confirmed, movedable, templateeditor
६,३१२
सम्पादन
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति १६: | पंक्ति १६: | ||
|पिछली = फ़त्ह | |पिछली = फ़त्ह | ||
}} | }} | ||
'''सूर ए होजरात''' (अरबी: سورة الحجرات) 49वां [[सूरह]] है और [[क़ुरआन]] के [[मक्की और मदनी सूरह|मदनी सूरों]] में से एक है, जो अध्याय 26 में है। "होजरात" होजरा का बहुवचन है और हुजरा का अर्थ है "कमरा" और इसका उल्लेख इस सूरह की चौथी आयत में किया गया है। सूर ए होजरात [[हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम|पैग़म्बर (स)]] के साथ व्यवहार के तौर-तरीकों के साथ-साथ कुछ बुरी सामाजिक नैतिकता जैसे संदेह ([[सूए ज़न]]), जासूसी और चुगलखोरी ([[ग़ीबत]]) के बारे में बात करता है। | '''सूर ए होजरात''' (अरबी: سورة الحجرات) 49वां [[सूरह]] है और [[क़ुरआन]] के [[मक्की और मदनी सूरह|मदनी सूरों]] में से एक है, जो अध्याय 26 में है। "होजरात" होजरा का बहुवचन है और हुजरा का अर्थ है "कमरा" और इसका उल्लेख इस सूरह की चौथी आयत में किया गया है। सूर ए होजरात [[हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम|पैग़म्बर (स)]] के साथ व्यवहार के तौर-तरीकों के साथ-साथ कुछ बुरी सामाजिक नैतिकता जैसे संदेह ([[सूए ज़न]]), जासूसी और चुगलखोरी ([[ग़ीबत]]) के बारे में बात करता है। | ||