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"हदीस अन नासो नियामुन": अवतरणों में अंतर

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[[शिया]] विद्वान और [[मुजतहिद]] [[जवादी आमोली]] ने "अल-नासो नियामुन ..." ने इस [[हदीस]] को समझाते हुए कहा है कि बहुत से लोग सोचते हैं कि उनके पास अपने लिए बहुत सी चीजें हैं; लेकिन जब वे मरने के क़रीब होते हैं तो उन्हें एहसास होता है कि उनके पास कुछ भी नहीं है। जिस प्रकार सोया हुआ व्यक्ति स्वप्न में बहुत सी चीजें देखता है और जागने के बाद उसे उनमें से कुछ भी दिखाई नहीं देता है।[15]
[[शिया]] विद्वान और [[मुजतहिद]] [[जवादी आमोली]] ने "अल-नासो नियामुन ..." ने इस [[हदीस]] को समझाते हुए कहा है कि बहुत से लोग सोचते हैं कि उनके पास अपने लिए बहुत सी चीजें हैं; लेकिन जब वे मरने के क़रीब होते हैं तो उन्हें एहसास होता है कि उनके पास कुछ भी नहीं है। जिस प्रकार सोया हुआ व्यक्ति स्वप्न में बहुत सी चीजें देखता है और जागने के बाद उसे उनमें से कुछ भी दिखाई नहीं देता है।[15]
7वीं चंद्र शताब्दी के एक [[मुस्लिम]] आरिफ़ नसफ़ी ने अपनी पुस्तक इंसाने कामिल में इस कथन का हवाला देते हुए कहा है कि जो सपने में देखा जाता है वह बाक़ी नहीं रहता है, इसी तरह से जो कुछ इस दुनिया में है वह भी टिकने या स्थिर रहने वाला नहीं है [16] कुछ शोधकर्तानों ने इस बिंदु की ओर ध्यान दिया है कि इंसानो को इस दुनिया में उनके द्वारा किए गए कार्यों की सच्चाई के बारे में पता नहीं है, और मृत्यु के बाद उनके कार्यों की "अस्तित्ववादी प्रकृति" प्रकट हो जाएगी और लोगों को उनके कार्यों की सच्चाई और व्यवहार के बारे में पता चल जाएगा। [17]
मुल्ला सदरा का मानना ​​है कि एक व्यक्ति सपने में जो देखता है वह बाहर के प्राणियों के एक उदाहरण है। इसी तरह से, मनुष्य इस दुनिया में जो देखता है वह [[आख़ेरत]] की सच्चाइयों के लिए एक उदाहरण है। परलोक के सत्य मनुष्य के सामने प्रकट नहीं होते हैं, सिवाय ऐसे उदाहरणों के, जिनकी व्याख्या की आवश्यकता होती है। [18] तफ़सीर अल-मख़ज़न अल-इरफ़ान के लेखक का भी मानना ​​है कि इस दुनिया में हम जो देखते हैं वह वास्तविक सत्य का खोल है। और मनुष्य को मृत्यु के बाद वास्तविक सत्य का एहसास होगा। [19]
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