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"अनन्त पीड़ा": अवतरणों में अंतर

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शिया विद्वानों का मानना है कि अनन्त पीड़ा को कर्मों के अवतार के सिद्धांत और [[पुनरुत्थान]] के दिन कर्मों की सच्चाई की व्याख्या के साथ समझाया जा सकता है। इसके अलावा, क़ुरआन में कहा गया है कि कुछ लोग नरक मे हमेशा के लिए रहेंगे वो कभी भी बाहर नहीं निकल पाएंगे।
शिया विद्वानों का मानना है कि अनन्त पीड़ा को कर्मों के अवतार के सिद्धांत और [[पुनरुत्थान]] के दिन कर्मों की सच्चाई की व्याख्या के साथ समझाया जा सकता है। इसके अलावा, क़ुरआन में कहा गया है कि कुछ लोग नरक मे हमेशा के लिए रहेंगे वो कभी भी बाहर नहीं निकल पाएंगे।
== महत्व ==
मृत्यु के बाद मानव आत्मा की अमरता [[इस्लाम]], [[यहूदी]] और [[ईसाई धर्म]] सहित कई अन्य धर्मों की शिक्षाओं में से एक है।<ref>बलानियान व दहक़ानी महमूदाबादी, ख़ुलूद दर अज़ाब, पेज 177</ref>  सामान्य तौर पर, इन लोगों या समूहों को [[क़ुरआन]] में नरक में अमरता का वादा किया गया है: अविश्वासियों ([[काफ़िर|कुफ्फ़ार]]),<ref>सूर ए आले इमरान, आयन न 116, सूर ए बय्येना, आयत न 6, सूर ए अहज़ाब, आयत न 64-65</ref> बहुदेववादी ([[मुशरिक|मुशरेकीन]]न),<ref>सूर ए बय्येना, आयत न 6, सूर ए फ़ुरक़ान, आयत न 68-69</ref> और पाखंडी ([[मुनाफ़ेक़ीन]])।<ref>सूर ए तौबा, आयत न 68, सूर ए मुजादेला, आयत न 17-17</ref>
अनन्त पीड़ा के विषय में इतना अन्तर है कि कुछ लोग इसे सर्वसम्मत एवं धर्म के लिये आवश्यक ([[ज़रूरियाते दीन]]) मानते हैं तथा अन्य इसे तर्क से इतना दूर मानते हैं कि इसे धर्म से जोड़ा नहीं दी जा सकता।<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 1, पेज 130</ref> अनन्त पीड़ा के समर्थक अपने दावे पर क़ुरआन और हदीस से तर्क पेश करते है।<ref>बलानियान व दहक़ानी महमूदाबादी, ख़ुलूद दर अज़ाब, पेज 178</ref> ऐसा कहा गया है कि [[क़ुरआन]] की 85 आयतें अमरता से संबंधित हैं जिनमे से 34 आयतें नरक मे हमेशा रहने से संबंधित हैं।<ref>रज़ाई हफ्तादर, अरज़याबी नज़रया इंकेताअ अज़ाब जहन्नम, पेज 35</ref> [[सूर ए नेसा]] आयत न 169, [[सूर ए अहज़ाब]] आयत न 65 और सूर ए जिन्न आयत न 23 कुफ़्फ़ार, अत्याचारियो और खुदा के मुक़ाबले मे पाप और अवज्ञा मे लिप्त होने वालो के बारे मे है जिन मे  , "خالدین فیہا ख़ालिदीन फ़िहा" के बाद, "ابداً अब्दा" के बाद वाक्यांश का उल्लेख किया गया है।<ref>अब्दुल बाक़ी, अल मोअजम अल मुफ़हरिस ले अलफ़ाज अल क़ुरआन अलकरीम</ref>
