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नेज़ामत इमामबाड़ा

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नेज़ामत इमाम बाड़ा
संस्थापकनवाब सिराज अल-दौला
स्थापना1740 ईस्वी
उपयोगकर्तामस्जिद, इमामबाड़ा
स्थानपश्चिम बंगाल राज्य के मुर्शिदाबाद शहर में
अन्य नाममुर्शिदाबाद इमाम बाड़ा
स्थितिसक्रिय
सुविधाएँमस्जिद
वास्तुकारकिफ़ायतुल्लाह
शैलीमंगोलियाई वास्तुकला
पुनर्निर्माण1847 ईस्वी


नेज़ामत इमाम बाड़ा (फ़ारसी: حسینیه نظامت) (हुसैनिया नेज़ामत) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के मुर्शिदाबाद शहर में स्थित शियों के धार्मिक और ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। इस इमारत का निर्माण भारत के बंगाल सल्तनत के नवाब सिराज अल-दौला (1733-1757 ई.) ने करवाया था। 1846 में, यह इमामबाड़ा आग से नष्ट हो गया था। नवाब मंसूर अली खान बहादुर (1830-1884) ने 1847 में इस इमारत का पुनर्निर्माण कराया।

इस इमामबाड़े में एक मस्जिद और कई गलियारे हैं। मुहर्रम के दिनों में इमाम हुसैन (अ) के शोक इस भवन में मनाए जाते हैं। निज़ामत इमाम बाड़ा महान हुसैनिया में से एक और भारत के प्राचीन स्मारकों में से एक है। इस इमारत की नींव के नीचे मक्का, मदीना और कर्बला की मिट्टी डाली गई है।

नेज़ामत इमाम बाड़ा; बंगाल का सबसे बड़ा इमामबाड़ा

नेज़ामत इमाम बाड़ा भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में, मुर्शिदाबाद शहर में, गंगा के तट पर और हज़ार द्वारी महल (ऐतिहासिक स्मारकों में से एक) के सामने स्थित है।[] यह भारत के सबसे बड़े इमाम बाड़ों में से एक है।[] और इसे भारत के बंगाल के ऐतिहासिक और पर्यटक स्मारकों में से एक माना जाता है।[] ऐसा कहा जाता है कि यह भारत के पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा हुसैनिया है, और यह केवल मुहर्रम के पहले दशक में ही खुलता है।[]

इतिहास और संस्थापक

नेज़ामत इमाम बाड़ा की स्थापना 1740 ईस्वी (12वीं चंद्र शताब्दी) में भारत में पश्चिम बंगाल के शासन वंश के नवाबों में से एक, नवाब मुहम्मद सिराज-उद-दौला द्वारा मुर्शिदाबाद शहर के नेज़ामत क़िले में की गई थी।[] सिराज अल-दौला ने मुहर्रम के दौरान अपनी सेना के इमाम हुसैन (अ) का शोक मनाने के लिए इस इमारत का निर्माण कराया था।[]

1842 (तेरहवीं हिजरी शताब्दी) में, नेज़ामत इमाम बाड़ा आग से नष्ट हो गया था।[] दिसंबर 1846 में, इसे एक और आग का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप, मदीना मस्जिद को छोड़कर, इस इमाम बाड़े की पूरी इमारत जलकर खाक हो गई।[] नवाब मंसूर अली खान (1830-1884 ई.) ने 1847 ई. में इस हुसैनिया का पुनर्निर्माण शुरू किया और ग्यारह महीनों में इसे पूरा किया गया।[]

इमाम बाड़े की इमारत की विशेषताएं

निज़ामत इमाम बाड़ा की मूल इमारत में मक्का और मदीना की मिट्टी डाली गई थी, ताकि जो लोग ग़रीबी के कारण दर्शन के लिये मक्का नहीं जा सकते थे, वे यहां आ सकें।[१०] दूसरे पुनर्निर्माण में, कर्बला की मिट्टी को इसकी नींव के नीचे रखा गया था।[११]

इमाम बाड़े के क्षेत्र में, "मदीना मस्जिद" नाम की एक मस्जिद है, जिसकी स्थापना नवाब मंसूर अली खान ने की थी।[१२] यह मस्जिद इमाम बाड़े और हज़ार द्वारी महल के बीच स्थित है।[१३] मस्जिद अल-नबी से समानता के कारण इसका नाम मदीना मस्जिद रखा गया है।[१४] यह इमारत लकड़ी से बनी है।[१५]

हुसैनिया नेज़ामत में तीन गलियारे हैं, जिनके नाम मध्य गलियारा, मस्जिद गलियारा और मिंबर गलियारा हैं:

मिम्बर का गलियारा 300 फीट (लगभग 91 मीटर) लंबा है। मिम्बर वहां पर स्थित है और इमाम हुसैन (अ) के शोक में प्रोग्राम यहीं आयोजित किये जाते है। इस इमाम बाड़े में सजावटी पत्थरों से सजी एक बालकनी है। महिलाओं के लिए इस में एक विशेष हॉल भी है।[१६]

पूर्वी गलियारे को नौबत ख़ाना कहा जाता है, जिसमें एक बड़ा दरवाजा लगा हुआ है। सबसे बड़ा गलियारा पश्चिम दिशा में स्थित है, जो दो मंजिला है। हुसैनिया की लंबाई 680 फीट (लगभग 207 मीटर) है।[१७] इस इमाम बाड़े में तीर्थयात्रियों के आवास के लिए कमरे भी हैं। [१८]

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