नवरोज़

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(ईदे नौरोज़ से अनुप्रेषित)
हुसैन शेख़ द्वारा हफ़्त सीन

नवरोज़ (फ़ारसी: نوروز) शम्सी वर्ष के नए साल की शुरुआत है और यह फ़रवरदीन के पहले दिन के समान है, जिसमें ईरानी उत्सव मनाते हैं। शिया हदीसी स्रोतों में, ऐसी हदीसें हैं जो नवरोज़ को अस्वीकार और पुष्टि करती हैं। इमाम सादिक़ (अ) से हदीस वर्णित हुई है जिसमें नवरोज़ के लिए विशेष रीति-रिवाजों और प्रथाओं का उल्लेख किया गया है। अल्लामा मजलिसी जैसे कुछ शिया विद्वानों ने इस कथन की पुष्टि की है और सय्यद मुहम्मद हुसैन तेहरानी जैसे अन्य लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया है और इसके प्रसारण की श्रृंखला (सनद) को कम़जोर (ज़ईफ़) माना है।

नवरोज़ के उत्सव को ईरान का सबसे पुराना सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है। यह उत्सव राष्ट्रीय, जातीय और धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं के एक समूह से जुड़ा हुआ है। नवरोज़ का उत्सव अन्य देशों में भी मनाया जाता है और ईरान सहित कुछ देशों में इस दिन आधिकारिक अवकाश होता है। इसके अलावा, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में, इस विश्वास के आधार पर एक विशेष समारोह आयोजित किया जाता है कि इमाम अली (अ) इस दिन ख़िलाफ़त पर पहुंचे थे। ईरान में, लोगों का एक समूह साल के समापन के दौरान इमामों और इमामज़ादों की दरगाहों पर आता है।

परिचय एवं महत्व

फ़रवरदीन का पहला दिन, जो सौर हिजरी वर्ष की शुरुआत और वसंत[१] (बहार) के पहले दिन के साथ मेल खाता है,[२] नवरोज़ कहलाता है। कुछ लोगों ने नवरोज़ के निर्माण का श्रेय पहले ईरानी राजाओं को दिया है और कुछ ने इसे पारसी धर्म की मान्यताओं में से एक माना है;[३] इस कारण से, वे इसे एक पारसी त्योहार के रूप में भी पेश करते हैं।[४] दूसरी ओर, कुछ लोग नवरोज़ को ईरान का राष्ट्रीय और प्राचीन त्योहार मानते हैं जो ईरान का सबसे पुराना सांस्कृतिक प्रतीक है[५] और ईरानियों का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उत्सव है।[६]

फ़रवरदीन के पहले दिन मज़ार-ए-शरीफ में इमाम अली (अ) की दरगाह पर झंडा फहराने का समारोह

शिया हदीस स्रोतों में, नवरोज़ और इस दिन के कार्यों के समर्थन में हदीसें हैं।[७] नवरोज़ को विभिन्न ईरानी संस्कृतियों और उनके सह-अस्तित्व के संकेत के रूप में पेश किया गया है[८] ताकि एक समय में, पारसी सहित विभिन्न लोग, शिया सुन्नी, ईसाई आदि पवित्र वस्तुओं, पुस्तकों और विभिन्न हितों के साथ इसमें हिस्सा लेते हैं।[९] यह भी कहा गया है कि नवरोज़ के दौरान शासकों ने लोगों से उपहार[१०] और श्रद्धांजलि ली है[११] और कुछ युगों में इन दिनों में सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति राजा द्वारा की जाती थी।[१२]

नवरोज़ विभिन्न देशों और राष्ट्रों के बीच मनाया जाता है, और इस दिन कुछ देशों में एक आधिकारिक अवकाश होता है।[13] इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नवरोज़ को ईरानी मूल के साथ अपने कैलेंडर में रखा है।[१३]