नरक मे अनन्त प़ीड़ा मे बाकी रहने के बारे मे बहुत अधिक हदीसे बयान हुई है। [[ मुहम्मद हुसैन तबातबाई|अल्लामा मुहम्मद हुसैन तबातबाई]] के अनुसार,  नरक मे अनन्त पीड़ा के सिद्धांत के बारे में अहले-बैत (अ) से बयान होने वाली हदीसो मे मुत्तफ़ीज़ की हक पहुंची हुई है।<ref>तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 412</ref> कुछ हदीसो में, नरक की आग में हमेशा बाकी रहने को काफ़िरो, मुनकिरो और मुशरिको से विशेष माना जाता है।<ref>शोख सदूक़, अल तौहीद, 1416 हिजरी, पेज 407-408; मजलिसी, बेहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 34, 351</ref>
== अनन्त पीड़ा के बारे में तीन सिद्धांत ==
=== अनन्त पीड़ा काफ़िरो और कबाइर के लिए है ===
विभिन्न धर्मों के अधिकांश मुस्लिम धर्मशास्त्री अविश्वासियों के लिए अनन्त पीड़ा में विश्वास करते हैं।<ref>देखेः अल्लामा हिल्ली, कश्फ़ उल मुराद, 1427 हिजरी, पेज 561; तफ़तज़ानी, शरह उल मकासिद, 1371 शम्सी, भाग 5, पेज 134; जुरजानी, शरह उल मवाफ़िक़, 1370 शम्सी, भाग 8, पेज 307; फ़ाज़िल मिक़दाद, अल लमावेउल इलाहीया, 1387 शम्सी, पेज 441</ref> हालांकि, [[फ़ासिक़]] और दूसरे शब्दो मे गुनाहे कबीरा ([[बड़े पाप|बड़े पापो]]) मे लिप्त मोमेनीन जो [[पश्चताप]] के बिना इस दुनिया से चले गए हो उनके बारे मे बहुत अधिक मतभेद पाया जाता है।<ref>अबदुल बारी, यौम अल क़यामा, 2004 ई, पेज 306</ref>
[[खवारिज]] का मानना था कि [[गुनाहे कबीरा]] अंजाम देने वाला काफिर है और हमेशा नरक में रहेगा।<ref>अश्अरि, मकालात अल इसलामीईन, 1400 हिजरी, पेज 474; शहरिस्तानी, अल मिलल वल नेहल, भाग 1, पेज 170, 186</ref> उनके विपरीत [[मोअतजेला]] का मानना था कि फ़ासिक़ मुस्लमान ना [[काफ़िर]] है और ना मोमिन, बल्कि उनके स्थान पर [[मनज़ेलतुन बैनल मनज़ेलतैन]] अर्थात स्वर्ग और नरक के बीच मो कोई विशेष स्थान है हालाकि उनके अधिकांश खवारिज के समान इस बात को मानते थे कि ऐसा व्यक्ति हमेशा के लिए नरक मे रहेगा।<ref>अश्अरि, मकालात अल इसलामीईन, 1400 हिजरी, पेज 474; बगदादी, अल फ़क़ो बैनल फ़िरक, पेज 115, 118-119; क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, 1408 हिजरी, पेज 650</ref>
=== केवल काफ़िरो के लिए आवंटित करना ===
जाहिज़ (मृत्यु: 255 हिजरी) और अब्दुल्लाह बिन हसन अनबरी (दूसरी चंद्र शताब्दी) का मानना था कि अनन्त पीड़ा काफ़िरो के लिए विशेष है। लेकिन वह व्यक्ति जिसने सच्चे धर्म को पहचानने का प्रयत्न किया हो लेकिन सच्चाई स्पष्ठ न होने के कारण इस्लाम स्वीकार न किया हो तो उसे माफ कर दिया जाता है और उसकी सजा नरक में समाप्त हो जाएगी।<ref> फ़ख्रे राज़ी, अल मोहस्सिल, 1411 हिजरी, पेज 566 तफ़तज़ानी, 1371 शम्सी, शरह उल मकासिद, भाग 5, पेज 131 जुरजानी, शरह उल मुवाफ़िक, 1370 शम्सी, भाग 8, पेज 308-309</ref>
== अनन्त पीड़ा को नकारने वाले ===
विभिन्न धर्मों के विद्वानों में अनन्त पीड़ा को नकारा है, लेकिन इन विरोधियों में एक राय नहीं है। किए गए शोध के अनुसार, अनन्त पीड़ा के विरोधियों को छह समूहों में विभाजित किया जा सकता है:<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 125</ref>
