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"ग़ज़्वा बनी मुस्तलिक़": अवतरणों में अंतर

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:''यह लेख ग़ज़वा बनि मुस्तलिक के बारे में है। इस नाम वाली जनजाति के बारे में जानने के लिए बनि मुस्तलिक जनजाति वाला लेख देखें।''
:''यह लेख ग़ज़वा बनी मुस्तलिक के बारे में है। इस नाम वाली जनजाति के बारे में जानने के लिए बनी मुस्तलिक जनजाति वाला लेख देखें।''


'''ग़ज़वा बनि मुस्तलिक''' या '''ग़ज़वा मुरैसीअ''' (फ़ारसीः'''غزوه بنی‌مُصطَلِق''' یا '''غزوه مُرَیسیع''') [[पैग़म्बर (स) के ग़ज़वात]] (अभियानो, युद्धो) में से एक है जो [[बनि मुस्तलिक जनजाति]] का सामना करने के लिए [[वर्ष 5 हिजरी|5वीं]] या [[वर्ष 6 हिजरी|6ठीं हिजरी]] में हुई थी। इस युद्ध में, [[अबू ज़र गफ़्फ़ारी]] [[मदीना]] में [[हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम|पैग़म्बर (स)]] के उत्तराधिकारी बने और कुछ [[पाखंडी]] युद्ध के [[माले गनीमत]] हासिल करने के लिए इस्लामी सेना में शामिल हो गए।
'''ग़ज़वा बनी मुस्तलिक''' या '''ग़ज़वा मुरैसीअ''' (फ़ारसीः'''غزوه بنی‌مُصطَلِق''' یا '''غزوه مُرَیسیع''') [[पैग़म्बर (स) के ग़ज़्वात]] (अभियानो, युद्धो) में से एक है जो [[बनी मुस्तलिक जनजाति]] का सामना करने के लिए [[वर्ष 5 हिजरी|5वीं]] या [[वर्ष 6 हिजरी|6ठीं हिजरी]] में हुई थी। इस युद्ध में, [[अबू ज़र गफ़्फ़ारी]] [[मदीना]] में [[हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम|पैग़म्बर (स)]] के उत्तराधिकारी बने और कुछ [[पाखंडी]] युद्ध के [[माले गनीमत]] हासिल करने के लिए इस्लामी सेना में शामिल हो गए।


इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने शुरू में बनि मुस्तलिक जनजाति को [[इस्लाम]] में आमंत्रित किया; लेकिन इस्लाम स्वीकार करने से इनकार करने और मुस्लिम सेना पर तीरअंदानी करने के बाद, उन्होंने हमले का आदेश दिया।
इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने शुरू में बनी मुस्तलिक जनजाति को [[इस्लाम]] में आमंत्रित किया; लेकिन इस्लाम स्वीकार करने से इनकार करने और मुस्लिम सेना पर तीरअंदानी करने के बाद, उन्होंने हमले का आदेश दिया।


ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार इस युद्ध में शत्रु की पराजय के बाद मुसलमानों ने दो सौ [[बंदी]], दो हजार ऊँट और पाँच हजार भेड़ें माले ग़नीमत मे मिली। बंदियों और माले [[ग़नीमत]] को मुसलमानों के बीच बांट दिया गया, और बंदियों की रिहाई की शर्त [[फ़िदया|फ़िदये]] (फ़िरौती) का भुगतान थी, जिसे पैग़म्बर (स) ने निर्धारित किया था।
ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार इस युद्ध में शत्रु की पराजय के बाद मुसलमानों ने दो सौ [[बंदी]], दो हजार ऊँट और पाँच हजार भेड़ें माले ग़नीमत मे मिली। बंदियों और माले [[ग़नीमत]] को मुसलमानों के बीच बांट दिया गया, और बंदियों की रिहाई की शर्त [[फ़िदया|फ़िदये]] (फ़िरौती) का भुगतान थी, जिसे पैग़म्बर (स) ने निर्धारित किया था।


इस युद्ध में बनि मुस्तलिक जनजाति के मुखिया [[हारिस की बेटी जुवैरिया]] को भी बंदी बना लिया गया और पैग़म्बर (स) ने फ़िदया लेकर उसे रिहा कर दिया। मुक्त होने के बाद, जुवैरिया ने इस्लाम स्वीकार कर [[हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम|पैग़म्बर (स)]] से [[विवाह]] कर लिया।
इस युद्ध में बनी मुस्तलिक जनजाति के मुखिया [[हारिस की बेटी जुवैरिया]] को भी बंदी बना लिया गया और पैग़म्बर (स) ने फ़िदया लेकर उसे रिहा कर दिया। मुक्त होने के बाद, जुवैरिया ने इस्लाम स्वीकार कर [[हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम|पैग़म्बर (स)]] से [[विवाह]] कर लिया।


कुछ तफसीर की पुस्तकों की रिपोर्टों के अनुसार, इस युद्ध के दौरान पाखंडियों, विशेषकर [[अब्दुल्लाह बिन उबैय]] के व्यवहार के बारे में [[सूर ए मुनाफ़ेक़ून]] की पहली से आठवीं आयतें नाजलि हुई। यह भी कहा जाता है कि इस अभियान से लौटने के बाद [[इफ़्क की घटना|इफ़िक की घटना]] घटी।
कुछ तफसीर की पुस्तकों की रिपोर्टों के अनुसार, इस युद्ध के दौरान पाखंडियों, विशेषकर [[अब्दुल्लाह बिन उबैय]] के व्यवहार के बारे में [[सूर ए मुनाफ़ेक़ून]] की पहली से आठवीं आयतें नाजलि हुई। यह भी कहा जाता है कि इस अभियान से लौटने के बाद [[इफ़्क की घटना|इफ़िक की घटना]] घटी।
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