गुमनाम सदस्य
"शियो के इमाम": अवतरणों में अंतर
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# '''[[समाज का नेतृत्व]]:''' इस्लाम के पैगंबर (स) के बाद इस्लामी समुदाय का नेतृत्व और प्रशासन आइम्मा (अ) का कर्तव्य है।<ref>सुबहानी, मनशूरे अक़ाइद ए- इमामिया, 1376 शम्सी, पेज 149-150</ref> | # '''[[समाज का नेतृत्व]]:''' इस्लाम के पैगंबर (स) के बाद इस्लामी समुदाय का नेतृत्व और प्रशासन आइम्मा (अ) का कर्तव्य है।<ref>सुबहानी, मनशूरे अक़ाइद ए- इमामिया, 1376 शम्सी, पेज 149-150</ref> | ||
# '''[[इताअत का वाजिब होना]]:''' [[आय ए उलिल अम्र]] के आधार पर आइम्मा (अ) की आज्ञाकारिता ([[इताअत]]) वाजिब है। जिस तरह अल्लाह और पैगंबर (स.अ.व.व.) की तरह आइम्मा (अ.स.) की आज्ञाकारिता अनिवार्य है।<ref>तूसी, अल-तिबयान, दार ए एहयाइल तुरास अल-अरबी, भाग 3, पेज 236; मुहम्मदी, शरह ए कश्फ़ उल-मुराद, 1378 शम्सी, पेज 415</ref> | # '''[[इताअत का वाजिब होना]]:''' [[आय ए उलिल अम्र]] के आधार पर आइम्मा (अ) की आज्ञाकारिता ([[इताअत]]) वाजिब है। जिस तरह अल्लाह और पैगंबर (स.अ.व.व.) की तरह आइम्मा (अ.स.) की आज्ञाकारिता अनिवार्य है।<ref>तूसी, अल-तिबयान, दार ए एहयाइल तुरास अल-अरबी, भाग 3, पेज 236; मुहम्मदी, शरह ए कश्फ़ उल-मुराद, 1378 शम्सी, पेज 415</ref> | ||
अधिकांश शिया विद्वानों के दृष्टिकोण से सभी शिया इमाम [[शहीद]] हो गए हैं या शहीद होंगे।<ref>सुदूक़, अल-ख़िसाल, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 528; तबरसी, ऐअलाम उल-वर्आ, 1390 हिजरी, पेज 367; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 209; मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 209 व 216</ref> उनका तर्क रिवायतो<ref>मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 207-217</ref> मे से वह रिवायत है जिसमे आया है «<ref>सदूक़, मन ला याहज़ेरोह उल-फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 585; तबरसी, एअलाम उल वर्आ, 1390 शम्सी, पेज 367</ref>وَ اللَّهِ مَا مِنَّا إِلَّا مَقْتُولٌ شَهِيد» 'वल्लाहि मा मिन्ना इल्ला मक़तूलुन शहीद' कि सभी इमाम दुनिया से शहीद जाएंगे।<ref>तबरसी, एअलाम उल वर्आ, 1390 शम्सी, 367; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 209</ref> | अधिकांश शिया विद्वानों के दृष्टिकोण से सभी शिया इमाम [[शहीद]] हो गए हैं या शहीद होंगे।<ref>सुदूक़, अल-ख़िसाल, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 528; तबरसी, ऐअलाम उल-वर्आ, 1390 हिजरी, पेज 367; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 209; मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 209 व 216</ref> उनका तर्क रिवायतो<ref>मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 207-217</ref> मे से वह रिवायत है जिसमे आया है «<ref>सदूक़, मन ला याहज़ेरोह उल-फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 585; तबरसी, एअलाम उल वर्आ, 1390 शम्सी, पेज 367</ref>'''وَ اللَّهِ مَا مِنَّا إِلَّا مَقْتُولٌ شَهِيد»''' 'वल्लाहि मा मिन्ना इल्ला मक़तूलुन शहीद' कि सभी इमाम दुनिया से शहीद जाएंगे।<ref>तबरसी, एअलाम उल वर्आ, 1390 शम्सी, 367; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 209</ref> | ||
==इमामो की इमामत== | ==इमामो की इमामत== |