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कुतुबे अरबआ
कुतुबे अरबआ

शिया इन चार किताब अर्थात काफ़ी, तहज़ीब उल-अहकाम, इस्तिब्सार और मन ला-यहज़ोरोहुल फ़क़ीह को अपने सबसे विश्वनसनीय हदीसी ग्रंथ मानते है और इन्हे कुतुबे अरबा के नाम से याद करते है। हालांकि अधिकांश शिया विद्वान इन किताबो मे उल्लेखित सभी हदीसो का पालन करना अनिवार्य नही समझते बल्कि इन का पालन करने के लिए इनके संचरण और निहितार्थ (सनद और दलालत) दोनो की छान-बीन करते है।

अंदरू न्यूमुन, मुहम्मद अली अमीर मोअज़्जी के हवाले से कहते है पहली बार मोहक़्क़िक़े हिल्ली ने “अल-कुतुब अल-अरबा” का शब्दो उपरोक्त किताबो के लिए इस्तेमाल किया था। परंतु इस संबंध मे कहा जाता है कि उसने अमीर मोअज़्ज़ी के शब्द के अनुवाद मे ग़लती की थी क्योकि उनके शब्दो मे मात्र यह था कि मोहक़्क़िक़े हिल्ली ने इन किताबो को शियों के विश्वसनीय हदीसी स्रोत करार दिया है। हालांकि मोहक़्क़िक़े हिल्ली ने अपने लेखन मे “अरबा” शब्द का इस्तेमाल किया है। लेकिन स्वंय मोहक़्क़िक़े हिल्ली अल-मोअतबर नामक किताब की भूमिका मे व्याख्या करते है कि इस शब्द से उनकी मुराद फ़ुक़्हाए चहारगाने अर्थात शेख़ तूसी, शेख़ मुफ़ीद, सय्यद मुर्तुज़ा और शेख़ सदूक़ है।

“चहार शिया कुतुबे हदीस” अर्थात शियों की हदीसो की चार किताबे और “अल-कुतुब अल-अरबा” शब्द के रिवाज के लेखक के अनुसार शहीद सानी पहले धार्मिक विद्वान थे जिन्होने उपरोक्त चार हदीसी किताबो की ओर संकेत करते हुए इस शब्द (कुतुबे अरबा) का इस्तेमाल किया था। शहीद सानी ने 950 हिजरी मे अपने किसी शिष्य को हदीस बयान करने की अनुमति देते हुए “कुतुब अल-हदीस अल-अरबा” शब्द का इस्तेमाल किया। उसके पश्चात आपने कई बार ऐसे अनुमति पत्रो मे इस शब्द का इस्तेमाल किया।

उपरोक्त लेख के अनुसार उस समय शेख़ बहाई के पिता हुसैन बिन अब्दुस समद आमोली ने शेख़ सदूक़ की किताब “मदीना तुल-इल्म” को भी उपरोक्त किताबो के साथ जोड़ कर “अल-उसूल अल-ख़म्सा” के शब्द का नाम दिया, लेकिन यह संभावना जताई जाती है कि “मदीना तुल-इल्म” नामक किताब के लुप्त होने के कारण यह शब्द (अल-उसूल अल-ख़म्सा) रिवाज पैदा न कर सका।

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