# नरक मे रहने वाले लोग अंतः नरक से निकल कर स्वर्ग मे प्रवेश करेंगे,<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 125</ref>
# नरक और उसके लोगों का विनाश हो जाएगा,<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 125</ref>
# नरक के लोगों को धैर्य और शक्ति प्रदान की जाएगी कि वो नरक की पीड़ा को भूल जाऐंगे<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 126</ref>
# अंत मे नरक मे रहने वाले लोगो के साथ-साथ नेमत भी दी जाएगी,<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 126</ref>
# पीड़ा आनंद में बदल जाएगी,<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 127</ref>
# एक प्रकार का खुलूद।<ref>जवादी आमोली, तसनीम, 1395 शम्सी, भाग 39, पेज 436; क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 128</ref>
ऐसा कहा गया है कि जह्म इब्न सफ़वान और उनके कुछ अनुयायियों को छोड़कर, जो नरक और स्वर्ग के विनाश में विश्वास करते थे और इसलिए अमरता (ख़ुलूद) में विश्वास नहीं करते थे,<ref>अश्अरि, मकालात अल इसलामीईन, 1400 हिजरी, पेज 474</ref> [[मोहयुद्दीन इब्न अरबी]] अमरता के सबसे प्रमुख प्रतिद्वंद्वी हैं<ref>सातेअ व रफ़ीआ, मुक़ाएसा दीदगाह इमाम ख़ुमैनी दर बाबे ख़ुलूद बा साइरे आराए मुख़ालिफ़ व मुवाफ़िक, पेज 79</ref> और उन्होने लिखा है कि नरक के लोगों ने अपने बुरे कर्मो के अनुसार पीड़ा सहन करने के पश्चात उसी नरक मे ईश्वर की कृपा और दया से लाभांवित होंगे औस उसके बाद नरक की आग को महसूस नहीं करेंगे,<ref> इब्ने अरबी, अल फ़ुतूहाते मक्किया, भाग 1, पेज 114, 203</ref> मुल्ला सदरा शिराज़ी भी अपनी कुछ कृतियो मे इब्न अरबी की तरह इस बात को मानते है कि अंत में नरक की सज़ा ख़त्म हो जाएगी और नरक के लोगों को सज़ा का एहसास नहीं होगा और उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 121</ref>
[[इमाम ख़ुमैनी]] को भी विद्वानों की इसी श्रेणी में रखा गया है, जो नरक में रहने वालों के लिए सज़ा से मुक्ति और श़िफ़ाअत (हिमायत) से लाभांवित होंगे<ref>सातेअ व रफ़ीआ, मुक़ाएसा दीदगाह इमाम ख़ुमैनी दर बाबे ख़ुलूद बा साइरे आराए मुख़ालिफ़ व मुवाफ़िक, पेज 95</ref> और उनका कहना है कि इस दावे के लिए उन्होंने ईश्वर की सार्वजनिक दया और [[इंसान की इलाही फ़ितरत]] के अविनाशीता पर भरोसा किया है।<ref>सातेअ व रफ़ीआ, मुक़ाएसा दीदगाह इमाम ख़ुमैनी दर बाबे ख़ुलूद बा साइरे आराए मुख़ालिफ़ व मुवाफ़िक, पेज 95</ref>
== शिया विद्वानों का अक़ीदा ==
