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मुख़्तार बिन अबी उबैद सक़्फ़ी (1-67 हिजरी) उन अनुयायियों में से एक थे जिन्होंने इमाम हुसैन (अ) के ख़ून के इंतेक़ाम के लिए क़याम किया। कर्बला की घटना के दौरान, मुख़्तार ने कूफ़ा में इमाम हुसैन (अ) के दूत मुस्लिम बिन अक़ील की मेज़बानी की, और उन्होंने मुस्लिम की शहादत तक उनका साथ दिया, फिर उबैदुल्लाह बिन ज़्याद ने उन्हें क़ैद कर लिया, इसलिए वह आशूरा के दिन कर्बला में मौजूद नहीं थे।
मुख़्तार ने 66 हिजरी में कूफ़ा के शासक के खिलाफ़ क़याम किया, कर्बला की घटना के कई अपराधी उनके इस क़याम में मारे गए। मुख़्तार ने कूफ़ा में 18 महीने तक शासक किया फिर मुसअब बिन ज़ुबैर के हाथों इनकी हत्या कर दी गई। कूफ़ा की मस्जिद में मुस्लिम बिन अक़ील के मक़बरे के पास, एक क़ब्र इनके नाम से स्थित है।
मुख़्तार के चरित्र, आंदोलन (क़याम) और प्रदर्शन के बारे में अलग-अलग मत पाए जाते हैं और इस बारे में अनेक लेख लिखे गए हैं। कुछ का मानना है कि मुख़्तार ने इमाम हुसैन (अ) के खून के इंतेक़ाम के लिए जो क़याम किया वह इमाम ज़ैन अल आब्दीन (अ) की अनुमति से था, लेकिन अन्य लोग उन्हें एक सत्ता चाहने वाले व्यक्तित्व के रूप में मानते हैं कि जिस ने सरकार तक पहुँचने के उद्देश्य से क़याम किया था। कुछ का यह भी मानना है कि मुख़्तार शिया थे, लेकिन उनके प्रदर्शन की पुष्टि नहीं हुई है, हालांकि, वह नर्क से नहीं होंगे। इन मतों का स्रोत दो प्रकार की रवायतें हैं जिनमें मुख़्तार की प्रशंसा और आलोचना की जाती है। कुछ शिया विद्वानों जैसे अब्दुल्ला मामक़ानी और आयतुल्लाह ख़ूई ने उन रिवायतों को जिन में मुख़्तार की प्रंशसा हुई हैं प्राथमिकता देते हैं।
मुख़्तार बिन अबी उबैद बिन मसऊद सक़्फ़ी, सक़ीफ़ क़बीले से थे। उनके पिता अबू उबैद पैगंबर (स) के साथियों में से थे और वह दूसरे खलीफ़ा के समय क़ादिसिया की लड़ाई में मारे गए थे। उनके दादा, मसऊद सक़्फ़ी, हिजाज़ के बुजुर्गों में से एक थे। और उन्होंने उन्हें अज़ीम अल-क़रयतैन (मक्का और तैफ़ के महान) की उपाधि दी। उनकी माँ दुमह बिन्ते अम्र बिन वहब हैं, जिन्हें इब्ने तैफूर ने बलाग़ात अन नेसा में उल्लेख किया है। इब्ने असीर (सातवीं सदी हिजरी के इतिहासकार) के अनुसार, मुख़्तार सहाबा में से नहीं थे। हालाँकि, सहाबा के स्रोतों में उनकी जीवनी का उल्लेख है।
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