रिवाज

नवरोज़ बहुत पहले से परंपराओं से जुड़ा हुआ है।[१४] नवरोज़ उत्सव की तैयारी बहुत पहले से,[१५] घर की सफ़ाई करना[१६] नए कपड़े पहनना,[१७] ईद पर हरा पौधा लगाना,[१८] हफ्त सीन का दस्तरख़्वान लगाना,[१९] और दस्तरख़्वान पर कुरआन रखना,[२०] ईदी देना,[२१] और क़ब्रों पर जाना और साल के आख़िरी गुरुवार को उनकी खुशी के लिए भिक्षा देना,[२२] उन्हीं रीति-रिवाजों में से एक है। नवरोज़ में अन्य सामान्य परंपराओं में से एक, एक दूसरे से मुलाक़ात करना और सिल ए रहम है।[२३]

पाराचिनार में नवरोज़ के पहले दिन झंडा फहराना

ध्वजारोहण समारोह

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के पाराचिनार में लोग मासूमों (अ) की हदीसों का हवाला देते हुए मानते हैं कि इमाम अली (अ) नवरोज़ में ख़िलाफ़त तक पहुँचे थे,[२४] इसीलिए इस दिन वे झंडे फहराकर इमाम अली (अ) की ख़िलाफ़त का जश्न मनाते हैं।[२५] यह समारोह अफ़ग़ानिस्तान के मज़ार-ए-शरीफ़ में इमाम अली (अ) की दरगाह में आयोजित किया जाता है[२६] और पाकिस्तान के पाराचिनार में इमाम अली (अ) की दरगाह में आयोजित किया जाता है।[२७]

धार्मिक स्थलों में लोगों की उपस्थिति

साल के समापन के दौरान लोगों का एक समूह इमामों या इमामज़ादों की दरगाह पर आता है।[२८] ईरान के इस्लामी गणराज्य के दौरान, इस देश के नेता नवरोज़ के अवसर पर एक संदेश जारी करते हैं।[२९] इसके अलावा, आयतुल्लाह ख़ामेनेई हर साल नवरोज़ के दिन इमाम रज़ा (अ) के हरम में भाषण देते हैं।

नवरोज़ की स्वीकृति या अस्वीकृति पर हदीसें

शिया हदीसी स्रोतों में नवरोज़ से संबंधित दो प्रकार की हदीसें वर्णित हुई हैं। मुअल्ला बिन ख़ुनैस ने इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि इमाम नवरोज़ ईद को मंजूरी देते हैं और इस दिन स्नान (ग़ुस्ल) करने, सबसे अच्छे कपड़े पहनने, उपवास करने और विशेष नमाज़ पढ़ने की सलाह देते हैं।[३०] अल्लामा मजलिसी इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस का वर्णन करते हैं और उसके आधार पर मानते हैं कि नवरोज़ के दिन, ग़दीर और सूर्य पहली बार उदय हुआ जैसी महत्वपूर्ण धार्मिक घटनाएं घटी हैं।[३१] दूसरी ओर, इमाम मूसा काज़िम (अ) से एक हदीस वर्णित हुई है, जो नवरोज़ को इस्लाम की स्वीकृत परंपराओं में से एक नहीं मानते थे और इसे पुनर्जीवित करने के लिए अनिच्छुक थे।[३२] कुछ लेखकों ने इन दो श्रेणियों की हदीसों के दस्तावेज़ और सामग्री की जाँच की है।[३३] अल्लामा मजलिसी नवरोज़ के अनुमोदन के वर्णन को अधिक मज़बूत और अधिक प्रसिद्ध मानते हैं और सुझाव देते हैं कि नवरोज़ के विरुद्ध वर्णन तक़य्या की अवस्था में है।[३४] इमाम ख़ुमैनी नवरोज़ के दिन ग़ुस्ल करने[३५] और रोज़ा रखने[३६] को मुस्तहब मानते हैं। हालांकि, सय्यद मुहम्मद हुसैन तेहरानी (1345-1416 हिजरी) का मानना है कि ईदे नवरोज़ के बारे में जो कुछ भी प्रसिद्ध है, जिस पर इस्लाम ने हस्ताक्षर किए हैं और शम्स को बुर्ज हमल में स्थानांतरित करने के दौरान स्नान (ग़ुस्ल), नमाज़ और दुआ पर विचार किया है, वह सही नहीं है। उन्होंने ईद को एक राष्ट्रीय परंपरा और जातीय रीति-रिवाज के रूप में मनाना विधर्म (बिदअत) माना है और उन्होंने इस संबंध में मुअल्ला बिन ख़ुनैस द्वारा वर्णित हदीसों को कमज़ोर माना है।[३७]

