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अरबईन वॉक या अरबईन पैदल मार्च, या अरबईन पद-यात्रा, शिया अनुष्ठानो मे से एक अनुष्ठान है जोकि इराक़ के विभिन्न राज्यो और शहरो से आरम्भ होकर इस्लामी कैलेंडर के दूसरे महीने सफ़र की 20 तारीख़ (अरबईने हुसैनी – इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम) के दिन इमाम हुसैन (अ) की पवित्र दरगाह पर ज़ियारते अरबईन पढ़ने के साथ समाप्त होता है। अरबईन मार्च अधिकतर जनता इसको पैदल अंजाम देती है। इस यात्रा मे श्रद्धालुओ के स्वागत और विश्राम करने हेतु जगह जगह सड़क के किनारे कैम्प लगाए जाते है जिन्हे मौकिब कहा जाता है। अधिकांश श्रद्धालु इस पैदल यात्रा को नजफ़ से इमाम अली (अ) की पवित्र दरगाह से आरम्भ करके कर्बला ए मोअल्ला इमाम हुसैन (अ) की दरगाह पर पहुंचते है।
इराक़ मे सद्दाम के शासन काल मे अरबईन वॉक को सीमित करने के बहुत प्रयास हुए परंतु 2003 मे सद्दाम के शासन का पतन होने के साथ साथ अरबईन वॉक पहले की तुलना मे बहुत अधिक व्यवस्थित रूप से आयोजित हो रही है। हर वर्ष इराक के अलावा दुनिया के विभिन्न देशो विशेष रूप से ईरान इस पदयात्रा मे सम्मिलित होने के लिए लाखो की संख्या मे श्रद्धालु इराक़ की यात्रा करते है। प्राप्त जानकारी के अनुसार शिया समुदाय के अलावा सुन्नी, ईसाई, ईज़दी और दूसरे धर्मो के अनुयायी भी इस पदयात्रा मे भाग लेते है।
इन अंतिम वर्षो मे अरबईन पैदल यात्रा मे भाग लेने वालो की संख्या करोड़ो मे पहुंच गई है यहा तक कि यह समारोह दुनिया मे आयोजित होने वाला सबसे बड़ा धार्मिक समारोह मे परिवर्तित हो चुका है। एक अनुमान के अनुसार 2003 मे डेढ़ करोड़ और 2014 मे 2 करोड़ लोगो ने भाग लिया।
इमाम हसन अस्करी (अ) से एक रिवायत मे ज़ियारत ए अरबईन को मोमिन की पांच निशानीयो मे से एक बताया है। कुछ विद्वानों ने इस हदीस को अरबईन के आयोजन का कारण माना है। इसी प्रकार इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से भी इस दिन की विशेष ज़ियारत मनक़ूल है।
शिया विद्वान शेख़ अब्बास क़ुम्मी ने इस ज़ियारत को अपनी प्रसिद्ध किताब मफ़ातिहुल जिनान के तीसरे अध्याय मे ग़ैर मारूफ़ ज़ियारते आशूरा के बाद ज़ियारते अरबईन नामक शीर्षक से उल्लेख किया है।
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