अबू जहल
अम्र बिन हेशाम बिन मुगैरा मख़ज़ूमी | |
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उपनाम | अबू जहल |
जन्मदिन | 554 ईस्वी |
निवास स्थान | मक्का |
वंश | कुरैश |
प्रसिद्ध रिश्तेदार | एकरेमा बिन अबी जहल (बेटा), वलीद बिन मुग़ैरा (चाचा) |
मृत्यु की तिथि और स्थान | 17 रमज़ान वर्ष 2 हिजरी |
अन्य गतिविधियां | दार अल-नदवा में सदस्यता, पैगंबर (स) की हत्या की योजना तैयार करना, नए मुसलमानों पर अत्याचार करना और धमकी देना, बद्र की लड़ाई मे भूमिका |
अम्र बिन हेशाम बिन मुगैरा मख़ज़ूमी को अबू जहल (अरबी: أبو جهل) (मृत्यु 2 हिजरी) के नाम से जाना जाता है, जो कि मक्का में पैगंबर (स) और इस्लाम के विरोधियों में से था। पैगंबर (स) की हत्या की योजना तैयार करना, नए मुसलमानों को सताना और धमकाना, लोगों को क़ुरआन की आयतें सुनने से रोकना, पैगंबर (स) का अपमान करना, कुरैश और बनी हाशिम के बीच संबंध तोड़ने की कोशिश करना और बद्र की लड़ाई का मंच तैयार करना, इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ उसके कुछ कार्य थे। टीकाकारों (मुफ़स्सिरो) ने कुरान की लगभग तीस आयतों में उसके बारे मे चर्चा की है।
अबू जहल ने बद्र की लड़ाई के ग्राउंडवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बहुदेववादियों की सेना में मारा गया।
वंश, उपनाम और उपाधि
अम्र बिन हेशाम बिन मुग़ैरा पैगंबर (स) के विरोधियों में से था और हमेशा उनके साथ दुश्मनी रखता था।[१] पिता हेशाम बिन मुगैरा मख़ज़ूम का संबंध बनी मख़ज़ूम जनजाति से था, और कुरैश ने मुग़ैरा की मृत्यु को अपने इतिहास की शुरुआत बना दिया।[२] माता अस्मा जुंदल हंज़ली की बेटी थी जिनका संबंध बनी तमीम से था।[३] इसलिए, उन्हें इब्न हंजलिया भी कहा जाता है।[४]
अबू जहल का उपनाम अबुल हकम था, लेकिन पैगंबर (स) ने उसको अबू जहल का नाम दिया।[५] अबू जहल नाम देने का कारण उसकी अज्ञानता तथा इस्लाम के प्रति उसकी शत्रुता बताई जाती है।[६] इसी प्रकार पैगंबर (स) की एक रिवायत के आधार पर उम्मते इस्लाम का फ़िरऔन अबू जहल है।[७] मग़ाज़ी किताब मे वाक़ेदी की रिपोर्ट के अनुसार पैगंबर (स) ने बद्र की लड़ाई शुरू होने से पहले नफेला नमाज़ पढ़ने के बाद अबू जहल सहित अविश्वासियों पर इस प्रकार नफरीन की: "أَللّهُمَّ لَايُفْلِتَنَّ فِرْعَوْنُ هذِهِ الاُمَّةِ أَبُوجَهْلُ بْنُ هِشَامٍ अल्लाहुम्मा ला युफ़लेतन्ना फ़िरऔनो हाज़ेहिल उम्मते अबू जहलो इब्नो हेशामे" (हे अल्लाह ! इस उम्मत का फिरऔन, अबू जहल फऱार करने मे सफल न हो) कुछ ही समय बीतने के बाद अबू जहल इस्लाम के सैनिकों द्वारा मारा गया।[८]
इकरमा बिन अबू जहल जो कि अबू जहल का बेटा था पैगंबर (स) के प्रति शत्रुतापूर्ण था, लेकिन मक्का की विजय (फतहे मक्का) के बाद मुसलमान हो गया।[९]
इस्लाम का विरोध