क़दरदान क़रामलकी की रिपोर्ट के अनुसार, शिया विद्वानों की नज़र में ख़ुलूद के सिद्धांत को सहमति के साथ सभी स्वीकार करते है<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 2, पेज 120</ref> और शिया धर्मशास्त्रियों की मान्यता के अनुसार, नरक मे अनन्त पीड़ा फ़िरो के लिए विशेष है।<ref>शेख़ मुफ़ीद, अवाएलुल मक़ालात, 1330 शम्सी, पेज 14; शेख़ मुफ़ीद, रेसाले शरह अकाइद अल सुदूक़, 1330 शम्सी, पेज 55; तूसी, तजरीद अल ऐतेकाद, 1407 हिजरी, पेज 304; अल्लामा हिल्ली, कश्फ़ उल मुराद, 1427 हिजरी, पेज 561; फ़ाज़िल मिक़्दाद, अल लवामेउल इलाहीया, 1387 शम्सी, पेज 441-443</ref>
=== अनन्त पीड़ा का काफ़िरो के लिए आवंटन ===
शेख़ मुफ़ीद के अनुसार, शिया का मानना है कि अनन्त पीड़ा अविश्वासियों (काफ़िरो) के लिए आरक्षित है और यदि पापी नरक में चले जाएं, तो वे हमेशा नरक में नहीं रहेंगे<ref>शेख़ मुफ़ीद, अवाएलुल मक़ालात, 1330 शम्सी, पेज 46</ref> मुल्ला सदरा ने इस बात पर जोर दिया कि नरक में अनन्त पीड़ा का स्रोत केवल [[कुफ्र|अविश्वास]] है, और वह नरक मे हमेशा रहने को अविश्वासियों को केवल उनके भ्रष्टाचार के कारण जानते है; इस आधार पर अमल और किरदार के हवाले से भ्रष्टाचारी व्यक्ति पर अनन्त पीड़ा होने की संभावना है।<ref>मुल्ला सद्रा, अस्फ़ार, 1981 ई, भाग 4, पेज 307-310</ref>
[[अल्लामा तबताबाई]] के अनुसार, क़ुरआन मे सज़ा की अमरता और अनंत काल के बारे में स्पष्ट है, क्योंकि [[सूर ए बकरा]] की आयत न 76 में कहा गया है कि वे नरक से बाहर नहीं आएंगे। इस संबंध में अहल-अल-बैत की असंख्य रिवायतें भी स्पष्ट हैं; इसलिए, कुछ गैर-शिया हदीसें जो सज़ा की समाप्ति का संकेत देती हैं, उन्हें क़ुरआन के विरोध के कारण छोड़ दिया जाना चाहिए।<ref>तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 412-413</ref>
=== शिया धर्मशास्त्रियों के तर्क ===
शिया विद्वान अनन्त पीड़ा के सार्वजनिक न होने और केवल विरोधी काफ़िरो के लिए होने को साबित करने के लिए क़ुरआन की विभिन्न आयतो और कई हदीसो से तर्क पेश करते है। उनमे से एक [[सूर ए अनआम]] की आयत न 28 मे  إِلَّا مَا شَاءَ اللَّہُ इल्ला मा शाअल्लाहो वाक्यांश के साथ, कुछ लोगों को अनन्त पीड़ा की सजा से बाहर रखा गया है, और चूंकि आम सहमति के अनुसार, काफ़िर इससे बाहर नहीं आएगा। इस यत का अर्थ उस अपराधी को बाहर करना है जो अल्लाह की इच्छा के साथ एक बड़ा अपराध करता है और प्रोविडेंस उसकी सजा को समाप्त कर देगा।<ref>देखेः तूसी, तजरीद उल ऐतेकाद, 1407 हिजरी, पेज 304; अल्लामा हिल्ली, कश्फ उल मुराद, 1427 हिजरी, पेज 561-563; फ़ाज़िल मिक़्दाद, अल लवामेउल इलाहीया, 1387 शम्सी, पेज 443-445</ref> [[अल्लामा मजलिसी]] खुलूद के बारे में वर्णित हदीसों का के समूह से इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि जिन लोगों की बुद्धि में कोई कमी हो या जिन पर [[हुज्जत]] तमाम नही हुई हो वो नरक की आग मे हमेशा के लिए बाकी नही रहेंगे।<ref>मजलिसी, बेहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 363</ref>