वर्ष 1274 शम्सी के समापन के साथ शबे क़द्र के संयोग के बारे में नासिरुद्दीन शाह का वर्णन:

"क्योंकि आज की रात ईदे नवरोज़ की रात है और ... रमज़ान की शबे तेईस और रात भर जागने और क़द्र की रात है; लोग नमाज़ और दुआ में व्यस्त हैं. हम सूर ए रूम, सूर ए अंकबूत और सूर ए दोख़ान हा मीम दोखान पढ़ने में व्यस्त थे। हम पढ़ ही रहे थे कि राज-प्रतिनिधि आये। समाप्त करने के बाद, हम संग्रहालय कक्ष में गए"।[३८]

सुन्नियों के बीच, उनके कुछ विद्वान नवरोज़ का उत्सव[३९] मनाने और इस दौरान उपहार देने को हराम मानते हैं।[४०] उनमें से कुछ के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति पचास वर्षों तक भगवान की इबादत करता है और फिर नवरोज़ की स्मृति में उपहार देता है, तो वह अविश्वासी (काफ़िर) बन गया है और उसके कार्यों से उसे कोई लाभ नहीं होगा।[४१] अफ़ग़ानिस्तान के शासन की पहली अवधि के दौरान, तालिबान समूह ने नवरोज़ को इस्लाम के विरुद्ध और विधर्म (बिदअत) माना है और इसके उत्सव पर प्रतिबंध लगा दिया।[४२]

लेख "बाज़ ख़्वानी सनद नवरोज़ दर रियावाते इस्लामी" के लेखक के अनुसार, ईदे नवरोज़ मनाई जानी चाहिए क्योंकि इसमें उपहार देना, सलाह, दया, बड़ों के प्रति सम्मान, छोटों के प्रति दयालुता, स्वच्छता और साफ-सफाई जैसे कार्य शामिल हैं जो तर्क और शरीयत को पसंद हैं, इसका सम्मान किया जाना चाहिए।[४३]

धार्मिक रीति-रिवाज

किताब वसाएल अल-शिया में नवरोज़ से संबंधित हदीसों के लिए एक अलग अध्याय समर्पित किया गया है।[४४] इस अध्याय में इस दिन के रीति-रिवाजों जैसे स्नान, उपवास (रोज़ा) और साफ़ और सुगंधित कपड़े पहनने की परंपराओं के बारे में बताया गया है।[४५] अल्लामा मजलिसी ने साल के समापन की दुआ «يَا مُقَلِّبَ الْقُلُوبِ وَ الْأَبْصَارِ يَا مُدَبِّرَ اللَّيْلِ وَ النَّهَارِ يَا مُحَوِّلَ الْحَوْلِ وَ الْأَحْوَالِ حَوِّلْ حَالَنَا إِلَى أَحْسَنِ الْحَال» (या मोक़ल्लेबल क़ुलूबे वल अब्सार या मोदब्बेरल लैले वन्नहार या मोहव्वेलल हौले वल अहवाल हव्विल हालना एला अहसनिल हाल) का उल्लेख किया है[४६] जिसे दुआ ए तहवीले साल के रूप में जाना जाता है।[४७] उन्होंने नवरोज़ के लिए एक और दुआ का भी उल्लेख किया है: «اللَّهُمَّ هَذِهِ‏ سَنَةٌ جَدِيدَةٌ وَ أَنْتَ مَلِكٌ قَدِيمٌ أَسْأَلُكَ خَيْرَهَا وَ خَيْرَ مَا فِيهَا وَ أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَ شَرِّ مَا فِيهَا وَ أَسْتَكْفِيكَ مَؤُنَتَهَا وَ شُغْلَهَا يَا ذَا الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ» (अल्लाहुम्मा हाज़ेही सनतुन जदीदतुन व अन्ता मलेकुन क़दीमुन अस्अलोका ख़ैरहा व ख़ैरा मा फ़ीहा व अऊज़ो बेका मिन शर्रेहा व शर्रे मा फ़ीहा व अस्तकफ़ीका मउनतहा व शुग़लहा या ज़लजलाले वल इकराम)[४८] स्रोतों में ईदे नवरोज़ के विशेष अनुष्ठानों के साथ दो, दो रकअत नमाज़ो का भी उल्लेख किया गया है।[४९] कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि नवरोज़ में कोई विशेष गुण और विशेषाधिकार नहीं है जिसके लिए विशिष्ट अनुष्ठान और प्रथाएं वर्णित हुई हों बल्कि नवरोज़ के दिन नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने की सिफ़ारिश लोगों को अनैतिक और निरर्थक गतिविधियों से दूर करने के उद्देश्य से की गई है।[५०]

