wikishia:Good articles/2023/50

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कुछ हदीसों के अनुसार, एक दिन एक भिखारी ने पैगंबर (स) की मस्जिद में प्रवेश किया और उसने वहां उपस्थित लोगों से सहायता मांगी, परन्तु किसी ने उसकी सहायता नहीं की। इस अवसर पर प्रश्नकर्ता ने आकाश की ओर हाथ उठाकर ईश्वर से शिकायत की: ऐ ईश्वर! तू साक्षी (गवाह) रहना! मैंने तेरे नबी की मस्जिद में आकर सहायता मांगी लेकिन किसी ने मेरी सहायता नहीं की। उसी समय हज़रत अली (अ) ने नमाज़ में रुकूअ की अवस्था में अपनी छोटी उंगली की ओर इशारा किया। प्रश्नकर्ता आपके पास गया और आपकी उंगली से अंगूठी उतार ली। शेख़ मुफ़ीद के अनुसार इस घटना की तिथि 24 ज़िल हिज्जा थी। एक अन्य रिवायत के अनुसार पैगंबर (स) ने इमाम अली (अ) को यमन भेजा था जब वह मक्का पहुंचें नमाज़ में रुकुअ की अवस्था में अंगूठी भिखारी को दी। फैज़ काशानी ने यह संभावना दी है कि दूसरी मरतबा अंगूठी दान करने के पश्चात आयत नाज़िल हुई है।

इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस के अनुसार, हज़रत अली (अ) ने भिखारी को दान के रूप में जो अंगूठी दी थी, उसका वज़्न चार मिस्क़ाल और उस अंगूठी में लाल याक़ूत का पत्थर जडा था जिसका वज़्न 5 मिस्क़ाल था। उस अंगूठी की क़ीमत शाम टैक्स के साथ (300 चाँदी से भरे ऊँट या 4 सोने से भरे ऊँट) के समान्य थी। यह अंगूठी मारवान बिन तौक़ की थी, जिसे हज़रत अली ने युद्ध में मार गिराया था। हज़रत अली (अ) ने इस अंगूठी को पैगंबर (स) के सामने युद्ध में मिली सामग्री के साथ पेश किया परन्तु पैगंबर (स) ने उन्हें उपहार के रूप में यह अंगूठी दी थी। इस अंगूठी की मूल्य के बारे में जिसे इमाम अली (अ) ने दान की बहुत से मत पाए जाते हैं जो कभी-कभी असत्य लगते हैं और जो अधिक ज़हन में आने वाली बात है वह यह है कि यह बहुत महंगी अंगूठी नहीं होनी चाहिए कि इमाम के कर्म के मूल्य की तुलना की जाए। बल्कि, वह चीज़ जिस ने इमाम को इस आयत के योग्य बनाया और आयत के नुज़ूल का कारण बनी वह इमाम का ईश्वर के प्रति इख़्लास और अल्लाह की तरफ़ तवज्जोह और उसकी रज़ा हासिल करना है।

मजमउल बयान की में वर्णित एक रिवायत में यह उल्लेख किया गया है कि अंगूठी चांदी की थी इसके अलावा और कोई स्पष्टीकरण नहीं किया गया है।

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