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इमाम अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातिमा सलामुल्ला अलैहा की शादी शिया इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओ मे से एक है जोकि हिजरत के दूसरे या तीसरे साल हुई। क्योकि शिया इमामो का सिलसिला इसी शादी का नतीजा और फल है। जबकि शादी की तारीख मे इतिहासकारो के बीच मतभेद है। शोधकर्ताओ के अनुसार निकाह हिजरी साल के बारहवे महीने की पहली तारीख़ और विदाई 6 तारीख़ को हुई। हज़रत अली (अ) से पहले हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के साथ शादी का प्रस्ताव मुहाजेरीन और अंसार मे से कई व्यक्तियो ने दिया था लेकिन पैंगबर (स) ने उनके प्रस्ताव को यह कहते हुए नकार दिया कि फ़ातिमा की शादी अल्लाह के हाथ मे है।
हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) के निकाह का ख़ुत्बा पैगंबर (स) ने स्वंय पढ़ा था। हज़रत फ़ातिमा (स) के मेहर के संबंध मे कई कथन है। मशूर कथन के अनुसार हज़रत फ़ातिमा (स) का मेहर 500 दिरहम अर्थात 1.5 किलो चांदी थी। जोकि शिया समुदाय के यहा मेहर ए फ़ातेमी के नाम से मशहूर है। हज़रत अली (अ) ने अपनी ज़िरह (कवच) को बेचकर हज़रत फ़ातिमा (स) का मेहर अदा किया। शादी के अवसर पर मदीने की जनता को खाना खिलाया गया।
विदाई के समय पैगंबर (स) ने हज़रत फातिमा का हाथ इमाम अली के हाथो में देते हुए दुआ की: खुदाया इनके दिलों को भी एक दूसरे के नज़दीक और इनके वंशजों को मुबारक क़रार दे।
हज़रत अली (अ) से पहले हज़रत फ़ातिमा (स) के साथ शादी का प्रस्ताव मुहाजेरीन और अंसार मे से कई व्यक्तियो ने दिया था। पैगंबर (स) ने उनके जवाब मे कहा मेरी बेटी की शादी का मामला अल्लाह के हाथ मे है। स्रोतो के अनुसार अबू बक्र, उमर और अब्दुर्रहमान बिन औफ जैसे असहाब ने पैगंबर से हज़रत फ़ातिमा का हाथ मांगा था, पैगंबर ने इनके जवाब मे कहा था कि मेरी बेटी की शादी का मामला अल्लाह के हाथ मे है अतः मे अल्लाह के हुक्म की प्रतीक्षा मे हूं। हज़रत फ़ातिमा से इमाम अली की शादी के बाद कुछ मुहाजेरीन ने पैगंबर से शिकायत की। जवाब में पैगंबर (स) ने अली और फातिमा की शादी को अल्लाह का हुक्म बताया।
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