शिया धर्मशास्त्रियों के अनुसार, जो आस्तिक गुनाहे करीबा अंजाम देता है,तो  वह अपने विश्वास के कारण स्थायी इनाम का हकदार होता है। क्योंकि सूर ए ज़िलज़ाल की आयत न 7 में, यहां तक कि सबसे छोटे अच्छे काम का भी इनाम है, और विश्वास सबसे बड़ा अच्छा काम है, और चूंकि विश्वास का इनाम एक दायमी सवाब  है, तो ऐसे व्यक्ति को पहले दंडित किया जाना चाहिए और फिर स्वर्ग मे शाश्वत इनाम (दायमी सवाब) लाभांवित होगा।<ref>देखेः तूसी, तजरीद उल ऐतेकाद, 1407 हिजरी, पेज 304; अल्लामा हिल्ली, कश्फ उल मुराद, 1427 हिजरी, पेज 561-563; फ़ाज़िल मिक़्दाद, अल लवामेउल इलाहीया, 1387 शम्सी, पेज 443-445</ref>
== अनन्त पीड़ा और ईश्वर की दया ==
मुस्लिम विद्वानों का एक समूह, जो अधिक दार्शनिक और रहस्यमय दृष्टिकोण रखते हैं और अनन्त पीड़ा और नरक मे हमेशा रहने के विरोधी हैं,<ref>सातेअ व रफ़ीआ, मुक़ाएसा दीदगाह इमाम ख़ुमैनी दर बाबे ख़ुलूद बा साइरे आराए मुख़ालिफ़ व मुवाफ़िक, पेज 79</ref> ने अनन्त पीड़ा को ईश्वर की दया के साथ असंगत माना है।<ref>जवादी आमोली, तसनीम, 1395 शम्सी, भाग 39, पेज 431 बतहाई, रहमत इलाही व खुलूद दोज़खियान, पेज 35</ref>
दूसरी ओर, शिया टिप्पणीकार और दार्शनिक [[अल्लामा तबातबाई]] के अनुसार, ईश्वर की दया का अर्थ दया और करुणा नहीं है; क्योंकि ये अवस्थाएँ भौतिक मनुष्य की विशेषताएँ हैं; बल्कि, ईश्वर की दया का अर्थ है कुछ ऐसा देना जो किसी की प्रतिभा से बालातर हो।<ref>तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 414</ref>
[[मोहयुद्दीन इब्न अरबी|इब्न अरबी]] के अनुसार, कुछ लोगों का स्वभाव दया और करुणा से बना होता है, और यदि ईश्वर उन्हें अपने बंदो के मामलों की निगरानी और प्रबंधन करने की अनुमति देता, तो वे दुनिया से हर प्र्कार की पीड़ा और मुशकिलात को गायब कर देते। अब, जिस ईश्वर ने अपने कुछ बंदो को ऐसी पूर्णता प्रदान की है, वह निश्चित रूप से इसका अधिक हकदार रखते है और पीड़ा को पूरी तरह से दूर कर सकता है। ईश्वर ने स्वयं को अपने सेवकों के प्रति सबसे दयालु बताया है।<ref>इब्ने अरबी, फुतूहाते मक्किया, भाग 3, पेज 25</ref>
=== अनन्त पीड़ा और इलाही अदल तथा हिकमत ===
कुछ मुस्लिम विद्वानों ने अनन्त पीड़ा को [[इलाही अदल|दैवीय न्याय]] के विपरीत माना है और सवाल उठाया है कि जिसने इस दुनिया में थोड़े समय के लिए पाप किया है वह हमेशा के लिए नरक में क्यों जलेगा।<ref>जवादी आमोली, तसनीम, 1389 शम्सी, भाग 2, पेज 483</ref>
अन्य विचारकों ने भी अनन्त पीड़ा को [[ईश्वर की हिकमत]] के विरोधाभासों के बारे में बात की है<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 3, पेज 133</ref> और दावा किया है कि जिस प्राणी को अंतहीन दंड में फंसाया जाना चाहिए, उसका निर्माण बुद्धिमानी नहीं है।<ref>बलानियान व दहक़ानी महमूदाबादी, ख़ुलूद दर अज़ाब, पेज 179</ref>