फ़ुटनोट

  1. देहखोदा, लोग़तनामे देहखोदा, शब्द "नवरोज़"।
  2. तहमासबी, नवरोज़, पीर बरनाई जावेद, 1384 शम्सी, पृष्ठ 5।
  3. अफ़्शार, जश्ने नवरोज़, 1382 शम्सी, पृष्ठ 22।
  4. अबुल फ़रज़ इस्फ़हानी, अल अग़ानी, 1415 हिजरी, खंड 23, पृष्ठ 154।
  5. अमीन बीदख़्ती व शरीफ़ी, सरमाय ए इज्तेमाई दर ईदे नवरोज़ व पीश अज़ आन, 1393 शम्सी, पृष्ठ 649।
  6. देहखोदा, लोग़तनामे देहखोदा, शब्द "नवरोज़"।
  7. हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 172।
  8. तबातबाई, "नवरोज़; नमादी अज़ तसाहुल व तसामोह
  9. तबातबाई, "नवरोज़; नमादी अज़ तसाहुल व तसामोह
  10. इब्ने अब्दुल-बर्र, अल-इस्तियाब फ़ी मारेफ़त अल असहाब, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 1420।
  11. जाफ़रयान, "नवरोज़ दर फ़र्हंगे शिया"
  12. दाराबी, नवरोज़ अज़ दीदे सफ़रनामे नवीसान दौर ए सफ़विया व क़ाचारिया, 1395 शम्सी, पृष्ठ 104।
  13. नफ़र, "आशनाई बा मरासिमे नवरोज़ दर हश्त किश्वरे ईरान"
  14. UNITED NATIONS प्रवेश की तिथि: 23 February 2010،‌देखने की तिथि: 18 मार्च 2018. संयुक्त राष्ट्र
  15. दाराबी, नवरोज़ अज़ दीदे सफ़रनामे नवीसान दौर ए सफ़विया व क़ाचारिया, 1395 शम्सी, पृष्ठ 113।
  16. दाराबी, नवरोज़ अज़ दीदे सफ़रनामे नवीसान दौर ए सफ़विया व क़ाचारिया, 1395 शम्सी, पृष्ठ 110।
  17. दाराबी, नवरोज़ अज़ दीदे सफ़रनामे नवीसान दौर ए सफ़विया व क़ाचारिया, 1395 शम्सी, पृष्ठ 110।
  18. अफ़्शार, जश्ने नवरोज़, 1383 शम्सी, पृष्ठ 23।
  19. अफ़्शार, जश्ने नवरोज़, 1383 शम्सी, पृष्ठ 23।
  20. दाराबी, नवरोज़ अज़ दीदे सफ़रनामे नवीसान दौर ए सफ़विया व क़ाचारिया, 1395 शम्सी, पृष्ठ 114।
  21. अफ़्शार, जश्ने नवरोज़, 1383 शम्सी, पृष्ठ 23।
  22. रहीमी, "लोगों के दिलों में ऐतिहासिक उत्सव"
  23. अफ़्शार, जश्ने नवरोज़, 1383 शम्सी, पृष्ठ 23।
  24. फजरी, फ़ुरसतहाए तलाई नवरोज़, इस्फंद 1386 शम्सी, पृष्ठ 38।
  25. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 56, पृष्ठ 91।
  26. "अफ़ग़ानिस्तान में हज़रत अली (अ) का झंडा फहराकर नवरोज़ उत्सव की शुरुआत" IRNA न्यूज़ एजेंसी। "अफ़ग़ानिस्तान में हज़रत अली (अ) का झंडा फहराकर नवरोज़ उत्सव की शुरुआत" IRNA न्यूज़ एजेंसी।
  27. "पाकिस्तान में नवरोज़ अलम अफ़रोज़ और ईरान सग़ीर की कहानी" IRNA न्यूज़ एजेंसी।
