई है, और यह कि ईश्वर जो कुछ भी करता है वह अच्छा और न्यायपूर्ण है, भले ही वह मनुष्यों की निगाह में क्रूर हो।
विश्वास व अक़ीदा है कि ईश्वर, सृष्टि की व्यवस्था (तकवीन ऐतेबार) और कानून व्यवस्था (तशरीई ऐतेबार) दोनों में, सही व्यवहार करता है और उत्पीड़न (ज़ुल्म) नहीं करता है।<ref> मोताह्हरी, कार्यों का संग्रह, सदरा, खंड 2, पृष्ठ 149।</ref> [[अदलिया]] (शिया और [[मोअतज़ेला]]) चीजों के अच्छे और बुरे (हुस्न व क़ुब्ह) को तर्कसंगत (अक़्ली) मानते हैं और मानते हैं कि ईश्वर न्यायी (आदिल) है। इसका मतलब है कि वह चीजों की अच्छाई के आधार पर कार्य करता है, और अन्याय नहीं करता है क्योंकि यह बुराई है।<ref>सुबहानी, पत्र और निबंध, 1425 एएच, खंड 3, पृष्ठ 32।</ref> इसके विपरीत, अशरियों का मानना है कि न्यायपूर्ण व्यवहार की कसौटी ईश्वर की कार्रवाई है, और यह कि ईश्वर जो कुछ भी करता है वह अच्छा और न्यायपूर्ण है, भले ही वह मनुष्यों की निगाह में क्रूर हो।<ref>सुबहानी, पत्र और निबंध, 1425 एएच, खंड 5, पृष्ठ 127।</ref>


===न्याय (अद्ल) धर्म के सिद्धांतों में से एक क्यों है===
===न्याय (अद्ल) धर्म के सिद्धांतों में से एक क्यों है===
शिया दार्शनिक [[मिस्बाह यज़्दी]] (1313-1399 शम्सी) के अनुसार, धर्मशास्त्र में इसके महत्व के कारण न्याय को शिया और मोअतज़ेला धर्मों के सिद्धांतों में से एक माना जाता है। इसके अलावा, शिया विचारक [[मुर्तज़ा मोताह्हरी]] (1358-1298) मानते हैं कि न्याय शिया धर्म के सिद्धांतों में से एक है, इसका कारण मुसलमानों के बीच मानव स्वतंत्रता और अधिकार से इनकार जैसे विश्वासों का उदय था, जिसके अनुसार मजबूर आदमी को दंड देना परमेश्वर के न्याय के अनुकूल नहीं था। शिया और मोअतज़ेला मानव विवशता को ईश्वरीय न्याय के विपरीत मानते थे, और इसी कारण से वे अदलिया प्रसिद्ध हुए।
शिया दार्शनिक [[मिस्बाह यज़्दी]] (1313-1399 शम्सी) के अनुसार, धर्मशास्त्र में इसके महत्व के कारण न्याय को शिया और मोअतज़ेला धर्मों के सिद्धांतों में से एक माना जाता है।<ref>मिस्बाह यज़्दी, टीचिंग बिलीफ़्स, 2004, पृष्ठ 161।</ref> इसके अलावा, शिया विचारक [[मुर्तज़ा मोताह्हरी]] (1358-1298) मानते हैं कि न्याय शिया धर्म के सिद्धांतों में से एक है, इसका कारण मुसलमानों के बीच मानव स्वतंत्रता और अधिकार से इनकार जैसे विश्वासों का उदय था, जिसके अनुसार मजबूर आदमी को दंड देना परमेश्वर के न्याय के अनुकूल नहीं था।<ref>मोताहहरी, कार्यों का संग्रह, सदरा, खंड 2, पृष्ठ 149।</ref> शिया और मोअतज़ेला मानव विवशता को ईश्वरीय न्याय के विपरीत मानते थे, और इसी कारण से वे अदलिया प्रसिद्ध हुए।<ref>मोताहहरी, कार्यों का संग्रह, सदरा, खंड 2, पृष्ठ 149।</ref>


