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अली बिन मुहम्मद समरी या समुरी (मृत्यु 329 हिजरी) इमाम ज़माना (अ) के चार विशेष प्रतिनिधीयो में से अंतिम प्रतिनिधी है, जिन्होने हुसैन बिन रूह नौबख़्ती के बाद तीन साल (329-326 हिजरी) के लिए प्रतिनिधी का पद संभाला था। वो अपने शासनकाल के दौरान हज़रत महदी (अ) और शियों के बीच राबता थे, और लोगों ने उन्हें शरई रुक़ूम (इस्लामी धन) प्रदान किया। उन्हें इमाम अस्करी (अ) के सहाबीयो में से एक माना जाता है, जिनके साथ उन्होंने पत्राचार किया। पहले तीन विशेष प्रतिनिधीयो की तुलना मे समरी का प्रतिनिधी काल छोटा था, और इनेके बारे में कोई विस्तृत जानकारी नहीं है। अली बिन मोहम्मद समरी की कम सक्रियता का कारण सरकार की सख्ती है, जिसने उन्हें वकालत संगठन में व्यापक गतिविधि से रोक दिया। इमाम ज़माना (अ) की अली बिन मुहम्मद समरी को उनकी मृत्यु की खबर और उनकी नियाबत की समाप्ति की घोषणा इस अवधि की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। उनकी मृत्यु के साथ, विशेष प्रतिनिधी और बारहवें इमाम के बीच सीधा संवाद समाप्त हो गया और दीर्घ गुप्त काल (ग़ैबते कुबरा) की अवधि शुरू हुई।
सूत्रों में अली बिन मोहम्मद समरी के जन्म के वर्ष का उल्लेख नहीं है। उनकी उपाधि अबुल हसन है और उनका उपनाम समरी, सयमुरी, या सयमरी है, लेकिन सबसे प्रसिद्ध समरी है। हालांकि, कुछ शिया स्रोतों में, उनका उपनाम समुरी दर्ज है। सम्मर या सुम्मर या सयमर बसरा के उन गांवों में से एक है जहां उनके रिश्तेदार रहते थे।
अली बिन मुहम्मद एक धार्मिक और शिया परिवार से थे जो शिया इमामों की सेवा करने के लिए प्रसिद्ध था, और उनके परिवार की उत्पत्ति ने उन्हें इमाम के प्रतिनिधी के रूप में ज्यादा विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। याक़ूबी का कहना है कि इस परिवार के कई सदस्यों के पास बसरा में बहुत सी संपत्तियां थीं और इन संपत्तियों की आय का आधा हिस्सा 11वें इमाम (अ) को समर्पित (वक़्फ़) किया गया था। इमाम हर साल अपनी आय प्राप्त करते और उनके साथ पत्राचार करते थे।
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