अबू जहल पैगंबर (स) के साथ शत्रुता रखता था और विभिन्न तरीकों से आप (स) को अपशब्द[१०] कहता और अपमान करता था[११] इसके अलावा अबू जहल और उसके व्यवहार को क़ुरआन की कुछ आयतों की शाने नुज़ूल, इस्लाम और पैगंबर (स) के विरोध में माना जाता है।[१२] कुरान के विश्वकोश (दाएरातुल मआरिफ़े क़ुरआन) में कुरान की 32 आयतों का उल्लेख है, जिन्हे मुफ़स्सेरीन ने अबू जहल से संबंधित माना है।[१३] उसने (अबू जहल ने) इस्लाम के प्रसार को रोकने के लिए जो उपाय किए। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
क़ुरआन की आयतों को लोगों के कानों तक पहुँचने से रोकना
मुहम्मद बिन अहमद कुरतुबी आयत " وَ قَالَ الَّذِینَ کَفَرُواْ لَا تَسْمَعُواْ لهَِذَا الْقُرْءَانِ وَ الْغَوْاْ فِیهِ لَعَلَّکمُْ تَغْلِبُون वा क़ालल लज़ीना कफ़ारू ला तस्मऊ ले हाज़ल क़ुरआने वल ग़ौव फ़ीहे लाअल्लकुम तग़लेबून; की तफ़सीर में काफ़िरों ने कहा: इस क़ुरआन को मत सुनो और इसे पढ़ते हुए बहस करो, शायद तुम विजय हो जाओगे![१४] इब्ने अब्बास से वर्णित है कि जब भी पैगंबर (स) क़ुरआन की तिलावत करते थे, तो अबू जहल चीखने और चिल्लाने के लिए कहता था ताकि समझ न सको कि क्या कहे रहे हैं।[१५]
पैगंबर (स) की हत्या की योजना तैयार करना
अब्दुल मलिक बिन हेशाम के अनुसार, मक्का के बहुदेववादी पैगंबर (स) से निपटने का तरीका निर्धारित करने के लिए दार अल-नदवा में एकत्र हुए, उनमें से प्रत्येक ने अपना प्रस्ताव रखा। अबू जहल ने पैगंबर (स) की हत्या करने की सलाह देते हुए कहा कि सभी जनजातिया हत्या करने मे सम्मिलित हो ताकि बनी हाशिन सभी जनजातीयो से युद्द न कर सकें और उनके खून की कीमत (ख़ून बहा) लेने पर सहमत हो जाएं। उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया, इसलिए लैलातुल मबीत मे प्रत्येक जनजाति का एक व्यक्ति पैगंबर (स) की हत्या करने की योजना को अंजाम देने के लिए आया था। अबू जहल भी उपस्थित लोगों में से था और उन्हें प्रोत्साहित कर रहा था, लेकिन इमाम अली (अ) का आप (स) के स्थान पर सो जाने से हत्या करने वाली योजना सफल नहीं हुई।[१६] अबू जहल तीस साल की उम्र में दार अल-नदवा का सदस्य बना, जबकि उस समय बनी क़ुसा को छोड़कर दार अल-नदवा के सदस्यों की उम्र चालीस साल से अधिक थी।[१७]
नए मुसलमानों पर अत्याचार और धमकी
अबू जहल ने लोगों को इस्लाम में शामिल होने से रोका।[१८]] जब कोई मुसलमान होता था, तो उसे धमकी देता और अत्याचार करता था ताकि वह इस्लाम छोड़ दे[१९] बिलाल हब्शी[२०] यासिर बिन आमिर और सुमय्या बिन्ते खब्बात को इस्लाम स्वीकार करने और पैगंबर (स) का समर्थन करने के कारण अबू जहल द्वारा प्रताड़ित किया गया और सुमय्या उसकी यातनाओं के परिणामस्वरूप वीर गति को प्राप्त हो गई।[२१] उन्होंने अय्याश बिन अबी रबीआ को भी कैद कर लिया, जो प्रवासियों में शामिल होने के लिए मदीना जा रहे थे क़ुबा से मक्का वापस भेज करके गिरफ्तार कर लिया ।[२२] ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, अबू जहल की नव-मुसलमानों से निपटने की अलग-अलग योजनाएँ थीं; इस्लाम स्वीकार करने वाले व्यक्ति का सामाजिक रुतबा होता था जिसे अपमान और बेइज्जती से बदनाम करता और अगर वह व्यापारी होता तो बहिष्कार की धमकी देता और उसका व्यापार हराम करार दे देता और उसकी पूंजी नष्ट कर देता, और यदि वह कमजोर व्यक्ति होता तो उसे पीटता और यातनाएं देता था।[२३]
