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सूर ए क़द्र या इन्ना अंज़लना 30वें पारे का 97वा सूरह है, जो मक्की सूरों में से एक है। इस सूरह का नाम इसकी पहली आयत से लिया गया है, जिसमें क़ुरआन के अवतरण की तरफ़ इशारा किया गया है। सूर ए क़द्र में शबे क़द्र की फज़ीलत और महानता (अज़मत) और शबे क़द्र में फ़रिश्तों के नुज़ूल का वर्णन किया गया है। शिया इस सूरह के मज़ामीन से क़यामत तक मासूम की आवश्यकता और अस्तित्व पर तर्क (इस्तिदलाल) पेश करते हैं।
प्रतिदिन की नमाज़ और कुछ मुसतहब नमाज़ों और शबे क़द्र में एक हज़ार बार पाठ करने की सलाह दी गई है। इस सूरह की महानता (फ़ज़ीलत) के बारे में कहा गया है कि: अनिवार्य (वाजिब) नमाज़ो में प्रिय यह है कि सूर ए हम्द के बाद सूर ए क़द्र या सूर ए तौहीद पाठ किया जाए।
इस सूरह का नाम क़द्र इसलिए रखा गया क्योंकि इसकी प्रथम आयत में अल्लाह ने क़ुरआन के शबे क़द्र में नाज़िल होने और इस रात की महत्वता की तरफ़ इशारा किया है। इस सूरह का एक नाम इन्ना अंज़लना भी है क्योंकि यह सूरह «इन्ना अंजलना» शब्दों से शुरू होता है।
सूर ए क़द्र मक्की सूरों में से एक है और पैगंबर (स) पर नुज़ूल के क्रम के अनुसार पच्चीसवाँ सूरह है। वर्तमान क़ुरआन के क्रम के अनुसार इसकी संख्या 97 और यह तीसवें पारे का हिस्सा है। कुछ मुफ़स्सेरीन ने कुछ हदीसों को दलील बनाते हुए यह संभावना दी हैं कि यह सूरह मदीना में नाज़िल हुआ था: जब पैगंबर (स) ने सपने में बनी उमय्या को अपने मिम्बर पर जाते हुए देखा, तो वे बहुत क्रोधित व ग़मगीन हुए, इसलिए सूर ए क़द्र नाज़िल हुआ ताकि पैगंबर (स) को दिलासा दिया जाए।
सूर ए क़द्र में कुल 5 आयतें, 30 शब्द और 114 अक्षर हैं। मात्रा के संदर्भ में, यह मुफ़स्सेलात का मध्य भाग है और इसे छोटे सूरों में माना जाता है।
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