=== तजस्सुमे आमाल के सिद्धांत के साथ अनन्त पीड़ा की व्याख्या ===
कुछ धार्मिक विद्वानों का मानना है कि अनन्त पीड़ा और इलाही अदल की अनुकूलता तजस्सुमे आमाल के सिद्धांत के माध्यम से ही संभव है।<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 1, पेज 138</ref> उनके अनुसार, न्याय के साथ दंड की असंगति संविदात्मक और विश्वसनीय दंड में विश्वास के कारण होती है; क्योंकि इसके बाद की सज़ाओं को एक परंपरा के रूप में जानने से अनन्त पीड़ा की संभावना के बारे में सवाल उठते हैं, और अनन्त पीड़ा के लिए एक उचित मकसद पर विचार करना संभव नहीं है।<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 1, पेज 138</ref> इस कारण से, उनमें से एक समूह ने इस पर भरोसा किया है कर्मों के मूर्त रूप का सिद्धांत अनन्त पीड़ा की व्याख्या करता है।<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 1, पेज 137</ref> अन्य लोगों ने शिकायत की है कि [[तजस्सुमे आमाल]] का सिद्धांत केवल नरक मे हमेशा रहने की संभावना को सिद्ध कर सकता है, इसकी निश्चित प्राप्ति को नहीं।<ref>क़दरदान क़रामल्कि, ताअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ़्फ़ार 1, पेज 138</ref>
इस संबंध में, [[अल्लामा तबातबाई]] भौतिक आंदोलन सहित [[हिकमते मुताआलेआ]] के सिद्धांतों के आधार पर नरक मे हमेशा रहने की व्याख्या करते हैं। उनका मानना है कि यदि बदसूरत चेहरों को मानव आत्मा के साथ एकजुट नहीं किया जाता है, तो आत्मा सीमित पीड़ा की अवधि के बाद मुक्त हो जाएगी; लेकिन अगर [[पाप]] उसकी आत्मा के स्वभाव का हिस्सा बन गए हैं, और आत्मा बिना किसी दबाव के पाप में लिप्त हो जाती है और पाप से संतुष्ट हो जाती है, तो वह अनन्त पीड़ा में रहेगा।<ref>तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 412-414</ref>
== फुटनोट ==
{{फुटनोट}}
== स्रोत ==
{{स्रोत}}
* इब्न अरबी, मुहम्मद बिन अली, अल फ़ुतूहात मक्किया, बैरूत, दार सादिर
* अश्अरि, अली बिन इस्माईल, किताब मकालात अल इस्लामीईन व इख्तेलाफ अल मुसल्लीईन, शोधः हलमूत रीतर, वीसबादान, 1980 ई
* बतहाई, सय्यद हसन, रहमत इलाही व ख़ुलूद दोज़खियान, दर मजल्ले कलाम इस्लामी, क्रमांक 76, ज़मिस्तान, 1389 शम्सी
* बगदादी, अब्दुल काहिर बिन ताहिर, अल फ़रक़ो बैनल फ़िरक, छाप मुहम्मद मोहयुद्दीन अब्दुल हमीद, क़ाहिरा
* बलानियान, मुहम्मद रज़ा व मुहम्मद हुसैन दहक़ानी महमूदाबादी, ख़ुलूद दर अज़ाब बा तकिय बर तक़रीरी मुताफ़ावित अज़ आमूजे तजस्सुम आमाल, दर मजल्ले कबसात, क्रमांक 74, ज़मिस्तान, 1393 शम्सी
* तफ़तज़ानी, मसऊद बिन उमर, शरह उल मकासिद, शोधः अब्दुर रहमान अमीरा, क़ाहिरा, 1989 ई, छाप उफ्सत, क़ुम, 1370 -1371 शम्सी
* सक़फ़ी, तेहरानी, मुहम्मद, रवाने जावेद, दर तफसीर क़ुरआन मजीद, तेहरान, 1376 शम्सी