अबू जहल ने कुरैश और बनी हाशिम के बीच के रिश्ते को तोड़ने का भी प्रयास किया [२४] और शेबे अबी तालिब मे बनी हाशिम तक आज़ूक़ा (खाद्घ सामाग्री) की आपूर्ति को रोक दिया। [२५]
बद्र की लड़ाई मे भूमिका
- मुख्य लेख: बद्र की लड़ाई
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार अबू जहल ने बद्र की लड़ाई के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बद्र की लड़ाई से पहले पैगंबर (स) ने उसे और जम्आ बिन असवद को युद्ध पर जोर देने के लिए शाप (बद दुआ) दिया था।[२६] प्रवासन (हिजरत) के दूसरे वर्ष में अबू सुफ़यान के नेतृत्व में एक कुरैश कारवां को मुसलमानों द्वारा धमकी दी गई थी। उसने कुरैश से मदद मांगी। अबू जहल ने उस कारवां का समर्थन करने के लिए एक सेना के साथ मक्का से निकला। हालाँकि कारवाँ सकुशल निकल गया, लेकिन अबू जहल के आग्रह पर मक्का की सेना बद्र के कुएँ[२७] की ओर बढ़ी और वहाँ उनके और मुस्लिम सेना के बीच बद्र की लड़ाई हुई। मक्का की सेना को मुसलमानों ने हरा दिया और अबू जहल को कई अन्य कुरैश नेताओं के साथ मार दिया गया।[२८] अबू जहल मआज़ बिन अम्र और अफरा के बच्चों के हाथो मारा गया, और अब्दुल्ला बिन मसूद ने उसका सिर काट दिया।[२९]
फ़ुटनोट
- ↑ देखेः इब्ने इस्हाक़, सीर ए इब्ने इस्हाक़, मकतब देरासात अल-तारीख वल मआरिफ़ अल-इस्लामीया, पेज 145
- ↑ इब्ने हबीब बग़दादी, अल-मोहबर, दार अल-आफ़ाक़ अल-जदीदा, पेज 139
- ↑ इब्ने हेशाम, अल-सीरत अल-नबावीया, दार अल-मारफ़ा, भाग 1, पेज 623
- ↑ देखेः बलाजुरी, अनसाब अल-अशराफ़, 1959 ई, भाग 1, पेज 291
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब अल-अशराफ़, 1959 ई, भाग 1, पेज 125
- ↑ इबने दुरैद, अल-इश्तेक़ाक़, 1411 हिजरी, पेज 148
- ↑ इब्ने इस्हाक़, सीर ए इब्ने इस्हाक़, मकतब देरासात अल-तारीख वल मआरिफ़ अल-इस्लामीया, पेज 210
- ↑ वाक़ेदी, मग़ाज़ी, भाग 1, पेज 46
- ↑ इबने जौज़ी, अल-मुंतज़म, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 155-156
- ↑ इब्ने हेशाम, अल-सीरत अल-नबावीया, भाग 1, पेज 291
- ↑ इब्ने हेशाम, अल-सीरत अल-नबावीया, भाग 1, पेज 98-299
- ↑ देखेः वाहेदी, असबाब नुज़ूल अल-क़ुरआन, 1411 हिजरी, पेज 487 तिबरी, जामे अल-बयान, भाग 22, पेज 99
- ↑ आलाम ए क़ुरआन अज़ दाएरातुल मआरिफ़ क़ुरआन करीम, 1385 शम्सी, भाग 1, पजे 381-391
- ↑ सूर ए फुस्सेलत, आयत न 26
- ↑ क़ुरतुबी, तफ़सीर अल-क़ुरतुबी, 1405 हिजरी, भाग 15, पेज 356
- ↑ इब्ने हेशाम, अल-सीरत अल-नबावीया, भाग 1, पेज 482-483
- ↑ इबने दुरैद, अल-इश्तेक़ाक़, 1411 हिजरी, पेज 155
- ↑ इब्ने हेशाम, अल-सीरत अल-नबावीया, दार अल-मारफ़ा, भाग 1, पेज 320
- ↑ इब्ने हेशाम, अल-सीरत अल-नबावीया, दार अल-मारफ़ा, भाग 1, पेज 320