  28. फजरी, फ़ुरसतहाए तलाई नवरोज़, इस्फंद 1386 शम्सी, पृष्ठ 37।
  29. देखें: "इमाम खुमैनी (आरए) के नवरोज़ संदेशों का पाठ" और "1369 से 1397 तक क्रांति के नेता के नौरोज़ संदेशों का पाठ"।
  30. हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 172।
  31. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 56, पृष्ठ 92-100।
  32. इब्ने शहर आशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, 1379 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 319।
  33. फ़ाज़िल अस्त्राबादी, मजमूआ ए मक़ालात दर ज़मीने आशूरा,अरबईन, व नवरोज़, 1392 शम्सी, पृष्ठ 112-120।
  34. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 56, पृष्ठ 101।
  35. इमाम खुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1379 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 82।
  36. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1379 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 237।
  37. हुसैनी तेहरानी, इमाम शनासी, खंड 6, पृष्ठ 215।
  38. "नासिर अल-दीन शाह की 1274 साल के समापन के साथ शब अल-क़द्र के संयोग का विवरण", ख़बर ऑनलाइन साइट।
  39. अल मनावी, फ़ैज़ अल क़ादिर, शरह अल-जामेअ अल-सगीर, 1356 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 511।
  40. अबुल बरकात अल-नस्फ़ी, कंज़ अल दक़ाएक, 2011 ईस्वी, खंड 1, पृष्ठ 695।
  41. अल-तक़ी अल-गज़ी, अल-तबकात अल-सुन्निया फ़ी तराजुम अल-हंफ़िया, पृष्ठ 343।
  42. जाफ़रयान, "शिया संस्कृति में नवरोज़"
  43. ज़मानी महजूब, "बाज़ख़्वानी सनदे नवरोज़ दर रिवायाते इस्लामी; मुतालेआ मूरदी: मुअल्ला बिन ख़ुनैस की रिवायत", पृष्ठ 41।
  44. हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 172।
  45. हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 172।
  46. मजलिसी, ज़ाद अल मआद, 1423 हिजरी, पृष्ठ 328।
  47. करीमयान सरदश्ती देखें, "दुआ ए तहवीले साल", पृष्ठ 41-42।
  48. मजलिसी, ज़ाद अल-मआद, 1423 हिजरी, पृष्ठ 328।
  49. हुर्रे आमोली, हिदायत अल-उम्मा, 1414 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 316।
  50. फ़ाज़िल अस्त्राबादी, मजमूआ ए मक़ालात दर ज़मीने आशूरा,अरबईन, व नवरोज़, 1392 शम्सी, पृष्ठ 119।

