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शेख़ बशीर हुसैन
शेख़ बशीर हुसैन

शेख़ बशीर नजफ़ी (जन्म 1361 हिजरी) शिया मराजे ए तक़लीद में से एक हैं, जो पाकिस्तान के मूल निवासी और नजफ़े अशरफ़ में रहते हैं।

कुछ शर्तों के साथ मासूमीन (अ) के चेहरों को बनाना हराम है और इमाम हुसैन (अ) के शोक में क़मा लगाना जायज़ है उनके मशहूर फ़त्वे है।

आप राजनीतिक मामलों में इराक़ मे वहदते मरजेईयत में विश्वास करते है और इराकी राजनीतिक मुद्दों को आयतुल्लाह सिस्तानी की ओर संदर्भित करते है। "शिया और सुन्नी एकता का आह्वान" और "इराक की राजनीतिक धाराओं के समर्थन में निक्षपकता" उनके अन्य राजनीतिक दृष्टिकोण हैं।

मिरक़ात उल उसूल, अल-शायरिल हुसैनीयते वा मरासीम अल-अज़ा, वल गदीरिल इतालते वल आमाल उनकी रचनाऐँ है।

सादिक़ अली के पुत्र बशीर हुसैन नजफी, जोकि शेख़ बशीर नजफ़ी के नाम से प्रसिद्ध है आपका जन्म 1942 ई में (पूर्वी पंजाब, भारत के जालंधर) शहर मे हुआ। आपके दादा शेख मोहम्मद इब्राहिम पाकिस्तानी (मृत्यु 1962 ई) और आपके चाचा मौलाना खादिम हुसैन (मृत्यु 1402 हिजरी) धार्मिक विद्वान थे और आपका परिवार पाकिस्तान और भारत के विभाजन के बाद 1947 ई मे भारत से पाकिस्तान आकर लाहौर के उपनगरी शहर बाटापुर में बस गया। आपके परिवार के प्रचार से वहां शिया धर्म का प्रसार हुआ।

बशीर नजफ़ी 1965 में उच्च शिक्षा के लिए नजफ गए। इराक के राष्ट्रपति सद्दाम के शासन काल मे सद्दाम के आदेश से गैर-इराकी शिया मौलवियों और विद्वानों (जिन्हें मूआवेदीन कहा जाता था) को निष्कासित कर दिया गया था लेकिन आप नजफ़ से नही गए। आयतुल्लाह ख़ूई का हवाला देते हुए ब्रिटिश इंडिपेंडेंट अखबार ने 1419 हिजीर 1999 ई में बशीर नजफ़ी की असफल हत्या की सूचना दी। कुछ लोगों ने इस हमले की व्याख्या उन्हें दबाव मे इराक़ से बाहर निकालने के रूप में की है। पाकिस्तान में बशीर नजफ़ी के प्रतिनिधि सिब्तैन सबज़वारी के अनुसार, नजफ में प्रवास के बाद वह कभी भी पाकिस्तान नहीं लौटे।

शेख़ बशीर नजफ़ी के चार बेटे हैं, जिनमें अली बशीर नजफ़ी आपके प्रतिनिधि हैं।

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