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"हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा": अवतरणों में अंतर

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* '''मुस्हफ़े फ़ातिमा (स)''': उन बातों पर आधारित हैं जिन्हे हज़रत फ़ातिमा (स) ने स्वर्गदूत से सुना और उन्हे इमाम अली (अ) ने लिखा।<ref>कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 241</ref> शियों के अनुसार मुस्हफ़े फ़ातिमा (स) मासूम इमामों द्वारा सुरक्षित रहा, प्रत्येक इमाम ने अपने जीवन के अंत में इसे अपने उत्तराधिकारी (अपने बाद वाले इमाम) को सौंपा।<ref>सफ़्फ़ार, बसाएर उत-दरजात उल-कुबरा, 1404 हिजरी, पेज 173-181</ref> और मासूम इमामो (अ) के अलावा कोई अन्य व्यक्ति इस पुस्तक तक नहीं पहुंच सकता। यह पुस्तक वर्तमान में [[इमामे ज़माना (अ.त.)]] के पास है।<ref>आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 21, पेज 126</ref>
* '''मुस्हफ़े फ़ातिमा (स)''': उन बातों पर आधारित हैं जिन्हे हज़रत फ़ातिमा (स) ने स्वर्गदूत से सुना और उन्हे इमाम अली (अ) ने लिखा।<ref>कुलैनी, काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 241</ref> शियों के अनुसार मुस्हफ़े फ़ातिमा (स) मासूम इमामों द्वारा सुरक्षित रहा, प्रत्येक इमाम ने अपने जीवन के अंत में इसे अपने उत्तराधिकारी (अपने बाद वाले इमाम) को सौंपा।<ref>सफ़्फ़ार, बसाएर उत-दरजात उल-कुबरा, 1404 हिजरी, पेज 173-181</ref> और मासूम इमामो (अ) के अलावा कोई अन्य व्यक्ति इस पुस्तक तक नहीं पहुंच सकता। यह पुस्तक वर्तमान में [[इमामे ज़माना (अ.त.)]] के पास है।<ref>आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 21, पेज 126</ref>


* '''खुत्बा ए फ़दकया''': हज़रत फ़ातिमा (स) के प्रसिद्ध धर्मोपदेशो (खुत्बों) में से एक है, जिसे आप ने [[सक़ीफ़ा बनी सायदा]] की घटना और फ़दक वाले बाग के हड़पने के संबंध मे पैगंबर की मस्जिद में सहाबा की भरी सभा में दिया था। इस धर्मोपदेश के अब तक कई व्याख्या (शरह) लिखे जा चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश का शीर्षक "हज़रत ज़हरा (स) के खुत्बे की शरह" अथवा "शरह ख़ुत्बा ए लुम्मा" (ख़ुत् ए फ़दकया का दूसरा नाम) है।<ref>आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 93 और भाग 13, पेज 224 </ref>  
* '''खुत्बा ए फ़दकया''': हज़रत फ़ातिमा (स) के प्रसिद्ध धर्मोपदेशो (खुत्बों) में से एक है, जिसे आप ने [[सक़ीफ़ा बनी साएदा की घटना]] और फ़दक वाले बाग के हड़पने के संबंध मे पैगंबर की मस्जिद में सहाबा की भरी सभा में दिया था। इस धर्मोपदेश के अब तक कई व्याख्या (शरह) लिखे जा चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश का शीर्षक "हज़रत ज़हरा (स) के खुत्बे की शरह" अथवा "शरह ख़ुत्बा ए लुम्मा" (ख़ुत् ए फ़दकया का दूसरा नाम) है।<ref>आग़ा बुजुर्ग तेहरानी, अल-ज़रीआ एला तसानीफ अल-शिया, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 93 और भाग 13, पेज 224 </ref>  


* '''तस्बीह हज़रत ज़हरा (स)''': उस प्रसिद्ध ज़िक्र को संदर्भित करती है जिसे पैगंबर (स) ने हज़रत ज़हरा (स) को सिखाया था<ref>सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 320-321; बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सही उल-बुख़ारी, दारूल फ़िक्र, 1401 हिजरी, भाग 4, पेज 48-208</ref> जिसने हज़रत फ़ातिमा (स) को अत्यधिक प्रसन्न किया।<ref>सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 2, पजे 366</ref> शिया और सुन्नी स्रोतों में हज़रत ज़हरा (स) को [[रसूले अकरम (स)]] द्वारा शिक्षण देने के संबंध मे विभिन्न मतलबो का उल्लेख किया गया है और कहा जाता है कि इमाम अली (अ) ने इस ज़िक्र को सुनने के बाद इसे कभी नहीं छोड़ा।<ref> अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, भाग 1, पेज 107</ref>  
* '''तस्बीह हज़रत ज़हरा (स)''': उस प्रसिद्ध ज़िक्र को संदर्भित करती है जिसे पैगंबर (स) ने हज़रत ज़हरा (स) को सिखाया था<ref>सुदूक़, मन ला याहज़ेरोहुल फ़क़ीह, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 320-321; बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सही उल-बुख़ारी, दारूल फ़िक्र, 1401 हिजरी, भाग 4, पेज 48-208</ref> जिसने हज़रत फ़ातिमा (स) को अत्यधिक प्रसन्न किया।<ref>सुदूक, एलालुश शराय, 1385 हिजरी, भाग 2, पजे 366</ref> शिया और सुन्नी स्रोतों में हज़रत ज़हरा (स) को [[रसूले अकरम (स)]] द्वारा शिक्षण देने के संबंध मे विभिन्न मतलबो का उल्लेख किया गया है और कहा जाता है कि इमाम अली (अ) ने इस ज़िक्र को सुनने के बाद इसे कभी नहीं छोड़ा।<ref> अहमद इब्ने हबंल, मुसनद अहमद इब्ने हंबल, भाग 1, पेज 107</ref>  
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