स्रोत

  • अबुल बरकात अल नस्फी, कंज अल-दकाएक, शोधकर्ता: सईद बेकदाश, बी जा, दार अल-बशाएर अल-इस्लामी, 2011 ईस्वी।
  • इब्ने शहर आशोब माजंदरानी, मनाक़िब आले अबी तालिब (अ), क़ुम, इंतेशाराते अल्लामा, पहला संस्करण, 1379 हिजरी।
  • इब्ने अब्दुल-बर्र, युसूफ़ बिन अब्दुल्लाह, अल-इस्तियाब फ़ी मारेफ़त अल-असहाब, शोध: अली मुहम्मद अल-बैज़ावी, बेरूत, दार अल-जील, पहला संस्करण, 1412 हिजरी।
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  • अल-मनावी, ज़ैन अल-दीन, फ़ैज़ अल क़दीर शरहे अल-जामेअ अल-सग़ीर, मिस्र, अल मकतबा अल तेजारिया अल कुबरा, 1356 हिजरी।
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  • देहखोदा, लोग़तनामे देहखोदा।
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  • ज़मानी महजूब, हबीब, बाज़ख्वानी सनजे नवरोज़ दर रिवायाते इस्लामी; मुतालेआ मूरदी: मोअल्ला बिन ख़ुनैस का वर्णन, तारीख़े फ़र्हंग व तमद्दुने इस्लामी, संख्या 25, शीतकालीन 1395 शम्सी।
  • सय्यद इब्ने ताऊस, रज़ी अल-दीन अली, अल-इक़बाल बिल आमाल अल-हस्ना, तेहरान, दारुल-ए-किताब अल-इस्लामी, दूसरा संस्करण, 1409 हिजरी।
  • हुर्रे आमोली, हेदायत अल उम्मा एला अहकाम अल आइम्मा (अ), मशहद, आस्ताने अल-रज़विया अल-मुक़दस्सा, मजमा अल बोहूस अल इस्लामिया, पहला संस्करण, 1414 हिजरी।
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  • तबातबाई, अहमद, "नवरोज़; नमादी अज़ तसाहुल व तसामोह", मरकज़े दाएरतुल मआरिफ़ बुज़ुर्ग इस्लामी वेबसाइट पर, प्रवेश तिथि: 23 इस्फंद 1396 शम्सी, देखने की तिथि: 27 इस्फंद 1396 शम्सी।
  • तहमासबी, तुग़रल, नवरोज़, पीर बरनई जावेद, हाफ़िज़, नंबर 26, इस्फंद 1384 शम्सी।
  • फ़ाज़िल अस्त्राबादी, मुहम्मद, मजमूआ ए मक़ालात दर ज़मीने आशूरा, अरबईन, और नवरोज़, क़ुम, शिया शनासी, 1392 शम्सी।
  • फ़जरी, मुहम्मद महदी, फ़ुरसतहाए तलाई नवरोज़, मुबल्लेग़ान, नंबर 101, इस्फंद 1396 शम्सी।
  • करीमयान सरदश्ती, नादिर, "दुआ ए तहवीले साल", माहे हुनर किताब में, संख्या 29 और 30, बहमन और इस्फंद 1379 शम्सी।
  • मजलिसी, मुहम्मद बाकिर, बिहार अल-अनवार, बेरूत, दार अल इह्या अल तोरास अल-अरबी, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी।
  • मजलिसी, मुहम्मद बाकिर, ज़ाद अल-मआद (मिफ़्ताह अल-जिनान), अलाउद्दीन अल-आलमी द्वारा संपादित, बेरूत, मोअस्सास ए अल आलमी लिल मतबूआत, प्रथम संस्करण, 1423 हिजरी।
  • नफ़र, फ़ातिमा, "दुनिया के आठ देशों में नौरोज़ समारोहों से परिचित", हमशहरी वेबसाइट पर, प्रवेश की तारीख: 28 इस्फंद 1396 शम्सी, देखने की तारीख: 25 इस्फंद 1396 शम्सी।
  • हुसैनी तेहरानी, सय्यद मुहम्मद हुसैन, इमाम शनासी, उलूम व मआरिफ़ इस्लाम डेटाबेस।
  • पाकनिया तबरेज़ी, अब्दुल करीम, निगाही नव बे जाएगाहे ईदे नवरोज़, मुबल्लेगान, संख्या 138, इस्फंद 1389 शम्सी।
  • UNITED NATIONS प्रवेश की तिथि: 23 बहमन 2010, देखने की तिथि: 18 इस्फंद 2018।