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"रात की नमाज़": अवतरणों में अंतर

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  "रात की नमाज़ पढ़ो। ऐसा कोई बंदा नहीं है जो रात के अंत में जागता हो और आठ रकअत रात की [[नमाज़]], दो रकअत शफ़ा की नमाज़ और एक रकअत वित्र की नमाज़ पढ़ता हो, और उसके क़ुनूत में सत्तर बार माफ़ी मांगता हो। मगर ईश्वर उसे क़ब्र के अज़ाब और आग की पीड़ा से न बचाए और उसकी उम्र को न बढ़ाये और उसके जीवन में ख़ैर व बरकत पैदा न करे। ... जिन घरों में रात की [[नमाज़]] पढ़ी जाती है, उनकी रौशनी आसमान के लोगों के लिए चमकती है; जैसे तारों की रौशनी पृथ्वी के लोगों के लिए चमकती है। (फ़त्ताल नैशापूरी, रौज़ातुल-वायेज़ीन कॉलेज, 1375 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 320)
  "रात की नमाज़ पढ़ो। ऐसा कोई बंदा नहीं है जो रात के अंत में जागता हो और आठ रकअत रात की [[नमाज़]], दो रकअत शफ़ा की नमाज़ और एक रकअत वित्र की नमाज़ पढ़ता हो, और उसके क़ुनूत में सत्तर बार माफ़ी मांगता हो। मगर ईश्वर उसे क़ब्र के अज़ाब और आग की पीड़ा से न बचाए और उसकी उम्र को न बढ़ाये और उसके जीवन में ख़ैर व बरकत पैदा न करे। ... जिन घरों में रात की [[नमाज़]] पढ़ी जाती है, उनकी रौशनी आसमान के लोगों के लिए चमकती है; जैसे तारों की रौशनी पृथ्वी के लोगों के लिए चमकती है। (फ़त्ताल नैशापूरी, रौज़ातुल-वायेज़ीन कॉलेज, 1375 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 320)


रात की नमाज़ मुस्तहब नमाज़ों में से एक है जिस के पढ़ने पर हदीसों में ज़ोर दिया गया है। जैसे [[पैगंबर (स)]] ने अपनी वसीयत में [[इमाम अली (अ)]] को रात की नमाज़ पढ़ने की तीन बार शिफ़ारिश की है। <ref> सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 481 और खंड 4, पृष्ठ 179।</ref> इसी तरह से आप (स) यह भी वर्णित है कि उन्होंने [[मुसलमानों]] को संबोधित किया और कहा: "रात की नमाज़ पढ़ों, भले ही एक रकअत।" ; क्योंकि रात की प्रार्थना व्यक्ति को [[पाप]] करने से रोकती है और प्रभु के क्रोध को बुझाती है और क़यामत के दिन आग की जलन से दूर करती है।" <ref> मुत्तक़ी हिन्दी, कन्ज़ुल-उम्माल, 1410 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 791, 21431 हिजरी।</ref> हदीस किताबों में एक अध्याय, "सलात अल-लैल" शीर्षक के तहत इस विषय की हदीसों के लिये समर्पित है। <ref> सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 हिजरी,  खंड 1, पृष्ठ 484।</ref>
रात की नमाज़ मुस्तहब नमाज़ों में से एक है जिस के पढ़ने पर हदीसों में ज़ोर दिया गया है। जैसे [[पैग़म्बर (स)]] ने अपनी वसीयत में [[इमाम अली (अ)]] को रात की नमाज़ पढ़ने की तीन बार शिफ़ारिश की है। <ref> सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 481 और खंड 4, पृष्ठ 179।</ref> इसी तरह से आप (स) यह भी वर्णित है कि उन्होंने [[मुसलमानों]] को संबोधित किया और कहा: "रात की नमाज़ पढ़ों, भले ही एक रकअत।" ; क्योंकि रात की प्रार्थना व्यक्ति को [[पाप]] करने से रोकती है और प्रभु के क्रोध को बुझाती है और क़यामत के दिन आग की जलन से दूर करती है।" <ref> मुत्तक़ी हिन्दी, कन्ज़ुल-उम्माल, 1410 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 791, 21431 हिजरी।</ref> [[हदीस]] किताबों में एक अध्याय, "सलात अल-लैल" शीर्षक के तहत इस विषय की हदीसों के लिये समर्पित है। <ref> सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 हिजरी,  खंड 1, पृष्ठ 484।</ref>


[[इमामिया|शिया]] मुहद्दिस [[शेख़ सदूक़]] (मृत्यु 381 हिजरी) के अनुसार, रात की नमाज़ [[पैगंबर (स)]] के लिए अनिवार्य (वाजिब) थी और दूसरों के लिए अनुशंसित (मुसतहब) है। <ref> सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 हिजरी,  खंड 1, पृष्ठ 484।</ref> [[शेख़ मुफ़ीद]] भी रात की प्रार्थना को एक मज़बूत (मोवक्कद) [[सुन्नत]] मानते थे। <ref> मुफ़ीद, अल-मुक़नेआ, 1413 हिजरी, पृष्ठ 120।</ref>
[[इमामिया|शिया]] मुहद्दिस [[शेख़ सदूक़]] (मृत्यु 381 हिजरी) के अनुसार, रात की नमाज़ [[पैग़म्बर (स)]] के लिए अनिवार्य (वाजिब) थी और दूसरों के लिए अनुशंसित (मुसतहब) है। <ref> सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 हिजरी,  खंड 1, पृष्ठ 484।</ref> [[शेख़ मुफ़ीद]] भी रात की प्रार्थना को एक मज़बूत (मोवक्कद) [[सुन्नत]] मानते थे। <ref> मुफ़ीद, अल-मुक़नेआ, 1413 हिजरी, पृष्ठ 120।</ref>


==पढ़ने का तरीक़ा==
==पढ़ने का तरीक़ा==
confirmed, movedable
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