==सामान्य सिद्धांत==
==सामान्य सिद्धांत==
* [[एकेश्वरवाद]]: ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास, उसके एक होने और उसका कोई साथी न होने का अक़ीदा।
* [[एकेश्वरवाद]]: ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास, उसके एक होने और उसका कोई साथी न होने का अक़ीदा।<ref>काशिफ अल-ग़ेता, असल अल-शिया व उसूलुहा, इमाम अली (अ.स.), पृष्ठ 219।</ref>
* [[नवूबत]]: इस बात का विश्वास रखना कि ईश्वर ने कुछ लोगों को पैग़बर (दूत) बना कर इंसान के मार्गदर्शन के लिये भेजा है। पहले पैग़बर [[हज़रत आदम (अ.स.)]] और अंतिम [[पैग़बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.स)]] हैं।
* [[नवूबत]]: इस बात का विश्वास रखना कि ईश्वर ने कुछ लोगों को पैग़बर (दूत) बना कर इंसान के मार्गदर्शन के लिये भेजा है।<ref>काशिफ अल-ग़ेता, असल अल-शिया व उसूलुहा, इमाम अली फाउंडेशन, पृष्ठ 220।</ref> पहले पैग़बर [[हज़रत आदम (अ.स.)]]<ref>मजलिसी, बेहार अल-अनवार, 1403 एएच, खंड 11, पृष्ठ 32.</ref> और अंतिम [[पैग़बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.स)]]<ref>सूरह अहज़ाब, आयत 40.</ref> हैं।
* [[क़यामत]]: यह विश्वास कि मनुष्य मृत्यु के बाद फिर से जीवित होगा और उसके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब लिया जाएगा।
* [[क़यामत]]: यह विश्वास कि मनुष्य मृत्यु के बाद फिर से जीवित होगा और उसके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब लिया जाएगा।<ref>लाहिजी, गौहरे मुराद, 1383, पृष्ठ 595; काशिफ अल-ग़ेता, असल अल-शिया व उसूलुहा, इमाम अली (एएस), पी. 222</ref>


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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== फ़ुटनोट ==
== फ़ुटनोट ==


# देखें: मोहम्मदी रयशहरी, इस्लामिक विश्वासों का विश्वकोश, 2005, खंड 8, पृष्ठ 99।
 
# देखें मोहम्मदी रयशहरी, इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इस्लामिक बिलीफ्स, 1385, खंड 8, पृ.97।
# काशिफ़ अल-ग़ेता, असल अल-शिया व उसूलुहा, इमाम अली (एएस), पी. 210; इमाम खुमैनी, किताब अल-तहारत, 1427 एएच, वॉल्यूम 3, पीपी 437-438 देखें।
# लाहिजी, गौहरे मुराद, 2003, पृष्ठ 467; सुबहानी, अल-इलाहियात, 1417 एएच, खंड 4, पृ.10 देखें।
# मिस्बाह यज़्दी, टीचिंग बिलीफ़्स, 2004, पृष्ठ 161।
# काशिफ अल-ग़ेता, असल अल-शिया और उसुलुहा, इमाम अली फाउंडेशन, पृष्ठ 211।
# देखिए लाहिजी, गोहरे मुराद, 2003, पृ. 585।
# खज़ाज़ राज़ी, केफ़ाया अल-असर, 1401 एएच, पीपी. 53-55; सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 एएच, वॉल्यूम 1, पीपी 254-253।
# काशिफ़ अल-ग़ेता, अस्ल अल-शिया व उसूलहा, इमाम अली (अ.स.), पृष्ठ 221।
# काशिफ अल-ग़ेता, अस्ल अल-शिया और उसूलुहा, इमाम अली (अ.स.), पृष्ठ 212।
# "न्याय" और "इमाते" शिया धर्म के सिद्धांतों में से हैं और क्यों?", ऐन रहमत।
# काशिफ़ अल-ग़ेता, असल अल-शिया और सिद्धांत, इमाम अली (अ.स.), पृष्ठ 212।
# मोताह्हरी, कार्यों का संग्रह, सदरा, खंड 2, पृष्ठ 149।
# सुबहानी, पत्र और निबंध, 1425 एएच, खंड 3, पृष्ठ 32।
# सुबहानी, पत्र और निबंध, 1425 एएच, खंड 5, पृष्ठ 127।
# मिस्बाह यज़्दी, टीचिंग बिलीफ़्स, 2004, पृष्ठ 161।
# मोताहहरी, कार्यों का संग्रह, सदरा, खंड 2, पृष्ठ 149।
# मोताहहरी, कार्यों का संग्रह, सदरा, खंड 2, पृष्ठ 149।
# काशिफ अल-ग़ेता, असल अल-शिया व उसूलुहा, इमाम अली (अ.स.), पृष्ठ 219।
# काशिफ अल-ग़ेता, असल अल-शिया व उसूलुहा, इमाम अली फाउंडेशन, पृष्ठ 220।
# मजलिसी, बेहार अल-अनवार, 1403 एएच, खंड 11, पृष्ठ 32.
# सूरह अहज़ाब, आयत 40.
# लाहिजी, गौहरे मुराद, 1383, पृष्ठ 595; काशिफ अल-ग़ेता, असल अल-शिया व उसूलुहा, इमाम अली (एएस), पी. 222


==स्रोत ==
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गुमनाम सदस्य