* जुरजानी, अली बिन मुहम्मद, शरह अल मुवाफ़िक, शोधः मुहम्मद बदरुद्दीन नेअसानी हल्बि, मिस्र, 1907 ई, छाप उफ्सत, क़ुम, 1370 शम्सी
* जवादी आमोली, अब्दुल्लाह, तसनीम, क़ुम, इस्रा, सालहाल मुखतलिख
* सातेअ, नसीसेह व मरयम रफ़ीआ, मुकाएसा दीदागाह इमाम ख़ुमानी दर बाबे ख़ुलूद बा साइर आराए मुखालिफ़ व मुवाफ़िक़, दर मजल्ले पुजूहिशनामा मतीन, क्रमांक 62, बहर 1393 शम्सी
* शहरिस्तानी, मुहम्मद बिन अब्दुल करीम, अल मिलल वन निहल, शोधः अहमद फहमी मुहम्मद, काहिरा, 1367 शम्सी, छाप उफ्सत, बैरूत
* शेख सदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल तौहीद, शोधः हाशिम हुसैनी तेहरानी, क़ुम, 1357 शम्सी
* तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, तफसीर अल मीज़ान, क़ुम, नशर इस्लामी, पांचवा संस्करण, 1417 हिजरी
* तूसी, नस्रुद्दीन मुहम्मद बिन मुहम्मद, तजरीद अल ऐतेक़ाद, शोधः मुहम्मद जवाद हुसैनी जलाली, क़ुम, 1407 हिजरी
* अब्दुल बारी, फरजुल्लाह, यौमल क़यामा बैनल इस्लाम वल मसीहीया व यहूदीया, काहिरा, 2004 ई
* अब्दुल बाक़ी, मुहम्मद फ़ुवाद, अल मोअजम अल मुफहरिस लेअलफ़ाज अल क़ुरआन अल करीम
* अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसूफ़, कश्फ उल मुराद फ़ी शरह तजरीद अल ऐतेकाद, शोधः हसन हसन जादा आमोलि, क़ुम, दफ्तर नशर इस्लामी, 1427 हिजरी
* फ़ाज़िल मिक़्दाद, मिक़्दाद बिन अब्दुल्लाह, अल लवामेउल इलाहीया फ़िल मबाहिसिल कलामीया, शोधः मुहम्मद अली क़ाज़ी तबातबाई, क़ुम, 1387 शम्सी
* फ़ख्रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, किताब अल मोहस्सिल, शोधः हुसैन अतीई, क़ाहिरा 1911 ई
* क़ाज़ी अब्दुल जब्बार बिन अहमद, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, शोधः अब्दुल करीम उसमान, क़ाहिरा, 1988 ई
* कदरदान कलामल्कि, मुहम्मद हसन, तअम्मुलि दर जावेदानगी अज़ाब कुफ्फार, दर मजल्ले केहान अंदेशा, क्रमांक 72, 73, 74 खुरदाद ता आबान 1376 शम्सी
* मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बेहार उल अनवार, दार ऐहया अल तुरास अल अरबी, बैरूत, 1403 हिजरी
* शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अवाएलुल मकालात फ़िल मज़ाहिब व मुखतारात वैलीहा रेसालत शरह अक़ाइद अल सुदूक ओ तसहीह अल ऐतेक़ाद, शोधः अब्बास कुली वजदि (वाइज चरंदाई) तबरीज 1330 शम्सी
* मुल्ला सदरा शिराज़ी, मुहम्मद बिन इब्राहीम, अस्फ़ार, (अल हिकमत अल मुताआलीआ फ़िल अस्फार अल अकलीया अल अरबआ) बैरूत, 1981 ई
* रेजाई हफ्तादर, हसन, व मुहम्मद अली इस्माईली व सैफ़अली ज़ाहेदी फर, अरज़याबी नज़रए इंकेताअ अज़ाब जहन्नम दर अंदीशे डा सादेकी तेहरान, दर मजल्ले पुजूहिशहाए क़ुरआनी, क्रमांक 92, पाईज़ 1398 शम्सी
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२,४१५

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