- ↑ इब्ने असीर, असद अल-ग़ाबा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 243
- ↑ इब्ने अब्दुल बिर, अल-इस्तिआब, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 1865
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ात अल-कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 4, पेज 96
- ↑ सीर ए इब्ने हेशाम, भाग 1, पेज 279
- ↑ इब्ने हिशाम, अल-सिराह अल-नबवियह, डार अल-मारेफ़ह, खंड 1, पेज 353-354।
- ↑ इब्ने इस्हाक़, सीर ए इब्ने इस्हाक़, मकतब देरासात अल-तारीख वल मआरिफ़ अल-इस्लामीया, पेज 161
- ↑ वाक़ेदी, मग़ाज़ी, भाग 1, पेज 46
- ↑ वाक़ेदी, मग़ाज़ी, भाग 1, पेज 37
- ↑ वाक़ेदी, मग़ाज़ी, भाग 1, पेज 89-91
- ↑ वाक़ेदी, मग़ाज़ी, भाग 1, पेज 91
स्रोत
- इब्ने असीर, अली बिन मुहम्मद, असद अल-ग़ाबा फ़ी मारफ़ते अल-सहाबा, बैरूत, दार अल-फ़िक्र, 1409 हिजरी
- इब्ने इस्हाक़, मुहम्मद बिन इस्हाक़, सीर ए इब्ने इस्हाक़, मकतब देरासात अल-तारीख वल मआरिफ़ अल-इस्लामीया
- इब्ने जौज़ी, अब्दुर रहमान बिन अली, अल-मुंतज़म, मोहक़्क़िक़ः अता, मुहम्मद अब्दुल क़ादिर, अता, मुस्तफ़ा अब्दुल क़ादिर, बैरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, पहला संस्करण, 1412 हिजरी
- इब्ने हबीब बग़दादी, मुहम्मद बिन हबीब, अल-मोहबर, तहक़ीक़ अल-ज़त लेयख़तिन शतीतर, बैरुत, दार अल-आफ़ाक़ अल-जदीदा
- इब्ने हबीब, मुहम्मद, अल-मोहबर, बे कोशिश ईल्ज़ा लेयशतन इश्तनर, हैदराबाद दकन, 1361 हिजरी
- इब्ने दुरैद, मुहम्मद बिन हसन, अल-इशतिक़ाक़, तहक़ीक व शरहः अब्दुस सलाम मुहम्मद हारून, बैरत, दार अल-जील, 1411 हिजरी
- इब्ने साद, मुहम्मद बिन साद, अल-तबक़ात अल-कुबरा, तहक़ीक़ मुहम्मद अब्दुल क़ादिर अता, बैरुत, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, 1410 हिजरी
- इब्ने अब्दुल बिर, युसूफ़ बिन अब्दुल्लाह, अल-इस्तिआब फ़ी मारफ़ते अल-अस्हाब, तहक़ीक़ अली मुहम्मद अल-बजावी, बैरूत, दार अल-मारफ़ा, 1412 हिजरी
- इब्ने हेशाम, अब्दुल मलिक बिन हेशाम, अल-सीरतुन नबावीया, बे कोशिश मुस्तफ़ा सक़्क़ा व दिगरान, क़ाहिरा, 1375 हिजरी
- बलाज़ुरी, अहमद बिन याह्या, अंसाब अल-अशराफ़ बे कोशिश मुहम्मद हमीदुल्लाह, क़ाहिरा, 1959 ई
- तिबरी, मुहम्मद बिन जुरैर, जामे अल-बयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, दार अल-मारफ़ा, बैरूत, 1412 हिजरी
- क़ुरतुबी, मुहम्मद बिन अहमद, तफ़सीर अल-क़ुरतुबी, तहक़ीक़ मुहम्मद मुहम्मद हसनैन, बैरूत, दार ए एहया ए अल-तुरास अल-अरबी, 1405 हिजरी
- मरकज़े फ़रहंग वा मआरिफ़ क़ुरआन, आलाम क़ुरआन अज़ दाएरातुल मआरिफ़ क़ुरआन करीम, क़ुम, बूस्ताने किताब, 1385 शम्सी
- वाहेदी, अली बिन अहमद, असबाबे नुज़ूल क़ुरआन, तहक़ीक़ कमाल बेसूई ज़ाअलूल, बैरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, 1411 हिजरी
- वाक़ेदी, मुहम्मद बिन उमर, अल-मग़ाज़ी, तहक़ीक़ मारसदन जूइज़, बैरुत, अल-तबआ अल-सालेसा, 1409 हिजरी